ये रुकेगा नहीं क्योंकि अगर सच में नक्सलवाद की लड़ाई है, सरकार नक्सलवाद को खत्म करना चाहती है तो जो बस्तर और छत्तीसगढ़ के जनप्रतिनिधि हैं, वे एक मंच पर क्यों नहीं आते? कई बार मैंने कहा कि छत्तीसगढ़ के जनप्रतिनिधि और पार्टी सब एक मंच पर आकर बात करें कि नक्सलवाद की लड़ाई को कैसे खत्म किया जाए. एक मंच पर आने से कोई रास्ता निकल सकता है लेकिन नेता नहीं चाहते कि ये लड़ाई खत्म हो क्योंकि इसके नाम पर कई करोड़ रुपये आते हैं, वो आने बंद हो जाएंगे. सब एक मंच पर आ जाएं तो निश्चित है कि ये लड़ाई साल भर के अंदर खत्म हो जाएगी. ये मेरा दावा है, लेकिन उसके बाद पैसे आने खत्म हो जाएंगे फिर नेता का जेब कैसे भरेगा. फिर जो इतना ऐशोआराम है, वह सब नहीं होगा.
आप लोगों पर नक्सली होने का आरोप लगता है, क्या आप नक्सल समर्थक हैं?
नक्सलियों को सपोर्ट करने की जरूरत क्या है? वे तो पहले से ही अपने को शक्तिशाली बताते हैं. उनके पास बंदूकें हैं, अपना संगठन है, उनको हमारे समर्थन की जरूरत क्यों है? कहते हैं कि सोनी सोरी नक्सलियों की मदद करती है, हम उनकी मदद क्यों करें? हमने स्पष्ट कहा है कि न मैं पुलिस के लिए काम करती हूं, न मैं नक्सलियों के लिए काम करती हूं. मैं काम करती हूं जनता के लिए. नक्सलियों के पास भी बंदूक है, वो बंदूक की लड़ाई लड़ते हैं. सरकार के पास भी बंदूक है, सेना है. तो हम हथियार की लड़ाई के साथ नहीं हैं. हथियार की लड़ाई हम देख चुके हैं. सलवा जुडूम के समय भी देखा है. उसमें क्या हुआ. कई आदिवासी भाइयों के घर जल गए. कई अनाथ हो गए. कई मारे गए. कई महिलाओं के साथ बलात्कार हुए. तो मैं इस लड़ाई के साथ नहीं हूं. मैं सिर्फ जनता की लड़ाई के साथ हूं. शांति के साथ हूं. लीगल सिस्टम के तहत लड़ाई है, जो हमारा सिस्टम है, उस लड़ाई के साथ हूं. इसीलिए मैं बोलती हूं कि न मुझे नक्सल का डर है, न मुझे सरकार का डर है.
जब आप कहती हैं कि हम इनके भी साथ नहीं हैं, उनके साथ भी नहीं हैं, तो क्या पुलिस की तरह नक्सली भी आप पर दबाव डालते हैं कि आप हमारे लिए काम कीजिए?
वार्तालाप होता है तो हम हमेशा शांति के लिए वार्ता करते हैं. जैसे एक आंदोलन हुआ, सुकड़ी (आदिवासी ग्रामीण) को पुलिस घर से उठाकर ले गई. तीन दिन तक हम 12-13 हजार लोग मिलकर थाना घेराव करके शांति के साथ लड़े. अंत में प्रशासन को सुकड़ी को वापस देना पड़ा. कहीं न कहीं हमारे सामने ये बात आती है कि आप हथियार का विरोध क्यों करती हैं? तो हम साफ बोलते हैं कि हम हथियार की लड़ाई में भरोसा नहीं करते. जो भी हथियार पकड़ेगा, हम उसके साथ नहीं हैं. अब बंदूक की गोली किसी के भी सीने में लगेगी तो क्या होगा? उसकी तो हत्या हो गई! वह हिंसात्मक होगा. हम ही हथियार उठाकर लड़ेंगे और कहेंगे कि हम मानवता को बचा रहे हैं तो कैसे बचाएंगे? मैं इसमें विश्वास नहीं करती. शांति, शिक्षा और कलम ही हमारा हथियार है.
‘अगर आपको नक्सलियों से लड़ना है तो उन पर अटैक करो. उनको मारो, लेकिन ऐसा नहीं कर रहे. यह आदिवासियों को वहां से भगाने की साजिश है’

आप कहती हैं कि आप लाेग हथियार की लड़ाई का समर्थन नहीं करते, समाज में शांति के लिए लड़ते हैं तो सरकार या पुलिस से क्या लड़ाई है? बार-बार आप पर कार्रवाई क्याें होती हैै?
वही तो बात है. ऐसा इसलिए होता है कि सरकार जो दमन कर रही है आदिवासियों के साथ, महिलाओं के साथ. जैसे अभी हुआ, वेल्लम नेंद्रा में बलात्कार हुआ, रेवाली में बीमा नाम के व्यक्ति का एनकाउंटर हुआ. नीलाबाई में एक एनकाउंटर हुआ. फोदिया का नाहड़ी में एनकाउंटर हुआ. वो ग्रामीण आदिवासी था. तो हम इस तरह की बातों को सामने लाते हैं. बीमा मारा गया तो उसके खिलाफ सोनी सोरी क्यों लड़ रही है यह कोई नहीं देखना चाहता. बीमा एक आदिवासी किसान है, उसके लिए मैंने लड़ा. वो ये है कि बीमा को नक्सली बनाकर इन्होंने मार दिया. उसके लिए हमने लड़ा तो इनको लगता है कि ये नक्सली के साथ है. हर बार हमने सबूत दिया कि देखो ये ग्रामीण है, नक्सली नहीं है, लेकिन हमको नक्सल का समर्थक बताते हैं. अगर हूं तो मुझे भी बताएं कि मैं नक्सली कैसे हूं. ऐसे मुद्दे उठाने के लिए मुझे नक्सली करार दिया जा रहा है.
‘नक्सली संविधान पर भरोसा नहीं करते. पर सरकार किस पर भरोसा करती है? वह संविधान में भरोसा करती है तो हिंसात्मक लड़ाई क्यों कर रही है?’
कई बार मैं लोकल मीडिया में बोली कि अगर एक फोदिया का, बीमा का या बेल्लम नेंद्रा का मुद्दा उठाया, तो ये कहते थे कि सोनी सोरी झूठ बोलती है. मैं गांव में जाती थी, लोग बताते थे तो मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस करती थी. लोकल मीडिया भी मुझसे सवाल करने लगे कि मैडम हम तो गए थे, वहां कुछ नहीं हुआ आप आकर चिल्लाते हो. फिर हमने अपना तरीका बदल दिया. अब गांववालों से कहती हूं कि सिर्फ मुझे मत बताओ कि तुम्हारे साथ बलात्कार हुआ है. यह बात तुम खुद बोलो. मीडिया को बताओ. मैं कलेक्टर के पास, अधिकारी के पास ले जाऊंगी, तुम खुद बोलो. आज महिलाएं खुद से बता रही हैं. जिस दिन पेद्दापारा की घटना हुई, महिला ने अपना स्तन निचोड़कर, दूध की धार बहाते हुए खुद मीडिया को बताया कि देखो ऐसा हुआ. तब मीडिया ने एक पल के लिए सिर झुका लिया. मैंने मीडिया भाई से बोला कि आप भी मत शर्माइए. ये भी नहीं शर्मा रही हैं. हम शर्म बोलकर कब तक चुप रहें? इस तरह की आवाज मैं उठा रही हूं तो कहते हैं कि मैं नक्सली हूं.
पुलिस या सैन्य बल ये क्यों चेक करना चाहेंगे कि महिला शादीशुदा या बच्चे वाली है या नहीं? सेना के लोगों को इससे क्या मतलब?
एक तो ये महिलाओं को कमजोर समझ रहे हैं. पुरुष तो चले जाते हैं. महिलाओं से यौन शोषण, बलात्कार आदि करते हैं. जैसे बच्चे वाली महिला बोली कि आप लोग हमारे घरों में खाना बनाकर खा रहे हो. निकलो हमारे घर से. हम अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे? आप हमारे घर में घुसकर हमारा राशन-पानी, मुर्गे सब खा जाते हैं. सब महिलाएं एकजुट होकर उनसे बहस करने लगीं. बेचारे दस-पंद्रह किलोमीटर दूर से बाजार जाकर राशन-पानी लेकर आते हैं, फोर्स वाले सब खा जाते हैं. दाल, चावल, मुर्गे-वुर्गे सब. तो वही ये महिलाएं कह रही थीं कि हमारे घर का सामान मत इस्तेमाल करो. गश्त पर आए हो तो अपना गश्त करो. महिला ने अपने बच्चों का वास्ता दिया कि हम अपने बच्चे को क्या खिलाएंगे. तो बोले हम कैसे मानेंगे कि आपका बच्चा है. हम चेक करेंगे कि दूध आता है कि नहीं. अगर दूध आता है तो समझेंगे तुम्हारा बच्चा है. उसके गोद से एक ने बच्चा छीन लिया और एक-दो ने मिलकर उसके स्तन को निचोड़ा. जब उसका दूध निकला तो बस हंसने लगे, मजाक उड़ाने लगे.
पहली बार कब आप पर नक्सल समर्थक होने का आरोप लगा?
2011 में. जब बहुत लंबा इश्यू चला था. बोला नक्सली है. कोई ये नहीं बोला कि टीचर है. सीधा नक्सली बनाकर जेल में डाल दिया. एक केस में अभी जमानत पर हूं तो नौकरी भी नहीं कर रही. मैं तो स्पष्ट बोल रही हूं कि आपने मुझसे मेरा जीवन छीना. मेरे पति को भी मार दिया गया. जेल में तीन साल रखा फिर पैरालाइज हुआ. फिर बहुत प्रताड़ित किया और मार दिया. मेरी अच्छी-खासी जिंदगी थी. मैं टीचर थी. बच्चे थे, पति था. आपने सब कुछ छीन लिया. मेरे बच्चों का जीवन बर्बाद किया. आज वे एक-एक चीज के लिए, दो वक्त की रोटी के लिए भी परेशान होते हैं. तो आपने हमें इस हालत में ला दिया तो हम आमने-सामने लड़ेंगे. मैदान में लाने वाले आप हैं तो लड़ेंगे. मेरी लड़ाई तो सच्चाई की है.
जो आरोप लगे थे, उस केस का क्या हुआ?
चल रहा है और चार साल हुए, पर अब तक गवाह भी पेश नहीं हुए हैं. जिसके लिए इतना प्रोपेगेंडा बनाया, दुनिया भर की बातें कीं. हम भी चाहते हैं कि सरकार रफ्तार से काम करे. एक केस में चार साल लगा दिया. सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी है जिसने जमानत दी. न दिया होता तो चार साल से हम जेल में पड़े रहते. उसी केस में बीके लाला (ठेकेदार) और वर्मा (एस्सार कंपनी के महाप्रबंधक डीएस वर्मा) को हाई कोर्ट ने जमानत दे दी लेकिन सोनी सोरी और लिंगाराम को नहीं दी. वर्मा को सरकार ने जमानत क्यों दी? क्योंकि वे एस्सार के मालिक (महाप्रबंधक) थे. दूसरा ठेकेदार था. सरकार को बहुत पैसा दिया होगा. सोनी और लिंगा पैसा कहां से लाएंगे? वो तो गरीब हैं, आदिवासी हैं. वो तो अच्छी बात है कि इस देश में ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने मदद की और आज हम बाहर हैं. लेकिन मुझ पर जितना अत्याचार किया गया, मुझमें उतनी ताकत पैदा होती गई.
क्या हमले के बाद आपके बच्चों को भी धमकी मिली है?
मेरे अस्पताल में भर्ती होने के बाद घर पर एक पर्चा आया जिसमें लिखा है, ‘मैडम बहुत खुश न हो अपनी बेटी को सुरक्षा दिलवा के. आपका एक बेटा भी तो है.’ बच्चों ने अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद मुझे बताया. हालांकि, मेरे बच्चों ने कहा कि हम डरने वालों में से नहीं हैं. हम नहीं डरेंगे, आप भी मत डरिए. मेरे बच्चे तो खुद कहते हैं कि मेरी मां जनता की लड़ाई के लिए है.
इस तरह का हमला पहले भी कभी हुआ था?
हां, छोटी-मोटी तो कई चीजें होती रहती हैं. गांववालों के बीच पुलिस ने कई बार कहा कि सोनी सोरी को आज नहीं तो कल मार देंगे, जेल भेज देंगे. तुम्हारी नेता कितने दिन की है? मेरे पिता को भी आईजी ने 4-5 बार बुलाया और बोले अपनी लड़की को समझाओ. मेरे पिता भी नक्सल से पीड़ित हैं. नक्सल ने उनके पैर में गोली मार दी थी. वो भी परेशान हैं.
पिता को गोली क्यों मारी थी?
उस समय कई बार आईजी वगैरह मेरे पिता के पास जाते थे. पिता सरपंच और मुखिया होने के नाते काफी सम्मान और नाम वाले थे. वो सब बैठते थे. कुछ शिकायत रही होगी, अभी तक कुछ स्पष्ट पता नहीं चला. पिता जी की जमीन भी थी नक्सल के अंडर में. मेरे जेल जाने के बाद उस जमीन की आजादी हुई. फिर हम बोले कि जब हम सरकार से लड़ते हैं तो नक्सल से क्यों नहीं लड़ेंगे. हम नक्सल से भी लड़ेंगे. उस समय भी आईजी कल्लूरी और पुलिसवालों ने कहा कि सोनी सोरी नक्सलियों से मिली है और पिता की जमीन उनको दे दी है. उन पर मुकदमा चलाएंगे. मैंने पूछा कि ये काम सरकार का है. मेरे पिता की जमीन नक्सल ने क्यों रखी, पर आज तक सरकार ने बात नहीं की.
आपकी बातों से लगता है कि आपकी लड़ाई दोतरफा है- नक्सल से भी और सरकार से भी.
हां, नक्सल का तो स्पष्ट है कि उनका अपना संगठन है, उनकी अपनी लड़ाई है. मैं तो ये भी सवाल करती हूं कि नक्सली कहते हैं कि हम व्यवस्था पर भरोसा नहीं करते, हम संविधान पर भरोसा नहीं करते, कानून-कायदे कुछ नहीं मानते, लोकतंत्र पर भरोसा नहीं करते. पर सरकार किस पर भरोसा करती है? सरकार कहती है कि वे संविधान में रहने वाले लोग हैं, वे लोकतंत्र की और सिस्टम की लड़ाई कर रहे हैं, तो ये कैसी सिस्टम की लड़ाई है? सरकार सिस्टम और संविधान में भरोसा करती है तो हिंसात्मक लड़ाई क्यों कर रही है?