झारखण्ड विधानसभा से अब तक कई माननीय बाहर

अब बंधु तिर्की की सदस्यता गयी, कई और हैं निशाने पर

झारखण्ड युवा हो गया है। वर्ष 2000 में गठित यह राज्य 22वाँ बसंत देख रहा। युवा होते इस झारखण्ड को जब-जब मौक़ा लगा सज़याफ़्ता माननीयों को विधानसभा के बाहर का रास्ता दिखा दिया। अभी हाल में कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सह विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता गयी है। इससे पहले बीते 21 साल में राज्य के पाँच विधायकों की विधायकी छिन चुकी है। झारखण्ड के मौज़ूदा विधानसभा के 81 सदस्यों में 44 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। कई सदस्यों का ट्रायल चल रहा है। इनकी भी सदस्यता पर ख़तरा मंडरा रहा है। विधानसभा को कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार है। फ़ैसला आने के बाद विधानसभा ऐसे सज़ायाफ़्ता सदस्यों को बंधु तिर्की की तरह बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं चूकेगा।

घोटाले से छिनी सदस्यता

देश में करोड़ों रुपये के घोटाले, करोड़ों रुपये की आय से अधिक सम्पत्ति के मामले सामने आते हैं। बंधु तिर्की का मामला अनूठा है। महज़ 6.28 लाख रुपये को लेकर उनकी सदस्यता चली गयी। रांची के मांडर विधानसभा सीट से विधायक बंधु तिर्की पर सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 28 मार्च को दोषी पाते हुए तीन साल की सज़ा और तीन लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया था। ज़ुर्माना नहीं देने पर छ: माह की अतिरिक्त सज़ा काटनी होगी। बंधु का मामला इसलिए भी अनूठा है कि इस मामले सीबीआई ने जाँच के बाद 21 मई, 2013 में क्लोजर रिपोर्ट दाख़िल की थी। कहा गया कि बंधु के पास आय से अधिक सम्पत्ति पायी गयी है पर यह इतनी कम है कि सीबीआई उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के पक्ष में नहीं है। सीबीआई के तत्कालीन विशेष न्यायाधीश आर.के. चौधरी ने इसे अमान्य करार दिया था। इसके बाद फिर से मामले पर जाँच शुरू हुई। इस मामले में सीबीआई ने तिर्की को 12 दिसंबर, 2018 को गिरफ़्तार किया था। क़रीब 40 दिन जेल में रहने के बाद सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिली थी। सीबीआई ने तिर्की के ख़िलाफ़ 11 अगस्त, 2010 को प्राथमिकी दर्ज की थी। 16 जनवरी, 2019 को आरोप गठित किया गया था। इस पर गवाह और दलील के बाद सीबीआई कोर्ट ने 28 मार्च, 2022 को उन्हें दोषी करार दिया। जन प्रतिनिधि अधिनियम में दो साल या उससे अधिक सज़ा पर किसी भी सदन की सदस्यता स्वत: समाप्त कर दी जाती है। न्यायालय के निर्णय के बाद बंधु तिर्की की विधायकी ख़त्म हो गयी है। इस सम्बन्ध में झारखण्ड विधानसभा सचिवालय ने 8 अप्रैल, 2022 को अधिसूचना जारी कर दी। झारखण्ड विधानसभा के प्रभारी सचिव सैयद जावेद हैदर की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया कि सीबीआई की स्पेशल न्यायालय ने बंधु तिर्की को दोषी करार देने पर जन प्रतिनिधित्व नियम-1951 की धारा-8 तथा संविधान के अनुच्छेद-191 (1)(ई) के प्रावधान के तहत 28 मार्च, 2022 के प्रभाव से झारखण्ड विधानसभा की सदस्यता ख़त्म की जाती है। विधानसभा ने चुनाव आयोग को मांडर विधानसभा सीट ख़ाली होने की सूचना भेज दी है। अब आयोग को छ: महीने के अन्दर यहाँ चुनाव कराना होगा।

पाँच विधायक पहले हुए बाहर

बंधु तिर्की से पहले पाँच विधायकों की सदस्यता न्यायालय की तरफ़ से सज़ा सुनाने के बाद ख़त्म हो गयी है। इनमें झामुमो के राजधनवार विधायक निजामुद्दीन अंसारी, झारखण्ड पार्टी के कोलेबिरा विधायक एनोस एक्का, लोहरदगा के आजसू विधायक कमल किशोर भगत, गोमिया के झामुमो विधायक योगेंद्र प्रसाद व सिल्ली के झामुमो विधायक अमित महतो के नाम शामिल हैं। कमल किशोर भगत को 21 साल पुराने मारपीट के मामले में सात साल की सज़ा सुनायी गयी थी और उनकी सदस्यता जून 2015 में समाप्त हुई थी। इसी तरह एनोस एक्का को पारा अध्यापक की हत्या के मामले में उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी। योगेंद्र प्रसाद को कोयला चोरी के मामले में पाँच साल की सज़ा हुई थी। इसी तरह नजामुद्दीन अंसारी और अमित महतो को अलग-अलग मामले में दो साल से अधिक की सज़ा हुई और उनकी विधायकी चली गयी।

बदलेंगे समीकरण

राज्य में झामुमो के नेतृत्व में कांग्रेस और राजद के गठबंधन की सरकार है। बंधु की सदस्यता जाने से सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। क्योंकि बहुमत के लिए सरकार को 41 सदस्यों का समर्थन चाहिए। झामुमो के 30 कांग्रेस के 17 और राजद के एक सदस्य के साथ सत्ता पक्ष के पास 48 विधायकों का आँकड़ा है। पर बंधु की सदस्यता जाने का राजनीतिक समीकरण पर असर ज़रूर पड़ेगा। बंधु तिर्की सन् 2019 में झाविमो के टिकट से जीतकर विधायक बने थे। सन् 2020 में वह अपने साथी प्रदीप यादव के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। हालाँकि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के सदस्य की मान्यता नहीं दी थी। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। कांग्रेस उनके साथ प्रदीप यादव को अपना सदस्य मानकर चल रही थी। लिहाज़ा उनके सदस्यों की संख्या 18 से घटकर 17 हो जाएगी। इससे कांग्रेस गठबंधन में थोड़ी कमज़ोर होगी।

दूसरी बात कांग्रेस के पास आदिवासी विधायक का ऐसा चेहरा नहीं है, जो पूरे राज्य के आदिवासी क्षेत्रों पर पकड़ बना सके। बंधु तिर्की एक मुखर आदिवासी नेता माने जाते हैं। वह विभिन्न मुद्दों को लेकर मुखर भी रहे हैं। जिसका लाभ कांग्रेस लेने की कोशिश करती; जो अब सम्भव नहीं हो सकेगा।

मुसीबत में रहेंगे बंधु

बंधु तिर्की जमानत पर अभी जेल के बाहर हैं, पर उनकी मुसीबत फ़िलहाल कम होते नहीं दिख रही। तिर्की की 6.28 लाख रुपये की सम्पत्ति सीबीआई जल्द ही ज़ब्त करेगी। न्यायालय ने बंधु तिर्की को सज़ा सुनाने के बाद सीबीआई को निर्देश दिया आय से अधिक जितनी सम्पत्ति पायी गयी है। उसे जल्द-से-जल्द ज़ब्त करें। इस बीच बंधु के ख़िलाफ़ ईडी भी जाँच करने की तैयारी में है। ईडी की जाँच शुरू होने के बाद निश्चित ही परेशानी बढ़ेगी। हालाँकि बंधु तिर्की ने सीबीआई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

अब किसकी बारी?

सन् 2019 में हुए झारखण्ड विधानसभा चुनाव के दौरान मौज़ूदा विधायकों ने जो शपथ पत्र दिया था, उसे देखा जाए, तो माननीयों पर आपराधिक मामलों में दर्ज मुक़दमे की फ़ेहरिस्त लम्बी है। इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के विधायक शामिल हैं। 81 विधानसभा सीट वाले झारखण्ड के सदस्यों में से 44 ऐसे विधायक हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन पर कोर्ट में कोई में मामला चल रहा है। अगर कोर्ट के फ़ैसले में दो साल या उससे ज़्यादा की सज़ा हुई, तो सदस्यता जानी तय है। ख़ासकर दो विधायक भाजपा के भानु प्रताप शाही और एनसीपी के कमलेश सिंह के मामले पर सभी की नज़र टिकी है। इन पर भी आय से अधिक सम्पत्ति और मनी लांड्रिंग मामले में सीबीआई व ईडी कोर्ट में मुक़दमे चल रहे हैं। विधायक भानु प्रताप शाही पर चार साल चार महीने में ज्ञात आय से 7.97 करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति अर्जित करने का आरोप है। कमलेश सिंह पर चार करोड़ रुपये से अधिक की राशि आय से अधिक अर्जित करने का आरोप है। उधर इन दो मामलों के साथ कई अन्य मामलों में भी कोर्ट में हाज़िरी का दौर चल रहा है। कई मामलों में गवाही हो चुकी है। तो कई मामलों में बहुत जल्द फ़ैसला आने की भी उम्मीद है। ऐसे में अब देखना होगा कि अगला नाम किसका होता है। क्योंकि जिस तेज़ी के साथ कोर्ट में सुनवाई हो रही है, उससे तो यह उम्मीद दिख ही रही है कि राज्य में चुनाव से पूर्व कई विधायकों के भाग्य का फ़ैसला ज़रूर सुना दिया जाएगा।