व्यंग्य-सी नुकीली कविताएं

bookaसम-सामयिक और किसी कालखंड के लिए सबसे प्रासंगिक मुद्दों पर प्रभावपूर्ण टिप्पणी के लिए व्यंग्य सर्वाधिक उपयुक्त विधा है. व्यंग्य गद्य रूप में अधिक लिखा-पढ़ा जाने लगा है किंतु कविता की संप्रेषणीयता को यदि व्यंग्य की धार मिल जाती है तो उसका पाठक पर गहरा प्रभाव होता है. पंकज प्रसून के व्यंग्य कविता संग्रह ‘जनहित में जारी’ की पहली कविता ‘एमजी मार्ग का टेंडर’ ही लेखक के व्यंग्य से जुड़े गंभीर सरोकार को प्रमाणित करती हैं. कविता में भ्रष्ट और अकर्मण्य व्यवस्था पर तीखा कटाक्ष है, ‘गांधी के पथ पर चलना आसान नहीं है, हम इसको और कठिन बनाते हैं.’

संग्रह की कविताओं में बार-बार संवेदनहीन और दोहरे चरित्र वाली राजनीतिक व्यवस्था एवं राजनेताओं पर सटीक निशाना साधा गया है. ‘दो जुंओं की कहानी’ में आम आदमी से नेताओं की दूरी पर व्यंग्य हो या ‘पत्थर भी रोता है’ की ‘कार्य प्रगति पर है फिर भी विकास अवरुद्ध है’ जैसी पंक्तियां, सभी में व्यवस्था के प्रति तीखा आक्रोश प्रकट होता है. संग्रह की शीर्षक कविता ‘जनहित में जारी’ राजनीति के जनहित से विमुख होने पर गहरी चोट करती है, ‘तुम मुझे सत्ता दो, मैं तुम्हें भत्ता दूंगा. तुम मुझे देश दो, मैं तुम्हें उपदेश दूंगा.’

इन तमाम पंक्तियों को मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में परखा जा सकता है. देश में एक पूर्ववर्ती सरकार ने जनता को मजबूत प्रगति का आधार देने के बजाय खैरात बांटने की नीति पर काम किया और नई सरकार सत्ता मिलने के पश्चात जनता को उपदेश देने में जुटी है. विचार, साहित्य, बाजार और राजनीति, तमाम क्षेत्रों में  मौलिकता या खरेपन का संकट है, सब कुछ मिलावटी हो चला है. ऐसे ही हालात पर पंकज लिखते हैं, ‘संकरण का संक्रमण इस कदर फैला है/ विष को छोड़ बाकी सब विषैला है.’

वास्तविक जीवन में संपर्कों-संबंधों से कटकर सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में गुम हुई नौजवान पीढ़ी से लेकर साहित्य, समाज और मानवीय संबंधों को भी कवि ने अपनी कविता का विषय बनाया है. मंच का कवि होने के कारण अधिकांश कविताओं में राजनेताओं पर व्यंग्य के वार हुए हैं संभवतया इस कारण ज्यादातर कविताएं एक विशेष दायरे में कैद दिखाई पड़ती हैं. पुस्तक में कई स्थानों पर टाइपिंग की गलतियां संप्रेषणीयता को बाधित करती हैं जिनको अगले संस्करणों में सुधारा जा सकता है.