‘अब्बू कहते थे मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं, ऐसे आदमी को उस रात धर्मांध भीड़ ने मार डाला’

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घर से फोन आना सरताज के लिए सामान्य बात थी. उनका 22 वर्षीय छोटा भाई दानिश, जो कि हास-परिहास और जिंदादिली से भरपूर था, अक्सर उन्हें फोन करता था. दोनों भाइयों में तमाम मसलों पर चर्चा होती थी और हर बात से पहले वे थोड़ा सा हंसी मजाक भी कर लेते थे. वायुसेना की जिंदगी ने सरताज को परिवार से दूर कर दिया था. उत्तर प्रदेश स्थित बिसाहड़ा गांव से बहुत दूर चेन्नई में रहते हुए वह परिवार से बहुत कम संपर्क कर पाता था. अक्सर देर शाम के वक्त सरताज के घर से फोन आया करता था. 28 सितंबर की रात जब उनकी बहन का नंबर मोबाइल पर साया हुआ तो उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि ये कॉल उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदलने जा रही है.

मोबाइल पर आ रही कॉल रिसीव करने के लिए उनकी उंगलियों ने जब रिसीविंग बटन दबाया तब उन्हें नहीं पता था कि वे अब तक की सबसे बुरी खबर सुनने जा रहे हैं. खून की प्यासी भीड़ ने उनसे उनके पिता को छीन लिया था.

उनकी बहन ने रोते-चीखते हुए किसी तरह कहने की कोशिश की, ‘वे हम सबको मार डालेंगे. उन्होंने अब्बू को मार डाला. भाई प्लीज, कुछ करो.’ फोन पर पीछे से आ रहा कोलाहल सरताज को सुनाई दे रहा था. यह बताते हुए सरताज की आंखें भर आईं. सरताज ने अपनी लरजती आवाज को मुश्किल से संभाला.

सरताज ने इस दौरान खुद को संभालने और एक बहादुर की तरह पेश करने की पूरी कोशिश की, जबकि उनके पिता की पीटकर हत्या कर दी गई थी और उनका भाई दानिश जिंदगी और मौत से जूझ रहा है. दानिश का अब भी दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है.

अस्पताल के बिस्तर पर पड़े भाई के बगल में एक छोटे से स्टूल पर बैठे सरताज आपबीती सुना रहे थे. घटना के दौरान जब उसकी बहन का फोन आया, उसके बाद सरताज ने खुद को संभाला और बिसाहड़ा की स्थानीय पुलिस को मदद के लिए फोन किया. सरताज के मुताबिक, ‘पुलिस वालों ने इसे रोजमर्रा के अन्य फोन की तरह ही रिसीव किया और काट दिया. मैंने कई बार कॉल किया लेकिन सब बेकार गया. मैंने एंबुलेंस सर्विस के लिए आपातकालीन नंबर पर भी फोन किया लेकिन उन्होंने भी कुछ करने से मना कर दिया.’

जिस वक्त सरताज की बहन लगातार बदहवासी में उन्हें मदद के लिए फोन कर रही थीं, उस वक्त को याद करते हुए सरताज कहते हैं, ‘मैंने अपने जीवन में खुद को इतना असहाय कभी नहीं महसूस किया था. उस रात मैं कई बार मरा. आखिरकार, सुबह करीब चार बजे मुझे पता चला कि अब्बू नहीं रहे.’

सरताज जानते हैं कि एक बार अगर आंख से आंसू निकले तो उन्हें रोक पाना आसान नहीं होगा. वे रोना नहीं चाहते, न ही अपने भाई पर इसका असर होने देना चाहते हैं. सरताज अपने अब्बू को अपना रोल मॉडल मानते हैं. वे याद करते हैं, ‘मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे एक व्यक्ति बुरे से बुरे वक्त में भी उम्मीद नहीं छोड़ता. मुश्किल वक्त में भी कभी उन्हाेंने परिवार नहीं टूटने दिया. वे हमेशा हम लोगों से कहते थे कि मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है. ऐसे आदमी को उस रात धर्मांध भीड़ ने मार डाला.’

अखलाक ने कुछ समय पहले अपने घर के पास ही के मंदिर की चहारदीवारी और दरवाजे के निर्माण में निःशुल्क काम किया था. सरताज कहते हैं, ‘मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता कि जो लोग हमारे उत्सवों में शामिल हुआ करते थे, एक दिन मेरे पिता की हत्या कर देंगे. मानवता में मेरा विश्वास अब भी बरकरार है, लेकिन सिर्फ सामान्य तौर पर. मैं अपने पड़ोसियों और दूसरे गांव वालों पर कतई विश्वास नहीं कर सकता. इसलिए मैंने सोचा है कि अपने परिवार को चेन्नई ले जाऊंगा. गांव के जिन लोगों पर अब्बू के कत्ल का इल्जाम है, उनमें से कुछ तो मेरे बाद पैदा हुए हैं. मैंने उन्हें बड़े होते हुए देखा है. वे मेरे भाई के हमउम्र हैं.’

सरताज की बहन ने उन्हें बताया कि अस्पताल ले जाने के पहले ही उनके पिता की मौत हो चुकी थी. ‘लेकिन भीड़ ने उनकी लाश पर भी रहम नहीं किया. जब वैन अब्बू को अस्पताल ले जाने लगी तब उन लोगों ने वैन पर भी ईंट-पत्थर फेंके.’

वायुसेना के इस जवान के लिए अपने भाई की गंभीर हालत फिलहाल चिंता का सबब है. वे कहते हैं, ‘मेरा भाई अच्छा विद्यार्थी था. अभी कुछ  दिन पहले ही उसने उन सब प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आवेदन किए थे, जिनके लिए वह योग्य था. लेकिन वह भारतीय सेना की तरफ आकर्षित था. सेना में अफसर बनना चाहता था. वह कम्बाइंड डिफेंस सर्विस (सीडीएस) की परीक्षा भी देने वाला था.’

घटना के इतने समय बाद अब दानिश पर धीरे-धीरे इलाज का असर हो रहा है. हालांकि डॉक्टरों को यह डर है कि ठीक होने पर उसको याददाश्त से संबंधित दिक्कतें आ सकती हैं. सरताज बताते हैं, ‘उसके सिर पर जानलेवा किस्म की चोटें आई हैं. भीड़ ने मेरे पिता को तो मार ही दिया, साथ ही मेरे भाई के सपनों को भी कुचल दिया.’ दानिश के साथ गुजरे दिनों को याद करके सरताज के होठों पर मुस्कान आ जाती है. वह याद करते हैं, ‘वह जिंदादिल इंसान था. उसके साथ होने पर आपको अपनी हंसी रोकनी मुश्किल होती. वह इतना मजाकिया है कि उसके साथ कुछ देर बैठते के बाद आप हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाओगे.’

सरताज ‘तहलका’ को बताते हैं कि भीड़ का गुस्सा स्वाभाविक नहीं था. उन्हाेंने कहा, ‘मुझे नहीं याद है कि इस गांव में कभी एक भी सांप्रदायिक घटना घटी हो. जो लोग इस गांव को धर्म के आधार पर बांटना चाहते हैं, उन्हाेंने जरूर पहले से इसकी तैयारी की होगी. मैं किसी पार्टी विशेष पर इल्जाम नहीं लगाना चाहता लेकिन मैं दिल से चाहता हूं कि मेरे पिता के हत्यारों को ऐसी सजा मिले जो ऐसेे लोगों के लिए नजीर बन सके. इस बीच नेताओं को गांव का माहौल नहीं बिगाड़ना चाहिए. मैं सभी से अपील करता हूं कि सौहार्द्र बनाएं रखें. नेता आकर हमारा दुख बांट सकते हैं लेकिन उनको खून पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.’ जाहिर है कि सरताज जिस देश की सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उस देश को लेकर उनकी निष्ठा को डिगा पाने में ऐसी कई भयावह घटनाएं भी कम पड़ जाएंगी. सरताज कहते हैं, ‘मैं अपने देश की सेवा उसी शिद्दत से करता रहूंगा जिसके साथ मेरे पिता ने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया था’ और इसके बाद वे शाम की नमाज के लिए चले गए.’