इस ऑपरेशन के लिए कुल 38 टीमों का गठन किया गया और प्रत्येक टीम की कमान एक सब इंस्पेक्टर को दी गई. हर टीम में पांच पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. ऑपरेशन में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को बाल संरक्षण से संबंधित अधिनियमों एवं प्रक्रियाओं की पूरी जानकारी दी गई. शुरू में इस ऑपरेशन का मकसद केवल गाजियाबाद जिले से गुमशुदा बच्चों को तलाश कर वापस लाने का था, लेकिन अभियान के दौरान उनकी टीमों को देश के अलग-अलग हिस्सों के बच्चे मिले, जो अपने परिवारों से बिछुड़ चुके थे और अपने परिवारों के पास जाना चाहते थे. इसके बाद इन टीमों ने सभी बच्चों को गाजियाबाद लाने और उन्हें उनके परिवारों तक पहुंचाने के प्रयास शुरू किए.
धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि इस ऑपरेशन को शुरू करना आसान नहीं था. रोजमर्रा के कामकाज से करीब 200 पुलिसकर्मियों को अलग करना कठिन था. इस ऑपरेशन के नाकाम होने का भी खतरा था, लेकिन जब उन्होंने बिछड़े बच्चों को अपनों से मिलते देखा तो लगा कि उनकी मेहनत सफल हुई है. वह कहते हैं, ‘कई स्थानों पर हमें बच्चों को वापस लाने में काफी विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन यह हमारी टीम की कामयाबी है कि हम इतने गुमशुदा बच्चों को उनके परिवारों तक पहुंचा पाए.’
इस ऑपरेशन के दौरान बरामद हुए 227 बच्चों में 201 लड़के और 26 लड़कियां हैं. इन बच्चों में से 190 बच्चे उत्तर प्रदेश के 60 जनपदों के हैं, जबकि 37 बच्चे दिल्ली, बिहार, हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों के हैं. हैरत की बात यह है कि इनमें से सिर्फ 42 बच्चों की गुमशुदगी के मामले ही विभिन्न थानों में दर्ज हैं. इनमें से अधिकतर बच्चे निम्न मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के परिवारों से हैं. रणविजय सिंह ने तहलका को बताया कि इस अभियान के दौरान बरामद हुए बच्चों में से करीब 60 से 70 फीसदी बच्चों ने या तो माता-पिता की डांट से तंग आकर घर छोड़ा था या फिर खराब आर्थिक हालात के चलते घर से भागे थे.
रणविजय सिंह बताते हैं, ‘इनमें से भी अधिकांश बच्चों का कहना है कि वे पढ़ाई के दबाव को झेलने में नाकाम होकर यह कदम उठाने को बाध्य हुए. इसके अलावा कई परिवारों की खराब आर्थिक हालात ने भी बच्चों को घर छोड़ने को मजबूर किया.’
बच्चों का इस तरह घर छोड़ देना और आपराधिक गिरोहों का शिकार हो जाना केवल कानून व्यवस्था की ही नहीं बल्कि सामाजिक समस्या है. कई बार माता-पिता के बीच बढ़ती अनबन भी बच्चों को घर छोड़ देने को उकसाती है. इस ऑपरेशन के दौरान मुम्बई से बरामद हुई 15 वर्षीया शिवानी और उसके 11 वर्षीय भाई साहिल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. पिता से अलग रह रही मां की तलाश में ये दोनों आगरा पहुंचे और फिर वहां से जा पहुंचे मुम्बई.
शिवानी और साहिल के पिता संजीव वेद ने तहलका को बताया कि करीब एक साल पहले अनबन के चलते उनकी पत्नी आगरा जाने की बात कहकर घर से चली गई. मई के महीने में दोनों बच्चे मां की तलाश में घर से आगरा के लिए निकल पड़े और आगरा में उनके न मिलने पर मुम्बई पहुंच गए. मुम्बई पुलिस ने टीवी पर ऑपरेशन स्माइल की खबर देखकर गाजियाबाद पुलिस से संपर्क किया और उनके बच्चे उन्हें वापस मिले.
शिवानी ने बताया कि मां की तलाश में वह और साहिल आगरा से मुम्बई पहुंचे. वहां एक महिला उन्हें अपने घर ले गई, जहां से मोहल्लेवालों की सूचना पर पुलिस उन्हें अपने साथ ले गई और चाइल्ड होम में रखवा दिया. उन्हें कुछ दिन बाद गाजियाबाद पुलिस के पास भिजवाया गया जिसने उन्हें उनके पिता से वापस मिलवाया.
बच्चों की गुमशुदगी के मामले में कुछ और चौंकानेवाले तथ्य सामने आए हैं. इस ऑपरेशन के दौरान अधिकतर बच्चे विभिन्न पूजास्थलों या रेलवे स्टेशनों के आस-पास मिले हैं. इसके अलावा विभिन्न एनजीओ के आश्रय स्थलों से भी इन गुमशुदा बच्चों को बरामद किया गया है. इसका मतलब यह है कि अगर पुलिस सहित सभी संबंधित विभाग बच्चों की गुमशुदगी के मामले में मुस्तैदी दिखाएं तो अधिकांश बच्चों को इनके परिवारों तक पहुंचाया जा सकता है. लेकिन इस काम के आड़े आती है इन विभागों में इच्छाशक्ति की कमी और इनके बीच समन्वय का अभाव. केवल अलग-अलग राज्यों की पुलिस के बीच ही नहीं, बल्कि एक राज्य के अलग-अलग जिलों की पुलिस के बीच संवादहीनता भी इस मामले में नाकामी की वजह बनती है.
उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने इस अभियान की सराहना करते हुए इसे पूरे प्रदेश में शुरू करने के आदेश दिए हैं. इसके अलावा दूसरे राज्यों की पुलिस भी इस ऑपरेशन की जानकारी और प्रशिक्षण लेने की पहल कर रही है. चंडीगढ़ पुलिस की एक टीम इस अभियान के विषय में जानकारी लेने गाजियाबाद आई. आजकल छत्तीसगढ़ पुलिस की कुछ टीमें गाजियाबाद आई हुई हैं और वे ऑपरेशन स्माइल की ट्रेनिंग ले रही हैं.
ये तो बहुत ही आचा प्रयाश है मैं सभी पुलिस वालों को इस बात के लिए बधाई देता हूँ जिन्होंने इस नेक काम को सफल बनाया तथा बिछुड़े बच्चो को माँ बाप से milwaya