धर्म और आदिवासी

आदिवासियों की संस्कृति और सभ्यता मानवीय इतिहास में सबसे पुरानी मानी जाती है। आरम्भिक काल में उनका किसी भी धर्म से लेना देना नहीं रहा है। वे मुख्यत: प्रकृति की पुजारी और प्रकृति के प्रेमी रहे हैं। हमें ज्ञात है कि हमारा देश 300 वर्षों तक गुलाम रहा। विदेशी शासकों ने हमारे ऊपर शासन किया। पहले मुगल, यहूदी और फिर अंग्रेजों ने हमारे देश में अपना राज किया। जिसमें सबसे अधिक समय तक हमारे ऊपर अंग्रेजों का शासन रहा है। अंग्रेजों ने वैसे तो सीधे तौर पर मन्दिरों पर आक्रमण नहीं कि जिस तरह कुछ मुस्लिम शासकों ने किया। आक्रमणकारियों का मन्दिरों पर आक्रमण का कारण धर्म नहीं होता था। उसका कारण मुख्यरूप से धन लूटना होता था। अंग्रेज शासकों का मन्दिर पर सीधा आक्रमण नहीं करने का एक कारण यह भी रहा कि उनसे पहले 100 वर्ष या उससे अधिक समय तक हमारे ऊपर हूण, यहूदी, मुगल आदि शासकों का शासन रहा। जिसने हमारे मन्दिरों के अकूत खजानों को लूटकर अपनी राजकोष में जमा कर लिया था। उनका सीधा मुकाबला उन शासक वर्गों से था, जिन्होंने पहले ही इन संग्रह स्थानों को खाली कर चूके थे। अंग्रजों ने उन शासकों को परास्त कर सीधा उनसे वह खज़ाना कब्ज़ाया था। अब अंग्रेजों का ध्यान हमारे प्राकृतिक धरोहर की तरफ गया। जहाँ पहले से हमारे आदिवासी लोग रहते थे। जब अंग्रेजों ने हमारे प्राकृतिक खज़ानों को अपने कब्•ो में लेना चाहा, तो ज़ाहिर-सी बात थी की उनका मुठभेड़ वहाँ के आदिवासी समुदायों से होना स्वाभाविक था। लेकिन बाद में जब अंग्रेजों ने वहाँ पर अपना कब्ज़ा जमा लिया, तो वे लोग यहाँ के निवासियों को अपने धर्मों की ओर आकर्षित करना शुरू किया। जिसमें उन्होंने लालच का सहारा लिया। जिस कारण आदिवासियों का आरम्भिक विरोध के बावजूद ईसाई धर्म को स्वीकार किया।

लेकिन मैंने इस सम्बन्ध में कुछ लोगों से बाद करने की कोशिश किया। उन लोंगों ने जो तथ्य बताया वह यह है कि भारत में जब अंग्रेजों का शासन प्रारम्भ हुआ, तब ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। अंग्रेजों के काल में दक्षिण भारत के अलावा पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में ईसाई धर्म के लाखों प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाया। उस दौरान शासन की ओर से ईसाई बनने पर लोगों को कई तरह की रियायत मिल जाती थी। बहुतों को बड़े पद पर बैठा दिया जाता था, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को ज़मींदार बना दिया जाता था। अंग्रेजों के काल में कॉन्वेंट स्कूल और चर्च के माध्यम से ईसाई संस्कृति और धर्म का व्यापक प्रचार और प्रसार हुआ। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं। मदर टेरेसा ने भारत में निर्मल हृदय और निर्मला शिशु भवन के नाम से आश्रम खोले जहाँ वे अनाथ और गरीबों को रखती थी। 1946 में गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1948 में स्वेच्छा से उन्होंने भारतीय नागरिकता ले ली और व्यापकर रूप से ईसाई धर्म की सेवा में लग गयी। 7 अक्टूबर, 1950 को उन्हें वैटिकन से मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की अनुमति मिल गयी। इस संस्था का उद्देश्य समाज से बेखबर और बीमार गरीब लोगों की सहायता करना था। मदर टेरेसा को उनकी सेवाओं के लिए विविध पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मनित किया गया था।

एक व्यक्ति ने बताया कि वर्तमान में लगभग सभी राज्यों में धर्म-प्रचारक हैं। कुछ आँकड़ों को बताते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 1971 में अरुणाचल प्रदेश में कुल ईसाई की जनसंख्या एक प्रतिशत थी, जो 2011 में बढक़र 30 प्रतिशत हो गया। वहीं नागालैंड में 93 प्रतिशत, मिजोरम में 90 प्रतिशत, मणिपुर में 41 प्रतिशत और मेघालय में 70 प्रतिशत हो गया है। धन बल के आधार पर ईसाई धर्म का भारत में तेज़ी से विस्तार हुआ है।  सन् 2015 में जनसंख्या के आधार पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म का आँकड़ों को भारत सरकार ने जारी किया। इन आँकड़ों के मुताबिक, सन् 2011 में भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ जारी किया था, जिसमें 2.78 करोड़ ईसाई जो कुल आबादी का 2.3 प्रतिशत है। उनका वृद्धि दर 15.5 प्रतिशत, जबकि सिखों का 8.4 प्रतिशत, बौंद्धों का 6.1 प्रतिशत और जैनियों का 5.4 प्रतिशत जारी किया है। इसके आधार पर भारत में ईसाई जनसंख्या हिन्दू मुस्लिम के बाद सबसे अधिक है। भारत में 96.63 करोड़ हिन्दू हैं, जो कुल आबादी का 79.8 फीसदी है। मुस्लिम 17.22 करोड़ है, जो कुल आबादी का 14.23 फीसदी है। दूसरे अल्पसंख्यकों में ईसाई समुदाय है। एक दशक में देश की आबादी 17.7 फीसदी बढ़ी है। आँकड़ों के मुताबिक, देश की आबादी 2001 से 2011 के बीच 17.7 फीसदी बढ़ी। मुस्लिमों की 24.6 फीसदी, हिन्दुओं की आबादी 16.8 फीसदी, ईसाइयों की 15.5 फीसदी, सिखों की 8.4 फीसदी, बौद्धों की 6.1 फीसदी तथा जैनियों की 5.4 फीसदी आबादी बढ़ी है।

त्रिपुरा के सांसद झरना दास ने बताया इस सरकार का मुख्य उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र बनाना है। इसीलिए ये लोग देश का मुख्य समस्या बेरोज़गारी, भुखमरी, शिक्षा को न देकर यह मुद्दा अपना रहे हैं। आदिवासियों में 38 समुदाय हैं, जिनका जीवन शैली प्रकृति की पूजा करना रहा है। पहले की तरह ही उन लोगों को आज भी लालच दिखाकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यह मीडिया को बातना नहीं चाहिए कि आज की राजनीति राजनीति नहीं रह गयी है। वह महज स्वार्थ रह गया है। जिन्होंने हमें वोट दिया है, हम उसके लिए काम नहीं करते हैं। हम सिर्फ अपने लिए सोचते हैं, जबकि हमारा मुख्य दायित्व समाज का है। जिन्होंने हमें अपना प्रतिनिधित्व बनाकर भेजा है, हम उनकी समस्या के लिए तो कुछ करते नहीं अलबत्ता हम उनको आपस में लड़ाने की बात करते हैं। इसीलिए लोगों का आज के समय में राजनीति से विश्वास उठ चुका है।