ड्रग्स की दलदल: मुम्बई से कोलकाता तक फैला है ड्रग्स तस्करी का जाल

मुम्बई से कोलकाता तक फैला है ड्रग्स तस्करी का जाल

नशा नाश कर देता है। यह एक बुरी लत है। सब कुछ जानते हुए भी बहुत-से लोग इसमें फँस जाते हैं। ताज्जुब की बात यह है कि ड्रग्स, हेरोइन, कोकीन, ब्राउन शुगर और तमाम तरह के ख़तरनाक नशे की लत में वे लोग भी डूबे हुए पाये जाते हैं, जो सम्भ्रांत और उच्च वर्ग के होते हैं। राजनीति, बॉलीवुड, हॉलीवुड और उद्योगजगत कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। लेकिन स्कूल के बच्चों और युवाओं को नशे की लत लगना एक चिन्ता की बात है। अगर इस पर रोक लगानी है, तो नशा तस्करों पर शिकंजा कसना होगा। यह दुर्भाग्य ही है कि पूरे देश में नशा तस्करों का जाल फैला है। ‘तहलका’ की छानबीन बॉलीवुड की ड्रग पार्टियों की हक़ीक़त सामने लाती है, और यह भी कि कोलकाता की सडक़ों पर ड्रग्स प्राप्त करना कितना आसान है। मुम्बई से कोलकाता तक फैले इस जाल का ख़ुलासा करती तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

‘एक समय मैं कोकीन का लगातार 12 घंटे तक सेवन करता था। शाम 9:00 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह तक। इससे मुझे ऊर्जा मिलती थी। बॉलीवुड के कुछ सितारे कोकीन क्यों ले रहे हैं? सिर्फ़ ऊर्जा पाने के लिए। लगातार तीन शिफ्टों में फ़िल्मों की शूटिंग करना। घर न जाना, और आराम न करना; उन्हें थका देता है। इसलिए ताज़ा ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उन्हें कोकीन की ज़रूरत होती है। उसी कारण ने मुझे भी ड्रग्स की ओर खींचा। मेरे साथ काम करने वाला कोई भी घर जाने को राज़ी नहीं था। वे सब मेरे आस-पास बैठकर ड्रग्स लेते थे, तो मैं ख़ुद को इसे लेने से कैसे रोक सकता था? तो मैं भी ऊर्जा की ख़ातिर उसमें डूब गया। हम एक रात में कोकीन पर लाखों रुपये ख़र्च कर देते थे।’ यह कहानी बॉलीवुड के एक मशहूर डांस कोरियोग्राफर और संगीतकार से डीजे (डिस्क जॉकी) बने कलाकार की है, जिसने अपना नाम साझा न करने की शर्त पर ‘तहलका’ को यह सब बताया।
यह डीजे, जिसने अमिताभ बच्चन के लिए सिंगापुर के उनके सुइट और मुम्बई में शाहरुख़ ख़ान और सलमान ख़ान के घरों में परफॉर्म करने का दावा किया; एक भारतीय फ़िल्म गायक / संगीत निर्देशक हैं। मुख्य रूप से इन्होंने बॉलीवुड में ही काम किया है। इस संगीतकार ने मुख्य रूप से लोकप्रिय संगीत की रचना की है, और उनके तीन रीमिक्स एल्बम काफ़ी हिट रहे हैं। भारत में डीजे संगीत के अग्रणी लोगों में शुमार यह कलाकार कुछ बॉलीवुड सितारों की ड्रग पार्टियों की अंदरूनी कहानियों की जानकारी रखने के लिए भी प्रसिद्ध है। सुरक्षित रूप से यह कहा जा सकता है कि वह बॉलीवुड की अधिकांश ड्रग पार्टियों के चश्मदीद गवाह हैं। ख़ुद को बॉलीवुड और ड्रग्स विषय पर फ़िल्म बनाने की चाहत रखने वाले फ़िल्म निर्माता के रूप में पेश करते हुए ‘तहलका’ रिपोर्टर ने मुम्बई के फाइव स्टार होटल में इस संगीतकार से मुलाक़ात की। डीजे ने ‘तहलका’ के सामने खुलकर स्वीकार किया कि एक समय वह ख़ुद कोकीन ले रहे थे।
डीजे : आई यूज्ड टू डू इट वन्स अपोन अ टाइम। (मैं इसे एक बार किया करता था।)

रिपोर्टर : आप कौन-सी लेते थे पहले?
डीजे : कोकीन।
रिपोर्टर : कोकीन लेते थे आप?
डीजे : अब कोई च्वॉइस ही नहीं रहा। अब सब ले रहे हैं यहाँ बैठाकर, अब क्या करूँ? देयर वाज अ टाइम व्हेन आई यूज्ड टू ड्रिंक आलसो। (एक समय था, जब मैं भी शराब पीता था।) बट आई डू नॉट ड्रिंक नाउ। (लेकिन मैं अब नहीं पीता।)

डीजे ने ‘तहलका’ को बताया कि एक समय था, जब वह लगातार 12 घंटे तक कोकीन का सेवन करता था। रात 9:00 बजे से शुरू होकर अगली सुबह लगभग उसी समय तक जारी रहता था।
रिपोर्टर : डीजे भाई! आपको आदत कैसी पड़ी?
डीजे : आदत नहीं पड़ी, आदत नहीं पड़ी। बीकॉज जस्ट फॉर… यह मेरा दोस्त है, यह ले रहा है। यह मेरी जान है। तू भी मेरी जान है। तू भी स्वाद कर तो ले यार।
रिपोर्टर : आपने काफ़ी टाइम तक तो लिया न, आपने?
डीजे : मे बी फॉर अ फ्यू मंथ्स (शायद कुछ महीनों के लिए) …6-8 महीने।
रिपोर्टर : इतना ही? कितना ग्राम लेते थे आप?
डीजे : अ लॉट (काफ़ी ज़्यादा) …वो ख़त्म ही नहीं होता था। हम लोग शुरू करते थे 9:00 बजे रात को। और वो ख़त्म होता था दूसरे दिन सुबह 10:00-11:00-12:00 बजे।
रिपोर्टर : 12 घंटे?
डीजे : हाँ।

डीजे ने समझाया कि कोकीन ने उन अभिनेताओं और बॉलीवुड के अन्य लोगों को ऊर्जा दी, जो रात भर काम किया और लगातार कई शिफ्ट में काम किया।
रिपोर्टर : एनर्जी (ऊर्जा) आती है?
डीजे : एक्टर (अभिनेता-अभिनेत्री) लोग क्यों ले रहे हैं? बीकॉज दे डू (क्योंकि वे करते हैं) तीन शिफ्ट। नींद-वींद सब गुल हो जाती है। नशा एक बोतल दारू पी लो और आप दो लाइन मार लो कोकीन। योर नशा विल बे लेवलाइज्ड। (आपका नशा बराबर बना रहेगा।)
रिपोर्टर : आप ने क्यों किया इतना लम्बा?
डीजे : मेरी कम्पनी ऐसी थी। कोई घर जाने के लिए तैयार नहीं है। पैसे पड़े हुए हैं। गड्डियाँ पड़ी हुई हैं। लाखों रुपये हैं; …और मँगाओ और मँगाओ!

डीजे ने अब ‘तहलका’ को बताया कि कैसे कोकीन किसी व्यक्ति को सुपर एक्टिव (बहुत सक्रिय) बनाती है, उसकी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाती है। इसका सेवन करने के बाद कोई बेकार नहीं बैठ सकता; उन्हें लड़कियाँ, संगीत, नृत्य आदि चाहिए।
डीजे : कोकीन इज अ हाई किक। …इफ यू हैव इट; बट वुड यू डू ऑफ्टर दैट? यू गो मैड। (कोकीन आपको शिखर पर ले जाती है। …अगर यह आपके पास है; उसके बाद आप क्या करोगे? आप पागल हो जाओगे)। तुमको चाहिए होंगी लड़कियाँ। तुमको चाहिए होगा म्यूजिक; तुमको चाहिए होगा। तुम कहीं रूम मैं बैठे गये न! इनको मार दोगे आप।
रिपोर्टर : कोकीन के बाद?
डीजे : हाँ।

जैसे ही डीजे के साथ बातचीत आगे बढ़ी, उसने ख़ुलासा किया कि कैसे बॉलीवुड के लोग ‘गोटे’ (उनके सप्लायर को दिया गया स्थानीय नाम) के माध्यम से ड्रग्स प्राप्त करते हैं। वे उनके भरोसेमंद लोग हैं, जो उन्हें नियमित रूप से ड्रग्स की आपूर्ति करते हैं।
रिपोर्टर : हाँ, सर बता रहे थे गोटे होते हैं?
डीजे : दे गो ऐंड दे पिकअप स्टफ फॉर देम, दे डू नॉट गो देमसेल्वेस। (वे जाते हैं और उनके लिए सामग्री उठाते हैं, वे ख़ुद नहीं जाते।)
रिपोर्टर : और कभी पकड़े गये ये लोग?
डीजे : पकड़े गये न, …का क्या हुआ था?
रिपोर्टर : वो तो ख़ुद ही पकड़ा गया था, उसका भी ये ही हुआ था। उसका कैसे हुआ था?
डीजे : नहीं, नहीं; सप्लायर (आपूर्तिकर्ता) ने नाम लिया था।

बॉलीवुड में इस समय कौन-सी ड्रग की ज़्यादा माँग है? इसके जवाब में डीजे ने कहा- ‘कोकीन’। और इसके रेट का भी ख़ुलासा किया- 10,000 रुपये प्रति ग्राम। और 4-5 लोगों में एक ग्राम कुछ भी नहीं है। फिर हम सप्लायर की तलाश करते हैं। वे जिस आपूर्तिकर्ता का चयन करते हैं, वह हमेशा एक ऐसा व्यक्ति होता है, जिस पर कोई सन्देह नहीं कर सकता। एक बूढ़ा आदमी पुराने स्कूटर पर आएगा और माल दे देगा।
रिपोर्टर : अभी सबसे ज़्यादा क्या बिकता है बॉलीवुड में?
डीजे : कोकीन।
रिपोर्टर : कोकीन?
डीजे : हम्म।
रिपोर्टर : बहुत महँगा होगा?
डीजे : इट इस एक्सपेंसिव। (यह महँगी है।)
रिपोर्टर : क्या रेट होगा सर?
डीजे : अभी रुपये 10 थाउजेंड फॉर अ ग्राम। (अभी एक ग्राम 10 हज़ार रुपये की है।)
रिपोर्टर : कोकीन?
डीजे : अ ग्राम, …ग्राम इस नथिंग (एक ग्राम, …एक ग्राम कुछ भी नहीं।)
रिपोर्टर : एक ग्राम में कुछ नहीं है?
डीजे : एक ग्राम में कुछ नहीं है। तीन, चार, पाँच लोग कम-से-कम होता है।
रिपोर्टर : एक टाइम (समय) में?
डीजे : हाँ, एक टाइम में। खल्लास (ख़त्म) हो जाता है। मैं लूँगा, चार पाँच लाइन बना लिया। मैं लूँगा, उसको दो चाहिए। उसने दो लाइन मार दी, तो ख़र्चा हो गया और ज़्यादा। उसको फोन करो।
रिपोर्टर : सप्लायर (आपूर्तिकर्ता) को?
डीजे : वो आएगा स्कूटर पर, टूटी-फूटी। बुड्ढा आदमी को ये लोग सिलेक्ट (चयनित) करते हैं साला। कोई बोल ही नहीं सकता है, इसके पास क्या है? वैसा वाला आदमी आएगा।
रिपोर्टर : कितने टाइम (समय) में आ जाता है?
डीजे : वह फटाफट आ जाता है। हर एरिया (क्षेत्र) में उनके रहते हैं; हर एरिया में उनके रहते हैं।

डीजे के मुताबिक, बॉलीवुड में कोकीन कभी न ख़त्म होने वाली कहानी है। सितारे अपने आपूर्तिकर्ता के बारे में चर्चा करते हैं। उसकी क़ीमत के बारे में, शुद्धता के बारे में। और वो भी पूरी रात।
डीजे : मेरा डीलर कौन है, और तेरा डीलर कौन है? मेरा माल अच्छा है। …तेरा माल कैसा है? …कितना प्योर (शुद्ध) है?
रिपोर्टर : अच्छा यह भी बात होती है?
डीजे : अरे यह तो मेन (मुख्य) है। सब्जेक्ट (विषय) यह है। यहाँ पर शुरू होती है, …सुबह हो जाती है।
रिपोर्टर : की डीलर किससे लिया?
डीजे : हाँ, कहाँ से आया है? कोलंबिया के कौन-से गाँव से आयी है। और वो कहाँ पहुँचा और कहाँ मिक्सिंग (मिलावट) हुई? और फिर, …क्या मिलाया उसमें और फिर। हाँ; यहाँ रखा, तो उसमें मेरा एक साइड मेरा थोड़ा-सा ज़्यादा हुआ। तेरा कम हुआ। अरे, बड़े कमाल चीज़ कोकीन है। मतलब नेवर एंडिंग स्टोरी है यह। (कभी न ख़त्म होने वाली कहानी है यह।)

डीजे के बाद ‘तहलका’ ने बॉलीवुड के एक और नामी असिस्टेंट एक्शन डायरेक्टर (एडी) से मुलाक़ात की, जो कई बॉलीवुड ड्रग पार्टियों का चश्मदीद गवाह है। उसने भी बॉलीवुड सितारों के ड्रग्स के प्रति प्रेम का ख़ुलासा किया; लेकिन स्टोरी में अपना नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर। इस एडी के मुताबिक, मुम्बई का मीरा रोड ड्रग्स का ठिकाना है, और वहाँ कई अफ्रीकी सितारों को ड्रग्स बेचते हैं।
रिपोर्टर : इनको मिलती कैसे है, सबको?
एडी : अरे, कितनी मिलती है; आप चले जाओ मीरा रोड में। कितने नीग्रो (अफ्रीकी) लोग बीच रहे हैं ड्रग्स।
रिपोर्टर : मीरा रोड में?
एडी : फिर।
रिपोर्टर : मीरा रोड तो बहुत दूर है?
एडी : हाँ।
अब एडी ने ‘तहलका’ से कहा कि सितारे खुलेआम ड्रग पार्टी नहीं करते हैं। वे एक कमरे में निजी तौर पर ड्रग्स लेते हैं। इसलिए कोई भी यह पता नहीं लगा सकता है कि उन्होंने कोई दवा खायी है या नहीं। उनकी आँखों से ही पता चल सकता है कि उन्होंने नशा किया है।
एडी : वैसे ड्रग्स व$गैरह वाली पार्टी ऐसी नहीं होती।
रिपोर्टर : कैसी होती है?
एडी : ड्रग्स वाली पार्टी में सिर्फ़ एक्टर लोग ही रहते हैं।
रिपोर्टर : जो ड्रग लेते हैं?
एडी : हाँ, और वो चुपके से एक रूम में ही करते हैं। …वो लोग और किसी के सामने करते नहीं हैं। अब क्या लिया? वो भी नहीं मालूम पड़ेगा आपको। क्या लेकर आया वो। लेकिन उसकी आँखों से देखकर पता चल जाएगा। ..इतनी जल्दी इतना नशा नहीं होता किसी को।

एडी ने अब एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक की घटना सुनायी, जिसके साथ वह उनके सहायक के रूप में काम कर रहा था। एक विज्ञापन फ़िल्म की शूटिंग के दौरान निर्देशक ने इतनी चरस ली कि वह अगली सुबह शूटिंग के लिए नहीं उठ सका। बाद में उसने एडी को विज्ञापन शूट करने के लिए कहा।
एडी : मैं अपना किस्सा बताता हूँ, उनके साथ क्या हुआ था।
रिपोर्टर : हाँ, नहीं वो चरसी वाला बताएँ।
एडी : चरसी वाला?
रिपोर्टर : हाँ।
एडी : चरसी वाला, हम लोग गोवा में थे।
रिपोर्टर : एक मिनट!
एडी : सर ने तो पी ली, दबा के एकदम।
रिपोर्टर : कौन-सी पी थी?
एडी : वो तो मालूम नहीं क्या थी? पर इतनी पी ली कि पूछो मत।
रिपोर्टर : दारू तो नहीं थी न?
एडी : दारू थी न! दारू थी।
रिपोर्टर : नहीं, चरस की बात हो रही है?
एडी : दारू, चरस सब वहीं करते वो।
रिपोर्टर : ओके (ठीक है।) फिर क्या हुआ?
एडी : फिर क्या उठे ही नहीं। …तो सुबह शूट हैं। मेरे को बोला, ‘बंटी तू जा के कर।’
रिपोर्टर : कौन-सी फ़िल्म?
एडी : फ़िल्म नहीं थी; .. एड (विज्ञापन) फ़िल्म थी।

मुम्बई, महाराष्ट्र के बाद अब ‘तहलका’ देश के एक और मेट्रो शहर की सडक़ों पर बिक रही नशीली दवाओं की तलाश में कोलकाता, पश्चिम बंगाल का स$फर तय किया। कोई आश्चर्य नहीं हुआ, जब हम आसानी से दार्जिलिंग में कार्तिक नाम के एक पेडलर से मिल लिये। हमने कार्तिक से कहा कि हम दार्जिलिंग में 100 लोगों की ड्रग पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। उसके लिए हमें गाँजा चाहिए। कार्तिक तुरन्त हमें किलो के हिसाब से आपूर्ति करने के लिए तैयार हो गया।
रिपोर्टर : अच्छा कार्तिक कितना माल दे सकते हो हमें, अभी तुम पार्टी के लिए?
कार्तिक : अभी दोस्त के साथ बात कर लेते हैं।
रिपोर्टर : नहीं गाँजा कितना दे सकते हैं? 100 लोगों के लिए, …100 लोगों के लिए गाँजा दे दोगे?
कार्तिक : हाँ, दे देंगे।
रिपोर्टर : हम्म।
कार्तिक : हाँ।
रिपोर्टर : कितना होना चाहिए 100 लोगों के लिए?
कार्तिक : 100 लोगों के लिए आप जितना बोलोगे उतना दे देंगे। एक किलो, डेढ़ किलो।
रिपोर्टर : दे दोगे?
कार्तिक : हाँ, दे देंगे।
रिपोर्टर : क्या रेट (भाव) होगा, एक किलो का?
कार्तिक : 1 केजी (एक किलो) का क्या रेट चल रहा? वो देखना पड़ेगा। …अभी बाज़ार का डेली का रेट ऊपर-नीचे होता है न! …100 ग्राम (का) 600-700 रुपये लेता है।
रिपोर्टर : 100 ग्राम 700 रुपए का?

इसके बाद कार्तिक हमें गाँजे का वह पाउच दिखाता है, जो वह अपने साथ ले जा रहा था।
रिपोर्टर : ये क्या है ये? नहीं, ये क्या है ये?
कार्तिक : गाँजा।
रिपोर्टर : हमें चरस चाहिए।
कार्तिक : चरस चाहिए?
रिपोर्टर : हाँ।
कार्तिक : चरस तो अभी शाम को मिलेगा।
रिपोर्टर : ये कितने का है, पुडिय़ा?
कार्तिक : ये 300 का है।
रिपोर्टर : तुम तो बहुत महँगा दे रहे हो?
कार्तिक : महँगा नहीं है। हम लोग रोज़ ही लेते हैं।

कार्तिक ने ‘तहलका’ को बताया कि वह बागडोगरा से जो गाँजा ख़रीद रहा है, वह उच्च गुणवत्ता का है। इसलिए 5-6 ग्राम के एक पाउच की क़ीमत उन्हें 600 रुपये पड़ती है।
रिपोर्टर : तुम कहाँ से लेते हो, ये गाँजा?
कार्तिक : ये तो हम बागडोगरा से लेते हैं।
रिपोर्टर : तुम कितने का लेते हो पैकेट अपने लिए?
कार्तिक : 300 का लेते हैं।
रिपोर्टर : 300 का ही लेते हो आप भी? महँगी है यार!
कार्तिक : ये तो महँगा पड़ेगा ही। ये हाई क्वालिटी का है।
रिपोर्टर : एक पाउच में कितना होता है? एक पाउच…?
कार्तिक : एक पाउच में मान लीजिए होगा… 5-6 ग्राम।

कार्तिक के बाद दार्जिलिंग में ही हमारी मुलाक़ात एक और ड्रग तस्कर संजय मंडल से हुई। उसने ‘तहलका’ से बातचीत में माना कि हमसे मिलने से ठीक पहले वह ब्राउन शुगर ले रहा था। संजय ने बताया कि एक ग्राम ब्राउन शुगर का रेट 2,000 रुपये है। वह हमें ब्राउन शुगर की आपूर्ति करने के लिए सहमत हो गया।
रिपोर्टर : तुम भी लेते हो ब्राउन शुगर?
संजय : कभी-कभी लेता हूँ; …लेता हूँ।
रिपोर्टर : हमें तो तुमने दिलवायी नहीं? तीन दिन से यहाँ पर हैं।
संजय : सुनिए सर! मैं लेता हूँ। मैं तो अभी भी ले ही रहा था। आप लोग फोन करें, तो मैं…।
रिपोर्टर : ब्राउन शुगर अभी है?
संजय : सामने से लेना पड़ेगा।
रिपोर्टर : कितने का?
संजय : यहाँ 2,000 रुपये का एक ग्राम आता है।
दार्जिलिंग से ‘तहलका’ ने कोलकाता की यात्रा की, और कोलकाता हवाई अड्डे के पास एक और ड्रग पेडलर से मिला, जिसका नाम भी कार्तिक ही था। वह फुटपाथ पर बैठा था और गाँजा बेच रहा था।
रिपोर्टर : है कुछ?
कार्तिक : हाँ।
रिपोर्टर : क्या है?
कार्तिक : गाँजा है।
रिपोर्टर : चरस है, चरस?
कार्तिक : चरस नहीं है।
रिपोर्टर : कोकीन?
कार्तिक : कोकीन, चरस नहीं है। सिर्फ़ यही है।
रिपोर्टर : गाँजा?
कार्तिक : हाँ।
रिपोर्टर : एक पैकेट कितने का है?
कार्तिक : एक 200 (रुपये) का करके है।
रिपोर्टर : एक पैकेट मैं कितना है?
कार्तिक : ये कितना है? मालिक जानता है। हम नहीं जानता है। हम लोग तो पैकेट में करके बेच देता है। हम बेचता है।

अब कार्तिक ने हमें खुले गाँजे और पाउच वाले गाँजे दोनों की दरें बतायीं, जो वह ग्राहकों को बेच रहा है।
रिपोर्टर : 25 ग्राम गाँजा कितने का बताया आपने?
कार्तिक : 600 रुपये का।
रिपोर्टर : 600 रुपये का 25 ग्राम गाँजा, खुला? और ये पैकेट जो है, 200 रुपये का?
कार्तिक : 200 है ये।
रिपोर्टर : दोनों में कितना है?
कार्तिक : वो हम नहीं जानता।

कार्तिक ने अब स्वीकार किया कि वह हर रोज़ कोलकाता हवाई अड्डे के पास बैठता है, और गाँजा बेचता है।
रिपोर्टर : टाइम (समय) क्या है, यहाँ बैठने का?
कार्तिक : आप 12:00 बजे के बाद आइएगा।
रिपोर्टर : दोपहर को 12:00 बजे के बाद? …और रात को कितने बजे तक?
कार्तिक : 6.30 बजे तक।
रिपोर्टर : रोज़ मिलते हो आप यहीं? नाम क्या है आपका?
कार्तिक : हमारा नाम कार्तिक है।

कार्तिक के बाद ‘तहलका’ संवाददाता की मुलाक़ात एक और ड्रग तस्कर चंदू से कोलकाता के नेशनल हाईवे पर हुई। चंदू एक ग्राहक को गाँजा बेचते हुए मिला। उसने तुरन्त हमें गाँजे के पाउच के दाम बताये, जो वह बेच रहा था।
रिपोर्टर : चरस-चरस?
चंदू : चरस नहीं है।
रिपोर्टर : गाँजा?
चंदू : है।
रिपोर्टर : चरस नहीं है?
चंदू : नहीं।
रिपोर्टर : गाँजे की पुडिय़ा?
चंदू : 200 रुपये का दिया है।
रिपोर्टर : गाँजा क्या रेट है?
चंदू : 100 रुपये का है। 20 रुपये का है।

कोलकाता की सडक़ों पर ड्रग तस्करों से मिलने के बाद ‘तहलका’ संवाददाता ने अब कोलकाता की सडक़ों पर गाँजा बेचने वाली एक महिला से बातचीत की। महिला ने ‘तहलका’ को अपना नाम नहीं बताया। लेकिन हमें आश्वासन दिया कि वह जो गाँजा बेच रही है, वह उच्च गुणवत्ता का है, और इसकी क़ीमत भी उचित है। उसने दावा किया कि अगर हम हवाई अड्डे से वही गाँजा ख़रीदते हैं, तो हमें उससे दोगुनी क़ीमत चुकानी पड़ेगी, जितना वह चार्ज कर रही है उससे। उसने आगे ख़ुलासा किया कि उसने शुरू में सोचा था कि हम पुलिस वाले हैं।
महिला तस्कर : 500 रुपये का है गाँजा।
रिपोर्टर : चरस है?
महिला तस्कर : चरस नहीं गाँजा है। अच्छे वाला।
रिपोर्टर : दिखाओ?
महिला तस्कर : ये बहुत अच्छे वाला है। ये एयरपोर्ट (हवाई अड्डे) पर ले जाएगा, 1,000 रुपये का बेचेगा।
रिपोर्टर : हमें बेचना नहीं है, हमें तो अपने लिए चाहिए।
महिला तस्कर : जानता है। हम सोच रहा था पुलिस वाला है, इसलिए नहीं दिखाया। …ये अच्छे वाला है। एक लीजिए, दूसरी बार आओगे यह लेने के बाद।

‘तहलका’ की जाँच में ख़ुलासा हुआ है कि सिर्फ़ बॉलीवुड ही नहीं है, जो नशे की गिरफ़्त में है। फैशन उद्योग सहित अन्य उद्योग भी ड्रग्स के बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए जाने जाते हैं। उद्योगों की बात तो छोडि़ए, मुम्बई और कोलकाता की सडक़ों पर भी ड्रग्स आसानी से मिल जाती है। यह ड्रग्स इसलिए आसानी से उपलब्ध हो जाती है, क्योंकि इसका बाज़ार बहुत विस्तृत है।
शराब और नियमित सिगरेट के विपरीत यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि आपकी बग़ल में खड़ा व्यक्ति नशीली दवाओं के प्रभाव में है, या नहीं। अफ़सोस की बात है कि स्कूली बच्चे भी नशे के आदी हो रहे हैं। इसकी वजह सभी शहरों में आसानी से इसकी उपलब्धता है।
कोलकाता में एक स्थान पर जाँच के दौरान हमने पाया कि ग्राहक पैसे लेकर आ रहे हैं और तस्कर से गाँजा पाउच ख़रीद रहे हैं। बस, बाज़ार से किसी भी प्रकार की ड्रग ख़रीदने के लिए सभी की जेब में अच्छी नक़दी का होना ज़रूरी है।