सोशल मीडिया को कानून के दायरे में लाने की मांग

सोशल मीडिया को कानून के दायरे में लाने की याचिका पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में सोशल मीडिया के माध्यम से नफरत फैलाने वाले और फेक न्यूज के प्रसार के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए अलग से कानून बनाएं जाने की मांग की गई है ।

यह याचिका एडवोकेट विनीत जिंदल ने दायर की है, जिसमें कहा गया है कि जनहित में दायर यह याचिका सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर घृणा और फर्जी समाचार फैलाने में शामिल व्यक्तियों पर आपराधिक केस चलाने और उसपर कानून बनाने की मांग के लिये जारी की जा रही है।

याचिका में केंद्र सरकार, केंद्रीय गृह मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, दूरसंचार मंत्रालय, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और फेसबुक इंडिया आदि को प्रतिवादी बनाया गया है।

याचिका की दलील में कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया एक हानिकारक भूमिका निभा रहा है और इस दुरुपयोग को रोकने का समय आ गया है. याचिका में सोशल मीडिया सोशल नेटवर्किंग वेब साइट्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप इत्यादि को घृणा और फर्जी समाचार फैलाने के लिये जिम्मेदार माना गया है।

साथ ही यह तर्क भी दिया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइटें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं क्योंकि इनका उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और मैच फिक्सिंग, आतंकवाद, हिंसा भड़काने और अफवाह फैलाने वाले उपकरण के रूप में किया जा रहा है.

याचिका में केंद्र को एक एसा तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया जाने की  मांग की है जो कम समय सीमा के भीतर ही हेट स्पीच और फर्जी समाचार को अपने आप साइट से हटा दें ताकि नफरत भरे भाषणों या फर्जी समाचारों हर अंकुश लगाया जा सके। और एसे मामलों मे शामिल लोगो पर विशेषज्ञ जांच अधिकारी नियुक्त करने के लिए भी आदेश मांगा गया है.