राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना था कि गांव का शासन गांव से चले. गांव के लोग खुद ही यह तय करें कि उनका विकास किस तरह से किया जाए. इसी राह पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की 18 ग्राम पंचायतों ने इलाके में स्थित विश्व की दिग्गज पेय पदार्थ निर्माता कंपनी कोका कोला के मेहदीगंज प्लांट को बंद करने की मांग की है. इन पंचायतों के प्रमुखों का कहना है कि कोका कोला संयंत्र द्वारा पानी की अत्यधिक खपत के चलते इलाके में पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है और स्थानीय लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. ये सारी 18 ग्राम पंचायतें कोका कोला प्लांट के पांच किमी. के दायरे में आती हैं.
इस विषय में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को पत्र लिखकर कोका कोला संयंत्र के भूजल दोहन पर रोक लगाने की मांग करने वालों में स्थानीय विधायक महेंद्र सिंह पटेल भी शामिल हैं. इस पत्र में कहा गया है कि जब मेहदीगंज कोका कोला संयंत्र की स्थापना 1999 में हुई थी, उस समय इलाके का भूजल स्तर सुरक्षित था. स्थापना के बाद से कोका कोला प्रतिवर्ष 50 हजार घन मीटर भूजल का दोहन कर रही है. 2009 में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पानी की भीषण किल्लत को देखते हुए वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक को अधिक दोहित (ओवर एक्सप्लाॅयटेड) घोषित कर दिया है. मेहदीगंज इसी ब्लॉक के अंतर्गत आता है. ग्राम प्रतिनिधियों को कोका कोला द्वारा इतनी मात्रा में भूजल का दोहन करना स्वीकार्य नहीं है.
प्यासे लोग – बर्बाद खेती
विकास की राह किस तरह कभी-कभी बर्बादी की ओर ले जाती है इसका नजारा आप वाराणसी जंक्शन से करीब 25 किमी. दूर मेहदीगंज इलाके में देख सकते हैं. इसकी शुरुआत 90 के दशक में हुई जब इलाके के किसानों और ग्राम पंचायतों ने खुशी-खुशी अपनी जमीनें पारले एग्रो समूह को प्लांट लगाने के लिए दी थीं, जिसे बाद में कोका कोला ने खरीद लिया और मेहदीगंज में 1999-2000 के आसपास बॉटलिंग प्लांट लगाया. प्लांट लगाते समय कंपनी के अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि कोला कोला बहुराष्ट्रीय कंपनी है और वह इलाके की तस्वीर बदल देगी. लोगों को रोजगार मिलेगा और बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित होंगे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ. प्लांट लगने के साथ गांववालों का कंपनी से विवादों का सिलसिला शुरू हो गया था. शुरुआत जमीन विवाद से हुई. कंपनी के ऊपर आरोप लगा कि उसने ग्राम सभा की जमीन हथिया ली. मामला अदालत में पहुंचा और इस पर कंपनी को हाईकोर्ट से स्टे आॅर्डर मिला हुआ है. कंपनी का काम शुरू हुआ. कोल्ड ड्रिंक बनने के दौरान भारी मात्रा में प्रदूषित पानी भी निकलता है. कंपनी ने प्रदूषित पानी को गांव वालों के खेतों में डालना शुरू कर दिया.
‘इलाके का हाल बहुत बुरा है. यहां आपको पीने के पानी के लिए हैंडपंप लगाने पर पाबंदी है. खेती के लिए ट्यूबवेल लगाने के लिए भी आपको प्रशासन से अनुमति लेनी होगी’
गांव के किसानों को लगा कि यह पानी उनके खेतों के लिए फायदेमंद है तो उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई लेकिन जल्द ही उनका ये भ्रम दूर हो गया. इस पानी के चलते पैदावार पर बुरा असर पड़ा. वहीं गांव के तालाबों और बावड़ियों का पानी भी प्रदूषित हो गया. 2003 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मेहदीगंज प्लांट से निकलने वाले पानी की जांच में पाया कि उसमें सीसा, कैडमियम और क्रोमियम की मात्रा निर्धारित मानकों से कहीं अधिक है. उस समय कृषि वैज्ञानिकों ने भी बताया कि पानी में कैडमियम की ज्यादा मात्रा होने से फसलें खराब हुईं और उत्पादन प्रभावित हुआ. जब यह बात गांववालों की समझ में आई तो उन्होंने इसका विरोध किया. विरोध बढ़ता देख कंपनी ने किसानों के खेतों में पानी डालना छोड़ दिया. इसी तरह प्लांट से निकलने वाले कचरे को भी कंपनी किसानों को उनकी फसलों के लिए उपयोगी बताकर खेतों में निरंतर डालती रही. पर इसने भी किसानों की फसलों को बर्बाद किया. कंपनी द्वारा कचरे का सही तरीके से निस्तारण करने को लेकर भी किसानों को आंदोलन करना पड़ा. एक बार तो इस कचरे को ट्रैक्टर पर लादकर किसान वाराणसी स्थित स्थानीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आफिस भी पहुंच गए.
पानी पर खींचातानी
2009 में केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वाराणसी के आराजी लाइन ब्लॉक का भूजल स्तर बहुत ही नीचे पहुंच गया है इसलिए भूजल का दोहन तत्काल बंद कर देना चाहिए. इसके तुरंत बाद प्रशासन ने वहां स्थानीय लोगों व किसानों के भूजल दोहन पर पाबंदी लगा दी. अब आलम यह है कि नए हैंडपंप लगाने, कुआं खोदने और ट्यूबवेल लगाने से पहले प्रशासन की अनुमति लेनी पड़ती है. पर ये नियम-कानून किसानों और आमजन के लिए है, कोका कोला को इससे फर्क नहीं पड़ता. कोका कोला ने वर्ष 2012-13 में अपनी दोहन क्षमता का विस्तार करने की अर्जी दी. कंपनी को प्रतिवर्ष 50,000 घन मीटर पानी हर साल निकालने की अनुमति तो मिली ही थी, जिसे वह चार गुना बढ़ाकर 2,00,000 घन मीटर पानी प्रतिवर्ष करना चाहती थी. इस मांग का पंचायतों और स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया. एक बड़ा आंदोलन चला, जिसके चलते कोका कोला को यह अनुमति नहीं मिली.
जब पानी के संकट का मामला लगातार उठाया जाने लगा तो कंपनी ने ‘रेन वाटर हारवेस्टिंग’ की बात कही और उसने कहा कि वह जल संरक्षण करके प्लांट को वाटर पॉजिटिव बनाएगी यानी जितने पानी का दोहन करेगी उतने का संरक्षण भी करेगी. बाद में उसने प्लांट को वाटर पॉजिटिव भी घोषित कर दिया. हालांकि लगातार विरोध जारी रहने के बाद 6 जून 2014 को यूपीपीसीबी ने इस संयंत्र को बंद करने का आदेश दे दिया. यूपीपीसीबी ने कहा था कि कोका कोला ने कम पानी वाले क्षेत्रों में भूमिगत जल की निगरानी व नियमन करने वाली सरकारी एजेंसी केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्लूए) से जरूरी मंजूरी नहीं ली थी. कोका कोला ने इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में अपील की, जहां से कंपनी को संयंत्र का परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति मिल गई.
लोक समिति संस्था से जुड़े और कोका कोला प्लांट के खिलाफ आंदोलन करने वाले नंदलाल मास्टर कहते हैं, ‘इलाके का हाल बहुत बुरा है. यहां आपको पीने के पानी के लिए हैंडपंप लगाने पर पाबंदी है. जीने के लिए आपको अन्न उपजाना होगा, लेकिन खेती के लिए ट्यूबवेल लगाने के लिए आपको प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. अब किसान को अनुमति की जरूरत है पर कोका कोला को पानी निकालने की छूट मिल जाती है.’
बंजर जमीन पर भारी बाजार
यूपीपीसीबी को भेजे गए पत्र में जन प्रतिनिधियों का कहना है कि भूजल संकट का सभी पर असर पड़ रहा है. नंदलाल मास्टर भी कहते हैं, ‘गांव के लोग पीने के लिए साफ पानी की मांग को लेकर जन प्रतिनिधियों के पास जाते हैं, लेकिन नए हैंडपंप लगाने या कुएं की खुदाई पर रोक लगी होने के कारण जनप्रतिनिधि भी लाचार हैं. ऐसे में उनके सामने भूजल संकट के लिए जिम्मेदार कोका कोला प्लांट को वापस भेजने का ही विकल्प बचता है’.