अइसी कविता ते कौनु लाभ!

काका 1977 में आकाशवाणी से रिटायर हो गए लेकिन रेडियो से उनका जुड़ाव बना रहा. 18 अप्रैल 1982 को लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. आकाशवाणी लखनऊ की लोकप्रियता में काका की बड़ी भूमिका रही. 1965 में आकाशवाणी को लिखे गए एक पत्र में मशहूर साहित्यकार अमृतलाल नागर ने लिखा- ‘एक मैं ही नहीं, मेरे मत से आपके केंद्र के असंख्य श्रोता भी एक ही उमंग में सम्मिलित होकर एक स्वर से कहेंगे कि काका रेडियो के अनमोल रत्न हैं.’ 2013 में आकाशवाणी लखनऊ के 75 साल पूरे होने के मौके पर संस्थान ने रमई काका की सेवाओं को याद करते हुए ‘जन-मन के रमई काका’ नाम से एक श्रंखला का प्रसारण किया जो काफी लोकप्रिय रहा.

जन्मशती के मौके पर निहायत जरूरी है कि रमई काका के तमाम प्रकाशित-अप्रकाशित साहित्य को इकट्ठा करके एक समग्र ग्रंथावली के रूप में छापा जाए. क्योंकि उनका बहुत सारा काम अभी तक अप्रकाशित है और ज्यादातर प्रकाशित पुस्तकें भी लंबे वक्त से नए संस्करण न छपने के कारण लगभग अनुपलब्ध हो गईं हैं. इसके साथ ही ज्यादा जरूरी ये है कि उनके साहित्यिक संस्कारों एवं सरोकारों से प्रेरणा प्राप्त की जाए. जैसा कि एक जगह वे कहते हैं-

 

हिरदय की कोमल पंखुरिन मा, जो भंवरा असि न गूंजि सकै

उसरील वांठ हरियर न करै, डभकत नयना ना पोंछि  सकै

जेहिका सुनतै खन बन्धन की, बेड़ी झन झन न झनझनायं

उन पांवन मां पौरूखु न भरै, जो अपने पथ पर डगमगायं

अंधियारू न दुरवै सबिता बनि, अइसी कविता ते कौनु लाभ 

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