डढ़वा के पानी से बंधी है लोगों की जीवन डोर

नदी संस्कृति के मामले में भारत दुनिया का सिरमौर माना जाता रहा है। संसार के किसी भी क्षेत्र के तुलना में सर्वाधिक नदियां हिमालय अधिष्ठाता शिव की जटाओं से निकलकर भारत के कोने-कोने को शस्य श्यामला बनाती रहती है। नदियों के किनारे ही विश्व की सभ्यता रची-बची है। नदियां लोगों के जीवन का सेतु और आजीविका का स्थायी स्त्रोत होने के साथ-साथ जैव विविधता, पर्यावरणीय और पारिस्थितिक संतुलन की मुख्य जीवन रेखा है। लेकिन आज देश के अधिकांश राज्यों में नदियों की स्थिति सही नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले झारखंड में ही करीब 133 नदियां अब तक सूख चुकी है। यदि यही स्थिति रही तो राज्य को एक दिन घोर पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। अब हम देवघर की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली डढ़वा नदी पर आते हैं। बालू खनन, डीप बोरिंग व शहर का कूड़ा डंपिंग जोन बन जाने के कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन लोगों को अभी भी उम्मीद है कि प्रशासन व सरकार ध्यान दे तो इस नदी को बचाया जा सकता है। फिर से देवघर की लाइफ लाइन कही जाने वाली डढ़वा को नयी जीवनधारा मिल सकती है।

देवघर व कुमैठा जाने वाले पथ की बीच स्थिति है डढ़वा नदी

डढ़वा नदी देवघर व कुमैठा गांव जाने वाले पथ के बीच स्थित है। इस नदी के किनारे कुमैठा, रोहणी समेत दर्जनों गांव बसे हुए है। इन गांव के किसान करीब एक-डेढ़ दशक पहले तक इस नदी के पानी से ही खेतों की सिंचाई करते थे। रोहणी के रहने वाले शंभु कहते है कि नदी के सूखने से नदी किनारे स्थित गांवों में पेयजल का घोर संकट उत्पन्न हो गया है। जलस्तर काफी नीचे चला गया है। ग्रामीण इसी नदी के भरोसे ही धान की खेती करते थे। लेकिन अब नदी के सूखने से खेती साफ तौर पर बंद हो चुकी है। किसी तरह लोग गेहूं की खेती कर लेते है। किसानों ने बताया कि नदी अपनी वास्तविक चौड़ाई से भी काफी सिकुड़ चुकी है।

बालू के अवैध खनन से नदी का अस्तित्व संकट में

अपनी अमृत धारा से कभी जीवन-दायिनी रही डढ़वा नदी आज मरणासन्न अवस्था में पहुंच गयी है। इसका मूल कारण दशकों से नदी में चल रहे बालू खनन का कारोबार है। अब नदी इस स्थिति में पहुंच गयी है कि नदी में बालू

कहीं-कहीं देखने को मिलता है। बालू खनन से नदी सपाट खेत के रूप में परिवर्तित हो गयी है। अब नदी में थोड़ा-बहुत जो बालू बचा है उसका भी खनन प्रशासन की नाक के नीचे आये दिन होता रहता है। नगर निगम की ओर से शहर में पेयजल सप्लाई के लिए नदी में करीब 30 बोरिंग कराए गए हैं। जिस वजह से नदी के किनारे स्थित गांवों के कुएं तक सूख गए है। नगर निगम के एक कर्मी बताते है कि 2005 में नदी में पानी के ठहराव के लिये चेक डेम का निर्माण किया गया। चेक डेम के बनने से कोई विशेष फायदा तो नहीं हुआ लेकिन नदी में पानी का प्रवाह रुक गया। जिससे नदी में काफी मात्रा में गाद जम गई है।

जलापूर्ति के लिये देवघर शहर डढ़वा व अजय नदी पर है निर्भर

देवघर शहर पेयजल के लिये अजय व डढ़वा नदी पर मुख्य रूप से निर्भर है। दोनों नदियां मूल रूप से बरसाती नदी के तौर पर जानी जाती है। लेकिन डढ़वा नदी बालू के अवैध खनन व जगह-जगह डीप बोरिंग होने के कारण पूरी तरह मरणासन्न अवस्था में पहुंच गयी है। नदी के सूखने का सबसे अधिक प्रभाव शहर की करीब तीन लाख आबादी पर पड़ेगा।

लोगों को यही चिंता है कि गर्मी के दिनों में उनकी कैसे बुझेगी प्यास। चार से पांच माह पूर्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत देवघर दौरे पर आये हुए थे। जहां स्थानीय लोगों ने शहर के पेयजल के संकट से संघ प्रमुख को अवगत कराया था। जिस पर संघ प्रमुख ने इस मामले में राज्य सरकार से बात करने का आश्वासन दिया था।

सांसद ने रिवर फ्रंट बनाने की थी घोषणा

सांसद निशिकांत दुबे ने करीब 6 माह पूर्व डढ़वा नदी में रिवर फ्रंट बनाने की घोषणा की थी, जिसे डढ़वा फ्रंट नाम दिया जाना है। रिवर फ्रंट में 50 फीट चौड़ा और 2 किलोमीटर लंबा पैदल पथ साथ ही पार्किंग की व्यवस्था करने की योजना है। शहर के कपड़ा व्यवसायी मनोज मित्रा का मनाना है कि रिवर फ्रंट बनने से शहर की खूबसूरती बढ़ जायेगी। लेकिन आज छह माह से अधिक होने को है, लेकिन सांसद की घोषणा अभी धरातल पर नहीं उतरी। मित्रा कहते है कि सबसे पहले हमें डढ़वा नदी को विलुप्त होने से बचाने का प्रयास करना होगा। चूंकि देवघर राज्य की सांस्कृतिक राजधानी है। नदी से ही संस्कृति का उद्गम व सभ्यता का विकास हुआ है। ऐसे में नदियां ही विलुप्त हो जायेंगी, तो मानव जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।