दृश्य एक– मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुलताई तहसील का चौथिया गांव. अभी दिन की शुरुआत ही हुई है और इस कस्बे में सूरज की नर्म रोशनी धीरे-धीरे खेतों में फैल रही है. तभी अचानक लगभग 2,000 लोगों की एक हिंसक भीड़ ट्रैक्टरों और जेसीबी मशीन के साथ खेतों के बीच बने रास्ते से एक बस्ती की तरफ नारे लगाते हुए बढ़ती है.
दृश्य दो– भीड़ उस बस्ती में खड़े चंद पक्के मकानों को हथौड़ों से ठोक-ठोक कर गिरा रही है. जिन घरों को हथौड़ों से नहीं तोड़ा जा सकता उन्हें जेसीबी मशीन से गिराया जा रहा है. यहां सारी कच्ची झोपड़ियों में आग लगा दी गई है. लोगों के घरों का सामान लूटा जा रहा है. जिसे लूटा जाना संभव नहीं है उसमें आग लगा दी गई है.
दृश्य तीन– भीड़ के इस कारनामे के बीच पुलिस, निर्वाचित राजनीतिक प्रतिनिधि और लंबे-चौड़े प्रशासनिक महकमे के कई अधिकारी मौजूद हैं. इनमें से राजनीतिक प्रतिनिधि लोगों को लगातार उकसा रहे हैं. लेकिन पुलिस और प्रशासन के अधिकारी इस अंदाज में पूरी कार्रवाई देख रहे हैं जैसे उन्हें इसकी देखरेख के लिए ही नियुक्त किया गया है.

मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में घटी इस घटना को दिखाने वाले इन नाटकीय दृश्यों पर बड़ी आसानी से सवाल उठाया जा सकता था यदि इनकी वीडियो रिकॉर्डिंग न की गई होती. सितंबर, 2007 के दौरान मुलताई में बसी 350 पारधी आदिवासियों की एक बस्ती इस दौरान तीन दिन तक सामूहिक और सुनियोजित हिंसा का शिकार बनी रही. पूरी बस्ती को नेस्तनाबूत करने के अलावा यहां 10 पारधी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. एक पारधी दंपति की हत्या की गई. और यह सब बाकायदा पुलिस, प्रशासन और क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों के सामने हुआ.
[box]‘हमें तो अब अपने आप से चिढ़ होती है’
कड़कती धूप के बावजूद एक ही आवाज देने पर बैतूल के उत्कृष्ट स्कूल मैदान में वहां रहने वाले सभी पारधी इकट्ठा होकर तुरंत जमीन पर बैठ जाते हैं. सितंबर, 2007 के चौथिया कांड के बारे में बताते हुए इनमें से कई लोग अपना शरीर खुजलाते हैं, कई घटना का नाट्य रूपांतरण करके बताते हैं, तो कई चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगते हैं. लेकिन जब इनसे 10 सितंबर की रात 10 पारधी महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बारे में पूछा जाता है तो अचानक ही धूल भरी जमीन पर बैठी इस भीड़ में सन्नाटा छा जाता है. फिर धीरे से भीड़ में बैठी महिलाओं में से छह औरतें अपने हाथ ऊपर उठाती हैं. हमें बताया जाता है कि हम छह ही से मिल सकते हैं, क्योंकि बाकी चार भीख मांगने गई हैं. जैसे ही चटक रंगों के मैले-कुचैले और फटे कपड़े पहने ये महिलाएं खड़ी होती हैं, उनके बुझे चेहरों और खामोश निगाहों को देखकर यह विश्वास कर पाना मुश्किल हो जाता है कि कभी तीखे नैन-नक्श वाली ये सभी महिलाएं स्वाभाविक आदिवासी सौंदर्य और उल्लास का प्रतीक हुआ करती थीं. उनमें से एक धीरे से आकर कहती है कि वे सब अकेले में बात करेंगी. एक टूटी झोपड़ी के सामने बैठकर जब उन्होंने अपने साथ हुए इस ‘पुरातन पौरुष अपराध’ के बारे में बताना शुरू किया तब बीच में न जाने कितनी ही बार उन्होंने कुछ ही दूरी पर बैठे अपने रिश्तेदारों, पतियों और बच्चों की तरफ देखा और फिर अपनी निगाहें झुका लीं.
पीड़ित महिलाओं ने तहलका को बताया कि 10 सितंबर, 2007 की रात पुलिसवालों, राजनेताओं और आम लोगों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था. संगीता पारधी, सुप्रि बाई, बसंती बाई, अंगूरा पारधी, कल्पना पारधी, सुनीता बाई, कमली बाई, बबली पारधी, बाया बाई और गुड्डी बाई नामक 10 पारधी महिलाओं ने अपने साथ हुए इस सामूहिक बलात्कार के बारे में पुलिस, नेशनल कमीशन फॉर डिनोटिफाइड एंड नोमाडिक ट्राइब्स (एनसीडीएनटी) और फिर सीबीआई के अधिकारियों को भी बताया था, पर किसी ने भी उनकी शिकायत आज तक दर्ज नहीं की है. बसंती बाई अपने सिर पर लगा जख्म दिखाते हुए कहती हैं, ‘मेरा मरद मुझे आज भी पीटता है. अक्सर रात को दारू पीने के बाद उसे याद आ जाता है कि चार साल पहले मेरा बलात्कार हुआ था.’ फिर कुछ देर चुप रहने के बाद अचानक अपने चेहरे पर एक पथरीली-सी भावशून्यता को लिए वे कहती हैं, ‘वह और मैं, हम लोग आज तक इस बात को मान नहीं पाए हैं कि मेरा बलात्कार हुआ है. मेरा मरद उन अपराधियों का तो कुछ नहीं कर सकता, इसीलिए मुझे मार कर ही अपना गुस्सा निकालता है.’ उस वीभत्स रात के घटनाक्रम को याद करते हुए संगीता आगे कहती हैं, ‘हमें एसडीओपी साकल्ले ने रोका था. उसने कहा कि वह हमें अपनी खाली गाड़ी से स्टेशन छुड़वा देगा पर जब अंधेरा हो गया और आठ बजने लगे तो हम लोगों ने इनसे कहा हमें भी हमारे आदमी और बच्चों के पास छोड़ दो, तब ये लोग हंसने लगे. साकल्ले ने कहा कि अब हमारे साथ भी वही होगा जो अनुसूइया के साथ हुआ. फिर हमें पकड़-पकड़ के कमरों में ले जाने लगे’ कहते-कहते उसकी आवाज भर्राने लगी और फिर रोते हुए उसने कहा, ‘दो-तीन आदमी एक-एक कमरे में थे मैडम जी. हमारी साड़ी-ब्लाउज सब फाड़ दिया और फिर हमारे साथ सबने बलात्कार किया.’ गौरतलब है कि संगीता पारधी का घर पूरे पारधीढाने में सबसे बड़ा था और पीड़ित महिलाओं का आरोप है कि उनका बलात्कार इसी घर के अलग-अलग कमरों में किया गया. अपने दो साल के बच्चे को संभालते हुए बबली कहती हैं, ‘पूरे साड़ी-लुग्गा फाड़ दिए थे हमारे. फिर संगीता बाई के घर में पड़े पुराने कपड़ों में से, जिसको जो मिला, वह वैसे ही गुड़-मुड़ करके पहन के निकला आया क्योंकि फिर हमें गाड़ियों में भरकर स्टेशन छोड़ा जाना था. वहां साकल्ले के साथ-साथ जगदीश, विजयधर, संजय यादव, राजा पवार, अशोक कड़वे जैसे कई लोग थे.’
इस घटना के बाद जहां बाया बाई के पति ने उन्हें छोड़ दिया वहीं गुड्डी बाई की पसलियां आज भी दर्द से टूटती हैं. गुड्डी अपनी कमर पकड़े हुए कहती हैं, ‘भीख मांगते-मांगते पेट दुख जाता है दीदी पर लोग खाना नहीं देते. उस दिन के बाद से आज तक मेरी पसलियां रोज दुखती हैं. पता नहीं क्यों, खुद से ही चिढ़ होती है.’
अपने साथ चार साल पहले हुए उस भयानक हादसे के तिरस्कार को ये सभी औरतें हर रोज, उतने ही दर्द के साथ जीती हैं. यह तिरस्कार तब और बढ़ जाता है जब सामंतवाद, जातिवाद और पक्षपात के अंधेरों में झूलता पुलिस-प्रशासन उनकी बातों को झूठा मानकर, उनके आरोपों के आधार पर एक एफआईआर तक दर्ज करने से इनकार कर देता है. [/box]
घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग से साफ पता चलता है कि किस तरह पुलिस और प्रशासन की खुली सहमति से बस्ती को उजाड़ा गया
इस घटना का सबसे अन्यायपूर्ण पहलू यह है कि दिन दहाड़े आगजनी और लगभग 85 पारधी परिवारों के घरों के लुटने और जलने के चार साल पूरे होने के बाद भी न तो इस कांड के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा हो पाई है और न ही इस ‘विमुक्त जनजाति’ के लोगों को दोबारा अपने उजड़े घरों तक जाने का मौका मिल पाया है.
पुलिस और प्रशासन से निराश होने के बाद दो साल लंबी जद्दोजहद के परिणामस्वरूप जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी तो पीड़ितों को न्याय की उम्मीद बंधी लेकिन जांच एजेंसी के रवैये से अब वह रही-सही उम्मीद भी धूमिल होती दिख रही है. सीबीआई जांच का आलम यह है कि घटना के चार साल बाद भी इस मामले में अदालती सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है. अपनी दो साल लंबी जांच के दौरान तीन जांच अधिकारी बदल चुकी सीबीआई आज तक एक भी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं कर पाई है. उधर, घोर सामाजिक अपमान, उपेक्षा और बहिष्कार झेल रहे पारधी आदिवासी हर मौसम में खुले आसमान के नीचे भीख मांगकर और पन्नी बीन कर जीवन गुजारने को मजबूर हैं.
देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही मध्य प्रदेश में भी पारधी आदिवासियों पर हो रही हिंसा की कोई एक त्वरित वजह नहीं है. हिंसा की वजह एक निचले और बेहद कमजोर अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध सदियों से जारी जातिगत हिंसा और ऊंची जातियों द्वारा उन पर अपने ऐतिहासिक राजनीतिक प्रभुत्व मानने के पुराने तंत्र में छिपी है. बैतूल में भी पारधियों के खिलाफ हिंसा को ऐतिहासिक-सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है. उनकी हत्या या उनकी महिलाओं के बलात्कार को भुनाकर यहां के स्थानीय नेता अपनी जातिगत श्रेष्ठता के साथ-साथ भारी चुनावी जीत की ट्रॉफियां भी लंबे समय से घर ले जाते रहे हैं. बैतूल में हुए चौथिया कांड को जानने से पहले इस घटना की पृष्ठभूमि पर एक नजर डालने से मालूम होता है कि पहले भी यहां पारधियों की हत्याएं और आगजनी की कई घटनाएं हुई थीं. इन सबमें प्रमुख था अगस्त, 2003 का घाट-अमरावती कांड. 30 अगस्त, 2003 को लगभग 100 लोगों की एक भीड़ ने घाट-अमरावती गांव में, गोथन नाम से बसे एक पारधी टोले के 10 घरों में आग लगा दी थी और तीन पारधियों की हत्या कर दी थी. इस मामले में गवाहों के पलट जाने से सभी अभियुक्त छूट तो गए पर अपना निर्णय सुनाते हुए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट अनिल पोहरे का कहना था कि अभियोजन पक्ष की कमजोर पैरवी के चलते उन्हें आरोपियों को छोड़ना पड़ा. इस घटना के बाद घाट-अमरावती के ज्यादातर पारधी परिवारों ने वह गांव छोड़ दिया. अब वे चौथिया के पारधीढाने में ही आकर रहने लगे. लगभग 2,000 की जनसंख्या वाले चौथिया गांव में पारधी पिछले 20 साल से रह रहे थे. सन 1996 में चौथिया ग्राम पंचायत ने इंदिरा ग्राम आवास योजना के तहत 11 पारधी परिवारों को स्थायी निवास के लिए पट्टे दिए और पक्के मकान बनवाने के लिए सहायता राशि भी दी. कोई दूसरा आश्रय न होने की वजह से आसपास के सभी पारधी पारधीढाने में आकर रहने लगे. सितंबर, 2007 में उजड़ने से ठीक पहले यहां 350 पारधी आदिवासियों के 85 परिवार रहा करते थे.
अदालत ने कहा था कि प्रशासन और राजनेताओं के घटना में शामिल होने की वजह से पुलिस दबाव में काम कर रही थी
चौथिया कांड में हुई हिंसा की शुरुआत नौ सितंबर, 2007 को चौथिया के पास ही बसे सांडिया गांव की एक महिला के बलात्कार और हत्या से उपजे भारी जनाक्रोश से हुई. नौ सितंबर की सुबह सांडिया गांव में रहने वाली अनुसूइया बाई की अपने खेत में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी. कुनबी जाति की अनुसूइया की निर्मम हत्या से चौथिया और सांडिया के साथ-साथ आसपास के लगभग दस गांवों में त्वरित आक्रोश फैल गया. गांववालों को विश्वास था कि पारधीढाने के पारधियों ने ही अनुसूइया की हत्या की है. इसलिए आक्रोशित भीड़ ने इस बस्ती को जलाने का और तथाकथित अापराधिक प्रवृत्ति वाले पारधियों को क्षेत्र से खदेड़ने का निर्णय लिया. मामले की भनक पड़ते ही स्थानीय पुलिस और राजनेता अपने-अपने निहित उद्देश्यों के लिए हरकत में आ गए. सुखदेव पांसे और राजा पवार जैसे स्थानीय नेताओं ने गांववालों को पारधियों के खिलाफ भड़काया और प्रशासन के उनके साथ होने का विश्वास दिलाया. वहीं स्थानीय पुलिस अनुसूइया बाई के हत्यारों की खोज में पूरे पारधीढाने को ही खाली करवाकर मुलताई पुलिस स्टेशन ले गई. गौरतलब है कि चौथिया और सांडिया के साथ-साथ क्षेत्र के ज्यादातर गांवों में कुनबी जाति के मराठा क्षत्रिय ही रहते हैं और पारधी अल्पसंख्यक हैं. अनुसूइया की हत्या महाराष्ट्र के अमरावती जिले में रहने वाले दो पारधियों ने की थी, जिन्हें घटना के एक दिन बाद ही पकड़ लिया गया. स्थानीय पुलिस के अनुसार भूरा और धर्मराज नामक अनुसूइया बाई की हत्या के दो संदिग्ध आरोपितों को पकड़ने में चौथिया गांव के पारधियों ने ही उनकी सहायता की थी. अनुसूइया बाई की हत्या के आरोप में गिरफ्तार भूरा और धर्मराज पिछले चार साल से जेल में हैं और मामले की सुनवाई चल रही है.
अनुसूइया बाई की हत्या की खबर फैलते ही मुलताई पुलिस ने चौथिया गांव के पारधीढाना टोले पर छापा मारा. रविवार की उस सुबह के घटनाक्रम को याद करते हुए गजरी पारधी बताती हैं, ‘सुबह लगभग पौने नौ बजे तक पुलिस ने हमारे पूरे पारधीढाने की घेराबंदी कर दी थी. टोले में मौजूद सारे आदमियों, औरतों और बच्चों को लाइन बनवाकर खड़ा करवा दिया गया. फिर पुलिस सबको पुलिस-गाड़ी में ठूंस कर मुलताई पुलिस स्टेशन ले गई. अगले दिन दस सितंबर की दोपहर तक पुलिसवाले अमरावती से भूरा और धर्मराज को पकड़ लाए. उनके बारे में पुलिस को सारी जानकारी हम लोगों ने ही दी थी. फिर शाम तक पुलिसवालों ने हमें दुबारा गाड़ियों में भरकर वापस चौथिया छोड़ना शुरू कर दिया. वहीं पर कुछ लोगों को एक पन्ना पकड़ाने लगे. बाद में पता चला कि यह कागज किसी नोटिस का था. उन्होंने हमसे कहा कि अभी इसी वक्त अपना घर छोड़ दो, तुम्हें मुलताई स्टेशन पहुंचाया जाएगा.’ अब तक दस सितंबर की शाम हो चुकी थी. अनुसूइया बाई की हत्या के संदिग्ध आरोपित पकड़े जा चुके थे और मुलताई पुलिस ने पारधीढाना खाली करवाकर पारधियों को मुलताई से बाहर भगाना शुरू कर दिया था. अपने तत्कालीन बयान में एसडीओपी (प्रमुख पुलिस अनुभागीय अधिकारी) डीके साकल्ले ने यह बात स्वीकार की है कि पुलिस सुरक्षा की दृष्टि से इलाके को खाली करवा रही थी. 25 वर्षीया कपूरी पारधी आगे बताती हैं, ‘हमें बिलकुल मोहलत नहीं दी गई. कोई सामान, पैसे या जरूरत की चीजें साथ नहीं ले जाने दी गईं. हमें समझ में ही नहीं आ रहा था कि हमें घरों से निकालकर कहां भेजा जा रहा है.’ पारधियों का कहना है कि पुलिस ने झूठ बोल कर उन्हें उनके घरों से निकाला. पूरे मामले पर पारधियों का नेतृत्व कर रहे अलसिया पारधी ने तहलका को बताया, ‘उस रात पुलिसवालों ने हमसे कहा कि गांव में हमारी जान को खतरा है. खुद एसडीओपी साकल्ले साहब ने मुझसे कहा था कि पुलिस हमारे घरों की रक्षा करेगी. अगर गांववाले हमारे घर तोड़ने आएंगे तो उन्हें आंसू गैस से रोकेगी. पर हमें क्या मालूम था कि पुलिस खड़े होकर हमारे घरों को उजड़वा देगी.’ दस सितंबर की रात चौथिया गांव के सभी पारधियों को पुलिस की गाड़ियों में भरकर मुलताई स्टेशन छोड़ दिया गया, जहां से धीरे-धीरे ट्रेन बदल-बदल कर सभी अगली सुबह तक भोपाल पहुंचे.
बहुसंख्यक समुदाय की एक महिला की हत्या के संदिग्धों की गिरफ्तारी पारधियों की निशानदेही पर ही की गई थी
पारधियों का कहना है कि दस सितंबर की रात उनके समुदाय की दस महिलाओं को रोककर स्थानीय पुलिस और प्रशासन के लोगों के उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया. (देखें व्यथा कथा-1) नेशनल कमीशन फॉर डिनोटिफाइड एंड नोमाडिक ट्राइब्स (विमुक्त, घुमंतू और खानाबदोश जनजातियों के लिए बनाया गया राष्ट्रीय आयोग) ने मामले पर जारी अपनी रिपोर्ट में भी इन सामूहिक बलात्कारों का उल्लेख किया है. संगीता पारधी घटनाक्रम की जानकारी देते हुए कहती हैं, ‘साकल्ले ने सबको गाड़ी में बिठा के भेज दिया पर मुझसे बोला कि तुम लोग रुक जाओ. मेरी गाड़ी में तुम लोगों को छुड़वा दूंगा. यह कहकर उसने मेरे साथ सुप्रि, बसंती, गुड्डी, कल्पना, बबली, सुनीता, अंगूरा, कमली बाई और बाया बाई को भी रोक लिया.’ संगीता की बात से सहमति जताते हुए बसंती आगे बताती हैं, ‘पर कई घंटे बाद भी वह हम लोगों को स्टेशन छोड़ने नहीं ले गया तो हम लोगों ने कहा कि हमें भी हमारे आदमियों के साथ जाने दिया जाए. फिर उन लोगों ने कहा कि जैसा सांडिया वाली बाई के साथ हुआ, वैसा अब तुम्हारे साथ भी होगा. वहां साकल्ले के साथ-साथ जगदीश, विजयधर, संजय यादव, अशोक कड़वे जैसे कई लोग थे. उन सबने हमारे कपड़े फाड़े और हमारा बलात्कार किया. फिर हमें मुलताई स्टेशन छुड़वा दिया गया. हम 11 सितंबर की शाम तक भोपाल पहुंचे जबकि हमारे परिवारवाले सुबह से ही भोपाल स्टेशन के सामने सड़क पर बैठे थे. हमने सबको बताया कि हमारा बलात्कार हुआ है, आयोग को, सीबीआई को, पुलिस को, पर किसी ने हमारी रिपोर्ट नहीं लिखी….दवा भी नहीं दी.’
महिलाओं के साथ बलात्कार की यह घटना हिंसा के तांडव की आखिरी कड़ी नहीं थी. 11 सितंबर को सुबह से ही आसपास के लगभग 10 गांव के लोग पारधीढाने के आसपास इकठ्ठा होने लगे. सुबह आठ बजे तक ट्रैक्टरों में बैठकर आए लगभग 400 लोग यहां जमा हो गए. सुबह के 10 बजते-बजते यह भीड़ दो हजार का आंकड़ा पार कर गई. लोगों की आक्रोशित भीड़ ने पारधियों की बस्ती को लूटना, तोड़ना और जलाना शुरू कर दिया. बस्ती में मौजूद कुल 85 घरों में से 16 पक्के मकान थे और लगभग 69 झुग्गियां. पक्के मकानों को तोड़ने के लिए जहां जेसीबी मशीनों का इस्तेमाल किया गया वहीं झोपड़ियों को लोहे की सब्बलों और हथौड़ों से मार-मार कर तोड़ दिया गया. पारधियों के घरों में मौजूद इस्तेमाल लायक सारा सामान लूट लिया गया. पुराने बर्तन-भांडों को जला दिया गया. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एसडीओपी डीके साकल्ले, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक डीएस ब्राजोरिया, एसडीएम वीआर इंगले और मुलताई के तहसीलदार एसके हनोथिया मौके पर मौजूद थे. बड़ी संख्या में तैनात किया गया पुलिस बल और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां भी मौके पर खामोश खड़ी रहीं. दोपहर दो बजे के आसपास पुलिस अधीक्षक जेएस संसवाल और जिला कलेक्टर अरुण भट्ट भी मौका-ए-वारदात पर पहुंच गए. घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग से साफ पता चलता है कि किस तरह पुलिस और प्रशासन की खुली सहमति से पारधियों की बस्ती को उजाड़ा गया. भीड़ को उकसाने का काम स्थानीय निर्वाचित नेताओं ने किया. मुलताई जिला पंचायत से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य राजा पवार ने आगे बढ़कर पारधियों के घर तुड़वाए वहीं उस समय मसूद से कांग्रेस के विधायक सुखदेव पांसे ने हंसते हुए कहा कि उनकी पार्टी के संजय यादव ने ही ‘पारधी बस्ती को उजाड़ने के इस बढ़िया काम’ की शुरुआत की. मौके पर मौजूद भाजपा और कांग्रेस के सभी नेताओं ने पारधियों को खुले आम ‘पैदाइशी अपराधी’ कहकर कोसा और उन्हें अपशब्द कहे. मीडिया को मौका-ए-वारदात से दिए अपने बयानों में क्षेत्र के सभी प्रमुख निर्वाचित प्रतिनिधियों ने पारधियों को ‘अपराधी जाति’ कहकर आगजनी का खुला समर्थन किया. 16 सितंबर को क्षेत्र से पारधियों के ‘सफाए’ की खुशी में स्थानीय नेताओं ने मुलताई में एक सभा आयोजित करवाई जिसके अध्यक्ष तत्कालीन राजस्व मंत्री कमल पटेल थे. सभा की वीडियो रिकॉर्डिंग और प्रत्यक्षदर्शीयों से पता चलता है कि सभा में सभी नेताओं ने पारधियों की तुलना राक्षस-अपराधियों से करते हुए उनके खिलाफ जनता को भड़काया. इसी बीच बस्ती के जलने के बाद 12 सितंबर को एक पारधी दंपति का शव गांव से बरामद किया गया. चौथिया अग्निकांड के दौरान डोडा बाई के सामूहिक बलात्कार के बाद बोंदरू और डोडा बाई की पत्थर मार-मार कर हत्या कर दी गई थी (देखें व्यथा कथा-2).
चौथिया कांड के बाद सामूहिक बलात्कार, नृशंस हत्याएं और अपनी बस्ती के उजाड़ कर जला दिए जाने जैसे कई कभी न भरने वाले जख्म अपने जेहन में लेकर पारधी लगभग एक महीने तक भोपाल में रहे. सुरमा बाई बताती हैं, ‘शुरू के एक हफ्ते तो हम स्टेशन के पास भीख मांगते रहे. फिर हमें शास्त्री नगर के एक हॉल में रखा गया. फिर छह अक्टूबर, 2007 की सुबह पुलिस हमें भोपाल से बैतूल की सरहद पर बसी बटेरा बस्ती में छोड़ गई. बाद में पता चला कि बटेरा जंगल में बसा कोई वन-ग्राम है. सरकार हमें आटा भिजवाती थी इसलिए हम वहां पन्नी की झुग्गियां बनाकर रहने लगे. फिर अचानक उन्होंने आटा देना बंद कर दिया. वहां जंगल में हम पन्नी भी नहीं बीन सकते थे और हमें कोई भीख भी नहीं देता, इसीलिए 2010 में हम बैतूल आ गए.’