
राजेश खन्ना और मेरे करियर ने 1970 की शुरुआत में तकरीबन एक ही साथ उड़ान भरी थी. राजेश खन्ना से जब हमारी (मेरी और जावेद अख्तर) मुलाकात हुई थी, तब तक उनकी फिल्में आराधना और दो रास्ते रिलीज हो चुकी थीं और उन्हें सुपरस्टार का खिताब मिल चुका था. फिर हमने जीपी सिप्पी की फिल्म अंदाज में पहली बार साथ काम किया. इस फिल्म के निर्माण के दौरान ही हमारी जान-पहचान बढ़ी. उनके साथ नए स्टोरी आइडियाज पर बहुत चर्चा होती थी. हम अच्छे दोस्त बन गए. बान्द्रा में भी हम लोग पड़ोसी हुआ करते थे और तकरीबन रोज ही मिला करते थे. जिन दिनों उनका सितारा बुलंदी पर था, मैं भी अक्सर उनके बंगले आशीर्वाद की बैठकों में शामिल हुआ. मुझे उन्हें करीब से जानने का वक्त मिला. कई साल तक उन्हें जानने-समझने के बाद मैं उनके बारे में ये तो नहीं समझ पाया कि वो अच्छे हैं या बुरे, बस इतना समझा कि वो अजीब थे. सबसे अलग.
ये वो वक्त था जब फिल्म इंडस्ट्री आज के दौर के मुकाबले छोटी जरूर थी लेकिन यहां प्रतिद्वंद्विता कम नहीं थी. दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार जैसे एक्टर राज करते थे. इन सबकी मौजूदगी में किसी भी नए एक्टर के लिए अपनी पहचान बनाना बड़ी बात थी. राजेश ने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि बहुत कम वक्त में अपने स्टारडम को एक नई ऊंचाई तक पहुंचा दिया. 1969-1975 तक मैंने उनके सुपर स्टारडम को बेहद करीब से देखा, लेकिन मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि जिस ऊंचाई को उन्होंने छुआ, वहां उनके बाद आज तक हिंदी सिनेमा का कोई स्टार नहीं पहुंचा. उनकी कामयाबी एक मिसाल है.
आज मेरा बेटा सलमान बड़ा स्टार है. हमारे घर के बाहर उसे देखने के लिए हर रोज भीड़ लगती है. लोग मुझसे कहते हैं कि किसी स्टार के लिए ऐसा क्रेज पहले नहीं देखा. मैं उन लोगों से कहता हूं कि इसी सड़क से कुछ दूरी पर, कार्टर रोड पर आशीर्वाद के सामने मैं ऐसे कई नजारे देख चुका हूं. राजेश खन्ना के बाद मैंने किसी भी दूसरे स्टार के लिए ऐसी दीवानगी नहीं देखी.
राजेश के फैन्स में छह से 60 साल तक के लोग शामिल थे. खासतौर पर लड़कियां तो उनकी दीवानी थीं. उनके करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म हाथी मेरे साथी लिखने में भी मेरा योगदान था. मुझे याद है कि इस फिल्म की शूटिंग के वक्त मैं उनके साथ मद्रास (चेन्नई) और तमिलनाडु की कई दूसरी लोकेशन्स पर गया. मैंने देखा उन इलाकों में भी राजेश खन्ना के नाम पर भारी भीड़ जमा हो जाती थी. ये हैरत की बात थी क्योंकि वहां हिंदी फिल्में आमतौर पर ज्यादा नहीं चलती थीं. तमिल फिल्म इंडस्ट्री खुद काफी बड़ी थी और उसके अपने मशहूर स्टार थे, लेकिन राजेश खन्ना का करिश्मा ही था, जो भाषा की सरहदों को भी पार कर गया था. ये करिश्मा उन्होंने उस दौर में कर दिखाया जब न तो टेलीविजन था, न 24 घंटे का एफएम रेडियो न बड़ी-बड़ी पीआर एजेंसियां.
लेकिन चार-पांच साल के बाद उनके करियर की ढलान भी शुरू हुई. जिस तरह उनकी बेपनाह कामयाबी की कोई एक वजह नहीं थी, उसी तरह उनके करियर के ढलने की भी कोई एक वजह नहीं थी. उनकी पारिवारिक जिंदगी के तनाव, इंडस्ट्री के लोगों के साथ उनका बर्ताव और कुछ नया न करना… ऐसी कई वजहें थीं. लेकिन मुझे लगता है कि इसमें किस्मत का खेल भी था. फिर जब फिल्में पिटीं तो उन्होंने अपने अंदर झांककर नहीं देखा कि गलती कहां हुई. उन्होंने दूसरों को दोष देना शुरू कर दिया. उन्हें लगता था कि उनके खिलाफ कोई साजिश हुई है.
उन जैसे सुपरस्टार के बारे में ये जानकर आपको हैरानी होगी कि एक इंसान के तौर पर वो इंट्रोवर्ट थे और खुद को सही ढंग से एक्सप्रेस तक नहीं कर पाते थे. वो बेहद शर्मीले भी थे. मैं उनकी मेहमाननवाजी का भी गवाह रहा हूं. बड़े दिल के आदमी थे, खाना खिलाने के शौकीन थे. मैं जानता हूं कि उन्होंने अपने स्टाफ के लोगों को मकान भी दिए हैं. कोई आदमी अच्छा लगता था तो उसके लिए बिछ जाते थे. गाड़ियां तक गिफ्ट दी हैं. उस जमाने में अपने दोस्त नरिंदर बेदी को भी उन्होंने गाड़ी तोहफे में दी थी. फिर धीरे-धीरे उनका दौर गुजर गया. लेकिन मुझे लगता है कि अपने जेहन में वो इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर पाए.
फिल्म इंडस्ट्री के बड़े स्टार्स पर कई किताबें लिखी गई हैं. इनमें से ज्यादातर या तो राजेश खन्ना से पहले के स्टार्स जैसे दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, शम्मी कपूर वगैरह पर हंै या फिर राजेश खन्ना के बाद के स्टार्स जैसे अमिताभ बच्चन पर. हैरानी की बात है कि राजेश खन्ना पर अब तक कुछ भी शोधपरक नहीं लिखा गया था. जबकि उनका दौर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का बेहद अहम और करिश्माई दौर रहा है. अपने उस दौर में वह वन मैन-इंडस्ट्री थे और कहा जाए तो उन दिनों फिल्में नहीं चलती थीं, सिर्फ राजेश खन्ना चलते थे.