गूगल: सबका मालिक एक

app_sphere_financeदिल्ली के मयूर विहार में रहने वाले राजेश कुमार के दिन की शुरुआत अपने स्मार्टफोन पर ताजा खबरें और ईमेल चेक करने के साथ होती है. करीब आधा घंटे यह काम करने और फिर सुबह की दूसरी कवायदों से फारिग होने के बाद वे दफ्तर रवाना होते हैं. इसके बाद सर्च इंजन, सोशल मीडिया, चैट या मेल जैसी सेवाओं के साथ पेशे से केबल ऑपरेटर कुमार के दिन का एक बड़ा हिस्सा लैपटॉप और स्मार्टफोन पर ही गुजरता है.

कुमार जैसे दो अरब से भी ज्यादा लोग हैं जिनकी जिंदगी इंटरनेट के बिना अधूरी है. वैज्ञानिक से लेकर रेहड़ी वाले तक हर तरह के लोगों से मिलकर बना यह आंकड़ा दुनिया की कुल आबादी का करीब एक तिहाई है. यह एक नया समाज है जिसकी बसाहट सूचना-तकनीक की जमीन पर हो रही है. मानव सभ्यता का इतिहास बताता है कि अलग-अलग दौर में हर समाज ने कुछ शक्तियों को अपना आधार मानते हुए उनकी आराधना की है. दुनिया की सबसे पुरानी कही जाने वाली वैदिक सभ्यता इंद्र, सूर्य या रुद्र नाम की शक्तियों को पूजती थी. पांच हजार साल पुराना वह समाज मानता था कि बारिश, धूप और आंधी-तूफान के इन देवताओं की कृपा के बिना उसकी खेतिहर व्यवस्था की गाड़ी नहीं चल सकती. आज इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले दसियों करोड़ लोगों के समाज के लिए भी एक शक्ति कुछ ऐसा ही दर्जा रखती है. उसका नाम है गूगल.

गूगल को ईश्वर का रूप कहना कइयों को अतिश्योक्ति लग सकता है, लेकिन ईश्वर की परिभाषा पर गौर करें तो उसके और गूगल के गुणधर्म काफी कुछ मिलते दिखते हैं. दरअसल मानव समाज में समय और जरूरतों के साथ ईश्वर के स्वरूप भले ही बदलते रहे हों, लेकिन उसकी परिभाषा कमोबेश एक ही रही है. उसे सबमें रहने, सबको देखने और सबको चलाने वाली शक्ति के रूप में देखा गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो एक ऐसी शक्ति के रूप में जिससे उस समाज में रहने वाले अपना हित और अहित जोड़कर देखते हैं. अपनी लगातार बढ़ती विराटता के साथ गूगल भी दो अरब से ज्यादा लोगों के लिए सुखकर्ता, दुखहर्ता और जगपालनकर्ता हो गया है. किसी भी तरह की राह तलाशते लोगों के लिए वह ईश्वर की तरह ज्ञान का सागर है जो उनके कंप्यूटर या स्मार्टफोन रूपी गागर में भरा हुआ है. उसके भक्तों ने तो उसकी एक ऑनलाइन इबादतगाह भी बना ली है जिसका नाम है दचर्चऑफगूगलडॉटओआरजी. इन भक्तों का मानना है कि गूगल को ईश्वर का दर्जा दे दिया जाना चाहिए क्योंकि एक तो उसमें वे बहुत-सी खूबियां हैं जिन्हें परंपरागत रूप से ईश्वर के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है और दूसरी बात यह है कि उसके वजूद को वैज्ञानिक रूप से साबित भी किया जा सकता है.

वैसे 1998 में जब गूगल ने जन्म लिया था तो शायद ही किसी ने सोचा हो कि अगले 16 साल में ही वह इस दर्जे तक पहुंच जाएगा. उन दिनों नए-नए सुर्खियों में आए इंटरनेट जगत में याहूडॉटकॉम का बोलबाला था. याहू या अमेरिका ऑनलाइन जैसी चर्चित वेबसाइटें मुख्य तौर पर कांटेंट यानी खबरों और जानकारियों पर केंद्रित थीं. गूगल ने दूसरा तरीका अपनाया. वह इन जानकारियों तक जाने का जरिया बन गया. अब इंटरनेट पर किसी व्यक्ति का पहला कदम वह था. किसी को भी ढेरों बुकमार्क जमा करने या बार-बार अलग-अलग साइटों का नाम टाइप करने की जरूरत नहीं थी. सब कुछ एक ही जगह मौजूद था जिस तक पहुंचना बस एक क्लिक का खेल था. इंटरनेट के अपार विस्तार के साथ गूगल की ताकत भी असाधारण रूप से बढ़ती चली गई.

[box]

राज के रास्ते

सूचना

अपनी शुरुआत से ही गूगल सर्च यानी जानकारियों की खोज का बादशाह रहा है. पर्सनल कंप्यूटर से मोबाइल डिवाइसेज की तरफ झुकती दुनिया ने उसकी ताकत और भी बढ़ाई है क्योंकि एंड्रॉयड के रूप में उसके पास इस बाजार के 80 फीसदी हिस्से पर काबिज सिपहसलार है. इसका सीधा मतलब यह है कि दुनिया में जानकारियों के बहाव पर गूगल का कब्जा है. किसी जानकारी की तलाश में जब आप सर्च, मैप्स, या यू ट्यूब जैसी सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो एक हद तक गूगल को अपनी जिंदगी का नियंत्रण भी सौंप रहे होते हैं

[/box]

आज करीब 400 अरब डॉलर (लगभग 24 लाख करोड़ रुपये) का महाआकार ले चुका गूगल सर्वव्यापी है. डेस्कटॉप से लेकर लैपटॉप, फोन, फ्रिज या वाशिंग मशीन तक उसकी मौजूदगी हर जगह दिखती है. आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर बाजार में उसका एंड्रॉयड सबसे बड़ा खिलाड़ी है. इंटरनेशनल डेटा कॉरपोरेशन (आईडीसी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक एंड्रॉयड का इस बाजार के लगभग 80 फीसदी हिस्से पर कब्जा हो गया है. इसी तरह गूगल मैप्स, जीमेल, क्रोम, यूट्यूब जैसी उसकी दूसरी कई सेवाओं का भी अपनी-अपनी जगह मजबूत दबदबा है. खोज यानी सर्च का तो गूगल पर्याय बन चुका है. आज गूगल पर हर दिन 3.5 अरब यानी हर सेकेंड करीब 40 हजार सर्च होती हैं. इसीलिए गूगल करना हमारी शब्दावली का हिस्सा हो गया है. कुल मिलाकर कहें तो स्मार्टफोन और कंप्यूटर की मदद से दौड़ती जिंदगी एक बड़ी हद तक गूगल भगवान के भरोसे ही चल रही है. सर्च, जीमेल, यूट्यूब, गूगल मैप्स, एंड्रॉयड, क्रोम, हैंगआउट्स और दूसरी दर्जनों सेवाओं से मिलकर बनी उसकी दुनिया से दसियों करोड़ लोगों का रोज कई घंटे वास्ता पड़ता है. वह इस दुनिया का ईश्वर है.

‘हम जानते हैं कि आप कौन हैं, क्या करते हैं, आपके शौक क्या हैं, आप इस समय कहां हैं, हम यह भी अंदाजा लगा सकते हैं कि आप इस समय क्या सोच रहे हैं. हमारे पास आपके हर सवाल का जवाब है’, कई मौकों पर गूगल के कार्यकारी चेयरमैन एरिक श्मिट जब यह कहते हैं तो उनकी बात गलत नहीं होती. दरअसल हमारा गूगल से जुड़ाव और गूगल का हमारी जिंदगी में दखल इस हद तक हो चुका है कि वह न सिर्फ हमें अच्छी तरह जानने-पहचानने लगा है बल्कि हमारी जिंदगी को निर्देशित भी करने लगा है. आप जीपीएस के सहारे कोई सफर तय कर रहे हों या सर्च पर जानकारियों का पहाड़ खंगालने के बाद कोई चीज खरीद रहे हों, आप इस देवता की उंगली पकड़कर ही चल रहे हैं. इसलिए कहने वाले यहां तक कह देते हैं कि गूगल आपके बारे में आपकी मां या पत्नी से भी ज्यादा जानता है. श्मिट के मुताबिक गूगल का लक्ष्य है कि कुछ साल बाद वह आपको यह बताने की स्थिति में हो कि आपको फलां छुट्टी के दिन क्या करना चाहिए या कौन सी नौकरी आपके लिए सबसे मुफीद रहेगी.

यानी अभी तो सिर्फ झलक है. एक हालिया साक्षात्कार में गूगल के इंजीनियरिंग डायरेक्टर स्कॉट हफमैन कहते हैं कि भविष्य में तकनीक के साथ हमारा संवाद उतना ही सहज होगा जितनी हमारी आपसी बातचीत. उनके मुताबिक कुछ ही साल बाद सर्च बॉक्स में की वर्ड टाइप करना बहुत पुरानी बात हो जाएगी. यानी किसी जवाब के लिए स्क्रीन और कीबोर्ड की जरूरत खत्म हो चुकी होगी. हफमैन कहते हैं, ‘हमारे घर की छत या दीवारों में माइक्रोफोन और स्पीकर लगे होंगे. हम सवाल पूछेंगे और मशीन हमें जवाब देगी.’ हमारे और दुनिया के बारे में सारी जानकारियों से लैस मशीनों का एक नेटवर्क – जो गूगल की ही एंड्रॉयड या किसी और तकनीक की मदद से आपस में जुड़ा होगा- हमारे शरीर और दिमाग की कवायद काफी कम कर देगा.

googlelense

आंकड़े बताते हैं कि पिछले 13 साल में गूगल ने कुल मिलाकर 161 कंपनियों का अधिग्रहण किया है. इनमें ई कॉमर्स, स्वास्थ्य या रोबोटिक्स जैसे बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही कंपनियां शामिल हैं. इस असाधारण आंकड़े का औसत निकालें तो पता चलता है कि गूगल हर महीने एक कंपनी खरीद रहा है. बीते दो साल के दौरान तो उसने अधिग्रहण की इस कवायद पर 17 अरब डॉलर से भी ज्यादा की रकम खर्च की. 2013 के आखिर में गूगल ने रोबोटिक्स के क्षेत्र में सक्रिय दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से आठ खरीद लीं. इनमें बोस्टन डायनेमिक्स भी शामिल है जिसने चीता, एटलस और बिग डॉग नाम के चर्चित रोबोट बनाए हैं. यह कंपनी अमेरिकी सेना से लेकर सोनी कॉरपोरेशन तक कई बड़ी संस्थाओं के लिए काम कर रही है. इसके तुरंत बाद गूगल ने 40 करोड़ डॉलर में डीपमाइंड टेक्नॉलॉजीज नाम की एक ब्रिटिश कंपनी का अधिग्रहण किया जो कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में सक्रिय है. 2014 की ही शुरुआत में उसने 3.2 अरब डॉलर देकर होम ऑटोमेशन के क्षेत्र में सक्रिय नेस्ट लैब्स को भी खरीदा. इसी साल जुलाई तक गूगल 20 कंपनियों का अधिग्रहण कर चुका है.

[box]

स्रोत

सर्च इंजन अगर रास्ता है तो साफ्टवेयर और हार्डवेयर गाड़ी. यानी जानकारियों तक पहुंच के लिए माध्यम भी चाहिए. एंड्रॉयड और गूगल ग्लास ने गूगल को सूचना के इन्हीं स्रोतों पर भी नियंत्रण दिया है. स्मार्टफोनों की बहुतायत के चलते किसी भी कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम अब विंडोज नहीं बल्कि एंड्रॉयड है. उधर, गूगल ग्लास का मतलब यह है कि कंप्यूटर अब आपने अपनी आंखों पर ही पहना हुआ है. जाहिर-सी बात है कि जल्द ही दुनिया गूगल की आंखों से दुनिया देखेगी.

[/box]

पहली नजर में यह सोचकर हैरानी हो सकती है कि आखिर गूगल अपने परंपरागत काम यानी इंटरनेट की बजाय स्वास्थ्य विज्ञान, रोबोटिक्स या अपने आप चलने वाली कार जैसी परियोजनाओं पर क्यों दांव लगा रहा है. जानकारों के मुताबिक इसके कई कारण हैं. पहला तो यही कि वह अपनी सेवाओं को सर्च के इतर भी फैलाना चाहता है. गौरतलब है कि अभी गूगल के कारोबार (2013 में यह करीब 58 अरब डॉलर था) का 90 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा गूगल सर्च से आता है. कारोबार के नियम कहते हैं कि एक प्रोडक्ट पर इतनी ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं होती. इसलिए गूगल ऑफलाइन कारोबार के जरिये कमाई के नये रास्ते निकालना चाहता है. दांव पर लगाने के लिए उसके पास अकूत रकम भी है. रिपोर्टों के मुताबिक गूगल के पास करीब 60 अरब डॉलर(तीन लाख साठ हजार करोड़ रुपये) का रिजर्व कैश है. इसलिए वह जिस कंपनी में भविष्य की संभावना देख रहा है, उसे कोई भी कीमत चुकाकर खरीद ले रहा है.

एक हालिया लेख में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के प्रोफेसर और अधिग्रहण जैसी कारोबारी कवायदों के विशेषज्ञ जॉर्ज गाइस कहते हैं, ‘गूगल की यह दौड़ सिर्फ ब्रांडों का पोर्टफोलियो बढ़ाने के लिए नहीं है. वह चाहता है कि उसके पास डेवलपरों, डिजाइनरों, वैज्ञानिकों या ऐसी ही दूसरी प्रतिभाओं का विशाल भंडार हो.’  उदाहरण के लिए नेस्ट लैब्स स्मार्टफोन से भी चलने वाले थर्मोस्टेट और स्मोक अलार्म डिटेक्टर बनाती है. इसके अधिग्रहण के साथ गूगल की झोली में इन दोनों उत्पादों के अलावा टोनी फेडल जैसी प्रतिभा भी आई.  नेस्ट के सहसंस्थापक फेडल को एप्पल के मशहूर आइपॉड और आइफोन के पीछे का दिमाग माना जाता है. वे उस टीम के मुखिया रहे हैं जिसने आइपॉड के 18 और आइफोन के तीन संस्करण जमीन पर उतारे. अपने-अपने क्षेत्रों में फेडल जैसी ही विशेषज्ञता रखने वाली कई प्रतिभाओं को गूगल ने यह जिम्मा सौंपा है कि वे आपका शारीरिक और मानसिक बोझ कम से कम कर दें.

इस जानकारी के बाद गूगल की अटपटी अधिग्रहण कवायद का मतलब समझ में आने लगता है. होम ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की तीनों कड़ियां जुड़ने पर एक दिलचस्प तस्वीर उभरती है. कल्पना करें कि आप अपनी बैठक में टीवी देख रहे हैं. शाम का उजाला धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है और आपको लगता है कि बरामदे की लाइट जला लेनी चाहिए. अब न तो आपको उठ कर स्विच तक जाने की जरूरत है और न ही किसी और को हांक लगाने की. आप कहेंगे कि बरामदे की लाइट जला दो, और लाइट जल जाएगी. पंखे की रफ्तार कम करने के लिए आपको रेगुलेटर तक जाने की जरूरत नहीं है. बोलकर ही काम हो जाएगा. आप कहेंगे कि मैं कौन बनेगा करोड़पति सीजन-2 का आठवां एपीसोड देखना चाहता हूं और टीवी आपके हुक्म की तामील कर देगा. आप कहेंगे कि सबसे अच्छा डोसा कहां मिलता है, वहां चलते हैं और जब तक आप तैयार होकर गूगलकार में बैठेंगे आपका जीपीएस उस रेस्टोरेंट का रास्ता पता लगाकर कार को उस पर चलाने के लिए तैयार हो चुका होगा. आप सुबह उठेंगे और आपकी जरूरतों के लिए डिजाइन किया गया रोबोट जिसे गूगलबोट भी कहा जाएगा, आपके लिए चाय लेकर हाजिर होगा. किसी नई जगह पर आप अकेला महसूस कर रहे हैं तो गूगल ग्लास पहन लीजिए. इसमें लगी स्क्रीन एक ही नजर में सामने बैठे किसी व्यक्ति को स्कैन करके यह बता देगी कि उसका नाम क्या है और उसके शौक आपसे मिलते हैं या नहीं.

और यह सब किसी सुदूर भविष्य की बात नहीं है. हफमैन कहते हैं कि तकनीक की लगातार घटती लागत के चलते जल्द ही माइक्रोचिप और सेंसर सर्वसुलभ और सर्वव्यापी होंगे. इसके बाद आपकी आवाज को पहचानने वाली मशीनों का एक पूरा नेटवर्क आपके पर्सनल असिस्टेंट की तरह काम करेगा. कल अगर आपकी कोई फ्लाइट है और आपको उसके समय को लेकर दुविधा हो रही है तो जेब से फोन निकालने की भी जरूरत नहीं. आपको बस इतना कहना है कि मेरी फ्लाइट कब है और आपको जवाब मिल जाएगा. एक साक्षात्कार में हफमैन कहते हैं, ‘फ्लाइट आज ही हो और आप किसी काम में तल्लीन हों तो किसी निजी सहायक की तरह हमारा सिस्टम आपको बार-बार याद दिलाएगा कि आपको अब बगैर देर किए एयरपोर्ट के लिए निकल लेना चाहिए.’  हफमैन की ही अगुवाई में गूगल पूरे जोर-शोर से इस पेचीदा काम में लगा है कि ये मशीनें हमारी रोजमर्रा की भाषा को समझने के काबिल हो जाएं.

[box]

आवागमन

सिर्फ अमेरिका में ही सालाना करीब 5.5 अरब घंटे अलग-अलग वजहों से पैदा होने वाले ट्रैफिक जाम की भेंट चढ़ जाते हैं. प्रति व्यक्ति के हिसाब से यह बर्बादी हर साल 18 घंटे की होती है. इसके अलावा अमेरिका में हर व्यक्ति सालाना 100 से भी ज्यादा घंटे कार से इधर-उधर जाने में खर्च करता है. गूगल चाहता है कि लोग इस समय को उसकी सेवाओं पर खर्च करें. इसके अलावा अपने आप चलने वाली गूगल की कारें समय और ईंधन तो बचाएंगी ही, उनके चलते दुर्घटनाएं घटने से जान-माल के नुकसान में भी कमी आएगी.

[/box]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here