ड्रग्स की चपेट में मणिपुर

मणिपुर में अनेक आम लोग और कुछ सरकारी कर्मचारी तक ले रहे ड्रग्स जातीय हिंसा से तबाह हो रहे मणिपुर के शहर इंफाल के आसपास मादक पदार्थों की महामारी चुपचाप अपना शिकंजा कसती जा रही है। ड्रग्स की चपेट में बड़ी संख्या में मणिपुर के युवा तो हैं ही, बहुत-से अन्य उम्र के लोग, महिलाएँ और कई सरकारी कर्मचारी तक ड्रग्स की लत में जकड़े हुए हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :- इंफाल हवाई अड्डे पर पहुँचने पर स्थानीय टैक्सी ड्राइवरों के साथ पूछताछ पर उन क्षेत्रों का पता चलता है, जहाँ नशीले पदार्थों से सम्बन्धित मुद्दे प्रचलित हैं। जब उनसे (ड्रग्स तस्करों से) सम्पर्क किया जाता है, तो वे उत्तरी एओसी, क्षेत्रीगाओ, लिलोंग और टॉप हेखरू मखोंग जैसे इंफाल के इलाक़ों के बारे में बताते हैं। उनके अनुसार, ये इंफाल शहर के कुछ हॉट स्पॉट हैं; जहाँ ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हैं।
एक टैक्सी ड्राइवर ने भी हमारे साथ एक और ख़ुलासा करते हुए कहा कि जब आप उपरोक्त स्थानों में से एक जगह भी पहुँचें और हेरोइन नंबर-4 का अनुरोध करें, जो अफ़ीम से निकाले गये चौथे चरण की दवा के लिए लोकप्रिय शब्द है; तो तस्कर आपकी माँग को अनदेखा करने की कोशिश करेंगे। हालाँकि जिस क्षण आप चार उँगलियों से इशारा करते हैं, वे तुरन्त समझ जाते हैं कि आप एक नियमित ग्राहक हैं और आपको तुरन्त ड्रग्स की आपूर्ति करते हैं। मणिपुर में नशीले पदार्थों की तस्करी से परिचित सूत्रों ने ‘तहलका’ रिपोर्टर को बताया कि इन दिनों हेरोइन नंबर-4 इंफाल में सबसे अधिक माँग वाली ड्रग है।
हमारे जाँच निष्कर्षों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इस ड्रग्स का आकर्षण मणिपुर की राजधानी इंफाल के युवाओं पर तो है ही, जो पिछले कुछ महीनों के दौरान जातीय हिंसा से प्रभावित हैं। ‘तहलका’ ने एक परेशान करने वाली वास्तविकता का भी ख़ुलासा किया। दरअसल जिनकी ज़िम्मेदारी नशीले पदार्थों के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाने की है, राज्य सरकार के वही कर्मचारी, जिनमें इंजीनियर, ठेकेदार, क्लर्क और शिक्षक भी हैं; ड्रग्स की लत के शिकार हो रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि लगभग 10-15 सरकारी कर्मचारियों ने इंफाल में एक ड्रग पुनर्वास केंद्र में अपना इलाज कराया। सूत्रों ने कहा कि हमारे पास मणिपुर के अन्य पुनर्वास केंद्रों के सटीक आँकड़े नहीं हैं। मणिपुर में चल रहे संकट ने भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण ग़ैर-पारंपरिक ख़तरों में से एक का ख़ुलासा किया है, जो नार्को-आतंकवाद का रूप ले रहा है। मणिपुर सरकार के ड्रग्स के ख़िलाफ़ युद्ध ने एक भयंकर ड्रग कार्टेल की उपस्थिति और मणिपुर के सामाजिक व राजनीतिक ताने-बाने पर उसके व्यापक प्रभाव को उजागर किया है। न केवल युवा, बल्कि निजी फर्मों में काम करने वाले लोग ड्रग्स ख़रीद रहे हैं। उपयोग कर रहे हैं और बेच रहे हैं, बल्कि शिक्षकों सहित राज्य सरकार के अनेक कर्मचारी भी, जो हमारे देश के भविष्य को आकार देने की ज़िम्मेदारी उठाते हैं; नशीले पदार्थों के उपयोग से अछूते नहीं हैं। मणिपुर में क्या ग़लत हुआ? इसकी तह तक जाने के लिए ‘तहलका’ ने इंफाल के एक ड्रग पुनर्वास केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ. स्टालिन ओराम (बदला हुआ नाम) से ख़ास बातचीत की। डॉ. स्टालिन ओराम (बदला हुआ नाम) ने मणिपुर राज्य सरकार के 10-15 कर्मचारियों के इलाज के अपने अनुभवों को साझा किया, जो लम्बे समय से नशे की लत से जूझ रहे थे। यह एक ही पुनर्वास केंद्र का आँकड़ा है। इसके अलावा एक विशेष साक्षात्कार में विज्ञान में स्नातक राजेश राज (बदला हुआ नाम), जो 2016 से पाँच साल तक नशीले पदार्थों की लत से जूझते रहे; ने ठीक होने की अपनी यात्रा का ख़ुलासा किया। उन्होंने बताया कि कैसे एक एनजीओ और एक पुनर्वास केंद्र की सहायता से उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी नशीले पदार्थों की निर्भरता पर क़ाबू पा लिया। आज राजेश राज न केवल एक नशा मुक्त जीवन जी रहे हैं, बल्कि एक एनजीओ के सदस्य के रूप में नशीले पदार्थों की रोकथाम के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। यह बताते हुए कि उन्होंने अपने केंद्र में कई लोगों का इलाज किया है, डॉ. स्टालिन ने इस तथ्य पर चिन्ता व्यक्त की कि मणिपुर राज्य सरकार के कई कर्मचारी भी ड्रग्स के आदी हैं। मणिपुर के बारे में रिपोर्ट पुनर्वास केंद्र के प्रभारी डॉ. स्टालिन ओराम ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के ड्रग्स लेने की पुष्टि की है।
रिपोर्टर : ये ड्रग तस्कर किस पृष्ठभूमि से आते हैं? डॉ. स्टालिन : यह भिन्न होता है। हमने देखा है कि बेहद ग़रीब मज़दूरों से लेकर बहुत शिक्षित व्यक्तियों तक, जिनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं; सभी क्षेत्रों के लोग ड्रग्स की ओर रुख़ कर रहे हैं। रिपोर्टर : सरकारी कर्मचारी भी ड्रग्स ले रहे हैं? डॉ. स्टालिन : हाँ, दुर्भाग्य से। ड्रग्स किसी को भी प्रभावित कर सकते हैं, चाहे वह किसी भी उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि के हों। वे भेदभाव नहीं करते। अब डॉ. स्टालिन ने ख़ुलासा किया कि सरकारी ठेकेदार, इंजीनियर, क्लर्क और यहाँ तक कि शिक्षक ख़तरनाक रूप से बड़ी संख्या में नशीले पदार्थों के सेवन में शामिल हैं। रिपोर्टर : जिन सरकारी कर्मचारियों का आपने ज़िक्र किया, वे केंद्र सरकार के कर्मचारी थे या राज्य सरकार के? डॉ. स्टालिन : मुख्य रूप से राज्य सरकार के कार्यालयों के। रिपोर्टर : आपने अब तक अपने पुनर्वास केंद्र में कितने सरकारी कर्मचारियों का इलाज किया है? डॉ. स्टालिन : पुनर्वास केंद्र में मेरे कार्यकाल के एक साल में मैंने लगभग 10-15 सरकारी कर्मचारियों का इलाज किया है, जिनमें शिक्षक, इंजीनियर, ठेकेदार और क्लर्क शामिल हैं। रिपोर्टर : ये कर्मचारी किन पदों पर थे? डॉ. स्टालिन : जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, उनमें इंजीनियर, ठेकेदार और शिक्षक शामिल हैं; जिनमें से अधिकांश शिक्षण पेशे से हैं। डॉ. स्टालिन ने मणिपुर के युवाओं के नशे की चपेट में आने पर चिन्ता व्यक्त की। उनका कहना है कि युवा राज्य और देश दोनों का भविष्य हैं। रिपोर्टर : क्या मणिपुर में सरकारी कर्मचारियों में नशे की लत एक बड़ा मुद्दा है? डॉ. स्टालिन : बिलकुल। यह न केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए, बल्कि किसी भी व्यक्ति के लिए एक बड़ी समस्या है। नशे में आप अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हैं। यह (नशा) ख़ुद (नशा करने वाले) को और पूरे समाज को नुक़सान पहुँचाता है। जहाँ एक तरफ़ सरकारी कर्मचारी नशे के लालच में घुटने टेक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ युवा भी मादक पदार्थों के सेवन का शिकार हो रहे हैं। यह एक बड़ी समस्या है। सर! मेरी चिन्ता का विषय युवा हैं; क्योंकि राज्य और देश का भविष्य उन पर निर्भर करता है। रिपोर्टर : हमने सुना है कि महिलाएँ भी ड्रग्स ले रही हैं? डॉ. स्टालिन : वास्तव में। मणिपुर में कुछ केंद्र हैं, जहाँ विशेष रूप से महिलाओं को ड्रग्स की पूर्ति की जाती है। मेरे यहाँ नहीं; लेकिन कुछ अन्य केंद्र हैं।  जैसे-जैसे बात आगे बढ़ी, डॉ. स्टालिन ने हमें बताया कि मणिपुर में जातीय हिंसा भडक़ने के बाद से ड्रग्स की क़ीमतें बढ़ गयी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि हिंसा के कारण म्यांमार से मणिपुर में ड्रग्स आसानी से नहीं पहुँच रही है। इससे पहले इंफाल की सडक़ों पर ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थी। हालाँकि हिंसा के बाद ड्रग्स मुश्किल से उपलब्ध है और जो उपलब्ध है, उसकी क़ीमत बहुत है। रिपोर्टर : मणिपुर में ड्रग्स की वर्तमान स्थिति क्या है? डॉ. स्टालिन : पिछले चार महीनों में जातीय भेदभाव के कारण राज्य में स्थिति अराजक रही है। नतीजतन नशीले पदार्थों की सीमित उपलब्धता के कारण उनकी लागत बढ़ गयी है। नतीजतन ड्रग्स को मुख्य सीमावर्ती क्षेत्रों, जैसे म्यांमार, मोरेह और चुराचांदपुर से आना पड़ता है, जहाँ पहुँचना मुश्किल हो गया है। हालाँकि ड्रग्स उपलब्ध है। लेकिन वह बहुत महँगी है। रिपोर्टर : ड्रग्स की वर्तमान और पिछली क़ीमतें क्या हैं? डॉ. स्टालिन : एक ग्राम ड्रग्स की क़ीमत इस समय लगभग 400 से 600 रुपये है, जो पिछली क़ीमत 150 से 200 रुपये से बहुत अधिक है। इंफाल शहर के कुछ हॉटस्पॉट पर पहले ड्रग्स आसानी से उपलब्ध थे; लेकिन अब ऐसा नहीं है। डॉ. स्टालिन का मानना है कि मणिपुर सरकार का ड्रग्स के ख़िलाफ़ लड़ाई पर्याप्त नहीं है। सरकार नशे के कारोबार पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है; लेकिन मादक पदार्थ अभी भी म्यांमार से असुरक्षित सीमा के माध्यम से राज्य में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब कोकीन से ज़्यादा हेरोइन की माँग है। रिपोर्टर : मणिपुर में नशीले पदार्थों के ख़तरे को नियंत्रित करने के लिए पुलिस क्या कर रही है? डॉ. स्टालिन : वर्तमान सरकार ने इस ख़तरे को रोकने के लिए ड्रग्स के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ दी है। लेकिन यह एक कठिन काम है। एक तरफ़ पुलिस ड्रग्स की सप्लाई को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है; लेकिन दूसरी तरफ़ बॉर्डर से ड्रग्स अभी भी आ रही है। सीमा को सील नहीं किया गया है और जो ड्रग्स आ रही है, वह सबसे अच्छी गुणवत्ता की है। हेरोइन अब सबसे लोकप्रिय ड्रग्स है; कोकीन से भी अधिक लोकप्रिय है। हेरोइन भी कोकीन की तुलना में अधिक महँगी है। डॉ. स्टालिन के अनुसार, लम्बे समय से मणिपुर की पहाडिय़ों में अफ़ीम की खेती का मुद्दा राज्य के युवाओं के भविष्य को ख़तरे में डाल रहा है। उन्होंने नागरिकों की बेबसी पर प्रकाश डाला, जो इन अवैध (अफ़ीम की) फ़सलों को ख़त्म करने के लिए पहाडिय़ों में नहीं जा सकते हैं। उनके अनुसार, यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह कड़े निवारक क़ानूनों को लागू करके इस समस्या का समाधान करे। रिपोर्टर : मणिपुर में अवैध अफ़ीम की खेती के मुद्दे पर आपकी क्या राय है? डॉ. स्टालिन : सर! जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मणिपुर में कई वर्षों से अफ़ीम की खेती जारी है। यह एक ऐसी स्थिति है, जहाँ न तो आप और न ही मैं व्यक्तिगत रूप से इस खेती को रोकने के लिए पहाडिय़ों में जा सकते हैं। इसलिए यह मौज़ूदा सरकार का कर्तव्य है कि वह किसी भी क़ीमत पर इस खेती को ख़त्म करने के लिए प्रभावी क़ानून बनाए; क्योंकि यह हमारे युवाओं के भविष्य के लिए विकट जोखिम पैदा करता है। अपने नशा पुनर्वास केंद्र के बारे में बात करते हुए डॉ. स्टालिन ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में हमारे केंद्र में 11,000 रोगियों (नशा करने वालों) का इलाज किया गया है। इसमें सफलता की दर 41 प्रतिशत है। हालाँकि कुछ मामलों में रोगी ठीक होने के बाद फिर से ड्रग्स लेने लगते हैं। रिपोर्टर : डॉ. स्टालिन! क्या आप अपने पुनर्वास केंद्र से निकलने के बाद अपने मरीज़ों पर नज़र रखते हैं कि वे सामान्य जीवन जी रहे हैं या फिर से ड्रग लेने लगे हैं? डॉ. स्टालिन : हाँ, हम करते हैं। हमारे पास एक नियमित अनुवर्ती प्रणाली है। हम या तो उनके घर जाते हैं या वे हमारे पास आते हैं। हम उनके साथ टेलीफोन पर भी बातचीत करते हैं। पिछले 20 वर्षों में हमने जिन 11,000 रोगियों का इलाज किया है, उनमें से हम पिछले दो वर्षों से मूल्यांकन कर रहे हैं। इन 11,000 लोगों के लिए रिकवरी दर 41 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि उनमें से 41 प्रतिशत नशे से मुक्त हो चुके हैं; लेकिन दूसरों के पुन: नशे में जाने की सम्भावना है। हम उन्हें उनके परिवारों के साथ परामर्श सत्र के लिए बुलाते हैं और उन्हें आगे के समर्थन के लिए पुनर्वास केंद्र लौटने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अब डॉ. स्टालिन अपने पुनर्वसन केंद्र में अलग-अलग समय की अवधि बताते हैं। जैसे- नशे की लत में पड़े नये लोगों के लिए दो महीने। दूसरी बार आने वालों के लिए एक महीना और उनके परिवारों द्वारा छोड़े गये लोगों के लिए तीन-चार महीने। रिपोर्टर : आपके पुनर्वास केंद्र में प्रवेश की न्यूनतम अवधि क्या है? डॉ. स्टालिन : यह निर्भर करता है। पहली बार में मरीज़ों के लिए दो महीने हैं। जो मरीज़ पहले केंद्र पर आ चुके हैं, उनके लिए यह एक महीने का समय है। हालाँकि जिन मरीज़ों को उनके परिवारों द्वारा उपेक्षित किया जाता है, वे तीन-चार महीने तक रह सकते हैं। अब डॉ. स्टालिन ने ख़ुलासा किया कि वह ड्रग एडिक्ट्स का इलाज कैसे करते हैं और उनके बीच वापसी के लक्षणों को कम करने के लिए प्रयास करते हैं। रिपोर्टर : नशे के आदी लोगों के इलाज का तरीक़ा क्या है? डॉ. स्टालिन : हम एक विषहरण तरीक़ों का उपयोग करते हैं। हम उन्हें निर्धारित दवाएँ देते हैं, ताकि उन्हें उन ड्रग्स को छोडऩे में मदद मिल सके, जिनके वे आदी हैं। अब डॉ. स्टालिन ने हमें बताया कि (नशे में) वापसी के दौरान मरीज़ हिंसक और आक्रामक कैसे हो सकते हैं और उन्हें नियंत्रित करना कैसे मुश्किल हो सकता है? रिपोर्टर : उनका इलाज करना कितना मुश्किल है? मुझे कोई ऐसी घटना बताइए, जब उनका इलाज करते समय आपके साथ दुव्र्यवहार किया गया हो? डॉ. स्टालिन : मैंने कभी भी इस तरह के दुव्र्यवहार का सामना नहीं किया है। हाँ; लेकिन जब कोई मरीज़ (नशे में) वापसी से पीडि़त होता है, तो यह मुश्किल समय होता है; क्योंकि मरीज़ थोड़ा जंगली और आक्रामक हो जाता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। हमें उसके पैर या हाथ पकडऩे होंगे। लेकिन मेरे साथ दुव्र्यवहार नहीं किया गया है। इंफाल में अपने पुनर्वास केंद्र के चिकित्सक डॉ. स्टालिन द्वारा अपने अनुभव साझा करने के बाद हमने विज्ञान में स्नातक राजेश राज (बदला हुआ नाम) से मुलाक़ात की, जो सन् 2016 से पाँच साल तक नशीले पदार्थों की लत से जूझते रहे। ठीक होने की अपने अनुभव का ख़ुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एक एनजीओ और एक पुनर्वास केंद्र की सहायता से उन्होंने ड्रग्स पर अपनी निर्भरता को सफलतापूर्वक ख़त्म किया। आज राजेश राज एक ग़ैर-सरकारी संगठन के सदस्य के रूप में नशीले पदार्थों की रोकथाम के प्रयासों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं, जबकि ख़ुद एक नशा-मुक्त जीवन जी रहे हैं। नशे की लत के अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए राजेश ने दावा किया कि ड्रग्स लेने के दौरान उन्हें पुलिस ने कई बार पकड़ा था। हालाँकि वह हर बार पुलिस के जाल में फँसने के बाद रिश्वत देकर छूटने में कामयाब रहे। रिपोर्टर : क्या आपको कभी पुलिस ने पकड़ा है? राजेश : हाँ; मुझे पुलिस ने दो-तीन बार गिर$फ्तार किया था। लेकिन मैं हर बार रिश्वत देकर छूटने में कामयाब रहा। रिपोर्टर : आपने कितने पैसे दिये? राजेश : नारकोटिक्स पुलिस ने मुझे एक बार गिर$फ्तार किया था। मैंने उन्हें 3,000 रुपये दिये और उन्होंने मुझे जाने दिया। मैंने हमेशा पुलिस को रिश्वत दी, इसलिए मेरे ख़िलाफ़ कोई मामला नहीं है। राजेश ने अब ख़ुलासा किया कि वह कितनी मात्रा में नशीले पदार्थों का सेवन करते थे। उन्होंने कहा कि वह हर दिन दो ग्राम नशीले पदार्थों का सेवन करते थे, जिसकी क़ीमत 1,000 रुपये है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने ड्रग्स के ख़र्चे और स्वास्थ्य पर हो रहे ख़र्च को महसूस करने के बाद इस लत को छोड़ दिया। रिपोर्टर : आप हर दिन कितनी ड्रग्स का सेवन करते थे? राजेश : दो ग्राम। इस पर मुझे लगभग 1,000 रुपये ख़र्च करने पड़ते थे। रिपोर्टर : आपने ड्रग्स क्यों छोड़ी?