
ये बात सही है कि सरकार ने आयोग का गठन दो महीने के लिए किया था. लेकिन ये कहना गलत होगा कि आयोग को जांच करने में अधिक समय लगा. मुझे नहीं याद आता कि इतने कम समय में किसी दूसरे आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी हो. नाम लेना गलत होगा लेकिन कई कमीशन तो सालों से चल रहे हैं. आयोग के गठन के बाद कुछ समय काम जरूर सुस्त था क्योंकि आयोग को कार्यालय मिलने में थोड़ी देर जरूर हुई थी.
दंगों के बाद सरकार ने जो आयोग बनाया था उसकी जांच का आधार क्या था. किन चीजों को जांच के दौरान शामिल किया गया है?
नौ सितंबर को सरकार ने आयोग बनाने का निर्णय लिया और 11 सितंबर को मैंने आयोग के अध्यक्ष का जिम्मा संभाला. गवर्नर ने आयोग से चार बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी. पहला वारदात क्या थी और उनका कारण क्या था. दूसरा वहां तैनात अधिकारियों का दंगों के दौरान रिस्पॉन्स कैसा था. तीसरा, जो दंगे हुए उसके लिए कौन- कौन लोग जिम्मेदार थे और अंतिम बिंदु था कि भविष्य में ऐसे दंगे न हों इस पर आयोग से सुझाव भी राज्यपाल की ओर से मांगे गए थे.
आखिर घटना हुई क्यों? जांच के दौरान गवाहों ने जो बयान और साक्ष्य दिए वो किस ओर इशारा करते हैं?
मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में जो हत्या हुई उसकी वजह से माहौल खराब हुआ. जबकि इसकी भूमिका वहां चार-पांच महीने पहले से ही बनने लगी थी. हिंदुओं का मानना था कि छेड़छाड़ को लेकर घटना हुई है जबकि दूसरे पक्ष का मानना था कि शाहनवाज की बाइक हिंदू पार्टी से टकरा गई थी जिसकी वजह से कवाल में हत्या हुई.
आयोग ने जांच के दौरान किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया?