कुछ जवाब जस्टिस काटजू को भी देने हैं.

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जस्टिस मार्कंडेय काटजू

जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने अपने ताजा ब्लॉग में लिखा है कि वे जब मद्रास हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे तब वर्ष 2004 में वहां के एक अतिरिक्त न्यायाधीश की कई शिकायतें मिलने के बाद उन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश से कहकर इसकी आईबी जांच कराई थी. आईबी की रिपोर्ट ने अतिरिक्त जज को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया था, लेकिन इसके बाद भी उन्हें कार्यकाल विस्तार दे दिया गया. जस्टिस काटजू के मुताबिक तब के चीफ जस्टिस आरके लाहोटी ने ऐसा यूपीए की केंद्र सरकार के दबाव में किया था जो खुद डीएमके के दबाव में थी. इस मामले को जस्टिस काटजू जिस समय, जिस तरह से दुनिया के सामने लाए हैं और इसके बाद वे जैसा व्यवहार कर रहे हैं उसके चलते कुछ सवाल उनसे भी पूछे जा सकते हैं.

1- जस्टिस काटजू ने तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अप्रत्यक्ष लेकिन स्पष्ट तौर पर डीएमके के ऊपर भी आरोप लगाए हैं. एनडीटीवी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने तमिलनाडु की ‘वर्तमान’ मुख्यमंत्री जयललिता की तारीफ भी की है कि उन्होंने कभी किसी नियुक्ति आदि के लिए उन पर दबाव नहीं डाला जबकि डीएमके ने उनसे कई बार गलत काम करवाने की कोशिश की. थोड़ा सा अजीब है कि जब कांग्रेस और डीएमके केंद्र और राज्य की सत्ता में थीं तब उन्होंने इस मामले पर कुछ नहीं बोला. अब वे न केवल इन दोनों पार्टियों पर भी बड़े आरोप लगा रहे हैं बल्कि कम से कम एक सत्ताधारी पार्टी और उसकी मुखिया – एआईडीएम और जयललिता – की भूरि-भूरि प्रशंसा भी कर रहे हैं.

2-जस्टिस काटजू के मुताबिक उन्हें बाद में पता लगा कि मनमोहन सिंह जब संयुक्त राष्ट्र की बैठक में हिस्सा लेने के लिए न्यूयॉर्क जा रहे थे और हवाईअड्डे पर थे तब वहां डीएमके के एक मंत्री भी थे. इन मंत्री जी ने प्रधानमंत्री से कहा कि जब तक वे न्यूयॉर्क से लौटकर आएंगे तब तक उन जज साहब को हटाने की वजह से उनकी सरकार गिर चुकी होगी. यह सुनकर मनमोहन सिंह घबरा गए. तब एक कांग्रेसी मंत्री ने उन्हें ढाढस बंधाया कि वे आराम से जाएं और इस मामले को वे सुलटा लेंगे. इसके बाद वे मंत्री महोदय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस लाहोटी के पास गए. उनसे कहा कि अगर मद्रास हाईकोर्ट के आरोपित जज को कार्यकाल विस्तार नहीं दिया गया तो सरकार संकट में आ जाएगी. इस पर जस्टिस लाहोटी ने सरकार को आरोपित जज साहब का कार्यकाल बढ़ाने वाला पत्र भेज दिया.

जस्टिस काटजू ने इस बारे में अपने ब्लॉग और साक्षात्कार में जिस तरह से लिखा-कहा है वह बड़ा अजीब है. यह ऐसा है कि मानो किसी फिल्म का फ्लैशबैक हो जिसमें कोई पात्र उन चीजों के बारे में भी विस्तार से बता रहा होता है जिनकी जानकारी या तो उसे हो ही नहीं सकती या उतनी और वैसे नहीं हो सकती. जितने विस्तार से जिस तरह से उन्होंने अतिरिक्त जज महोदय को विस्तार दिए जाने का वर्णन किया है वह कोई एक-दो नहीं बल्कि इससे कहीं बहुत ज्यादा और मुख्य पात्रों के बहुत करीबी लोगों के जरिये ही किसी को पता चल सकता था.

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