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कपूर साहब का लौंडा या अपना होंड़ा?
कॉमेडी नाइट्स से पॉपुलर हुए कपिल शर्मा ने विज्ञापन की दुनिया में होंडा जैसे एक ऐसे भारी-भरकम ब्रांड से कदम रखा है जिसमें उन्हें अलग से कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी. वह अपने शो में द्विअर्थी संवादों के जरिए ह्यूमर पैदा करने की कोशिश करते हैं और अगर गौर किया जाए तो लगभग हरेक एपीसोड में महिला आयोग के दरवाजे खटखटाने की जरूरत है. इस विज्ञापन में इस असर को थोड़ा फीका कर दिया गया है. ऐसा होने से होंडा की ब्रांड इमेज और पोजिशनिंग जरूर बदल जाती है.

होंडा की नई गाड़ी मोबिलियो की अपील फैमिली गाड़ी है. विज्ञापन बताता है कि ये सेवन सीटर है लेकिन पूरे विज्ञापन में संभावित फैमिली है और बड़े आराम से एडजेस्ट होने की बातें शामिल है. यह अब तक के फैमिली बेस्ड प्रॉडक्ट और विज्ञापन का विलोम है. लेकिन विज्ञापन की पूरी भाषा और अंदाज जिस तरह का है, विडंबना देखिए कि फैमिली को इसी पर आपत्ति हो सकती है. क्या चीज है यार… से शुरू हुआ ये विज्ञापन आखिर में आकर कपूर साहब का लौंडा या अपना होंडा पर खत्म होता है, उसके बीच वही द्विअर्थी संवाद हैं जो इन दिनों व्हॉट्स एप पर लोग शेयर करते हैं. विज्ञापन ने इसमें कपिल शर्मा को शामिल करके चुटकुले को विजुअलाइज कर दिया है. इस विज्ञापन में होंडा ने अपने को बदला है और कपिल शर्मा के अंदाज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है. ये जरूरी भी है कि उन्हें शामिल करने का आधार उनका यही अंदाज और उससे बनी लोकप्रियता रही है. लेकिन होंडा जैसे लग्जरी ब्रांड के विज्ञापन अब तक जितने सांकेतिक और ग्रेसफुल रहे हैं, उनके मुकाबले ये विज्ञापन फूहड़ नजर आता है. ऐसा होने से जो कपिल शर्मा के शो के मुरीद हैं, उन पर साकारात्मक असर होगा लेकिन जो इस शो को लंपटता पैदा करने तक मानते हैं और जिनकी ऐसी गाड़ी खरीदने की क्रय-शक्ति है, वे बिदक भी सकते हैं.

इंडियाज बेस्ट सिनेस्टार की खोज
14 साल बाद जीटीवी का पुराना शो ‘सिनेस्टार की खोज’ फिर से दर्शकों के बीच है. ये शो बिना किसी कैच, खानदानी रसूख और पीआर के सिर्फ प्रतिभा के दम पर बॉलीवुड में दाखिल होने का दावा करता है. पिछले दिनों एनडीटीवी प्रॉफिट से एनडीटीवी प्राइम हुआ चैनल अपने शो ‘टिकट टू बॉलीवुड’ में भी यही दावे करता नजर आया. अगर ये दोनों शो दर्शकों के बीच पकड़ बना पाते हैं और इनकी टीआरपी ठीक रहती है तो यकीन मानिए बिना कपूर, खान, चोपड़ा के परिवार से आए बॉलीबुड में पैर जमाने का दावा करने वाले शो की बाढ़ आने जा रही है. खैर,

शो का बड़ा हिस्सा किसी भी डांस आधारित रियलिटी शो की तरह है लेकिन संवाद और भाव-भंगिमा के जरिए जो एक्टिंग के सेग्मेंट शामिल किए गए हैं, उससे दर्शकों के बीच ये स्थापित करने की कोशिश है कि डायलॉग अभी भी सिनेमा का प्राण-तत्व है. इधर रंगमंच का जो हुनर जो सिर्फ गली-मोहल्ले में खप रहा था, टुकड़ों-टुकड़ों में यहां वो भी काम आ जा रहा है.

हुसैन अब टाइप्ड हो गए हैं और वह ये समझने में नाकाम हैं कि शो का मिजाज भी ये तय करता है कि क्या, कैसे और कितना बोलना है जबकि टीवी शो के लिए परिणिति चोपड़ा अपेक्षाकृत नई हैं तो उनकी मौजूदगी में फ्रेशनेस है. जज के रूप में सोनाली बेन्द्रे और आयुष्मान खुराना अपने को लॉफ्टर शो के जज के ज्यादा करीब रखते हैं लेकिन विजय कृष्ण आचार्य का व्यक्तित्व और अंदाज शो को गंभीर और अदाकारी के प्रति जिम्मेदार बनाता है. इस शो को इस रुझान के साथ देखा जाए कि एपीसोड-दर-एपीसोड कैसे प्रतिभागी निखरते जाते हैं तो ये रिअलिटी शो से कहीं ज्यादा लर्निंग शो जैसा असर पैदा करेगा.

अब तिरानवे दशमलव पांच
रेड एफएम 93.5 एफएम ने सालों से चले आ रहे जिंगल का हुलिया पूरी तरह बदलकर नए अंदाज और स्वर में पेश किया है. सचिन-जिगर द्वारा कंपोज किए गए इस जिंगल से गुजरने के बाद इतना जरूर आभास होता है कि ‘नए जमाने का रेडियो स्टेशन’ बनाए रखने की दिशा में ये दुरुस्त जिंगल है जिसकी तासीर किसी भी डीजे-सॉन्ग जैसी ही है. लेकिन एफएम चैनलों पर गानों, प्रोमोशनल प्रोग्राम और विज्ञापनों की पहले से ही इतनी भीड़ होती है कि उसी मिजाज के चैनल के जिंगल भी प्रसारित किए जाएं तो वो खोया-खोया चांद-सा हो जाता है. रेड एफएम के नए जिंगल के साथ भी यही हुआ है.

सबसे खास बात यह है कि चैनल अपनी फ्रीक्वेंसी को जिंगल में एक बार ही सही हिंदी में प्रयोग करता है- तिरानवे दशमलव पांच. हमारी रोजमर्रा की बातचीत से भी दशमलव शब्द लगभग गायब हो गए हैं तो इसका प्रयोग बेहद यूनीक और याद रह जाने लायक है. दूसरा, इसे बेहद ही दिलकश अंदाज में कहा गया है. आपको अकेले ‘तिरानवे दशमलव पांच’ सुनने के लिए बार-बार इससे गुजरने का मन करेगा. चैनल का दावा है कि हम इस जिंगल के जरिए आपको एक स्टेप आगे ले जाना चाहते हैं, आगे-पीछे का तो पता नहीं लेकिन हिंदी का ये प्रयोग इसे असरदार जरूर बनाता है.