बागवानी से हिमाचल की अर्थ-व्यवस्था बाग-बाग

हिमाचल का नाम सुनते ही दिल खुश हो जाता हैं, नज़रों में सुन्दर दृश्य घूमने लगते हैं, सुन्दर वादियों की मनमोहक छटा याद आने लगती है।लेकिन सुंदर वादियों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश अपने बहुमूल्य जड़ी-बूटियों, मसालों, मेवों और स्वादिष्ट फलों के लिए भी जाना-जाता है। यही फल, मेवे, मसाले और जड़ी-बूटियाँ हिमाचल में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत भी हैं। राज्य में रहने वाले लोग यहाँ कई प्रकार के फलों व सब्ज़ियों की खेती करते हैं। इनमें हिमाचल का सेब बहुत मशहूर है।

यहाँ के 2.30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बागवानी होती है। 2019 में फलों का उत्पादन बढ़कर 10.38 लाख टन हो गया है। राज्य में करीब 9 लाख लोग बागवानी करते हैं, जिससे राज्य की आय में 3000 से 5000 करोड़ रुपये तक का योगदान होता है। हिमाचल में पिछले दिनों 30.37 लाख से अधिक फलों के पौधे किसानों को बाँटे गये। वर्तमान राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार, बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 8446.93 हेक्टेयर भूमि पर फलों की खेती बढ़ायी जाएगी। बता दें हिमाचल अलग-अलग जलवायु और भौगोलिक स्थिति वाला राज्य है, जिसके चलते यहाँ अनेक प्रकार के फलों व सब्ज़ियों की खेती होती है।  बागवानी यहाँ की अर्थ-व्यवस्था का मुख्य स्रोत है और इससे राज्य समृद्ध हुआ है। राज्य में 35 से भी ज़्यादा प्रकार की सब्ज़ियाँ व फल उगाये जाते हैं।

यहाँ 83,677 वर्ग मीटर जगह ग्रीन-हाउस के लिए घेरी गयी है, जबकि मीशन फॉर इंटीग्रेटिड डेवलपमेंट ऑफ हाॢटकल्चर (एमआईडीएच) के तहत 9,44,215 वर्ग मीटर भूमि एंटी-हेल नेट्स के लिए घेरी गयी है। सरकार अच्छी बागवानी के लिए किसानों को 3,049 आधुनिक यंत्र प्रदान करेगी। नेपसैक स्प्रेयर के साथ-साथ 196 मशीनों के अलावा 1500 हस्त संचालित उद्यान कृषि यंत्र भी प्रदान किये जा रहे हैं।

सिंचाई के लिए 198 जल-संग्रह टैंकों का निर्माण करेगी। फसल को कीटों से बचाने के लिए 5.21 करोड़ रुपये की 349.90 टन कीटनाशक पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी। उत्पादन की पारिश्रमिक कीमतों को सुनिश्चित करने के लिए 27,348.91 टन सेब, आम और खट्टे फल मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत किसानों से खरीदे गये, जिनकी कीमत 2064.74 लाख रुपये थी। इसके अलावा अलग-अलग फलों के लिए 1,33,333 प्लास्टिक के बक्से खरीदकर किसानों में वितरित किये गये।

सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत बागवानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 3.50 करोड़ रुपये का बजट मंज़ूर किया है। 2017-2018 के दौरान लागू की गयी पुनॢनॢमत-मौसम आधारित फसल बीमा (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) योजना के तहत 1,61,524 किसानों की सेब, आम, खट्टे फलों, बेर और आड़ू की फसलों के 110 ब्लॉकों का बीमा किया जाएगा।

करीब 70,104 बागवानी से प्रभावित क्षेत्रों को 49.94 करोड़ के इशोरेंस की मदद भी दी गयी है। राज्य सरकार ने राज्य आपदा राहत कोष, आपदा राहत कोष में 2.7 करोड़ का निवेश किया हैं, जिससे प्रत्येक वर्ष आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से बागवानी को भारी नुकसान से बचाया जा सकें।

राज्य सरकार फल उत्पादकों को सूचना देने के लिए नि:शुल्क सलाह प्रदान कर रही है, ताकि वे अपने बागों की पोषण स्थिति पता कर सकें। हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 20,000 पत्तियों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे उत्पादकता, और लाभ बढ़े तथा अच्छी फसल की बाज़ार तक पहुँच बढ़ाई जा सके। वर्ष 2016-17 में विश्व बैंक ने राज्य को बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 1134 करोड़ की सहायता भी प्रदान की थी। वर्ष 2018-19 के अंतर्गत सेब, नाशपाती और अखरोट के 3,76,500 लाख पेड़ों को आयातित किया गया, जिनकी कीमत 25 लाख रुपये थी। जबकि 9 लाख रुपये की लागत वाले आम, लीची, अमरूद और खट्टे फलों के 16,312 पौधे किसानों के बीच वितरित करने के लिए दूसरे राज्य से भी मँगवाये गये थे।

इस योजना के तहत 58 प्रशिक्षित अधिकारी राज्य और राज्य के बाहर अच्छी बागवानी के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। इसके लिए न्यूज़ीलैंड के विशेषज्ञ द्वारा 320 कृषि अधिकारियों व 501 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। बागवानी करने वाले 90,734 किसानों को व्यक्तिगत सम्पर्क, सेमिनार, प्रशिक्षण पर्यटन दवारा प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। सरकार द्वारा राज्य के किसानों को लाभ पहुँचाने के लिए राज्य सरकार ने एम-किसान कार्यक्रम को आरम्भ किया, इसके अंतर्गत 7,68,774 किसानों को पंजीकृत किया गया, जिससे उनकी खेती से सम्बन्धित सभी समस्याओं को दूर किया जाएगा, ताकि वे स्वस्थ फलों का उत्पादन कर सकें। एशियाई विकास बैंक द्वारा 1,688 करोड़ की योजना राज्य में सबट्रॉपिकल फल विकास कार्यान्वयन के लिए प्रस्तावित करेगा, जिससे बागवानी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।

कृषि उद्योग मंत्री महेंदर सिंह ठाकुर ने बताया राज्य सरकार एक योजना बना रही हैं, जिसके अंतर्गत अलग-अलग राज्यों में बागवानी में हो रहे विकास को सुनिश्चित किया जा सकेगा। जिसमें विशेषज्ञों की टीम अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट योजना तैयार करेगी, ताकि पौधों का महत्त्व और अस्तित्व सुनिश्चित किया जा सकेगा और किसानों की माँग के अनुसार नर्सरी भी विकसित की जाएगी।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में बागवान विकास परियोजना के लिए विश्व बैंक ने प्रदेश को 1134 करोड़ों का फंड दिया है। इस धन से सेब, नाशपाती, लीची, अमरूद, अखरोट और खट्टे फलों के पौधों को किसानों के बीच वितरित किया गया। इस परियोजना के तहत राज्य के 28 बीच सबट्रॉपिकल समूहों में आम, लीची, अमरूद, व खट्टे फलों के 14,406 पौधे प्रदान किये जाएँगे।

राज्य सरकार ने बागवानी के एकीकृत विकास के लिए राज्य में एकीकृत विकास मिशन को बढ़ावा दिया है। परियोजना के तहत विभिन्न गतिविधियाँ जैसे- पौधों की नर्सरी, पानी के संग्रह टैंक, बागवानी क्षेत्र में वृद्धि, ग्रीन हाउस के तहत खेतों की सुरक्षा, जैविक खेती, फसल प्रबन्धन और खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियाँ प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। राज्य सरकार ने बाग़वानी मे विकास को सही ढंग से लागू किया है। राज्य के एमआईएस के तहत सेब, आम और खट्टे फलों का ब्यौरा रखा जाता था। साथ ही साथ फल आधार प्रसंस्करण इकाई जैसे- शराब और साइडर लगाये जाने का भी दबाव था। किसानों को पारिश्रमिक मूल्य सुनिश्चित करना। राज्य सरकार भंड़ारण और पैकिंग के उन्नयन को स्थापित करने पर भी काम कर रही है। राज्य सरकार ने मार्केट इंटरवेशन स्कीम के तहत खट्टे फलों की खरीद कीमतों मे वृद्धि भी तय की हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को राज्य में बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि बागवानी का अधिकतम प्रयोग किया जा सके। 21 नवंबर, 2019 से 15 फरवरी, 2020 तक राज्य के विभिन्न हिस्सों मे 54 खरीद केंद्र खोले जाएँगे।

राज्य में फ्लोरीक्लचर के व्यापक दायरे को ध्यान में रखते हुए सरकार ने क्रान्ति योजना, मुख्य मंत्री हरित क्रान्ति नवीकरण योजना और एंटी हेल नेट की स्थापना की। इससे बागवानी को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ-साथ एशियाई विकास बैंक ने राज्य को 1,688 करोड़ और सबट्रॉपिकल फलों के विकास के लिए 423 करोड़ रुपये सुनिश्चित किये हैं, जिसमें मुख्यत: मशरूम को शामिल किया गया है। सरकार ने एम-किसान योजना का भी आरम्भ किया है। इस योजना के तहत कृषक समुदायों और किसानों को पंजीकृत कर उनकी समस्याओं को दूर किया जाएगा।