बिल्कुल. यहां यह समझना होगा कि कौन किस इरादे से क्या कर रहा है. आप मेरे दफ्तर आए हैं. बाहर लोगों की भीड़ खड़ी है. वो सब महिलाएं हैं. मैं सबको सुनूंगी. जिस कुर्सी पर मैं बैठी हूं उसकी यही जिम्मेदारी है. इनमें से एक भी महिला मुझसे नाराज होकर नहीं जाएगी. मेरी न तो सोमनाथ भारती से दुश्मनी है और न ही मुझे उनकी माताजी से कोई परेशानी है. उस दिन भारती ने अपनी दो महिला वकीलों को मेरे घर में जबरदस्ती घुसवा दिया. ये कहां से सही है? मैं किसी मामले को तमाशा बनाने में विश्वास नहीं करती. बाद में मैंने अखबार में विज्ञापन देकर सोमनाथ भारती की मां को बुलाया. उस दिन उनकी माता जी अपने आप वहां नहीं आई थीं, उन्हें भेजा गया था. अब वो आएं. दफ्तर में आएं. घर पर आएं. जहां चाहे वहां आएं और मिलें लेकिन अब वो नहीं आएंगी. कई बार बुलाने के बाद भी वो नहीं आईं. एक बात और बताना चाहती हूं. लीपिका ने अपनी सास के खिलाफ कभी एक शब्द नहीं बोला.
मुझे भी उस घटना का अफसोस है लेकिन एक बात सोमनाथ भारती को भी समझनी चाहिए. वो इतने पढ़े-लिखे हैं फिर भी वो अपनी मां का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये शर्म की बात है.
…कुमार विश्वास के मामले में क्या हुआ?
उस मामले में तो कुमार विश्वास दोषी थे ही नहीं. हमने तो उन्हें बतौर गवाह आयोग के सामने आने के लिए कहा था क्योंकि जिस महिला का मामला था उसका पति बार-बार यह कह रहा था कि जब तक कुमार मीडिया के सामने यह नहीं कहेंगे कि उनका मेरी पत्नी से कोई संबंध नहीं है तब तक मैं उसे अपने साथ नहीं रखूंगा. हमने तीन दिन तक उस आदमी को यहां घंटों समझाया. वो गांव-देहात का आदमी था. हमारी कोई बात उसने नहीं मानी तब हमने कुमार विश्वास को बुलाने की बात कही. मैं क्या करती? जिस महिला का मामला था वो आम आदमी पार्टी की कार्यकर्ता थी. कुमार विश्वास जब अमेठी से चुनाव लड़ रहे थे तो वो उनके साथ थी. अव्वल तो यह मामला आयोग के सामने आना ही नहीं चाहिए था. कुमार विश्वास और अरविंद केजरीवाल को ही मामले को संभाल लेना चाहिए था लेकिन उन्होंने उसकी पीड़ा को समझा ही नहीं. उस बेचारी का पति आज भी उसे अपने से अलग रखता है.