जिस समय भारतीय संसद में राष्ट्रवाद पर बहस हो रही थी, उसी समय देश के कई हिस्सों में कथित राष्ट्रवादी समूहों की उच्छृंखल कार्रवाइयां भी जारी थीं. कई जगहों पर हिंदूवादी संगठन बुद्धिजीवियों के साथ मारपीट करने और सेमिनार आदि में व्यवधान डालने जैसे कारनामे कर रहे थे. करीब एक दर्जन विश्वविद्यालयों में आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) छात्रों से या शिक्षकों से भिड़ी हुई है. एबीवीपी का कहना है कि वे लोग ‘देशद्रोही’ हैं और ‘देशद्रोही गतिविधियों’ में लिप्त हैं.
23 फरवरी को डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक लेख लिखा, जिसे लखनऊ के समाजशास्त्र के प्रोफेसर राजेश मिश्रा ने फेसबुक पर शेयर किया. उन्होंने पोस्ट पर लिखा, ‘यह राजनीतिक विचारधारा में अंतर के बावजूद अभिव्यक्ति के लोकतांत्रिक अधिकारों का समर्थन करने के लिए है.’ उनकी इस पोस्ट पर एबीवीपी ने उनका पुतला फूंका. कक्षाएं नहीं चलने दीं. एबीवीपी के एक सदस्य अनुराग तिवारी ने बयान दिया कि ‘वे देशद्रोही हैं. जब वे यूनिवर्सिटी परिसर में आएंगे, तो मैं जूतों का हार पहनाकर उनका स्वागत करूंगा.’ विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. हालांकि, उस लेख के लेखक अपूर्वानंद और अखबार पर कोई सवाल नहीं है. एबीवीपी को आपत्ति इसलिए है कि वह लेख जेएनयू विवाद के बाद चर्चा में आए उमर खालिद के समर्थन में था.
‘राष्ट्रवाद का यह जो छद्म है, यह फासीवाद की ओर ले जाता है. फासीवाद इसी पर टिका होता है. यह हिस्ट्री रिपीट्स इटसेल्फ वाला मामला है. बुद्धिजीवियों पर हमला उसी प्रयोग की पहली कड़ी है’
अपूर्वानंद कहते हैं, ‘अब देखिए कि मूर्खता किस हद तक जा रही है कि वह लेख राजेश मिश्रा ने लिखा नहीं है, सिर्फ शेयर किया है. उस लेख में कोई हिंसा का आह्वान नहीं है. लेकिन उनके खिलाफ हिंसा होती है और उन्हीं को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया जाता है. हम लोग धीरे-धीरे कहां जा रहे हैं?’
इसी तरह जम्मू विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में 18 फरवरी को ‘कश्मीर में बहुलतावाद’ पर सेमिनार हुआ, जिसमें कई विद्वान और पत्रकार शामिल हुए. हिंदूवादी संगठनों ने इसे ‘देशविरोधी’ और ‘पाकिस्तान समर्थक’ गतिविधि बताया, आपत्ति जताई और कुलपति ने विभाग को नोटिस जारी कर दिया.
जनवरी की शुरुआत में ही सामाजिक कार्यकर्ता व मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. संदीप पांडेय को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बर्खास्त कर दिया गया. वे वहां गेस्ट फैकल्टी थे. उन पर धरना-प्रदर्शन जैसी ‘नक्सली और देशद्रोही’ गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया. संदीप पांडेय पर भी यह आरोप एबीवीपी का था, जिसकी शिकायत पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कार्रवाई की. संदीप पांडेय का कहना है, ‘मैं आपसे पूछता हूं कि अगर मैं नक्सली या देशविरोधी हूं, तो केस दर्ज कर मुझे जेल में डालना चाहिए या फिर मेरा निष्कासन होना चाहिए? दरअसल, यह एक वैचारिक लड़ाई है. हम संघ की विचारधारा के विरुद्ध हैं, इसीलिए ये लोग हमसे परेशान हैं.’ संदीप पांडेय ने अपनी बर्खास्तगी को हाई कोर्ट में चुनौती दी है.
महाराष्ट्र में लातूर जिले के पानगांव में 19 फरवरी को शिवाजी की जयंती मनाने के लिए जमा हुए कुछ लोग भगवा झंडा फहरा रहे थे. यह इलाका सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील है. पानगांव पुलिस चौकी पर तैनात असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर एएसआई यूनुस शेख ने उन्हें भगवा फहराने से रोक दिया. अगले दिन भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला किया और एएसआई यूनुस शेख को पकड़कर उनकी बुरी तरह पिटाई की और उनके हाथ में भगवा झंडा पकड़ाकर पूरे गांव में परेड कराई. भीड़ ने यूनुस से ‘जय भवानी, जय शिवाजी’ के नारे भी लगवाए.
इन सभी घटनाओं के मद्देनजर ही भारतीय संसद में राष्ट्रवाद पर बहस हुई. बहस में राष्ट्रवाद की तमाम परिभाषाएं तो दी गईं लेकिन यह सवाल अनुत्तरित रह गया कि इस तरह की घटनाएं रोकी जाएंगी या नहीं. यह बहस भी इसलिए हुई क्योंकि जेएनयू में कथित देशविरोधी नारे लगने की घटना के बाद वहां के छात्रों पर कार्रवाई को लेकर बहस और आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ. राष्ट्रवाद की इस बहस के बीच हैदराबाद, जेएनयू, इलाहाबाद, बनारस, लखनऊ, ग्वालियर और जम्मू विश्वविद्यालय में अकादमिक जगत पर हुए हमलों ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
21 फरवरी को ग्वालियर में आंबेडकर विचार मंच की ओर से ‘बाबा साहब आंबेडकर के सपनों का भारत’ विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. कार्यक्रम में जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार भी शिरकत करने पहुंचे थे. आरोप है कि उनके व्याख्यान के दौरान भारतीय जनता युवा मोर्चा और एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने वहां पहुंचकर उपद्रव शुरू कर दिया. इन कार्यकर्ताओं ने वहां तोड़फोड़ की और हवाई फायर भी किए गए.
प्रो. विवेक कुमार के मुताबिक, ‘वह कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था. आंबेडकर पर केंद्रित अकादमिक कार्यक्रम में व्यवधान डालने का सीधा मतलब है कि वे कार्यक्रम नहीं होने देना चाहते. हिंदूवादी आंबेडकर का नारा तो लगाते हैं, लेकिन यह उनकी मजबूरी है. वे दलितों के विचार-विमर्श को भी रोकना चाहते हैं. कार्यक्रम अांबेडकर विचार मंच ने रखा था. दलित श्रोता थे, दलित वक्ता और दलित मंच. अब इसके विरोध में आप हिंसात्मक प्रदर्शन करें, तो ये कोई बात नहीं हुई. वे एकदम से हिंसात्मक मुद्रा में सीधे अंदर चले आए थे. अंदर घुसने से रोकने पर उन्होंने गोली चलाई.’
‘बुद्घिजीवियों पर हमले इसलिए हो रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये सब हिंदुत्ववाद या किसी एक तरह की विचारधारा के खिलाफ हैं. देश का नारा है अनेकता में एकता, लेकिन ये लोग एकता में एकता चाहते हैं’
25 फरवरी को इलाहाबाद में वकीलों ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला किया और उनके साथ जमकर मारपीट की. प्रदर्शन करने वाले लोग वामपंथी संगठनों व सिविल सोसायटी के लोग थे. वे रोहित वेमुला और जेएनयू प्रकरण के विरोध में इलाहाबाद कचहरी में धरना-प्रर्दशन कर रहे थे. हमलावर लोगों ने प्रदर्शन कर रहे लोगों को ‘देशद्रोही’ और ‘पाकिस्तान समर्थक’ कहा और उन्हें दौड़ाकर पीटा. हमले में ट्रेड यूनियन के एक कार्यकर्ता अविनाश मिश्रा का सिर फट गया. प्रदर्शन में शामिल महिलाओं को भी पीटा गया. अविनाश का आरोप है, ‘हमला करने वाले वकीलों की ड्रेस में थे, लेकिन वे सभी वकील नहीं थे. यह भाजपा के गुंडों का काम है.’ कथाकार दूधनाथ सिंह ने बताया, ‘हम लोग धरने पर थे. वकील लोग आए. पहले भागने को कहा, मना करने पर मारपीट शुरू कर दी. वहां पर लगे पोस्टर-बैनर सब फाड़ दिए.’