‘महिलाओं की समस्या सुनना मेरा काम है, लोग आरोप लगाते हैं तो लगाएं’

Barkha Singhआप पर एक गंभीर आरोप लगाया जाता है कि आपने दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पद का राजनीतिकरण कर दिया है. ऐसा लगता है कि दिल्ली महिला आयोग एक पार्टी विशेष के लोगों के खिलाफ कुछ ज्यादा ही सक्रिय है.

जब से आम आदमी पार्टी की सरकार सत्ता में आई है तभी से आरोप लग रहे हैं. ये संयोग ही है कि जब इस पार्टी की पिछली सरकार थी तब भी उनके एक नेता के खिलाफ शिकायत हुई और जब पार्टी दोबारा सत्ता में आई है तब भी शिकायतें मिल रही हैं. मुझे इस कुर्सी पर कांग्रेस की सरकार ने बिठाया था, लेकिन जिस वक्त मैं इस कुर्सी पर हूं तब मैं केवल आयोग की अध्यक्ष हूं मेरा काम है महिलाओं के हित के लिए उनके साथ खड़ा होना. उनकी मदद करना. उनकी रक्षा करने की कोशिश करना और पिछले कई सालों से मैं यही कर रही हूं. यहां कोई पार्टी-वार्टी नहीं है. यहां केवल पीड़िताएं आती हैं और हम पूरे मन से उनकी परेशानी और शिकायतें सुनते हैं. जब दूसरी बार इस पार्टी की सरकार बनी तो एक मामले में कुमार विश्वास का नाम आया. हम किसी को भी बुलाने नहीं जाते हैं. पीड़िता खुद आयोग के सामने आती हैं और जो मामला हमारे सामने आएगा हम उसका पक्ष सुनेंगे ही. आयोग का यही काम है. इसके बाद भी लोग आरोप लगाते हैं तो लगाएं.

क्या आपको लगता है कि दिल्ली महिला आयोग ने आप नेता कुमार विश्वास और दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती के मामले को प्रेस के सामने ले जाने में थोड़ी जल्दबाजी की? आप पर आरोप है कि इन दोनों ही मामलों को सुलझाने की कोशिश करने के बजाय आपने प्रेस वार्ता आयोजित करने में ज्यादा रुचि ली.

देखिए… ऐसा है. आरोप चाहे जो भी लगाए जाएं. सच्चाई यह है कि मैंने दोनों ही मामलों में प्रेस वालों को बुलाने या उन्हें कुछ बताने की कोई कोशिश नहीं की. सोमनाथ भारती पर इससे पहले भी एक मामला बना था तब वो दिल्ली के कानून मंत्री थे. उस वक्त नाइजीरियन महिलाएं खुद आयोग के सामने उनके खिलाफ आरोप लेकर आई थीं. उस वक्त भी मुझ पर यह आरोप लगाया गया था कि हमने प्रेस को बताया कि महिलाओं ने शिकायत की है. मीडिया के लोग खुद बहुत सक्रिय रहते हैं अगर उन्हें किसी मामले की जानकारी हो जाती है और वो उसे खबर बना देते हैं. इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती. इस बाबत लोगों ने आयोग से आरटीआई के माध्यम से भी जानकारी मांगी है. उन्हें भी हमने यही कहा कि आयोग ने कोई प्रेस वार्ता आयोजित नहीं की थी.

सोमनाथ भारती की पत्नी लीपिका मित्रा आपके घर पर प्रेस से बात कर रही थीं. जब वहां सोमनाथ भारती की मां आईं तो आपने उन्हें अपने घर में आने से रोक दिया. आपने उन्हें दफ्तर आने को कहा… क्यों?

बिल्कुल. यहां यह समझना होगा कि कौन किस इरादे से क्या कर रहा है. आप मेरे दफ्तर आए हैं. बाहर लोगों की भीड़ खड़ी है. वो सब महिलाएं हैं. मैं सबको सुनूंगी. जिस कुर्सी पर मैं बैठी हूं उसकी यही जिम्मेदारी है. इनमें से एक भी महिला मुझसे नाराज होकर नहीं जाएगी. मेरी न तो सोमनाथ भारती से दुश्मनी है और न ही मुझे उनकी माताजी से कोई परेशानी है. उस दिन भारती ने अपनी दो महिला वकीलों को मेरे घर में जबरदस्ती घुसवा दिया. ये कहां से सही है? मैं किसी मामले को तमाशा बनाने में विश्वास नहीं करती. बाद में मैंने अखबार में विज्ञापन देकर सोमनाथ भारती की मां को बुलाया. उस दिन उनकी माता जी अपने आप वहां नहीं आई थीं, उन्हें भेजा गया था. अब वो आएं. दफ्तर में आएं. घर पर आएं. जहां चाहे वहां आएं और मिलें लेकिन अब वो नहीं आएंगी. कई बार बुलाने के बाद भी वो नहीं आईं. एक बात और बताना चाहती हूं. लीपिका ने अपनी सास के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं बोला.

मुझे भी उस घटना का अफसोस है लेकिन एक बात सोमनाथ भारती को भी समझनी चाहिए. वो इतने पढ़े-लिखे हैं फिर भी वो अपनी मां का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये शर्म की बात है.

…कुमार विश्वास के मामले में क्या हुआ?

उस मामले में तो कुमार विश्वास दोषी थे ही नहीं. हमने तो उन्हें बतौर गवाह आयोग के सामने आने के लिए कहा था क्योंकि जिस महिला का मामला था उसका पति बार-बार यह कह रहा था कि जब तक कुमार मीडिया के सामने यह नहीं कहेंगे कि उनका मेरी पत्नी से कोई संबंध नहीं है तब तक मैं उसे अपने साथ नहीं रखूंगा. हमने तीन दिन तक उस आदमी को यहां घंटों समझाया. वो गांव-देहात का आदमी था. हमारी कोई बात उसने नहीं मानी तब हमने कुमार विश्वास को बुलाने की बात कही. मैं क्या करती? जिस महिला का मामला था वो आम आदमी पार्टी की कार्यकर्ता थी. कुमार विश्वास जब अमेठी से चुनाव लड़ रहे थे तो वो उनके साथ थी. अव्वल तो यह मामला आयोग के सामने आना ही नहीं चाहिए था. कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल को ही मामले को संभाल लेना चाहिए था लेकिन उन्होंने उसकी पीड़ा को समझा ही नहीं. उस बेचारी का पति आज भी उसे अपने से अलग रखता है.