घातक सिद्ध होगा क़ानून का दुरुपयोग

हाल ही में जब राहुल गाँधी की संसद सदस्यता गयी, तो ख़ूब हंगामा हुआ। अभी तक राहुल गाँधी की संसद सदस्यता रद्द किये जाने को लेकर बहस का बाज़ार गर्म है। सवाल यही है कि इस प्रकार एक बयान को लेकर चार साल बाद किसी सांसद की सदस्यता को इतनी तत्परता से रद्द क्यों किया गया? सेशन कोर्ट ने जिस मामले में राहुल गाँधी को जिस मामले में अधिकतम सज़ा सुनायी, उसका फ़ायदा उठाते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-102(1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत देर न लगाते हुए उनकी सदस्या रद्द कर दी और बहुत जल्द उन्हें सरकारी आवास ख़ाली करने का नोटिस भी थमा दिया। सारे सवाल इसी वजह से उठे कि केंद्र की मोदी सरकार ने यह सब कुछ किसलिए इतनी जल्दबाज़ी में किया।

राहुल गाँधी को 2019 में कर्नाटक के कोलार में दिये जिस कथित बयान- ‘इन सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?’ के लिए गुजरात के सूरत के जिस सेशन कोर्ट ने दो साल की सज़ा सुनायी, उसी के आधार पर अगले ही दिन उनकी संसदीय सदस्यता को रद्द किये जाना और एक सप्ताह के अंदर ही सरकारी आवास ख़ाली करने का नोटिस जारी होना कई सवाल खड़े करता है। राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ सूरत के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुक़दमा दर्ज कराया था, जो कि पेशे से वकील हैं। इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए सूरत के सेशन कोर्ट में राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा-499, 500 के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था। सेशन कोर्ट ने धारा-499 के तहत आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सज़ा सुना दी, जो कि अधिकतम है। सज़ा के तुरन्त बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद-102(1) और 191(1) के तहत राहुल गाँधी की सदस्यता चली गयी।

इस अनुच्छेद के मुताबिक, अगर सांसद-विधायक अथवा संसद या विधानसभा का अन्य सदस्य लाभ के कोई पद लेता है अथवा दिमाग़ी रूप से अस्वस्थ है अथवा दिवालिया है अथवा भारत का वैध नागरिक नहीं है, अथवा किसी अपराध में अधिकतम सज़ा पाता है, तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। इसकी प्रकार से संविधान की 10वीं अनुसूची में सांसद अथवा विधायक को अयोग्य क़रार दिये जाने का दूसरा प्रावधान लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा-8(1) में है, जिसके तहत दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, रिश्वत लेने अथवा चुनाव में अपने प्रभाव का $गलत इस्तेमाल करने पर सांसद-विधायक की सदस्यता जा सकती है।

राहुल गाँधी की सदस्यता अनुच्छेद-8(3) के तहत रद्द की गई है। अब अगर हाई कोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में से कोई उनकी सज़ा को रद्द कर दे, तो उनकी सदस्यता वापस मिल सकती है। अन्यथा अगर सज़ा बरक़रार रही,त वह छ: साल तक न तो चुनाव लड़ सकेंगे और न ही संसद में प्रवेश कर सकेंगे।

क़ानून बचाकर फँसे राहुल

सितंबर, 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार एक अध्यादेश लेकर आयी थी, जिसमें कुछ शर्तों के तहत अदालत में दोषी पाये जाने के बाद भी सांसदों और विधायकों को अयोग्य क़रार न दिये जाने का प्रस्ताव था; लेकिन उस समय राहुल गाँधी कांग्रेस उपाध्यक्ष थे और उन्होंने दाग़ी सांसदों और विधायकों पर लाये गये यूपीए सरकार के अध्यादेश को बेतुका कहते हुए कहा था कि ‘ऐसे अध्यादेश की कॉपी फाडक़र फेंक देनी चाहिए। इस देश में लोग अगर वास्तव में भ्रष्टाचार से लडऩा चाहते हैं, तो हम ऐसे छोटे समझौते नहीं कर सकते हैं।’ आज इसी क़ानून के तहत राहुल गाँधी की सदस्या चली गयी।

एक और सांसद की सदस्यता रद्द

राहुल गाँधी के बाद उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर से बसपा सांसद अफ़ज़ाल अंसारी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गयी है। अफ़ज़ाल अंसारी को गैंगस्टर मामले में ग़ाज़ीपुर की एमपी / एमएलए कोर्ट ने चार साल की जेल और एक लाख रुपये के ज़ुर्माने की सज़ा सुनायी है, जिसके 56 घंटे बाद दोषी सांसद की संसदीय सदस्यता रद्द कर दी गयी है। बता दें कि अफ़ज़ाल अंसारी मुख़तार अंसारी का भाई है, जो इन दिनों बांदा जेल में है। अंसारी भाइयों पर 2007 में कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप है। 23 सितंबर, 2022 को दोनों भाई पर गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोप तय हुए थे। राहुल गाँधी से पहले लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फ़ैजल की भी एक स्थानीय कोर्ट द्वारा 10 साल की सज़ा सुनाये जाने पर संसद सदस्यता से हाथ धोने पड़े थे; लेकिन बाद में केरल हाईकोर्ट ने सज़ा पर रोक लगा दी। अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है।

लालू प्रसाद यादव को भी 2013 में चारा घोटाले में दोषी ठहराये जाने के बाद अपनी लोकसभा की सदस्यता गँवानी पड़ी थी। समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता और पूर्व सांसद, पूर्व विधायक आज़म ख़ान की सदस्यता भी रद्द हो चुकी है। आज़म ख़ान रामपुर से लगातार 10 बार विधायक चुने जाने के अलावा सांसद भी रहे हैं। आज़म ख़ान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी की थी, जिसके बाद तीन साल कोर्ट में केस चला और कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सज़ा सुनायी। सज़ा के बाद आज़म को ज़मानत भले मिल गयी; लेकिन विधानसभा की सदस्यता चली गयी। आज़म ख़ान के बाद उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म की भी विधानसभा सदस्यता रद्द हो गयी। अब्दुल्ला आज़म को मुरादाबाद के एक सेशन कोर्ट ने 15 साल पुराने मामले में दो साल की सज़ा सुनायी थी, जिसके बाद उनकी भी सदस्यता चली गयी।

इसके अलावा मुज़फ़्फ़रनगर की खतौली सीट से भाजपा विधायक रहे विक्रम सैनी की भी सदस्यता जा चुकी है, जो कि मुज़फ़्फ़रनगर में हुए 2013 के दंगों के दोषी पाये गये। अन्नाद्रमुक प्रमुख रहीं तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता भी 2014 में अयोग्य क़रार दिये जाने के बाद अपनी सदस्यता गँवा चुकी थीं। उन्हें आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में चार साल की सज़ा हुई थी, जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। अब जयललिता इस दुनिया में नहीं हैं।

आरजेडी के कुरहनी विधानसभा से विधायक अनिल कुमार सहनी को भी धोखाधड़ी के मामले में तीन साल की सज़ा मिलने के बाद पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा सदस्यता गँवानी पड़ी। आरजेडी के ही नेता और पटना ज़िले की मोकामा सीट से विधायक अनंत सिंह को जुलाई, 2020 में हथियारों की रिकवरी से जुड़े मामले में दोषी पाये जाने के बाद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। हरियाणा की काल्का सीट से कांग्रेस विधायक प्रदीप चौधरी को असॉल्ट मामले में तीन साल की सज़ा मिलने के बाद जनवरी, 2021 में अपनी सदस्यता गँवानी पड़ी। फरवरी, 2020 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव की बांगरमउ सीट से भाजपा विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर को दुष्कर्म मामले में दोषसिद्धि के बाद अपनी सदस्यता गँवानी पड़ी।

इसी तरह अन्नाद्रमुक के विधायक रहे टी.एम. सेल्वागणपति को 2014 में, ऑल झारखण्ड स्टूडेंट यूनियन के विधायक के.के. भगत को 2015 में, झारखण्ड मुक्ति मोर्टा के विधायक अमित महतो को 2018 में, इसी पार्टी के योगेंद्र महतो को 2018 में, झारखण्ड पार्टी के विधायक एनोस एक्का को 2018 में, कांग्रेस विधायक बंधु टिर्की को 2022 में, कांग्रेस की ही विधायक ममता देवी को 2022 में, भाजपा विधायक सुभाष कल्लर को 2002 में, भाजपा विधायक पी. बालाकृष्णा रेड्डी को 2019 में, आरजेडी विधायक राज बल्लभ यादव को 2018 में, आरजेडी के ही विधायक इलयास हुसैन को 2018 में, अन्नाद्रमुक के विधायक टीएम सेल्वागणपति को 2014 में, मुस्लिम लीग के विधायक के.एम. शाजी को 2016 में, सीपीएम के विधायक ए. राजा को 2023 में, कांग्रेस विधायक रहे रशीद मसूद को 2013 में, जेडीयू के सांसद रहे जगदीश शर्मा को 2013 में सदस्यता गँवानी पड़ी।

भाजपा का मिशन जेल!

क्या केंद्र की मोदी सरकार विपक्ष के ताक़तवर नेताओं को जेल भेज देना चाहती है? अगर अभी तक मोदी सरकार की जेल भेजने की कार्रवाई को देखें, तो पता चलता है कि कई क़द्दावर नेता जेल भेजे जा चुके हैं और कई को जेल भेजने की तैयारी है। लालू प्रसाद यादव जेल की लम्बी सज़ा काट चुके हैं। वहीं आम आदमी पार्टी के नेता (तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री) सत्येंद्र जैन और उसके बाद दिल्ली के शिक्षा, वित्त और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया को जेल भेजा जा चुका है। इसी तरह आज़म ख़ान, उनका बेटा अब्दुल्ला आज़म, मुख़तार अंसारी जेल में हैं। अतीक अहमद (जिसकी हत्या हो गयी) को भी सलाख़ों के पीछे भेज दिया था। केसीआर की बहिन वाईएस शर्मिला भी न्यायिक हिरासत में हैं। केसीआर की बेटी निशाने पर हैं। लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव निशाने पर हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल निशाने पर हैं। झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके कई विधायक निशाने पर हैं। झारखण्ड में अभी तक कुछ अधिकारी और विधायकों पर कार्रवाई हो चुकी है। कहा जा रहा है कि कई बड़े नेताओं की फाइल तैयार हो चुकी है, जिनके ख़िलाफ़ जल्द ही जेल भेजो कार्रवाई हो सकती है, जिसके लिए ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल केंद्र की मोदी सरकार कर रही है। इस तरह सत्ता के लिए क़ानून का दुरुपयोग देश के लिए बेहद घातक सिद्ध होगा। आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह स्पष्ट कह चुके हैं कि ‘भाजपा का एक ही मिशन है- सारे विपक्ष को ख़त्म करो। सारे विपक्षी नेताओं को सज़ा दिलाकर जेल में डाल दो। उनको चुनाव लडऩे से अयोग्य घोषित कराओ। वे (मोदी-शाह) 24 घंटे इसी काम में लगे हुए हैं।’

क्या यह क़ानून का दुरुपयोग है? अगर यह सच है, तो यह घातक साबित होगा। जबसे राहुल गाँधी की सदस्यता गयी है, विपक्ष ने कुछ हद तक एकजुटता तो दिखायी है। जो नेता कांग्रेस के पक्ष में बोलने को तैयार नहीं थे, वे भी केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बोले हैं; पर अभी उनमें मोदी सरकार को घेरने के लिए उतनी एकता नहीं दिख रही, जिसकी इस समय ज़रूरत है।