भारतीय खुफिया संस्थाएं

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इलस्ट्रेशन: मनीषा यादव

यूपीए-2 के तीसरे साल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एसपीजी, रॉ और आईबी के कुछ भूतपूर्व और तत्कालीन अधिकारियों की एक बैठक बुलाई. बैठक में मनमोहन सिंह के साथ सोनिया गांधी भी मौजूद थीं. उस मीटिंग में मनमोहन सिंह ने अधिकारियों से कुछ सवालों पर उनकी राय जाननी चाही-  क्या इंटेलीजेंस एजेंसियों में मुस्लिम समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के संबंध में कोई फैसला लिया जा सकता है? क्या रॉ में मुस्लिमों को शामिल करने के बारे में सोचा जा सकता है. क्या एसपीजी में सिखों और मुसलमानों पर लगे बैन को हटाने पर विचार किया जा सकता है?

मनमोहन सिंह के इन प्रश्नों पर राय जाहिर करते हुए अधिकारियों ने कहा कि ऐसा हो तो सकता है लेकिन इसमें खतरा बहुत बड़ा है. सालों से चले आ रहे सिस्टम को बदलने से अगर कुछ गड़बड़ हुई तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? अंततः पीएम ने और सोचने की बात कहकर मीटिंग समाप्त कर दी. फिर कभी इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई.

srमनमोहन सिंह जिस मुद्दे पर इन अधिकारियों से चर्चा कर रहे थे वह भारत की इंटेलीजेंस और सुरक्षा एजेंसियों से जुड़ी ऐसी कड़वी हकीकत है जिसके बारे में कभी कोई खुलकर चर्चा नहीं करता. हकीकत यह कि भारत की आजादी के इतने सालों बाद भी देश की इंटेलीजेंस एजेंसियों में मुसलमानों के लिए नो-एंट्री का बोर्ड लगा हुआ है और एसपीजी(स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप) और एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) में सिखों और मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है. रॉ के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, ‘ये कोई आज की बात नहीं है. 1969 में अपने गठन से लेकर आज तक रॉ ने किसी मुस्लिम अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है. हालांकि उसके अपने कारण हैं.’ एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी इसकी चर्चा करते हुए कहते हैं, ‘शुरू-शुरू में एक अनरिटन कोड था कि इंटेलिजेंस एजेंसियों में खासकर सेंसिटिव जगहों पर मुस्लिमों को नियुक्त नहीं किया जाता था. यही अलिखित नियम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के लिए भी बन गया.’

सन 84 में स्थापित एसपीजी से जुडे़ एक पूर्व अधिकारी तहलका से बातचीत में कहते हैं, ‘ये सही है कि सिख और मुस्लिमों को वीवीआईपी सुरक्षा में नहीं लगाया जाता. पूर्व में हमने सुरक्षा से जुड़े अलग-अलग मामलों के कारण ही देश के प्रधानमंत्रियों की हत्या होते देखी है. एसपीजी सुरक्षा का अंतिम घेरा होता है. ऐसे में उसमें किसी तरह का कोई जोखिम नहीं ले सकते. मैडम इंदिरा गांधी और राजीव जी की हत्या के उदाहरण हमारे सामने हैं.’

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फोटो: विकास कुमार

रॉ और एसपीजी की तरह ही एनटीआरओ (नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) ने भी किसी मुस्लिम अधिकारी को अपने यहां नियुक्ति नहीं किया. कुछ ऐसा ही हाल मिलिट्री इंटेलीजेंस (एमआई) का भी है. एमआई के एक अधिकारी कहते हैं, ‘अभी इसमें कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि सालों से चले आने के कारण ये चीजें परंपरा के रूप में स्थापित हो चुकी हैं. इसमें किसी को कुछ अजीब नहीं लगता.’ मीडिया से बातचीत में इसको कुछ और स्पष्ट करते हुए रॉ के पूर्व विशेष सचिव अमर भूषण कहते हैं, ‘मुस्लिमों को संवेदनशील और सामरिक जगहों से बाहर रखने का एक सोचासमझा प्रयास किया जाता है. समुदाय को लेकर एक पूर्वाग्रह बना हुआ है.’

भूषण की बात की पुष्टि कुछ साल पहले अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी एक खबर से हो जाती है. खबर में लिखा था कि पूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री हुमायूं कबीर के पोते की रॉ में भर्ती सिर्फ इस आधार पर रद्द कर दी गई क्योंकि वे मुस्लिम थे. हिमायूं कबीर उन लोगों में रहे हैं जिन्होंने बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने के बजाय भारत को चुना. रिटायर्ड वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी भी कहते हैं, ‘इन संस्थाओं में बंटवारे के बाद से ही एक सांप्रदायिक पूर्वाग्रह बना हुआ है. उनकी (मुस्लिमों की) देशभक्ति पर ये एजेंसियां संदेह करती हैं.

ऐसा नहीं है कि इसको लेकर इन संस्थाओं और सरकार में कोई चर्चा नहीं हुई. रॉ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि लंबे समय से रॉ की रिक्रूटमेंट पॉलिसी को लेकर संस्था के भीतर चर्चा चल रही है. लेकिन एजेंसी में ही एक तबका ऐसा है जो इसमें किसी तरह के बदलाव का सख्त विरोधी है. पूर्व प्रमुख पीके ठाकरन के समय में (2005-2007) इस दिशा में कुछ काम हुआ था. ठाकरन ने रिक्रूटमेंट पॉलिसी को बेहतर करने और उसमें धर्म के आधार पर भेदभाव खत्म करने के उद्देश्य से एक कमेटी बनाई थी. हालांकि उस कमेटी की न तो कभी रिपोर्ट आई और न ही पॉलिसी में कोई बदलाव हुआ.

एनडीए के कार्यकाल में भी ये मामला चर्चा में रहा. एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘कारगिल युद्ध के मद्देनजर एक कमेटी बनाई गई थी जिसको पूरे इंटेलीजेंस सिस्टम पर रिपोर्ट तैयार करनी थी कि क्या और किस तरह के सुधार लाए जाएं. उस समय ब्रजेश मिश्रा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. उस दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि कैसे सुरक्षा एजेंसियों में एक धर्म विशेष के लोगों का प्रभुत्व है और एक समुदाय के लिए वो जगह वर्जित है.’ उस कमेटी से जुड़े रहे एक अधिकारी कहते हैं,  ‘मैंने इस बाबत ब्रजेश मिश्रा से बात की कि कैसे मुसलमान अधिकारियों के लिए हमें इंटेलीजेंस सिस्टम खोलना चाहिए तो वे ये बात सुनकर जोर से हंसे. फिर कहा बताइए किसे रखवा दें. आप परेशान मत होइए. करेंगे इस दिशा में भी करेंगे. सही सलाह दीजिए ऐसी मत दीजिए कि आपकी और हमारी दोनों की नौकरी पर बन आए.’

Anadयूपीए के कार्यकाल में जब जेएन दीक्षित एनएसए बने तो उस समय भी यह मामला उठा था. गृह मंत्रालय में पदस्थ रहे एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘उस समय भी रिक्रूटमेंट पॉलिसी में बदलाव के लिए चर्चा हुई थी. लेकिन रॉ के भीतर ही एक धड़ा इसके सख्त खिलाफ था. उसने सख्त लहजे में सरकार को बता दिया था कि सरकार को इस दिशा में सोचने की जरूरत नहीं है.’ यूपीए-2 का जिक्र तो हम ऊपर कर ही चुके हैं.

रॉ के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, ‘देखिए इसमें किसी को हाथ नहीं डालना चाहिए. पहले से एक व्यवस्था बनी हुई है वो डिस्टर्ब हो जाएगी. जो बदलाव करेगा उसे भविष्य में होनेवाली गड़बड़ी की जिम्मेवारी लेने के लिए तैयार रहना होगा. ऐसा नहीं है कि मैं मुसलमानों को एजेंसी में शामिल करने के खिलाफ हूं. लेकिन अभी वो समय नहीं आया है. जब देश के भीतर के लोग ही इस्लामिक आतंकवाद में गिरफ्तार हो रहे हों तब ऐसा सोचना किसी देशद्रोह से कम नहीं है.’

कुछ लोग मानते हैं कि समुदाय की देशभक्ति और उसके समर्पण को लेकर संदेह की वजह से ही 1998 में आईबी ने राष्ट्रीय स्तर पर यह सर्वे कराया था कि क्या मुस्लिम समुदाय से देश की आंतरिक सुरक्षा को कोई खतरा तो नहीं है. 28 बिंदुओं वाले सर्वे में यह प्रश्न भी था कि पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति में मुसलमान भारत के साथ खड़े होंगे या नहीं. तब तक भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु परीक्षण कर चुके थे. ऐसे में सर्वे के माध्यम से यह जानने का भी प्रयास किया गया था कि दोनों देशों के बीच शुरू हुई न्यूक्लियर रेस को समुदाय किस तरह से देखता है. कुछ और प्रश्न थे जैसे- क्या मुस्लिम समुदाय ने पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण का विरोध किया है?   मुसलमानों की पाकिस्तान के परीक्षण पर क्या प्रतिक्रिया है. मुस्लिम उम्मा की एकता का आह्वान करनेवाले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण के बारे में वे क्या सोचते हैं.

रॉ के पूर्व प्रमुख आनंद कुमार वर्मा कहते हैं, ‘देखिए जहां सिक्यूरिटी का सवाल उठता है वहां जरूरत से ज्यादा सेंसिटिव होना पड़ता है. वहां नजदीक के ही नहीं बल्कि दूर के खतरों के बारे में भी सोचना पड़ता है. इसलिए भर्ती के समय बहुत ध्यान दिया जाता है कि कहीं अभी न भी सही लेकिन बाद में तो कोई खतरा पैदा नहीं हो जाएगा.’

तो क्या यह मान लें कि मुसलमानों को नियुक्त करने को लेकर कोई पूर्वाग्रह इंटेलीजेंस एजेंसियों में नहीं है? पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते, ‘व्यवस्था में कुछ लोगों को अभी भी लगता है कि इनकी लॉयल्टी उधर (पाकिस्तान के प्रति) हो सकती है. इसीलिए जो सेंसिटिव डेस्क होती हैं आईबी में उनको नहीं दी जाती हैं. इस कारण से ये रॉ में भी नहीं रखे जाते.’

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फोटो: विजय पांडे

वफादारी के प्रश्न पर आईपीएस अधिकारी तथा इंटेलीजेंस की ज्वाइंट कमिटी के पूर्व सचिव केकी दारुवाला एक स्थान पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कह चुके हैं कि उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो के अपने एक साथी से पूछा कि पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले भारतीयों एजेंटों की सामुदायिक स्थिति क्या है. उसका उत्तर था कि अधिकांश जासूस बहुसंख्यक समाज से हैं.

एके वर्मा के मुताबिक, ‘ नियुक्ति करने वाले अधिकारी में एक पूर्वाग्रह  हो सकता है लेकिन यह उस अधिकारी की अपनी व्यक्तिगत सोच है. ऐसी कोई सरकारी पॉलिसी नहीं है. अब नियुक्ति करने वाला ही पूर्वाग्रह से भरा है तो सरकार क्या कर सकती है’ वर्मा मुसलमानों की देशभक्ति पर संदेह की बात को खारिज करते हुए कहते हैं, ‘ शुरू में लोगों को इस तरह के संदेह रहे होंगे लेकिन देखिए हमारे गृहमंत्री और गृहसचिव भी गैर हिंदू लोग बन चुके हैं. अब ये तो बेहद संवेदनशील पोस्ट होती हैं. उनका दखल सब जगह रहता है. हां ये एक तथ्य तो है ही कि मुस्लिम समुदाय के जो लोग हैं अगर उनसे पूछा जाए कि आपकी लॉयलिटी किसकी तरफ है – धर्म के प्रति या देश के प्रति तो मेरा अनुमान है कि वो हमेशा कहेंगे कि उनकी पहली वफादारी तो धर्म की तरफ है. सवाल फिर यहीं से उठता है.’

अपनी बात को विस्तार देते हुए वे कहते हैं, ‘देखिए उनके जो धर्म के सिद्धांत हैं. उसमें जो बातें लिखी गई हैं जिन्हें मानने के लिए वे बाध्य हैं उनमें ही लिखा है कि देश के प्रति नहीं बल्कि उम्मा के प्रति वफादार होना चाहिए. उम्मा यानी जो पूरा इस्लामिक डायसपोरा है वो आपके वतन के समान है. आपकी पहली लॉयलिटी उम्मा के प्रति है उस देश के प्रति नहीं जहां आप पैदा हुए हैं, जहां रहते हैं. इसलिए आप देख रहे हैं कि यूरोप और अमेरिका में वहीं पर पैदा हुए लोग, उसी वातावरण में पले बड़े लोग, जिनके बारे में मानना चाहिए कि वो वहां के वैल्यूज को अपने आप स्वीकार कर लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि मस्जिद में या उनकी कम्यूनिटी की जो मजलिसें होती हैं या परिवार में जो चर्चा होती है उसमें हमेशा ये बात उठती रहती है कि आपको अपने धर्म के प्रति हमेशा निष्ठा दिखानी है. अगर आपने कभी स्टडी किया हो तो आप समझ जाएंगे कि उस धर्म में कई ऐसी चीजें है जो किसी और धर्म में नहीं हैं. ऐसी चीजें जो हमें और आपको आपत्तिजनक लगें लेकिन उनको नहीं लगती हैं. उनका धर्म कहता है कि अगर किसी ने धर्म को छोड़ दिया तो कोई भी बिलीवर उसको जान से मार सकता है.’

prakashधर्म के आधार पर मुसलमानों के साथ भेदभाव के सवाल पर आईबी के एक अधिकारी कहते हैं, ‘इसे धर्म के चश्मे से देखना ठीक नहीं होगा. इंटेलीजेंस में किसी भी अधिकारी पर आंख बंदकर विश्वास नहीं किया जाता. यह हिंदुओं के साथ ही हर धर्म के व्यक्ति पर लागू होता है. वे एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘हमारे यहां सभी अधिकारियों के भूत और वर्तमान का पूरा हिसाब दर्ज रहता है. इस मामले में हम पूरी सख्ती बरतते हैं. एक अधिकारी जो हमारे यहां आए थे उन्होंने एजेंसी ज्वाइन करते समय जो जानकारी दी थी उसमें इस बात का जिक्र नहीं था कि उनके नाना ने दो शादियां की थी. उनकी दूसरी नानी के दोनों बेटे आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए थे. जब उनसे ये पूछा गया तो वो कहने लगे कि ये तो बहुत पुरानी बात है. इससे क्या मतलब. उनसे फिर कुछ और नहीं पूछा गया. जिस राज्य से वो आए थे उन्हें वहां वापस भेज दिया गया.’

एक तरफ जहां एजेंसी के अधिकारी इस तरह के उदाहरणों के आधार पर अपने निर्णय को जायज ठहराते हैं वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय से आने वाले ऐसे अधिकारी भी हैं जो इस तरह की प्रोफाइलिंग को षडयंत्र के रूप में देखते हैं. एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘ये लोग हमें नहीं लेना चाहते हैं तो सीधे कह दें. ये जानबूझकर कोई न कोई रिश्ता किसी न किसी मुस्लिम देश से निकाल देते हैं. और फिर कहते हैं कि ये तो सेंसिटिव मामला है. आप खुद सोचिए कि भारत में ऐसा कौन-सा मुसलमान होगा जिसके परिचय का कोई पाकिस्तान या बांग्लादेश में नहीं होगा. एक पीढ़ी पहले जाते ही कोई न कोई उस पार का निकल आता है. बस इस आधार पर ये उस अधिकारी को ब्लैक लिस्ट कर देते हैं. ‘

69 COMMENTS

  1. आनंद वर्मा जी हिन्दू की वफादारी भी अपने धर्म की तरफ ही होती है. अगर आपसे कहा जाये की गाये का मांस खाओ तो किआ आप खाओगे ??
    अब यह कहने की जरूरत नहीं है की देश को पाकिस्तानियो के हाथ बेचने वाले सारे के सारे हिन्दू जासूस ही थे और हैं.

  2. प्रकाश सिंह तेरा जैसा चोतिया को किसने डी जी पी बना दिया था. किआ परम वीर चक्र वाले अब्दुल हमीद तुम्हारे दामाद थे ????

  3. Mr brijesh, aap jaise log thodi Wah2 ke liye apne desh k system pe hamesa ungli karte hai el bar apne najar ko jara Pakistan aur China k taraf b karo aapki. sari reporting bakwas lagne lagegi. democracy ka mean kuch b likhna nai hota hai.kash el baar AAP Pakistan se aayee Hindu se baat karte phir ye article likhte.

  4. VERY BALANCED ARTICLE. VIJAY MISHRA JI JIN LOGO NE DESH KO PARMATMA SE BADA MANA AUR INTELIGENCE ME AAYE UNHI ME SE HI BHARAT KE KHILAF JASOOSI KARTE PAKDE JAATE HAI. JO ISS BAAT KO PROOVE KARTA HAI INSAN KOI BHI HO ACCHA AUR BURA HO SAKTA HAI. LEKIN MUSLIMS KO TAMAM TARAH KI INTELIGENCE SE DOOR RAKHNE KI COMUNAL CONSPIRACY HAI.

  5. VERY BALANCED ARTICLE. VIJAY MISHRA JI JIN LOGO NE DESH KO PARMATMA SE BADA MANA AUR INTELIGENCE ME AAYE UNHI ME SE HI BHARAT KE KHILAF JASOOSI KARTE PAKDE JAATE HAI. JO ISS BAAT KO PROOVE KARTA HAI INSAN KOI BHI HO ACCHA AUR BURA HO SAKTA HAI. LEKIN MUSLIMS KO TAMAM TARAH KI INTELIGENCE SE DOOR RAKHNE KI COMUNAL CONSPIRACY HAI.

  6. Tamir e watan me hum bhi hai baraber k shareek……………………………………………………….daro deewar agar tumho to buniyaad hai hum…………………………………………………………….

  7. बिलकुल व्यर्थ आर्टिकल है । किसी काम का नहीं है कोई निष्कर्ष नहीं निकला इससे । और जो लोग यह सोचते हैं की धर्म को किनारे करके देश का उत्थान कर लेंगे बिलकुल व्यर्थ सोचते हैं । जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके बाद उसकी पहली पाठशाला उसकी माँ की गोद होती है और पहला पाठ धर्म ही का होता है चाहे वह किसी फौजी का बच्चा हो या किसी कलेक्टर का । सत्य असत्य , सही ग़लत , वफादारी और ग़द्दारी , का ज्ञान बच्चा वहीँ से लेता है । और इसी ज्ञान का उपयोग उसे देश के उत्थान में करना होता है । मगर अफ़सोस जब वह उस जगह पर पहुंचता है जहाँ अपने इस ज्ञान का उपयोग करके देश और मानवता का उत्थान करे तो उस समय आँखों पर अधर्म की पट्टी बाँध लेता है । फिर इसके लिए झूठ बोलना, रिश्वत लेना , घोटाले करना, लोगों पर झूठे इलज़ाम लगाना, लोगों के हक़ को दबाना कोई बड़ी बात नहीं होती । और मुझे सबसे मज़े की बात तो यह लगती है लोग सरहद पर तो अधर्म का चश्मा पहन कर देश के लिए लड़ने को कहते हैं और जब बात गृह कलेश की आती है तो धर्म का साथ देते हैं । यह न्याय की बात नहीं है ।

  8. बिर्जेश जी मुझें इस लेख के अंतिम चरण पर विचार व्यक्त करने की आवश्यकता महसूसहो रही हैं यदि वह ऐसा नहीं करेंगे तो कितने दिन ठहर सकेंगें ऐसा करना मजबूरी भी तो हैं

  9. आई बी का चीफ मुसलमान होने से मुसलमानों को फर्जी आतंकी घोषित करने में आसानी होती है .मुस्लिम आर आर एस का है आसिफ़ इब्रहिम यह जानकारी आपको नही है .मुसलमानों को ठीक करने के लिए मुसलमान अफसर ज्यादा उचित होते है

  10. आपका यह आलेख आम मुसलमानो को भी सोचने पर करेगा की उन्हें धर्म के प्रति अधिक तवज्जो देनी या देश के प्रति /जिस तरह दाऊद इब्राहिम ,असदउद्दीन ओवैसी को मुस्लमान अपना हीरो मानते है वीर शहीद अब्दुल हमीद को भी उतना ही हीरो मानते है ? सभी मुस्लमान एक जैसे नहीं होते है जो बड़े पदो पर है उनमे से कुछ द्देश के प्रति समर्पण का भाव रखते है न की धर्म के प्रति / जो हिन्दू मुस्लिम मोहल्लो में रहते है उनसे पूछिये वे बेहतर जानते है की मुस्लमान धर्म के खिलाफ एक शब्द पर मरने कटाने पर उतारू हो जाते है लेकिन देश के खिलाफ बोले गए वाकया पर ताली बजाते है ऐसे लोगो पर विश्वास करे या संदेह ?

  11. They r loosing some good people in the name of Muslim n Sikh ,who r more capable ,they afraid of competition
    Being a Muslim I m proud of being indian jay hind

  12. dekiye islaam main yeh kahin ni likha ki aap desh ke liye bafadaar ni ho sakte balki…….ager aap apne watan se muhabbat ni kerte to aap sachai musalmaan ni hai.. yeh islaam sikhata hai……yahan log veer abdul hameed jese logo ko bhool jaate hain…ager 1 musalmaan ko mauka milta hai to woh doosro ke mukaable zyada loyel milega………………

  13. बृजेश, सराहनीय लेख ….लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती है , उन कारणों को भी जन मानस के बीच जाकर खोजना पड़ेगा, न की केवल कुछ पूर्व अफसरो की कही गयी बातो से.

    कभी किसी मदरसे में जाकर वहाँ पढ़ने वाले मासूम बच्चो से पूछना की देश का मतलब क्या है? दोनों कौम के बच्चों की तालीम का अंतर समझना पड़ेगा.

  14. Es desh me jo sab par hindutav (brahmanwaad) thopa ja raha hai yehi es sab ki jarh hai. Ab Sikh aur Muslin, kal ko Dalit aur Shudar bhi eska dikaar honge. mai sochta hu ye desh ek nhi hai. Esme desh se kayi desh alag hona chahte hai es soch ke karan hi. Jaise k Kashmir, Khalistan, Nagaland, Asaam, aur Naxal area. Bas ab jiada der nhi es deshke tutne me. Bayd me ye hindu Raster ban jayega. Chalte raho modi ji RSS, VHP etc ke sath.

  15. बृजेशजी लेख पर आपकी रिसर्च बहुत अच्छी है. इससे आपने जांच एंजेसियों के बारे में काफी जानकारी साझा करने की कोशिश की. हो सकता है कि कुछ मतभेदों की वजह से भारत की कुछ खुफिया एजेंसियों को मुसलमानों की नियुक्ति न होती है लेकिन इसे धर्म से या मुसलमान होने से जोड़ना गलत है वरना आईबी के निदेशक मुसलमान नहीं होते और भारत के प्रमुख संस्थाओं में मुसलमान अध्यक्ष नहीं बनाये जाते.

  16. कुरान और हदीस में इस बात का जिक्र है कि देश सबसे पहले है उसके बाद धर्म. बाकि आपने बहुत अच्छा लिखा है सर

  17. प्रस्तुत आलेख में श्री आनंद कुमार वर्मा का उल्लेख हुआ है.वास्तव में , श्री अरुण कुमार वर्मा जी ‘ रॉ ‘ में तत्कालीन सचिव पद पर रहे हैं.आशा है , इस त्रुटि को सुधार लेंगे.

  18. एकदम निष्पक्ष स्टोरी के लिये बहुत धन्यवाद. हर बात को धर्म के चश्मे से देखने की आदत को हमें बंद करना होगा.
    मुझे याद है कि जब मुरलीधरन पर चकिंग का आरोप लगा तो आई.सी.सी ने अपनी वैज्ञानिक जाँच में पाया कि मुरलीधरन के बॉलिग एक्शन में चकिंग तो है लेकिन उनके हाथ की बनावट जन्म से ही ऐसी है इसलिये उनपर कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी. आई.सी.सी के इस तर्क पर सवाल उठाते हुए बिशन सिंह बेदी ने कहा था कि क्या हम एक जन्मजात अंधे व्यक्ति को इस आधार पर पायलट बना सकते हैं कि जन्म से अंधा होने में उसका कोई दोष नहीं है ? इस्लाम शिक्षा देता है ‘ भ्रातृवाद ‘ की अर्थात पूरे विश्व में जहाँ भी मुस्लिम हैं वे सब उनके भाई हैं. साम्यवादी भी नारा देते है कि दुनियाँ के मजदूरो एक हो जाओ. और भारत के साम्यवादियों ने दिखाया भी कि मुश्किल समय में उन्होने देश का साथ नहीं दिया. जहाँ भी राष्ट्रवाद की स्वीकृति नहीं होगी वहाँ पर खूफिया संस्थाओं को अतिरिक्त सावधान होना ही पड़ेगा. इसीलिये मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी गुप्तचर संस्थायें किसी सच्चे साम्यवादी को भी अपने यहाँ जगह नहीं दे सकतीं.
    हमारे देश में तो लगभग सभी महत्व-पूर्ण सरकारी पदों तक मुस्लिमों की पहुँच है लेकिन क्या किसी भी मुस्लिम देश में अल्पसंख्यकों के लिये इस तरह के किसी अधिकार की बात सोची भी जा सकती है ? पाकिस्तान के रह रहे हिंदू आज किस यातना से गुज़र रहे हैं क्या किसी से छुपा है ? वे भी तो अपनी मर्जी से ही पकिस्तान में रह गये थे. क्या ये सच नहीं है कि कश्मीर में पाकिस्तानी झंडे फहराये जाते है और भारतीय झंडे जलाये जाते हैं ? आप सभी कमेंट कारों से निवेदन है कि कुछ दिन कश्मीर घाटी,दक्षिण कर्नाटक और केरल के कुछ खास हिस्सों में रहकर देखिये मुझे विश्वास है कि आपके कमेंट बदल जायेंगे.
    असल में इस भेदभाव से दुख तो मुझे भी होता है लेकिन ये भी लगता है कि कम से कम खूफिया संस्थाओं में ये भेद तब तक बना रहना चाहिये जब तक स्वयं खूफिया संस्थायें इसके लिये तैयार नहीं हो जातीं. मेरे दृष्टिकोण से अगर किसी को चोट पहुँची हो कर-बद्ध क्षमा याचना.

  19. इस समुदाय के मनोविज्ञान में ये है कि हम सरकारी नौकरी और खासकर की पुलिस या फौज की नौकरी नहीं करेंगे. क्योंकि पुलिस या फौज की नौकरी करने के लिए आपको देश के प्रति अटूट देशभक्ति चाहिए. और आपको मर मिटना पड़े तो मर मिटने के लिए तैयार रहिए. ये कहते हैं कि ठीक है, हम बहादुर हैं. हम मर मिटने को तैयार हैं लेकिन हम इस्लाम के लिए। यह बयान किसी और के नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का है। अब यह बताने की जरूरत शायद खत्म ही हो जाये कि क्यों हमेशा इंटेलीजेंस के निशाने पर समुदाय विशेष ही होता है ? क्यों हमेशा उन्हीं के घरों से बम निकाले जाते हैं ? क्यों हमेशा दंगों में निशाना बनाकर उन्हें ही मारा जाता है ? प्रकाश सिंह भूले नहीं बल्कि जानबूझकर याद रखना नहीं चाहते इस देश के लिये सबसे अधिक कुर्बानी देने वाले मुस्लिम उलेमा ही थे। क्रिस्टोफोर्ट हिबर्ट ने लिखा है कि 1857 में दिल्ली में कोई जवान नहीं दिखता था, दिल्ली से लेकर देवबंद तक शायद ही कोई ऐसा दरख्त था जिस पर किसी उलेमा की लाश न टंगी हो। और सबसे अहम सवाल इस्लाम और देशभक्ति का तो इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं में है कि जिस मुल्क में रहते हो उस मुल्क की सरहद के लिये मर मिटो। इस एक जुमले पर वे सारे पूर्वाग्रह समाप्त हो जाने चाहिये जो सरकारी ऐजंसियों के दिलों में जवान हुऐ बैठे हैं। मगर ऐसा नहीं हो रहा है उल्टा इसके बरअक्स हो रहा है समुदाय विशेष को संदेह की दृष्टी से देखने वाले अकेले प्रकाश सिंह ही नहीं बल्कि अधिकतर अधिकारी इसी मानसिकता को पाले बैठे हैं। क्या प्रकाश सिंह बतायेंगे कि केके नैय्यर जो बाबरी के समय फैजाबाद के जिलाधिकारी हुआ करते थे और बाद में भाजपा के सांसद बने उनकी निष्ठा किसके प्रति थी ? देश के प्रति या राम मंदिर के प्रति ? क्या प्रकाश सिंह बतायेंगे कि आर डी त्यागी 1992 – 93 के मुंबई दंगों के आरोपी की निष्ठा किसके प्रति थी ? देश के प्रति या हिंदुत्व के प्रति ? क्या प्रकाश सिंह बतायेंगे कि उत्तर प्रदेश के आई जी पंडा जो 2005 में महिला का रूप धारण किये फिरते थे उनकी निष्ठा किसके प्रति रही ? अगर उनको देश से इतना ही लगाव था तो फिर साधू क्यों बन बैठे ? क्यों नहीं नक्सल से सामना किया ? क्यों नहीं आतंकियों के फन को कुचला ? क्यों नहीं गुंडाराज को खत्म किया ? सवाल तो बहुत हैं और ऐसे नाम भी बहुत हैं, जिनको प्रकाश सिंह की टैबल पर पटखा जा सकता है। मगर उससे भी अहम यह है कि आज तक भारत के इतिहास में जासूसी के आरोप में या गद्दारी के आरोप में जितने भी अधिकारी गिरफ्तार हुऐ उनमें से एक भी नाम न सिक्ख समुदाय का था और न ही मुस्लिम समुदाय का। फिर प्रकाश सिंह किस आधार पर समुदाय विशेष को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, क्यों उसकी निष्ठा. देश प्रेम पर सवालिया निशान लगा रहे हैं ? एक सवाल यह भी है कि नौकरी के दौरान पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कार्य करने वाले आखिर बाद में आकर दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन ही क्यों ज्वाईन करते हैं। सच्चाई यह है कि संघी शाखाओं में शिक्षा पाने वाले अधिकारी अगर अपने कर्मों से पूर्वाग्रह का परिचय नहीं देंगे तो उन्हें कौन पहचानेगा कि वह किस परिवेश से निकल कर आये हैं ?

  20. Jo log desh ke liye sach mein achha sichhte haun unhe ye baat samjhni hogi ki ek diisre par shak karke hum desh ko peechhe le jaa rahe hain. Humein ek doosre par bharosa karna seekhna hoga. Articles like these and people like Brijesh ji have kept the faith alive of muslims like me. Great work.

  21. मैंने सन 1994 में IB क्वालीफाई किया मगर फाइनली मेरा सलेक्सन नहीं हुआ ! और वजह थी मुस्लिम होना ,,अगर मैं कहूँ की मुस्लिम को उसके धर्म में अपने देश के प्रति वफादारी सिखाई जाती है तो ग़लत नहीं ! मगर किसको बताया जाये ..सब तो शक़ की नज़र से ही देखतें हैं ! अगर हमें इंडिया में सही नौकरी मिलती हम लोग यानी मैं तो कभी भी विदेश में नहीं रहता! इतनी दूर बीवी बच्चों और घरवालों से दूर ! आपको शायद पता भी नहीं हो शायद की हम जब हज व उमरह करतें हैं तो अपने मुल्क के लिए भी दुआ मांगते हैं ! मैं अपने वतन से बेहद प्यार करता हूँ मगर मेरे पास सुबूत नहीं है !
    तहलका को धन्यवाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ !
    जय हिन्द !

  22. Iss statement per yadi amal kiya jaye toh nisandeh Hindu-Muslim ke bich ekta badhegi aur Bharat ek viksit rashtra ki ore agrasar hoga.
    :
    इंटेलिजेंस से जुड़े तमाम ऐसे अधिकारी भी हैं जो ये राय रखते हैं कि सालों से चले आ रहे इस भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए. वे बताते हैं कि कैसे ये अलिखित नियम अंततः इंटेलीजेंस को ही नुकसान पहुंचाता आया है. आईबी और रॉ दोनों से पूर्व में जुड़े रहे अधिकारी बी रमन ने अपनी किताब काव बॉयज में मुसलमानों के आईबी और रॉ में भर्ती होने की जरूरत पर बल दिया है. आउटलुक पत्रिका से बातचीत में रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत कहते हैं, ‘मुसलमानों की नियुक्ति न सिर्फ जरूरी है वरन वो बेहद महत्वपूर्ण भी है. एक मुस्लिम अधिकारी ही मुस्लिम समाज के मानस को बेहतर तरीके से समझ सकता है. कोई गैर मुस्लिम कितना भी दावा करे कि वो समुदाय के बेहद करीब है वो उस समाज की बारीकियों को पूरी तरह नहीं समझ सकता. वहीं एक मुस्लिम भाषा, रूपक और संस्कृति के स्तर पर उससे संवाद कर सकता है.’
    पाकिस्तान में जासूसी के लिए एजेंट्स के चयन में शामिल रहे एक अधिकारी कहते हैं, ‘आपको गैर मुस्लिम को किसी मुस्लिम देश में भेजने के लिए उसे पूरी तरह से बदलना पड़ता है. शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर. भाषा बोलचाल और संस्कृति की तमाम बारीकियां उसे सिखानी पड़ती हैं. जिसमें न सिर्फ ढेर सारा पैसा और समय खर्च होता है बल्कि उसकी सफलता पर भी हमेशा संदेह बना रहता है. वे एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘एक अधिकारी को हमने एक मुस्लिम देश में भेजने के लिए तैयार किया. वो एक गैर मुस्लिम था. उसे ‘मां दुर्गा की कृपा से’ और ‘मां दुर्गा सब ठीक कर देगी’ जैसे लाइनें बोलने की आदत थी. उसकी ट्रेनिंग के दौरान इसे छुड़ाने की खूब कोशिश की गई. हम कामयाब रहे उसने मां दुर्गा वाली बात बोलनी बंद कर दी थी. जाने से एक दिन पहले मैंने उसे बुलाया और कहा कि तुम रिलैक्स रहना. सब ठीक से हैंडिल हो जाएगा. उसने तपाक से बोला, यस सर मां दुर्गा की कृपा से सब ठीक हो जाएगा. उसने हमारी कई महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया था.’
    कश्मीर में चरमपंथ के चरम समय में मुस्लिम अधिकारियों का रोल बेहद महत्वपूर्ण रहा है. एक वरिष्ठ आईबी अधिकारी कहते हैं, ‘उस समय एक रणनीति के तहत मुस्लिम अधिकारियों को वहां भेजा गया था. इसका बहुत फायदा हुआ. ये अधिकारी वहां के लोगों के बीच ज्यादा बेहतर तरीके से घुल मिल गए. वो वहां के लोगों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाते थे. धीरे-धीरे स्थानीय लोगों ने भी इन ऑफिसरों पर भरोसा करना शुरू कर दिया. इससे हमें पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा को वहां खत्म करने में मदद मिली.’

  23. बहुत खूब…..माइनॉरिटी और मेजोरिटी की भूलभुलैयअ से निकलने का प्रयास न तोः सरकार कर रही है और न ही देशवासी………..

  24. कुछ भी हो मुझे उन कट्टर लोगो से कुछ नहीं कहना मुझे तो बस प्यार करने वाले लोगो से इतना कहना है के हम खुशनसीब है के हम हिंदुस्तानी है हम अपने पुरखो को सलाम करते है के उन्होंने मुझे मुसलमान से पहले हिंदुस्तानी बनाया हम हिंदुस्तानी मुसलमान बय चांस इंडियन नहीं है बल्कि हम बय चुवाइस इंडियन है दूसरी बात जो एक साहब कह रहे थे के मुसलमान धार्मिक ज़यादा होता है पहले धर्म को देखता है फिर अपने वतन को
    तो मै उन्जानब से बा अदब पूछना चाहता हूँ के आप वीर अब्दुल हमीद या इन जैसे शहीदो को कितना धार्मिक मानते है
    इतना ही कहना उचित होगा के “बारिश का ख़तरा सांप और सीप दोनों के मुह में जाता है मगर सांप उसे ज़हर और सीप मोती बनता है
    आप अपनी सोच से ही इंसान में महान बनते है

  25. tahlka ne bahut hi achha mudda uthaya hai i agree with this but meri apni rai hain ki musalmano par bharosa karna zaruri hai na ki unhe sandeh ki nazar se dekhna fir dekhna sub kuchh theek ho jayega aur ye apasi jhagde bhi band ho jayege ye bhi isi ka ek hissa hain.

  26. बिर्जेश भाई आप की यह रिसर्च स्टोरी सराहनीय है , इस के लिए आप और तहलका की टीम बधाई के पात्र हैं आप ने जिस प्रकार से ख़ुफ़िया संस्थाओं में हो रहे भेद भाव और सम्प्रदायिक सोच को उजागर किया हैं,और जांच एजेंसियों को घेरने की कोशिश की है उस से ख़ुफ़िया अधिकारीयों के मनोदशा को सही अनुपात में आँका तो नहीं जा सकता लेकिन इस भेद भाव को परखा ज़रूर जा सकता है और इस की आवश्यकता भी है

  27. जिस देश मे अल्पसंख्यक समुदाय के लोग राष्ट्रपति,उपरास्ट्रपति,प्रधानमंत्री एवं मुख्य न्यायधीश के पद को सुशोभित कर चुके है,उस देश मे इस्परकार की बाते करना बकलोली के सिवाय और कुछ नही है.

  28. यह एक वाहियात लेख है। मिस्टर सिंहः बताएं कि क्या कोई मुस्लिम किसी युद्ध में मैदान से भगा। देश के लिए जासूसी करने वालों में कितने मुस्लमान हैं। अब्दुल हमीद क्या देश के लिए न्योछावर नहीं हुआ था। मुसलमानों के बारे में जो पूर्वाग्रह हैं उनके चलते मुसलमानो को इंसाफ नहीं मिल रहा। लेखक को चाहिए था कि मुसलमानों से भी बात करते। ये बातें पहले भी छप चुकी हैं। लेखक ने कोई नई जानकारी नहीं दी है।

  29. प्रकाश सिंह जैसे आदमी जब हाई पोस्ट पर बैठते हैं तो पक्षपात करते हैं। जबकि आज का मुस्लिम बड़ी शिद्दत से मुख्यधारा मैं शामिल होना चाहता है। जो भी मुस्लिम अधिकारी है उस पर आज तक भ्रस्टाचार के आरोप नहीं लगे। वह जहाँ पर भी है अपनी ड्यूटी को पूरी इमानदारी और दक्षता से कर रहा है। उस पर अभी तक किसी ने ऊँगली नहीं उठाई। और न ही कोई उठा पायेगा। जो भी मुस्लिम तथाकथित आरोपों मैं पकड़ा जाता है वो ज्यादातर आरोप फैब्रिकेटेड होते है और जो रियल होते है तो उनमे पकडे जाने वाले ज्यादातर घटिया लोग ही होते है। और वो दोनी समुदायों से होते हैं।

  30. A column, which portrays the reality of our country and this is not the only field where particular community is being ignored by giving some lame excuses for not incorporating their presence. in short, in every field and in a systematic conspiracies , it has been continued since our independence. this completely shows a standard format to neglect a community by so called right wing mindset people, who are unfortunately everywhere and are actively participating in keeping this deprived community purposely from the domain of these institutions.
    A statement or the reasons displayed in this column by a very learned and respected gentleman, that the Muslim community is incapable or their source of patriotism is ambiguous or their education is not on such level, clearly shows his sheer negligence or a deliberate attempt to malign the whole community and I am 100% sure that this gentleman must be loyal to so called right wing nationalist parties and its affiliates.
    if we take for the time being, for the sake of argument that Muslim are illiterate and their education level is not on such level, then take a small example of Moradabad Railway Station where more than 90% REGISTERED KOOLI are from a particular community and on the other side,UNREGISTERED KOOLI are from other community. what does it mean? this particular community is not even able to get the job of KOOLI whereas, they are outnumbered otherwise.
    the second reason given by this gentleman, that this community is not interested in getting the job of police, military and so on and so forth. This is totally a rubbish and fabricated notion made by this gentleman. Just give them the chance, and see what the results come. you can’t even imagine the pouring numbers of such community who are like other communities, eager to grab the job of military and police but the problem with this community is, every political party, leader as well as the responsible person in every dept. are doing only lip services for this community and doing nothing practically in the name of their betterment. I don’t know what message these people are going to give to such a huge number of people by keeping them out of main stream. still the time has not passed and the real hero of our country who are indeed not biased and don’t show their partiality towards specific community, can fight against it in order to save our country.

  31. अंग्रेजी में एक कहावत है कि पहले कुत्ते पर कोई तोहमत लगायी जाती है फिर उसे ठोकर मारी जाती है. (To give the dog a name and kick it). बिलकुल यही बात अल्पसंख्यकों के साथ की जा रही है.कभी आतंकवादियों के हमदर्द तो कभी देश की बजाये इस्लाम के प्रति वफ़ादारी के इलज़ाम लगा कर उन्हें सत्ता के स्थानों से बाहर रखा जाता है. पुलिस के अन्दर कितना जातिवाद और साम्प्रदायिकता है इसे मैंने पुलिस में ३२ साल रह कर बहुत नजदीक से देखा है और यथा संभव इस के विरुद्ध लड़ा भी हूँ. वैसे तो यह सब सत्ता संतुलन (Power balance) की बात है. जिन के हाथ में सत्ता होती है सारे माप दंड वही तै करते हैं. दलितों के साथ सदियों से यही भेद भाव होता आया है.

  32. Abhinav bhatt g ki baat se mai aur iss desh ka musalmaan iss liye sahmat nahi hoga kyuki ….kyuki maa ke goud se madarse tak ak bacche ko ye taalim di jaati hai ke

    jo bhi insaan upar wale ke liye imaan daar nahi hoga wo neeche wale ke liye imaan daar kaise ho sakta hai…

    Aur jo musalmaan hoga wo jarur apn
    e watan se muhabbat karne wala
    hoga..

    hoga…

  33. What a journalism sir jee fantastic♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥. Brijesh sir Thank you…you choosen a very sensitive matter….THANKS A LOT

  34. Me to bhartiye sarkar se yhi guzarish karoonga ki ham pe bhrosa to kar k dekhe ham ek hindu se khi zayada vafadar h apne mulk k liye rahi baat mazhab ki to ye baat zroor h k sabse pehle mazha aour fir mulk aata h ye nhi k pehle musalman na bilkul nahi iska matlab ye nhi ki ham pakistan k liye wafadar h jo mere mulk ki tarah aankh uthayeham wo aakh nikalna bhi jaante lekin jo hamare mazhab ki taraf haath uthaye ham vo haath bhi kaat sakte h to aap hinduo se poochna chahta hu ki kiya aap mere mazhab nuksan phuchaoge mughe pata h k koi bhi hindu ye hi khega nhi bilkul nahi@@@ to mere bhaio aap ham par shak kiyo krte ho hame moqa do ham apne watan k liye jaan dene ko tayyar aap bhrosa to kre@@@@

  35. This was a bigger question after the Indian Independence that whether Muslim officers should be given sensitive posts in the administration.I remember that when Sri Islam Ahmed, IP was to take over as IGP UP(now re designated as DGP), this was the biggest question at that time. Ultimately this was decided that all sensitive reports/Intelligence reports will be filtered at Asst of IG level and he will decided that what should be put up before the IGP.

    Now no where in IB or RAW, sensitive information is being share with Muslim officers, if there is any even in DMI, BSF or other para military forces where Int units are in existence. This is not a very sensitive issue but have long term and longer lasting impacts so has to be handle carefully.

    NC Joshi

  36. व्यूरोक्रेसी के सांप्रदायिकता में गहरे तक धंसे होने का सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘आपने देखा होगा कि चुनाव के पहले कितने वरिष्ठ अधिकारियों ने दक्षिणपंथी पार्टी का दामना थामा. आप कल्पना कीजिए कि जब ये सर्विस में रहे होंगे तो क्या कर रहे होंगे. ये कहां और कितने सेक्यूलर रहे होंगे ये समझा जा सकता है.’

  37. ye desh ko lutne ki sajis rachi ja rahi hai .dharam ke naam par ak dusre ki jaan ke dusman bane huye he …….HAR INDIAN YAHE KAHEGA.. … .. I LOVE MY INDIA. …….. DIL SE……

  38. Iska MATLAB to ye hwa jo A P Abdul kalam jinko missile man k nam SE jana jata h unko Indian research m nhi Jana tha or unko technology dane nhi the or is k bad President nhi bnnna tha, or bhaishab kitne he asse example mil jayenge, PR SAb logo ko to hindu-muslim m sansative bat ko uthate ho. Muslim ho ya koi be other samaj jitna India m freedom h kise or country m nhi or na he max Hindu kise ka virodh krte kyoki sub Bhartiye h, or ye poltical issue h jisme hame bakuf bnya jata h. Agar pak ke politics pr bat kre to wha Muslims ke alawa or koi h Jo pak m achi post ya uska acha nam ho jaise yha PR Bollywood, poltics, game,education koi b ek example ho to jarur batana….or ant m is desh m or be issue h unko utho keval hindu-muslim k PR he atke ho

  39. तहलका में रहना है तो ऐसी रिपोर्ट लिखना जरूरी है।

  40. गलत जानकारियों की वजह से मुसलमानो को टारगेट किया जाता है जनाब मुहम्मद (स.)की एक हदीस है जिसका मफ़हूम है की तुम जिस देश में रहते हो उसकी वफादारी करनी जरुरी है अपनी सरजमीन से वफादारी अपने रब से वफादारी कीतरह ।
    अफ़सोस की बात जिस कौम ने इस देश आज़ादी दिलाने केलिए अपना खून बहाया हो उस कौम को हमेशा गद्दार की नजरसे देखा जाता है . हमने अपने आँखो अलग अलग रंग के चश्मे लगा रखे है चश्मा बदलिये येभी अपनेही नज्जार आएंगे

  41. भाई साहब क्या आप के पास यह पक्की जानकारी है कि NSG में सिक्खों की भर्ती नही की जाती है |

  42. Mr. Brijesh
    approx. 99% Muslim can work for His religion like to see the the movie BABY. MR. said that we will write Muslim in bold and capital letter in religion column but this not as the movie dialog. Its reality we work on this. Mr. Prakash u are also wrong.Plz Delete this artical .We also meet with Refugee Indian people he can said that at time of separation of Indian country Very Bad condition in Lahore, Punjab and Islamabad.
    If u want meet with me plz reply on my mail.

    Thanks

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