‘अगर हिंसा करनी पड़ी तो वो भी करूंगा’

Iपाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) की शुरुआत के बारे में बताइए?

संगठन की शुरुआत 2011 में लौहपुरुष सरदार पटेल की जयंती पर हुई थी. मैं इस संगठन को अहमदाबाद के विरामगाम और मंडल इलाके से सिर्फ पाटीदार समुदाय के लिए चला रहा था. समाज के संवेदनशील तबके, जिसमें  हिंसा की शिकार महिलाएं और किसान शामिल हैं, की रक्षा करना हमारा उद्देश्य है. इसलिए हम उनके लिए काम कर रहे हैं और पिछले दो सालों में लगभग 12 हजार लोग हमारे संगठन से जुड़ चुके हैं.

उस समय तमाम पाटीदार ये शिकायत किया करते थे कि उन्हें न तो नौकरी मिल रही है और न ही शिक्षण संस्थाओं में एडमिशन. पिछले दो सालों में ऐसे मामलों को देखते हुए मैंने जाना कि इन समस्याओं के पीछे आरक्षण सबसे बड़ा और मुख्य कारण है. कोई 80 प्रतिशत अंक पाता है, फिर भी उसे एडमिशन नहीं मिल पाता, वहीं आरक्षण की वजह से उससे कम अंक वाले का एडमिशन हो जाता है और उनकी नौकरी लग जाती है. इसलिए मेहसाणा में पहली रैली कर हमने आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया. धीरे-धीरे विसनगर, गांधीनगर और गुजरात के दूसरे हिस्सों में रैली कर आंदोलन को आगे बढ़ाया. आज जारी आंदोलन की यह शुरुआत थी.

आपकी मांगों में विरोधाभास नजर आता है. अहमदाबाद में हुई रैली में तमाम लोग इसलिए शामिल हुए क्योंकि उनका मानना था कि आप देश में आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे हैं. एक तरफ तो आप आरक्षण की मांग कर रहे हैं और दूसरी तरफ यह भी कह रहे हैं कि पाटीदारों को अगर आरक्षण नहीं दिया जाएगा तो ये व्यवस्था खत्म होनी चाहिए. आप इन दोनों बातों को किस तरह से देखते हैं?

भारत से आरक्षण व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारा देश इसी वजह से चल रहा है. यहां तक कि देश में राजनीति का आधार एक तरह से आरक्षण ही है. इसलिए हम आरक्षण व्यवस्था काे खत्म नहीं कर सकते. इसकी जगह हम आरक्षण का हिस्सा बनना चाहते हैं क्योंकि अगर हमें इसमें शामिल किया जाता है तो हमारे समुदाय को भी वे लाभ मिलेंगे जो दूसरों को मिलते हैं. आज अनुसूचित जाति या जनजाति के छात्र-छात्राओं को सामान्य श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों पर भी एडमिशन लेने का मौका मिल जाता है. मगर हमें उनके लिए आरक्षित सीटों पर एडमिशन नहीं मिलता. मैं सिर्फ पाटीदार समुदाय की ही नहीं सामान्य श्रेणी में आने वाली दूसरी जातियों की भी बात कर रहा हूं. पहले तो वे अपनी सीट खाते हैं और बाद में हमारी.

गुजरात में दंगे जैसी स्थितियां पैदा होने के बाद इस आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया है. क्या आपने या सरकार के लोगों में से किसी ने मामले का हल निकालने के लिए बातचीत की कोई कोशिश की है?

सरकार आगे आए और हमसे बात करे. हम नहीं जाएंगे सरकार से बात करने. अगर किसी दूसरे समुदाय को हमसे कोई दिक्कत है तो उन्हें ये फैसला करने का हक नहीं कि हमें क्या करना चाहिए. सरकार को फैसला करने दीजिए कि वह क्या करना चाहती है.

क्या आप अश्विन पटेल के पाटीदार आरक्षण संघर्ष समिति से भी जुड़े थे, जिन्होंने सबसे पहले इस मुद्दे को लोगों के सामने रखा. ऐसा कहा जाता है कि आप दोनों के बीच वैचारिक मतभेद होने के बाद आपको संगठन से हटा दिया गया. आपका इस बारे में क्या कहना है?

मैं अश्विन के साथ कभी नहीं रहा. हमने अपने आंदोलन के बारे में उन्हें जानकारी दी थी, लेकिन हमें आरक्षण जैसे मुद्दे के हल को लेकर उनका दृष्टिकोण पसंद नहीं था. उनकी अपनी विचारधारा है और वे भाजपा के साथ जुड़े हुए भी थे. अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वह हमारे आंदोलन को भुनाना चाहते थे. वह दिल्ली में अपने राजनीतिक आधार की तलाश कर रहे थे, लेकिन मैं राजनीतिज्ञ नहीं बनना चाहता. अगर रिमोट कंट्रोल हमारे हाथ में होगा तो हम सरकार को झुका भी सकते हैं और उसे बदल भी सकते हैं.

आप और अश्विन के बीच किस तरह के राजनीतिक मतभेद थे, जिसकी वजह से आपको अलग राह चुननी पड़ी?

अश्विन के पास ऐसा कोई विचार नहीं था कि एक आंदोलन कैसे चलाया जाए. आंदोलन क्रांति के जैसा होता है और वह क्रांतिकारी नहीं हैं.

तो क्या इसलिए इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए आप सरदार पटेल समूह (एसपीजी) के साथ जुड़ गए?

वह समूह हमारे संगठन का हिस्सा कभी नहीं रहा और न ही हम कभी उसके साथ रहने की चाहत रखते थे. एसपीजी की तरह गुजरात में 5,000 पाटीदार समूह हैं. सिर्फ पाटीदार अनामत आंदोलन समिति ही है जो खासतौर पर पटेल समुदाय काे आरक्षण दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है. हर छोटा समूह इस आंदोलन में हमारा साथ दे रहा है. एसपीजी ने भी हमारा साथ दिया था, लेकिन अब वे अलग हो गए हैं. इससे हमें कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. यह तो हमारी समिति थी, जो एसपीजी को राज्य में आगे लेकर आई.

इसका मतलब आप पूरे आंदोलन को अपने कंधों पर आगे बढ़ा रहे हैं और खुद को अलग पहचान देने में लगे हुए हैं. अहमदाबाद में हुई अपनी रैली में आपने गुजरात से भाजपा सरकार को हटाने का भी जिक्र किया था. क्या इसे एक राजनीतिक उद्देश्य के तौर पर देखा जाना चाहिए?

मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं, लेकिन अगर मेरे मित्र आगे आना चाहते हैं और इस संगठन को राजनीतिक दल बनाने की इच्छा रखते हैं तो मैं हमेशा उनकी मदद करूंगा. अगर हमारे पास रिमोट है तो हम सरकार को बदल सकते हैं. हम भाजपा या कांग्रेस को नहीं चाहते. हम उनके साथ हैं, जो हमारा समर्थन करते हैं. हम लोगों से अपील करेंगे कि अगर हमारी मांगों को पूरा नहीं किया जाता तो 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में वे नोटा (नन ऑफ द अबव) बटन दबाएं. मैं शिवसेना की तरह एक ऐसा संगठन बनाना चाहता हूं, जो लोगों के अधिकारों के लिए लड़े और उनकी तकलीफों का ख्याल रखे. हमारी कार्यप्रणाली में दोहरापन नहीं है. हम वही करते हैं जो कहते हैं. मैं भी वहीं करूंगा जो सही है, वह भी पूरी दबंगई के साथ.

क्या आप खुद को बालासाहब ठाकरे की तरह देखते हैं?

हां, मैं खुद को उनकी स्थिति में देखता हूं. उनके फैसले पूरी राजनीतिक कार्यप्रणाली का रुख बदले सकते थे. उन्होंने हमेशा सही किया. उनके पास जो ताकत थी, उसकी बात ही अलग है.

आपको हिरासत में लिए जाने के बाद गुजरात में दंगे जैसी स्थितियां बनने के बारे में आपका क्या कहना है? क्या हिंसा फैलने की स्थिति में भी आप आंदोलन को आगे बढ़ना चाहेंगे?

अगर सही तौर पर हिंसा करनी पड़ी तो वो भी करूंगा. गुजरात में जो कुछ भी हुआ उसके लिए सरकार और पुलिस जिम्मेदार है. जिस तरह पुलिस ने लोगों को घरों में घुसकर पीटा और महिलाओं के साथ बदसलूकी की, वह कहीं से भी न्यायोचित नहीं था. अगर मेरे पास ताकत और अधिकार होंगे तो मैं ऐसे पुलिसवालों को पीटने का कोई भी मौका नहीं गंवाऊंगा. उन्हें लगता है कि वे हिटलर या जनरल डायर हैं.

क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह का दृष्टिकोण हिंसा को और बढ़ाता है?

अगर वे हिंसक हो सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? वे सरकार का हिस्सा हैं और तब वे ऐसा कर रहे हैं. हम तो आम लोग हैं, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? अगर पुलिस ने इस तरह से काम किया तो लोग इसका विरोध जताने के लिए आगे आएंगे. आम लोगों के लिए मेरा संदेश है कि वे व्यवस्था बनाए रखें और तब तक हिंसा न करें, जब तक कि कोई उनके घरों में घुसकर उनसे मारपीट न करे.

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