भारत में बुलेट ट्रेन अब भी सपना, सबसे आगे निकला चाइना

कहा जाता है कि किसी समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश था। इतना ही नहीं हमारे इस देश को सोने की चिडिय़ा भी कहा जाता था। यही कारण है कि भारत पर वर्षों से चौतरफा हमले हुए। अनेक देशों के लोगों ने समृद्धि के लिए भारत का रुख किया। आज भी भारत एक ताकतवर और आधुनिक देश माना जाता है। लेकिन कुछ वर्षों से चाइना भारत को कई क्षेत्रों में पछाड़ चुका है। जैसा कि आजकल कहा जाता है कि चाइना दुनिया में हर तरह से अव्वल रहना चाहता है और इसके लिए चाइना कुछ भी करने को तैयार है। वह हर क्षेत्र में सबसे आगे जाने की हौड़ में है।

हाल ही में चाइना ने बिना ड्राइवर की बुलेट ट्रेन लॉन्च करके दुनिया को चौंका दिया है। यह दुनिया की पहली बगैर चालक के चलने वाली स्मार्ट और हाई स्पीड बुलेट ट्रेन है। इसकी स्पीड बरकरार रखने के लिए इसे रोज़ चलाया जाएगा। बताया जा रहा है कि यह बुलेट ट्रेन 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩे वाली इस ट्रेन का नाम ‘रिजुवेनेशन’ रखा गया है। 5जी सिग्नल, वायरलेस चाॄचग और स्मार्ट लाइटिंग के अलावा इस ट्रेन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कनेक्ट किया गया है। इस बुलेट ट्रेन में केवल एक व्यक्ति ड्राइव बोर्ड पर होगा, जो किसी आपात स्थिति पर नज़र रखेगा। बताया जा रहा है कि यह विश्व की पहली हाईस्पीड बुलेट ट्रेन है। इसे बीजिंग से झांगजियाकौ के बीच चलाया जाएगा। इस बुलेट ट्रेन को 2022 में बीजिंग और झांगजियाकौ में होने वाले ओलंपिक को ध्यान में रखकर लॉन्च किया गया है। चाइना के अनुसार, इस बुलेट ट्रेन पर पहले परीक्षण का खर्च 56,496 करोड़ रुपये है। चाइनीज रेलवे ने कहा है कि इस आधुनिक ट्रेन में यात्रियों को खूबसूरत सफर के साथ भरपूर आराम रहेगा। चाइना की यह बुलेट ट्रेन बीजिंग से झांगजियाकौ के बीच का 174 किलोमीटर का सफर महज़ 47 मिनट में कर लेगी। इस लम्बी दूरी में इस ट्रेन के 10 स्टापेज हैं। चाइना के विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो 2021 तक चाइना के अन्य कई रूटों पर भी बुलेट ट्रेन दौडऩे लगेगी। माना जा रहा है कि अगर इस ट्रेन का संचालन ठीकठाक रहा तो मध्य सितंबर से शुरू होने जा रहे बीजिंग-शंघाई रेलवे के लिए नयी समय सारणी तैयार की जाएगी।

रोबोट करेंगे ट्रेन की देख-रेख और मरम्मत

चाइना ने दावा किया है कि इस ट्रेन के रखरखाव और मरम्मत का काम रोबोट करेंगे। रोबोट को चाइना द्वारा विकसित ग्लोबल सैटेलाइट से निर्देशित किया जाएगा। चाइना का यह भी कहना है कि यह परियोजना यूएस-विकसित ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम का स्थान ले लेगी।

भारत में हीला-हवाली क्यों?

जैसा कि सभी जानते हैं कि मुम्बई और अहमदाबाद के बीच 508 किलोमीटर के ट्रैक पर मौज़ूदा भारत सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2017 में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बनायी थी। यह योजना भारत सरकार ने जापान की तकनीकी और आर्थिक मदद के ज़रिये तैयार की थी। वैसे तो माना जा रहा है कि अगर भारत में बुलेट ट्रेन दौड़ी तो यह भारत के लिए गौरव की बात होगी। सरकार की मानें तो बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट 15 अगस्त, 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन भारत में जिस गति से काम हो रहा है और जितने अवरोध बुलेट ट्रेन का ट्रैक बिछाने में अब तक आये हैं, उससे तो यही लगता है कि 2022 तक भारत में बुलेट ट्रेन नहीं दौड़ सकेगी। भारत सरकार शुरू में जिस संज़ीदगी और तत्परता से बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट पर काम किया था, वह अब नहीं दिख रही है। सवाल यह उठता है कि आिखर भारत में बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट में इतनी हीला-हवाली क्यों हो रही है?

 क्या कहते हैं रक्षा विशेषज्ञ?

जिस समय भारत में बुलेट ट्रेन चलाने की योजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद चल रही थी, उस समय दिल्ली साइंस फोरम से जुड़े रक्षा विशेषज्ञ डी रघुनंदन ने बुलेट ट्रेन की खूबियों और इससे आड़े आने वाली परेशानियों से अवगत कराया था। उन्होंने कहा था कि भारत में बुलेट ट्रेन को मुनाफे में रखना आसान नहीं होगा। उनके अनुसार, बुलेट ट्रेन को चलाने में काफी खर्चा आता है, जिसके चलते इसका किराया बहुत अधिक रखना होगा, जो हर कोई वहन नहीं कर सकेगा। उनका यह भी कहना है कि अब तक का इतिहास देखें तो बुलेट ट्रेन केवल विकसित देशों में ही सफल हो सकी है, जबकि विकासशील देशों में असफल। डी रघुनंदन का कहना है कि चाइना ने भी बुलेट ट्रेन का 10 बार किराया घटाया है, उसके बाद भी वहाँ का रेलवे विभाग करोड़ों के घाटे में है।

वे कहते हैं कि भारत में इतना किराया देने वाले लोग अभी उतने अधिक नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि अधिकतर देशों ने अधिक आबादी को कवर करने वाले क्षेत्रों में बुलेट ट्रेन चलायी है, ताकि उसमें अधिक-से-अधिक लोग सफर कर सकें।

कर्ज़ का है सौदा

भारत सरकार ने बुलेट ट्रेन की योजना तो बना ली, लेकिन इसे हकीकत की ज़मीन पर उतारने के लिए हमारा देश मोटे कर्ज़ में डूब जाएगा। केवल मुम्बई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने के लिए तकरीबन 1,08000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इस पैसे का एक बड़ा भाग तकरीबन 88,000 करोड़ रुपये भारत सरकार जापान से लेगी। माना जा रहा है कि अगर बुलेट ट्रेन घाटे का सौदा साबित नहीं हुई, तो भी भारत को यह कर्ज़ उतारने में तकरीबन 50 साल लग जाएँगे। हालाँकि, इस रकम पर ब्याज न के बराबर होगा। जिस समय बुलेट ट्रेन के लिए जापान से कर्ज़ लेने की बात चली थी, तब बताया गया था कि 88,000 करोड़ रुपये के बदले भारत को 90,500 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। हालाँकि, जिस दिन से बुलेट ट्रेन चल जाएगी, उसके 15 साल बाद से भारत सरकार पैसा चुकायेगी।

अगर भरपूर यात्री मिले, तो नहीं होगा घाटा

जैसा कि रक्षा विशेषज्ञ डी रघुनंदन ने कहा था कि भारत में बुलेट ट्रेन के आड़े सबसे बड़ी समस्या भरपूर यात्रियों द्वारा ट्रेन में यात्रा करने की होगी। क्योंकि इसका किराया वहन करने की क्षमता हर किसी में नहीं होगी। लेकिन वहीं सरकार की मानें तो अगर यात्री बुलेट ट्रेन से सफर करने लगे, तो घाटा नहीं होगा। साथ ही अनेक लोगों को रोज़गार भी मिलेगा और देश की अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।

कैसी होगी भारतीय बुलेट ट्रेन?

मुम्बई से अहमदाबाद के बीच की दूरी दो घंटे में तय करने वाली भारतीय बुलेट ट्रेन बीच के 12 बुलेट ट्रेन के स्टेशन्स पर रुकेगी। इसके लिए अलग से ट्रैक बिछाया जा रहा है। इसका रूट अधिकतर जगह एलिवेटेड होगा। वहीं बुलेट ट्रेन 7 किलोमीटर तक समंदर के नीचे चलेगी। बताया जा रहा है कि जापान ही तय करेगा कि इस ट्रेन का ढाँचा कैसा होगा? इसके स्टेशन कैसे होंगे और कहाँ-कहाँ बनाये जाएँगे? इसका रूट कैसा बनाया जाएगा? किस मैटेरियल के पिलर बनेंगे?  बताया जा रहा है कि भारत की पहली बुलेट ट्रेन बांद्रा, कुर्ला, कांप्लेक्स थाने, विरार बोईसर, वापी, बिलिमोरा, सूरत, भड़ौच, वडोदरा, आनंद अहमदाबाद और साबरमती पर रुकेगी। इन स्टेशनों में मुम्बई का स्टेशन अंडरग्राउंड होगा, जबकि बाकी स्टेशन एलिवेटेड।

जापान की तकनीक सबसे सुरक्षित

जैसा कि भारत सरकार ने देश में बुलेट ट्रेन की ज़िम्मेदारी जापान को दी है, उससे एक बात तो तय है कि भारत की बुलेट ट्रेन परिचालन के मामले में खरी उतरेगी। क्योंकि जापान की बुलेट ट्रेन तकनीक काफी सुरक्षित और विकसित मानी जाती है। इसका एक कारण यह भी है कि जापान में कभी कोई बुलेट ट्रेन हादसा नहीं हुआ है। इतना ही नहीं जापान की बुलेट ट्रेन अपने तय समय पर चलती है। बताया जाता है कि जापान में रेलवे के 50 साल के रिकॉर्ड में एक बार सिर्फ 60 सेकेंड की देरी का मामला सामने आया है। अपनी इन्हीं सब तकनीक को जापान अब भारत से साझा करेगा और यहाँ के बुलेट ट्रेन चालक से लेकर बाकी समस्त स्टाफ को ट्रेनिंग भी देगा। इसके लिए बड़ोदरा में हाई स्पीड रेल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट बनाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इस इंस्टीट्यूट में बुलेट ट्रेन की ऑपरेशंस और मेंटेनेंस के लिए 4000 लोगों को ट्रेनिंग दी जाएगी।

रेलवे नहीं कर पा रहा सुधार

अधिकतर लोगों की भारतीय रेलवे से शिकायत रहती है कि न तो ट्रेनों का परिचालन कभी सही ढंग से होता है और न ही यात्रियों को कोई अन्य सहूलियत ही मिल पाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर भारतीय रेल का परिचालन तक ठीक नहीं है, तो बुलेट ट्रेन की स्थिति कैसे सही रह सकेगी?

भारत में समय पर चल सकेगी बुलेट ट्रेन?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत में सरकार द्वारा दिये गये समय पर बुलेट ट्रेन चल सकेगी? यह सवाल इसलिए भी उठता है, क्योंकि अभी तक बुलेट ट्रेन के रास्ते में अनेक अड़चने आ चुकी हैं और अब सरकार भी बुलेट ट्रेन को लेकर खामोश है। इसके अलावा जापान भी एक बार प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने से इन्कार कर चुका है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों से बुलेट ट्रेन का तोहफा देने का वादा भी कर चुके हैं। ऐसे में यह न केवल प्रधानमंत्री की, बल्कि भारत की गरिमा का सवाल है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि चाइना दुनिया की सबसे आधुनिक बुलेट ट्रेन बनाकर ट्रैक पर दौड़ा चुका है। अब देखना यह है कि भारत सरकार देशवासियों के भरोसे पर कितनी खरी उतरती है?

भारत के सामने ‘बुलेट’ चुनौतियाँ

बुलेट ट्रेन का सपना दिखाना जितना आसान है, इसका प्रोजेक्ट उतना ही कठिन है। क्योंकि बुलेट ट्रेन के रास्ते में भारत सरकार के सामने कई ‘बुलेट’ चुनौतियाँ हैं। इनमें निम्न चुनौतियाँ प्रमुख हैं –

बुलेट ट्रेन के स्टेशन्स और ट्रैक के लिए तकरीबन 1,400 एकड़ ज़मीन की आवश्यकता है। जिस रास्ते को बुलेट ट्रेन के लिए अनुकूल पाया गया है, उसमें खेती की ज़मीन भी आती है। इसके अलावा ज़्यादातर ज़मीन लोगों की निजी सम्पत्ति है। पहले एनएचएसआरसी का लक्ष्य था कि 2018 के अंत तक उपयोग में लायी जाने वाली ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया जाएगा, लेकिन बाद में 2019 के मध्य इसमें ब्रेक लगे। इसके अंतर्गत कुल 6,000 ज़मीन मालिकों से समझौता होना था; लेकिन अभी तक तकरीबन 1,000 ज़मीन मालिकों से ही सरकार समझौता कर पायी है। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि अधिकतर लोग सरकार द्वारा दिये जा रहे मुआवज़े से संतुष्ट नहीं हैं।

भारत सरकार के इस प्रोजेक्ट के िखलाफ अनेक प्रदर्शन हो चुके हैं और ज़मीन मालिक अदालतों में भी याचिकाएँ डाल चुके हैं। अगर अदालतों में यह मामला चला तो फैसले में समय लग सकता है। हालाँकि, सरकार ने काफी पहले ही 17 गाँवों में भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दिया था; लेकिन सरकार ज़मीन मालिकों से समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करा सकी है।