परंपरा के पोषक या शोषक !

फोटोः विकास कुमार
फोटोः विकास कुमार

बीते 21अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड की राजधानी रांची में थे. उनके आगमन का शोर काफी दिनों से था. तैयारी भी बहुत समय से चल रही थी. प्रशासन तो अपने स्तर पर तैयारी कर ही रहा था, भाजपा के नेता-कार्यकर्ता उससे ज्यादा तैयारी में जुटे थे. भाजपा की ओर से यह तैयारी स्वाभाविक ही थी. दल के सबसे बड़े नेता के आने पर, वह भी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली और उसमें भी निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव के माहौल में आने पर भाजपा ने अगर अपने नेता के स्वागत में पूरी ताकत लगाई तो इसमें अटपटा जैसा बहुत कुछ नहीं था. इस कोशिश में यह जरूर हुआ कि कार्यक्रम भाजपा के लिए अपने नेता का अतिविशिष्ट आयोजन बन गया. सभा स्थल पर आम आदमी कम, अपने-अपने नेताओं के पीछे जय-जयकार करने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ अधिक थी. खैर, यहां तक तो फिर भी ठीक रहा लेकिन इसका बात का अंदाजा ज्यादातर लोगों को नहीं था कि भाजपाई भीड़ अतिउत्साह में कुछ ऐसा भी कर जाएगी जो सामान्य शिष्टाचार और लोकतांत्रिक परंपराओं पर भारी पड़ जाएगा.

रांची में मोदी भाजपा नेता के बजाय प्रधानमंत्री के तौर पर आए थे. प्रधानमंत्री के साथ मंच पर राज्य के राज्यपाल डॉ सैयद अहमद, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत कई नेता मौजूद थे. मोदी ने रांची में कई योजनाओं का ऑनलाइन शिलान्यास किया. रांची से सटे बेड़ो में पावर ग्रिड स्टेशन का, राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन का, उत्तरी कर्णपुरा बिजली परियोजना का, जसीडीह तेल टर्मिनल का, रांची में सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान आदि का. अपनी शैली में उनका लच्छेदार भाषण भी हुआ. इसमें कई बातें शामिल थीं. व्यवस्था व प्रक्रिया बदलाव का संकल्प लिया गया, केंद्र में सत्ता परिवर्तन के लिए जनता का आभार प्रकट किया गया. मोदी ने हेमंत सोरेन को अपनी बातों में शामिल करते हुए यह भी कहा, ‘ हम चाहते हैं कि हेमंत को कभी दिल्ली न आना पड़े इसलिए योजनाओं की सौगात लेकर हम रांची आए हैं.’

नरेंद्र मोदी अपने भाषण में प्रधानमंत्री के तौर पर जो बोल सकते थे, बोले और बातों ही बातों में भाजपा नेता के तौर पर अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा को विजयी बनाने की अपील भी करते रहे. यहां तक तो फिर भी ठीक रहा लेकिन इस दरम्यान एक और घटना घटी जो शर्मनाक रही और लोकतांत्रिक व संघीय चरित्र वाले भारत के लिए भयावह भी. इसी मंच पर मुख्यमंत्री की हैसियत से जब हेमंत सोरेन बोलने को खड़े हुए और अपना भाषण शुरू किया तो उनके भाषण की हूटिंग शुरू हो गई. एक-दो बार नहीं ब‌ल्कि सात-आठ बार ऐसा हुआ. हालांकि बीच में मोदी ने इशारे में लोगों को शांत होने को कहा लेकिन हूटिंग करनेवाले भाजपाइयों पर अपने सबसे बड़े नेता के इशारे का भी असर नहीं हुआ. यह भी कहा जा सकता है कि वह इशारा इतने असरदार तरीके से नहीं किया जा रहा था. वहीं दूसरी तरफ झारखंड के युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की यह समझदारी और परिपक्वता ही थी कि वे इसके बाद भी संयत होकर अपनी बात आगे बढ़ाते रहे. बेहद गंभीरता के साथ, तथ्यों के साथ, भावुकता के साथ प्रधानमंत्री के सामने झारखंड की असल तसवीर पेश करते रहे. इस उम्मीद के साथ कि शायद प्रधानमंत्री गौर से सुनें तो आगे झारखंड की इन समस्याओं का भी समाधान हो. लेकिन हेमंत जिस तरह से सार्वजनिक मंच पर प्रधानमंत्री के सामने बातें रखना चाहते थे, भाजपाइयों की हरकत की वजह से वह नहीं कर पाए. प्रधानमंत्री के साथ इस मंच पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, झारखंड के कोटे से केंद्र में मंत्री बने सुदर्शन भगत, रांची के सांसद रामटहल चौधरी, धर्मेंद्र प्रधान, रविशंकर प्रसाद जैसे कई दिग्गज नेता मौजूद थे. इन सबकी उपस्थिति में भाजपाई मंच के सामने मैदान में हूटिंग करते रहे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here