
शार्ली हेब्दो आज किसी परिचय को मोहताज नहीं है. यह वह नाम है जिसका आज लगभग हर व्यक्ति समर्थन कर रहा है और उसके प्रति सहानुभूति जता रहा है. पर क्या शार्ली हेब्दो वाकई निर्दोष है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित होती है? क्या उसके जरिए दूसरों की भावनाओं को आहत करने का अधिकार है? मेरा समझना है कि हर चीज की एक सीमा होती है और यह बात धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दोनों पर एक समान लागू होती है. अगर नहीं होती तो होनी चाहिए वरना हमें इस तरह की घटनाओं का आदी हो जाना चाहिए, क्योंकि फिलहाल हम जिस दुनिया में जी रहे हैं वह कोई आदर्श या संपूर्ण दुनिया नहीं है.
बहरहाल इस वक्त हर कोई शार्ली बनना चाहता है. यहां तक कि जिन्होंने एमएफ हुसैन के घर पर हमला किया था और उनकी पेंटिंग जलाई थी वे भी. मेरी अपनी समझ यही कहती है कि रचनात्मक होने के लिए आपको किसी का अपमान करने की जरूरत नहीं है. इस लिहाज से हुसैन और हेब्दो दोनों ही गलत हैं. सच्ची और अच्छी क्रिएटिविटी को प्रसिद्ध होने के लिए नंगेपन का मोहताज नहीं होना पड़ता. इस लिहाज से हुसैन भी अपने समय के शार्ली हेब्दो ही थे. मगर तब उनके साथ कोई नहीं खड़ा हुआ, न ही किसी ने ‘आई एम हुसैन’ के नारे लगाए.
दूसरी ओर जिन लोगों ने शार्ली हेब्दो के कार्यालय पर हमला किया उन्होंने बड़ी खूबी के साथ हेब्दो के मकसद को पूरा कर दिया. पहले तो वह सिर्फ फ्रांस में ही जाना जाता था, मगर अब हेब्दो पूरी दुनिया में जाना जाता है. उसके समर्थक हर जगह उमड़ आए हैं. यह इसलिए नहीं हुआ कि शार्ली हेब्दो ने कोई बड़ा काम किया बल्कि इसलिए हुआ क्योंकी उन पर हमला करनेवालों ने काम ही इतना बुरा किया है. यह दुनियाभर के मुसलमानों के लिए बदनामी का सौदा है.