असु​रक्षित पत्रकार, राष्ट्रपति से गुहार

फोटो : विजय पांडेय
फोटो : विजय पांडेय
फोटो : विजय पांडेय

कौन
छत्तीसगढ़ के पत्रकार
कब
10 मई, 2016
कहां
जंतर मंतर, दिल्ली

क्यों
छत्तीसगढ़ में चार पत्रकारों को जेल, कई पत्रकारों पर मुकदमा और कई को खबर लिखने पर मिलने वाली धमकियों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं. नक्सलियों और सरकार की दोहरी मार झेल रहे पत्रकार 10 मई को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देने पहुंचे और राष्ट्रपति से सुरक्षा की गुहार लगाई है.

छत्तीसगढ़ में 2012 से अब तक छह पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. इन हत्याओं के सिलसिले में कोई भी आरोपी पकड़ा नहीं गया है. चार पत्रकार जेल में हैं. छह पत्रकार डर के मारे फरार हैं. कुछ को धमकियां मिल रही हैं. कुछ को डराया जा रहा है. कुछ को कई तरीकों से प्रताड़ित किया जा रहा है. कुछ ने पत्रकारिता छोड़ दी है. कुछ पर छोड़ने का दबाव है. कुछ सिर्फ सरकारी विज्ञापन को खबर बनाकर लिखते हैं, कुछ ऐसा कभी नहीं करना चाहते. कुछ ने सवाल करना छोड़ दिया है. कुछ ने पत्रकारिता ही छोड़ दी है और ठेकेदार बन गए हैं. उन्हें प्रसाद स्वरूप सरकारी ठेके भी मिल गए हैं. कुछ ने अन्य तरीकों से समझौता कर लिया है और कुछ अभी डटे हुए हैं.
छत्तीसगढ़ के नक्सली पत्रकारों से कहते हैं कि हमारे लिए लिखो. सरकार कहती है कि हमारे लिए लिखो. नक्सलियों के पास बंदूक है तो सरकार के पास पुलिस, बंदूक, जेल और मशीनरी सब कुछ है. दोहरी मार झेल रहे पत्रकार राष्ट्रपति से गुहार लगाने दिल्ली पहुंचे हैं कि उन्हें न्यूनतम पत्रकारीय सुरक्षा दे दी जाए, ताकि वे अपना काम कर सकें. जंतर मंतर पर धरना देने पहुंचे अलग-अलग पत्रकारों ने ये हालात बयान किए.

‘हम पत्रकार तो मीडिया घरानों से भी असुरक्षित हैं. हम फंसते हैं तो ये कभी भी हमसे नाता तोड़ लेते हैं. पत्रकारों के फंसने पर संस्थान कह देता है कि ये हमारे संस्थान के नहीं हैं. ईटीवी, नवभारत, पत्रिका आदि ऐसा कर चुके हैं.’

पत्रकार नितिन सिन्हा कहते हैं, ‘ऐसे बहुत सारे मामले हैं जब खबर लिखने के बाद पत्रकारों पर केस दर्ज हुए, हमले हुए, धमकाया गया. यहां तक कि गोली भी मारी गई है. छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक आतंक ​मचा हुआ है. अगर कोई पत्रकार किसानों को मुआवजा न मिलने का मसला उठाता है तो वह दोषी हो जाता है. उसे धमकी दी जाती है, या केस दर्ज ​कर दिया जाता है.’
पत्रकारों ​की ओर से राष्ट्रपति को जो ज्ञापन सौंपा गया है ​उसमें लिखा है, ‘छत्तीसगढ़ में पिछले काफी समय से स्वतंत्र व निरपेक्ष पत्रकारिता के लिए माहौल लगभग समाप्त हो गया है. सरकार की नीतियों और उनके क्रियान्वयन में हो रही गड़बड़ी को उजागर करने वाले पत्रकारों को फर्जी प्रकरण बनाकर जेल भेजा जा रहा है. विशेषकर बस्तर संभाग में राज्य शासन की स्थानीय पुलिस व प्रशासन पर पकड़ ढीली हो चुकी है और अपनी विफलताओं का गुस्सा वहां के निर्दोष ग्रामीण तथा जान जोखिम में डालकर पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों पर उतारा जा रहा है.
बस्तर में नक्सली का सहयोगी बताकर और फर्जी मामलों में फंसाकर एक वर्ष के भीतर चार पत्रकारों- सोमारू नाग, संतोष यादव, दीपक जायसवाल और प्रभात सिंह को जेल भेजा गया है जबकि पूरे प्रदेश में कई पत्रकारों के खिलाफ फर्जी प्रकरण दर्ज करके उन्हें जेल भेजने की कोशिश की जा रही है. बस्तर में पत्रकार साथी नेमीचंद जैन और साईं रेड्डी को पुलिस मुखबिर बताकर नक्सलियों द्वारा मौत के घाट उतारा जा चुका है. इनमें से साईं रेड्डी को नक्सली का सहयोगी बताकर राज्य सरकार ने ‘छत्तीसगढ़ राज्य जनसुरक्षा अधिनियम’ के तहत दो वर्ष बंद रखा था.’
प्रदर्शन में शामिल कमल शुक्ला कहते हैं, ‘लंबे समय से बस्तर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का माहौल खराब हो गया है. वहां हमको दोनों तरफ से दबाव झेलना पड़ रहा है. एक तरफ तो माओवादी दबाव बनाते हैं कि हम उनकी तरफ से रिपोर्ट करें, दूसरी तरफ सरकार दबाव बना रही है कि उनके हिसाब से रिपोर्ट करें. कोई खोजबीन या जांच पड़ताल न करें. नक्सलियों ने दो साथियों को मार डाला. उनमें से एक-दो साल जेल में गुजारकर आया था. पुलिस कह रही है कि वे नक्सलियों के आदमी थे. नक्सली कह रहे हैं कि वे पुलिस के आदमी थे. जो भी लिखने-पढ़ने वाले पत्रकार हैं, वे सब दबाव में हैं. संतोष और सोमारू को जेल भेज दिया गया तो हम लोगों ने सोचा कि पत्रकार सुरक्षा जैसा कोई कानून होना चाहिए क्योंकि माहौल बिल्कुल खराब हो रहा है. 10 अक्टूबर को हम लोगों ने रायपुर में आंदोलन शुरू किया जिसमें सारे पत्रकार शामिल हुए. हम पत्रकार तो मीडिया घरानों से भी असुरक्षित हैं. हम फंसते हैं तो ये कभी भी हमसे नाता तोड़ लेते हैं. पत्रकारों के फंसने पर संस्थान कह देता है कि ये हमारे नहीं हैं. ईटीवी, नवभारत, पत्रिका आदि ऐसा कर चुके हैं.’

पत्रकारों ने पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के तहत निरपेक्ष पत्रकारिता के विरुद्ध बने इस माहौल के खिलाफ पिछले एक वर्ष से आंदोलन छेड़ रखा है. जेल में बंद पत्रकारों की रिहाई के साथ ही पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर 21 दिसंबर, 2015 को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले में पत्रकारों ने जेल भरो आंदोलन किया. इसमें देश भर के पत्रकारों ने हिस्सा लिया था. कमल शुक्ला कहते हैं, ‘जेल भरो आंदोलन स्थगित करवाने के लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा किया. पहले फोन पर, बाद में प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया था कि सभी मांगें मान रहे हैं. संतोष और सोमारू को रिहा करवा देंगे. फर्जी प्रकरणों में फंसाए गए पत्रकार के मामलों की जांच के लिए समन्वय समिति गठित की जाएगी. उन्होंने यह भी माना कि दोनों के साथ गलत हुआ है. मगर बाद में इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल पत्रकार प्रभात सिंह और दीपक जायसवाल को भी जेल भेज दिया गया. मामूली धाराओं के बावजूद दोनों को जमानत नहीं मिल सकी है.’ पत्रकारों के मुताबिक, उपर्युक्त मामलों के अलावा प्रदेश में धरमजयगढ़ से पावेल अग्रवाल, गुरुचरण, डोंगरगढ़ से संतोष राजपूत, सोमेश्वर सिन्हा, रोहन सिन्हा, दुर्ग के पत्रकार नरेंद्र मार्कंडेय व विनोद दुबे, अंबागढ़ चौकी के पत्रकार एनिस गोस्वामी, बिलासपुर के पत्रकार दुलेश्वर प्रसाद गिरी गोस्वामी, देवधर तिवारी, शिव तिवारी, महेंद्र द्विवेदी, विनोद श्रीवास्तव, कोंडागांव के पत्रकार राजेश शर्मा के साथ ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी पत्रकार पवन ठाकुर, संदीप कडक्वार व संतोष साहू पर भी रिपोर्टिंग के दौरान प्रशासन द्वारा ज्यादती की जा चुकी है.
कमल शुक्ला ने कहा, ‘पत्रकार की सुरक्षा की मांग करने गए प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को ही जेल में डाल दिया तो बाकी लोग क्या उम्मीद करें. सरकार की इस तरह की कार्रवाइयों से डर का माहौल है. पिछले लंबे समय से वहां के स्थानीय पत्रकारों ने कोई खोजी रिपोर्टिंग नहीं की. जो भी हुआ वह सब नेशनल मीडिया ने किया है. चाहे जेल से छूटे हुए व्यक्ति को पुलिस द्वारा एक लाख का इनामी बताकर मारने का मसला हो, या 72 नक्सलियों के समर्पण का मसला हो, कोई पत्रकार पुलिस अधिकारियों से पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि आप ये जो फोटो जारी कर रहे हैं वो हैं कहां.’
पत्रकार नितिन सिन्हा बताते हैं, ‘जगदीश कुर्रे मानवाधिकार के मामलों की रिपोर्टिंग करते थे. काफी मामले उन्होंने उठाए कि आदिवा​सी लड़कियों को दिल्ली और बाहर के शहरों में ले जाकर बेचा जा रहा है. इससे सरकार बदनाम हो रही थी. दो-तीन बार उनको धमकी दी फिर उसी में से एक मामले में मानव तस्करी का आरोप लगाकर फंसा दिया गया.’

‘छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए माहौल लगभग समाप्त हो गया है. सरकार की कमियां उजागर करने वाले पत्रकारों को फर्जी मामलों में जेल भेजा जा रहा है’

कमल शुक्ला ने बताया, ‘मनीष सोनी जी-न्यूज में रिपोर्टिंग करते थे. सोनी ने पुलिस विभाग के खिलाफ कई मामले उठाए थे. पहले जी-न्यूज ने उनको निकाल दिया. जी-न्यूज से निकाले जाने के बाद ही पुलिस विभाग ने उनके पूरे परिवार के खिलाफ मामले दर्ज कर लिए. अब वे फरार चल रहे हैं.’
ऐसी ही एक दूसरी घटना के बारे में वे बताते हैं, ‘हिंडाल्को मामले में रिपोर्टिंग करने वाले सौरभ अग्रवाल ने जिंदल समूह पर सवाल उठाए. हिंडाल्को की वजह से मिझोर आदिवासियों की पूरी बस्ती रात भर में हटा दी गई थी. उस मामले को कवर करने गए सौरभ का मोबाइल जब्त कर लिया गया और उनके खिलाफ केस दर्ज कर दिया. फिलहाल सौरभ फरार चल रहे हैं.’
नितिन सिन्हा कहते हैं, ‘प्रशासनिक आतंकवाद का ताजा उदाहरण आपको दूं कि रायगढ़ में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म होता था. एक अनाथालय चलता था जिसकी व्यवस्था भाजपा से जुड़े कुछ लोग देख रहे थे. उसके अंदर कई घोटाले भी थे. ​​बच्चियों का यौन शोषण होता था. उसके विरुद्ध हमने मुहिम चलाई थी. उसकी वजह से मुझे भी जेल जाना पड़ा. मेरे खिलाफ दो फर्जी मामले दर्ज किए गए. मेरे जेल में रहने के दौरान सारा मामला रफा-दफा हो गया. फाइनली वह आरोपी जमानत पर बाहर है.’
पत्रकार सौरभ ने बताया, ‘रायगढ़ में कॉरपोरेट घरानों का राज है. जो पत्रकार सच्चाई लिख रहे हैं, जो पत्रकार कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ कुछ लिख रहे हैं, उनके खिलाफ फर्जी एफआईआर दर्ज कर दी जा रही है. धमकियां दी जा रही हैं. मुख्यमंत्री पूरी तरह कॉरपोरेट के कंट्रोल में हैं. रिपोर्टिंग के दौरान मेरा मोबाइल जब्त कर लिया गया और मुझे धमकी दी गई.’
कमल शुक्ला ने बताया कि यहां से जाते हुए इनकी भी गिरफ्तारी हो सकती है. छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता पर आए संकट के बारे में बात करते हुए कमल शर्मा कहते हैं, ‘सिर्फ बस्तर ही नहीं, पूरे प्रदेश में पत्रकारिता करना बेहद मुश्किल हो गया है. विशेषकर जहां कॉरपोरेट घरानों का काम चल रहा हो, सरकार की नीतियों के खिलाफ कुछ लिखना हो, कोई भंडाफोड़ करना हो, इस सबके​ खिलाफ लिखने से सरकार को दिक्कत है. सरकार का सीधा संदेश है कि उसके खिलाफ लिखने-बोलने वाले को प्रताड़ित किया जाएगा.’
कमल शुक्ला बताते हैं, ‘हमारे साथ आंदोलन के दौरान जो पत्रकार सक्रिय थे, उनमें से कई आंदोलन से अलग हो गए और पत्रकारिता छोड़कर ठेकेदारी शुरू कर दी है. अधिकांश को एक-एक करोड़, 70-75 लाख के ठेके बांट दिए गए. किसी को कंस्ट्रक्शन किसी को सप्लाई में. ये ठेके सरकार की तरफ से दिए जा रहे हैं. कई पत्रकारों को उनके चैनल हेड ने सीधा फोन करके बोला कि आप आंदोलन से अलग हो जाइए वरना नौकरी से हटना पड़ेगा. प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली आने वाले पत्रकारों पर नहीं आने के लिए दबाव बनाया गया.’
सौरभ कहते हैं, ‘रायगढ़ में नक्सलवाद उतना प्रभावी नहीं है. वहां तो कॉरपोरेट का दबदबा है. सब उन्हीं के कब्जे में है. जो वे कहते हैं, वही होता है.’ पत्रकार नितिन सिन्हा कहते हैं, ‘रमेश अग्रवाल अवैध खनन के खिलाफ लिखते रहे हैं. 2012 में उन पर गोली चलवाई गई और जान से मारने की कोशिश की गई. वे दो साल तक राष्ट्रद्रोह की धारा में जेल में रहे. बाद में इस मामले को दबा दिया गया, लेकिन यह निश्चित है कि यह गोली जिंदल ने चलवाई थी.’
ज्ञापन में कहा गया है, ‘बस्तर संभाग में पुलिस आईजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी सीधे पत्रकारों को फोन करके धमकाते हैं कि पत्रकार अगर सरकार के खिलाफ लिखेंगे तो उन्हें भुगतना पड़ेगा. इस माहौल में पूरे प्रदेश के पत्रकारों में भय व्याप्त है. अतः मान्यवर से प्रार्थना है कि प्रदेश में लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए पहल करें.’
राष्ट्रपति को दिए ज्ञापन में पत्रकारों ने फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में बंद किए गए पत्रकारों की रिहाई, पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने, पुलिस द्वारा धमकी देने का सिलसिला बंद कराने समेत छह सूत्री मांगें उठाई हैं.