किसी तरह हम नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंच पाए. हमने देखा कि काठमांडू जिसे काठ का शहर भी कहा जाता है, लगभग तबाह हो चुका है. सोमवार की सुबह मैं अपने कैमरे के साथ काठमांडू के बसंतपुर इलाके में था. जीवन को मरते, लड़ते और उठते देखना बड़ा दुखदाई था. इसी इलाके में मैंने देखा कि पूरी तरह से ढह चुके एक मंदिर के बाहर एक महिला हाथ जोड़े खड़ी थी. बड़ी तबाही और बर्बादी के बीच आस्था का यह स्वरूप देखना मेरे लिए जबरदस्त अनुभव था. काठमांडू से बाहर, ऊंचाई पर ऐसे कई इलाके हैं जहां तक पहुंच पाना मीडिया और राहतकर्मियों के लिए भी एक चुनौती है. फिर भी कोशिश जारी है. मैं दो दिन तक इस तबाही के बीच रहने और देखने के बाद वापस पटना लौट आया हूं लेकिन उस मंजर को भूल पाना मुश्किल लग रहा है. बार-बार वो चेहरे आखों के सामने आ जाते हैं जिन्हें मैंने बर्बादी के बीच से उठते और संभलते हुए देखा है. जिन्हें मैंने उनके अपने ही घरों के बीच फंसकर मरे हुए देखा.
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Prasant ji, its time for futuristic planning to undo our past. nice piece of article – reflective !