कुत्सित मानसिकता वालों के आसान शिकार हैं बच्चे

18 फरवरी को देश के एतिहासिक-सांस्कृतिक शहर भोपाल की एक बस्ती में बीई (बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग) अंतिम वर्ष के 24 साल के छात्र ने पांच साल की मासूम बच्ची से अश्लील हरकत की और उसने पुलिस के सामने कबूला कि यह सब करने से पहले उसने पोर्न मूबी देखी थी। पूछताछ में उसने यह भी बताया कि वह पोर्न मूबी देखने का आदी है। थोड़ा सा ही पीछे लौटे तो हैदराबाद की घटना का जिक्र करने पर यह नहीं भूलना चाहिए कि महिला पशु चिकित्सक के साथ दरिंदगी करने वालों ने भी ऐसा करने से पहले पोर्न वीडियो देखे थे। इसी कड़ी में निर्भया का मामला भी अति महत्वपूर्ण है क्योंकि अपराधियों ने भी पोर्न सामग्री देखने के बाद ही उसे अपनी घिनौनी कामुकता का निशाना बनाया था। यहां ऐसे मामलों के जिक्र के संदर्भ को समझना जरूरी है। भारत में हर 15वें मिनट में एक बलात्कार होता है और हर 10 मिनट में एक बाल यौन शोषण का पॉर्न विडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है। अगस्त 2019 से लेकर 23 जनवरी 2020 तक ऐसे मामलों की संख्या 25,000 है। विश्वभर की 164 टेक कंपनियों द्वारा अमेरिका की एक एजेंसी को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में फेसबुक, गूगल जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वर्ष 2019 में बाल यौन उत्पीड़न संबंधी 7 करोड़ फोटो-विडियो अपलोड या शेयर किए गए। इनमें से 6 करोड़ फेसबुक पर शेयर किए गए। पॉर्न सामग्री देखने में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है। यह भारतीय समाज के लिए तो खतरनाक है ही और साथ ही साथ ऐसे मुल्क के लिए भी जो अपनी युवा शक्ति को स्किल्ड इंडिया में रूंपांितरत करने के लिए कोशिशें करने का दावा करता है। गौरतलब है कि राज्यसभा में गत वर्ष 250वें सत्र के दौरान उच्च सदन में अन्नाद्रमुक की सदस्य एस विजिला सत्यनाथन ने इंटरनेट खासकर सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री की बच्चों तक आसान पहुंच का मुददा उठाया था। इस पर समूचे सदन ने एक स्वर में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सदन के सभापति एम वेंकैया नायडू के माध्यम से सरकार से कारगर कदम उठाने की मांग की थी। सभापति ने कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश के नेतृत्व में एक 14 सदस्यीय तदर्थ समिति का गठन कर एक महीने में रिपोर्ट देने को कहा था। इस समिति ने 25 जनवरी को  उप राष्ट्रपति व सभापति एम वेंकैया नायडू को रिपोर्ट सौंप दी। इस समिति ने विस्तार से इस मुददे पर चर्चा के बाद रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सरकार को यौन अपराधों से बच्चों को बचाने वाले पॉक्सो कानून, सूचना प्रौद्योगिकी कानून और भारतीय दंड संहिता में मकूल बदलाव करने की तत्काल पहल करनी चाहिए। साथ ही राज्य सरकारों से भी सिफारिश की है कि वे राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस समस्या से निपटने के लिए सजगता से कार्रवाई करने में सक्षम बनाएं। समिति ने टिवटर और फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा संबंद्व पक्षकारों से विचार-विमर्श के बाद पॉक्सो कानून में बाल पॉर्नोग्रॉफी की परिभाषा को व्यापक बनाने और इसकी ऑनलाइन निगरानी के तंत्र को मजबूत बनाने के तकनीकी सुझव भी दिए हैं। इनमें भारत में उपलब्ध सभी संचार उपकरणों में ऐसी एप्लिकेशन को अनिवार्य बनाने को कहा है, जिसकी मदद से बच्चों तक अश्लील सामग्री की पहुंच पर अभिभावक समग्र निगरानी रख सकें। समिति ने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री को बाल पॉर्नोग्राफी की समस्या पर संज्ञान लेते हुए अपने ‘ मन की बात ’ कार्यक्रम में भी इस विषय को शमिल कर यह बताना चाहिए कि इससे निपटने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं। गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति द्वारा तदर्थ समिति के गठन से कुछ दिन पहले ही यानी 16 दिसंबर 2019 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इंटरनेट पर उपलब्ध पॉर्न साइट्स और इंटरनेट पर मौजूद अनुचित प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा कि पिछले कुछ समय से देश के विभिन्न राज्यों में महिलाओं के साथ घटित सामूहिक दुष्कर्म और जघन्य तरीके से हत्या की घटनाओं ने पूरे देश के जनमानस को उद्वेलित किया है। इंटरनेट पर लोगों की असीमित पहुंच के कारण बड़ी संख्या में बच्चे और युवा अश्लील,हिंसक और अनुचित सामग्री देख रहे हैं। इसके प्रभाव के कारण भी कुछ मामलों में ऐसी घटनाएं घटित होती हैं। ऐसी सामग्री के दीर्घकालीन उपयोग से कुछ लोगों की मानसिकता नकरात्मक रूप से प्रभावित हो रही है जिससे अनेक सामाजिक समस्याएं पैदा हो रही हैं।महिलाओं के प्रति अपराधों में वृद्धि हो रही है।

दरअसल अपने मुल्क में बाल पॉर्नाेग्राफी की समस्या कितनी विकराल है,इस बावत हाल ही में जारी एक रिपोर्ट भी खुलासा करती है। अमेरिका ने भारत के साथ एक रिपोर्ट साझा की है जिसके अनुसार भारत में अगस्त 2019 से 23 जनवरी 2020 तक यानी पांच महीनों में 25 हजार से अधिक बाल पॉर्नाेग्राफी वाली सामग्री अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड की गई। यह आंकड़ा अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाइटेड चिल्ड्रन ने भारत के नेशनल क्राइम रेकॅाड्स ब्यूरो के साथ साझा की है। भारत और अमेरिका ने यह डेटा साझा करने के लिए बीते साल समझौता किया था। दुनियाभर की 164 टेक कंपनियों द्वारा अमेरिका की इस संस्था को सौंपी रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक व इससे जुड़े प्लेटफॉर्म पर सबसे अधिक फोटो-विडियो रिपोर्ट हुए। यह कुल फोटो-विडियो का 85 प्रतिशत है। यानी बाल यौन उत्पीड़न संबंधी 6 करोड़ फोटो-विडियो फेसबुक पर शेयर किए गए। फिक्रमंद वाली बात यह है कि ऑनलाइन शेयर-अपलोड किए जाने वाले फोटो-विडियो में पिछले साल 50 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई। एक बात यह भी गौरतलब है कि सभी कंपनियों में ऐसी सामग्री की पहचान का तरीका एक जैसा नहीं है। जैस अमेजन व माइक्रोसॉफ्ट अवैध कंटंेट की कोई पहचान नहीं करती हैं। वहां स्नैप केवल फोटो स्कैन करती है,विडियो नहीं करती है। भारत की बात करें तो 89 प्रतिशत मोबाइल पर और 9 प्रतिशत लोग डेस्कटॉप पर पॉर्न सर्च करते हैं। अन्य मुल्कों से 12प्रतिशत अधिक। पॉर्न देखने वालों की औसत आयु 30साल है। इनमें से 18 से 24 साल के 35 प्रतिशत युवा शमिल है। पॉर्न सामग्री देखने में भारतीय दुनिया में तीसरे नंबर पर है। इसकी एक वजह देश में बीते 4 साल में डेटा की दरों का सस्ता होना भी है। दुनिया में सबसे अधिक देखे जाने वाली एक पॉर्न वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 2018 में औसतन8.23 मिनट पॉर्न विडियो देखा गया जबकि 2019 में यह अवधि बढ़कर 9.51मिनट हो गई। एक खतरा यह भी नजर आ रहा है कि 5 जी नेटवर्क कवरेज आने के बाद क्या होगा। नेटवर्क और अधिक फास्ट होगा और उतनी ही तेज गति से डेटा अपलोड,डाउनलोड होगा। पॉर्न सामग्री सर्च करने वाले कम समय में ऐसी सामग्री अधिक सर्च कर सकते हैं। रिसर्च व एडवाइजरी कंपनी गार्टनर का अनुमान है कि चालू वर्ष 2020 में 5 जी मोबाइल फोन की सेल 22.1 करोड़ होगी। और 2021 में यह बिक्री दोगुने से भी ज्यादा होकर 48.9 करोड़ यूनिट होगी। तकनीक के विकास के साथ-साथ उसके खतरे भी सामने आते हैं। इससे निपटना राज्य के सामने हमेशा से एक चुनौती होती है। बहरहाल इस पर भी गौर करना चाहिए कि राज्यसभा की तदर्थ समिति जब बाल पॉर्नाेग्राफी से निपटने के मुददे पर विस्तार से चर्चा करने में व्यस्त थी तभी इलेक्ट्रॅानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने इसी समिति के सामने लाचारी जताते हुए बताया था कि वाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म एंड टु एंड एन्क्रिप्सन का हवाला देते हुए कानून लागू करने वाली एजंसियों के साथ सहयोग नहीं करते है। यहां तक किवह कानून के जरिए किए गए अनुरोध का सम्मान तक नहीं करते हैं। वे दावा करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय कानून से बंधे हुए हैं। संसद के चालू बजट सत्र में लोकसभा में फेक न्यूज और पॉनोग्राफी से जुड़ी वेबसाइटस ब्लॉक करने से जुड़े एक पूरक प्रश्न के जवाब में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि चीन या मिडिल ईस्ट के साथ भारतकी तुलना नहीं की जा सकती है। हम लोकतंत्र हैं।उधर राज्यसभा में उप राष्ट्रपति व सभापति एम वेंकैया नायडू ने 5 फरवरी को राज्यसभा में कहा, ‘ मैं चाहता हूं कि संसद पॉर्नोग्राफी से संबधित रिपोर्ट पर जल्द से जल्द चर्चा करे।’ इस मुददे पर अब चिंता से आगे जाकर ठोस कार्रवाई का वक्त है।

14 सदस्यीय समिति द्वारा अनुशंसित कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं :-

प्रौद्योगिकी के उपाय

1. भारत में अश्लील सामग्री के लिए बेचे जाने वाले सभी उपकरणों पर निगरानी करने वाले एप अनिवार्य किये जाएँगे, ताकि ऐसी सामग्री बच्चों तक न पहुँच सके। ऐसे एप या इसी तरह के समाधान विकसित किये जा सकते हैं, जो आईएसपी, कम्पनियों, स्कूलों और माता-पिता के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराये जाएँ।
2. ऑनलाइन भुगतान पोर्टल्स और क्रेडिट कार्ड किसी भी अश्लील वेबसाइट के लिए प्रसंस्करण भुगतान से निषिद्ध हैं।
3. सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को देश में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नियमित रिपोॄटग के अलावा बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री का पता लगाने के लिए न्यूनतम आवश्यक प्रौद्योगिकियों के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिए।
4. ऑन-स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक आदि में अलग-अलग वयस्क खंड होने चाहिए, जहाँ कम उम्र के बच्चों को छुट्टी दी जा सके।
5. सोशल मीडिया में आयु सत्यापन और आपत्तिजनक / अश्लील सामग्री तक पहुँच को प्रतिबन्धित करने के लिए तंत्र होगा।

सामाजिक और शैक्षिक उपाय
1. महिला और बाल विकास और सूचना और प्रसारण मंत्रालय मंत्रालयों में बच्चों के दुरुपयोग, ऑनलाइन जोखिम और उनके बच्चे के लिए ऑनलाइन सुरक्षा में सुधार के शुरुआती संकेतों को पहचानने के लिए माता-पिता के बीच अधिक जागरूकता के लिए अभियान शुरू करेंगे।
2. स्कूल वर्ष में कम-से-कम दो बार माता-पिता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेंगे, जिससे उन्हें कम उम्र में स्मार्ट फोन, इंटरनेट के फ्री उपयोग के खतरों से अवगत कराया जा सके। अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर बच्चों के स्मार्ट फोन के उपयोग को प्रतिबन्धित करने के लिए एक उचित व्यावहारिक नीति पर विचार करने की आवश्यकता है।