कर्नाटक में द्विध्रुवीय सीटों से होगा फ़ैसला

राज्य के विधानसभा चुनाव में तीन प्रमुख दलों- भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस ने झोंकी पूरी ताक़त

क्या कर्नाटक में बड़े पैमाने पर बड़े भाजपा नेताओं का कांग्रेस में शामिल होना 10 मई को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उसकी हार का संकेत है? हाल के वर्षों में यह पहली बार हुआ है कि भाजपा से इस तरह चुनाव से पहले नेताओं का दल-बदल हुआ है। अन्यथा होता तो यह था कि कांग्रेस के लोग भाजपा में जाने लगते थे। इस बार लगता है कि कर्नाटक के चुनाव ने यह फ़िज़ा बदल दी।

कुछ महीने पहले गुजरात चुनाव में भाजपा के बड़े नेताओं ने जिस तरह 150 सीटें जीतने का मज़बूत दावा किया था, भाजपा वैसा कोई दावा कर्नाटक में नहीं कर रही है। और उसके जो नेता कर भी रहे हैं, उनके दावों में दम नहीं दिख रहा। इसके विपरीत कांग्रेस ख़ेमा उत्साह में है। इस चुनाव के नतीजे दो चीज़ों से तय होंगे। एक कर्नाटक में तिकोने मुक़ाबले में कौन दूसरे के वोटों में सेंध मारता है और दूसरा यह कि देवेगौड़ा के जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) की क्या स्थिति रहती है।

कांग्रेस ने अंतिम क्षणों में कुछ सीटें देकर वामपंथी दल भाकपा को अपने साथ गठबंधन में जोड़ा है। उसकी रणनीति अधिक से अधिक सीटों पर बिना वोटों के बिखराव के भाजपा के साथ मुक़ाबला करने की है।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भाजपा ने देवेगौड़ा के जेडीएस के साथ अंदरख़ाने समझौते की कोशिश की थी। भाजपा के थिंक टैंक का मानना है कि जेडीएस के साथ गुपचुप समझौता करके कांग्रेस को घेरा जा सकता है। हालाँकि इस कथित गठबंधन की ज़मीनी हक़ीक़त साफ़ नहीं है। भाजपा नेताओं का तो कहना है कि पार्टी को किसी से समझौता करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि वह अपने बूते जीतने की क्षमता रखती है।

इस चुनाव के अभियान में भाजपा की सबसे कमज़ोर कड़ी बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली उसकी प्रदेश सरकार है। पार्टी के नेता प्रचार के दौरान सरकार की उपलब्धियों पर ज़्यादा बात करते नहीं दिख रहे, जबकि हरेक नेता प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मे पर निर्भर है।

इसके विपरीत कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान में क्षेत्रीय मुद्दों पर ज़्यादा फोकस रखा है भले पार्टी के स्टार प्रचारक राहुल गाँधी ने अपने दौरों में राष्ट्रीय मुद्दों पर बात की है। उनकी रैलियों और रोड शो में भीड़ भी काफ़ी दिखी है, जिससे संकेत मिलता है कि यदि यह भीड़ वोट में तब्दील होती है, तो कांग्रेस के इस चुनाव में बारे-न्यारे हो सकते हैं।

इस चुनाव में कांग्रेस रणनीतिकार की भी मदद ले रही है। सुनील कानूनगोलू कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस के रणनीतिकार की भूमिका में हैं। प्रशांत किशोर के सहयोगी रहे कानूनगोलू कभी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम कर चुके हैं। कांग्रेस ने कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में साल के आख़िर में होने वाले विधानसभा चुनाव का ज़िम्मा भी कानूनगोलू को सौंप रखा है। कानूनगोलू कांग्रेस से जुडऩे के बाद राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी रणनीतिकार के रूप में शामिल रहे हैं। उनके अलावा प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया रणनीति के मुख्य किरदार हैं।

उधर भाजपा के चुनाव का ज़िम्मा स्थानीय नेताओं ने सँभाल रखा है; लेकिन वरिष्ठ नेता अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ही पूरी रणनीति का ज़िम्मा निभा रहे हैं। दोनों नेता कर्नाटक से कई दौरे कर चुके हैं और शाह ने दावा भी किया है कि कर्नाटक में भाजपा फिर सरकार बनाएगी। पार्टी की सबसे बड़ी दिक़्क़त कई बड़े नेताओं का पार्टी से बग़ावत करके कांग्रेस में चले जाना है। स्थिति ऐसी हुई है कि प्रधानमंत्री मोदी को पूर्व मुख्यमंत्री के.एस. ईश्वरप्पा को मनाने के लिए फोन करना पड़ा जिनके बेटे केई कांतेश को पार्टी ने शिमोगा से टिकट नहीं दिया। ईश्वरप्पा बेटे के लिए टिकट चाहते थे, जो ख़ुद पाँच बार वहाँ से जीत चुके हैं। ऐसा ही हिमाचल विधानसभा के चुनाव में दिखा था, जब मोदी ने वहाँ नाराज़ नेता कृपाल परमार को फोन किया था। हालाँकि हिमाचल में भाजपा को कांग्रेस झेलनी पड़ी थी।

रिकॉर्ड देखें, तो सन् 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में 77 फ़ीसदी सीटों पर द्विध्रुवीय मुक़ाबले हुए, जिसका मतलब था कि केवल दो पार्टियाँ उन निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से चुनाव लड़ रही थीं। पहले यह प्रतिशत 2013 और 2008 के चुनाव में महज़ 50 फ़ीसदी था। ऐसे में जेडीएस यदि प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं करता है, तो भाजपा और कांग्रेस में ज़्यादातर सीटों पर सीधे टक्कर होगी। इसमें जो बाज़ी मारेगा, उसकी सरकार बनेगी।

जातियों का गुणा-भाग

इस बार कर्नाटक चुनाव में जातियों का रोल बड़ा रहने की सम्भावना है। कांग्रेस चुनाव प्रचार के बीच एक से ज़्यादा बार जातिगत गणना की माँग कर चुकी है। देखा जाए, तो कर्नाटक में सबसे ज़्यादा आबादी दलितों की है, जो क़रीब 19.5 फ़ीसदी (संख्या में 1.08 करोड़) हैं। उनके बाद मुस्लिम आते हैं, जो प्रदेश की आबादी का क़रीब 16 फ़ीसदी हैं (70 लाख) हैं। तीसरे नंबर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) है, जो 16 फ़ीसदी के क़रीब हैं। कर्नाटक में कहा जाता है कि सत्ता में आने के लिए लिंगायत वोट पाना बहुत ज़रूरी है।

कर्नाटक में लिंगायतों की संख्या क़रीब 14 फ़ीसदी (65 लाख) है। दूसरी महत्त्वपूर्व जाति वोक्कालिंगा है, जिनकी कुल आबादी का फ़ीसदी 11 अर्थात् संख्या में क़रीब 60 लाख है। राज्य में कुरुवा ओबीसी भी मज़बूत वर्ग है और चुनाव में हार-जीत में उसका बड़ा रोल रहता है। कुरुवा प्रदेश में सात फ़ीसदी अर्थात् क़रीब 45 लाख हैं। इन जातियों के अलावा अजजा पाँच फ़ीसदी, ईसाई तीन फ़ीसदी, जैन-बौद्ध दो फ़ीसदी और अन्य चार फ़ीसदी के क़रीब हैं। प्रदेश भर में ब्राह्मणों की संख्या 14 लाख है।

इस बार भाजपा को लिंगायत समुदाय के नाराज़ होने का ख़तरा सता रहा है। उसके लिंगायत समुदाय में सबसे बड़ा चेहरा बी.एस. येदियुरप्पा को जिस तरह पार्टी ने मुख्यमंत्री पद से हटाया था, उसके बाद से समुदाय में नाराज़गी उभरी थी, जो हाल कांग्रेस में जाने वाले नेताओं तक में दिखी। कांग्रेस लिंगायत समुदाय से इस बार बड़े समर्थन की उम्मीद कर रही है, जबकि भाजपा येदियुरप्पा के प्रति पूरा सम्मान दिखाकर यह सन्देश देने की कोशिश कर रही है कि लिंगायत नेता पार्टी से नाराज़ नहीं हैं।

भाजपा को लगे झटके

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को उसके असन्तुष्टों ने जबरदस्त झटके दिये। कई बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी कांग्रेस में चले गये, जबकि कुछ ने जेडीएस को चुना। भाजपा को पहले से डर था कि कर्नाटक में टिकटों को लेकर बग़ावत हो सकती है। इसलिए उसने बहुत आख़िर में अपनी तीन सूचियाँ जारी कीं। इनमें कई दिग्गजों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पार्टी ने भले लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को उनकी सीट से टिकट दे दिया; लेकिन अन्य को यह सौभाग्य नहीं मिला।

कर्नाटक में भाजपा छोडऩे वाले नेताओं में सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार का था, जो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी रहे थे। हुबली-धारवाड़ केंद्रीय निर्वाचन क्षेत्र से उन्हें अब कांग्रेस में मैदान में उतार दिया है। राहुल गाँधी जब प्रचार के लिए 23 अप्रैल को कर्नाटक गये थे, तो वहाँ पहुँचने पर हुबली एयरपोर्ट पर सबसे पहले भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्‌टार राहुल से मिले। उनके अलावा लक्ष्मण सावदी दूसरे बड़े नेता हैं, जो उप मुख्यमंत्री रहे हैं। सावदी अथानी निर्वाचन क्षेत्र के टिकट से चुनाव लडऩे की उम्मीद कर रहे थे; लेकिन टिकट न मिलने के बाद उन्होंने भाजपा के विधान परिषद् सदस्य के रूप में इस्तीफ़ा दे दिया और कांग्रेस में चले गये।

पूर्व मंत्री एस. अंगारा तीसरे बड़े नेता हैं, जो अंगारा दक्षिण कन्नड़ ज़िले के सुलिया निर्वाचन क्षेत्र से छ: बार जीते हैं। उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की। हालाँकि समझा जाता है कि वह चुनाव में अंदरख़ाने सक्रिय हैं। एक और बड़े नेता आर. शंकर हैं, जो एमएलसी थे। उन्हें दलबदल के लिए जाना जाता है और विधान परिषद् से इस्तीफ़ा देने के बाद उन्होंने एनसीपी में जाने की बात कही। शंकर उन 17 विपक्षी विधायकों में एक थे, जिन्होंने 2019 में कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन सरकार गिराने में भाजपा का साथ दिया था।

एम.पी. कुमारस्वामी मुदिगेरे से भाजपा विधायक थे और जेडीएस में शामिल हो गये। उन्हें भी टिकट नहीं मिला था। विश्वनाथ पाटिल हेब्बल्ला चित्तपुर निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार के विधायक थे और टिकट न मिलने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गये। उनके अलावा गौरक्षा अभियान में शामिल रहे रघुपति भट, जो उडुपी से विधायक थे टिकट न मिलने के बाद आरोप लगाया कि भाजपा ने उनकी जाति के कारण उनका टिकट काटा। एमएलसी अयनुर मंजूनाथ शिवमोग्गा ज़िले के एक वरिष्ठ लिंगायत नेता थे, जिन्होंने टिकट न मिलने के बाद एमएलसी और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्हें जेडीएस ने टिकट दिया है।

भाजपा का गढ़ माने जाने वाले उत्तरी कर्नाटक में भाजपा का इस बार सख़्त इम्तिहान होगा। क्षेत्र के वोटर पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के कट्टर समर्थक रहे हैं। हालाँकि जबसे येदियुरप्पा से मुख्यमंत्री का पद भाजपा ने वापस लेकर बोम्मई को दिया है, तबसे लोगों के तेवर बदल गये हैं। ऊपर से मज़बूत लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी भाजपा छोडक़र कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और भाजपा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं।

ऐसे में भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हुई दिखती हैं। बता दें उत्तर कर्नाटक में कित्तूर और कल्याण जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें 13 ज़िलों की 90 विधानसभा सीटें शामिल हैं। क्षेत्र का गणित देखें, तो पिछले चुनाव में यहाँ भाजपा ने 52, जबकि कांग्रेस ने 32 सीटें जीती थीं। जेडीएस के हिस्से मात्र छ: सीटें आयी थीं। क्षेत्र में बेलगावी, बागलकोट, बीजापुर, कलबुर्गी, यादगीर, गदग, धारवाड़, हावेरी, बीदर, रायचूर, कोप्पल, विजयनगर और बेल्लारी ज़िले शामिल हैं। हमेशा की तरह इस बार भी यहाँ कांग्रेस-भाजपा में सीधी टक्कर है। कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि उसे यहाँ इस बार बढ़त मिलेगी।

क्षेत्रीय दल कल्याण कर्नाटक राज्य पक्ष (केकेआरपी) भाजपा का नुक़सान कर सकती है। यह पार्टी खनन के सरताज जनार्दन रेड्डी का संगठन है। रेड्डी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप हैं। सुषमा स्वराज के समय से रेड्डी भाजपा के साथ रहे हैं; लेकिन इस बार भाजपा ने उनसे किनारा कर लिया है। केकेआरपी हैदराबाद कर्नाटक (कल्याण कर्नाटक) क्षेत्र में भाजपा को नुक़सान पहुँचाने की क्षमता रखती है। बेल्लारी, रायचूर, कोप्पल, यादगीर और विजयनगर ज़िलों में इसका प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। रेड्डी ही नहीं श्रीराम सेना के संस्थापक प्रमोद मुतालिक भी भाजपा के ख़िलाफ़ हो गये हैं। उत्तर कर्नाटक क्षेत्र के हिंदू मतदाताओं में उनका प्रभाव माना जाता है।

कांग्रेस इस बार वहाँ अपनी नफ़री 32 से बढऩे की उम्मीद कर रही है। इलाक़े में पंचमसाली आन्दोलन ने भी हवा बदली है। ऊपर से दो बड़े लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी उससे जुड़ चुके हैं। यदि इस बार कांग्रेस यहाँ अपनी सीटों का आँकड़ा 60 तक पहुँचा पाती है, तो राज्य में उसके लिए सरकार बनाना बहुत आसान हो जाएगा।

जातिगत समीकरण के हिसाब से कांग्रेस को यहाँ अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ख़डग़े, जो दलित समुदाय के नेता हैं; से लाभ मिल सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी दावा कर चुके हैं कि कांग्रेस कर्नाटक में 150 सीटों को पार कर जाएगी। दोनों बड़े दलों के लिए बेलागवी ज़िला सबसे ज़्यादा अहम है, जहाँ 18 सीटें हैं। भाजपा 2018 में यहाँ 13 सीटें जीत गयी थी, जबकि कांग्रेस को पाँच ही मिली थीं। कांग्रेस इस बार 12-13 सीट जीतने की उम्मीद लगाये है।

जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जो व्यवहार लिंगायत नेताओं जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी के साथ किया है, उसकी उसे बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है। लिंगायत वोट 30 फ़ीसदी भी छिटका, तो भाजपा को लेने-के-देने पड़ जाएँगे।

कांग्रेस वैसे भी इस कर्नाटक लाभ लेने की कोशिश कर रही है। स्थानीय लिंगायत नेता आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा लिंगायत नेताओं का इस्तेमाल करती है और फिर उन्हें अपमानित कर किनारे कर देती है। उन्हें यह भी लगता है कि भाजपा का असली एजेंडा हिंदुत्व का है और समुदायों को वह सिर्फ़ इस्तेमाल भर करती है। उनके मुताबिक, ग्रामीण इलाक़ों में भाजपा के ख़िलाफ़ माहौल है और भाजपा की सिर्फ़ मोदी की छवि के सहारे वोट लेने की कोशिश सफल नहीं होगी।

क्या कहते हैं सर्वे?

अगर चुनावी सर्वे देखें, तो लोक पोल के ओपिनियन पोल के मुताबिक, कर्नाटक के कित्तूर क्षेत्र में भाजपा 21-23, कांग्रेस 26-28 और जेडीएस को 0-1 सीटों पर मज़बूत उपस्थिति बनाये रखने की उम्मीद है। यह सर्वे कल्याण कर्नाटक क्षेत्र में कांग्रेस को 27-30 जबकि भाजपा को 8-11 और जेडीएस को को 0-2 सीटें दे रहे हैं। उधर बेंगलूरु में कांग्रेस को 22-24, भाजपा को 9-11 और जेडीएस को 1-4 वोट मिलने का अनुमान सर्वे में जताया गया है। उधर तटीय कर्नाटक में भाजपा 14-16 सीटों, जबकि कांग्रेस 8-10, जबकि जेडीएस को 0-1 सीटों पर मज़बूत बतायी जा रही है। मध्य कर्नाटक में भाजपा 10-12, कांग्रेस 9-11 और जेडीएस 0-1 सीट पर सर्वे के मुताबिक मज़बूत है।

इस सर्वे के मुताबिक, ओल्ड मैसूर क्षेत्र में भाजपा को 9-11 सीटें जीत सकती है, जबकि कांग्रेस को अधिकतम 27-30 सीटें और जेडीएस को 20-22 सीटें मिलने का अनुमान है। मध्य कर्नाटक को इस सर्वे में भाजपा की कमज़ोर कड़ी बताया गया है, जहाँ 2018 के चुनाव में जेडीएस ने 27, जबकि कांग्रेस ने 17 और भाजपा ने 11 सीटें जीती थीं। इस सर्वे में दावा किया गया है कि कांग्रेस राज्य में बहुमत पा लेगी। हालाँकि एक और सर्वे, जिसे ‘एशियानेट न्यूज नेटवर्क’ और ‘जन की बात’ ने किया; के मुताबिक भाजपा तटीय कर्नाटक में मज़बूत है।

हालाँकि मध्य कर्नाटक में वोटों का एक बड़ा हिस्सा वह गँवा सकती है। उसके मुताबिक, पुराना मैसूर क्षेत्र में 12 भाजपा, 23 कांग्रेस, 22 जेडीएस जीतेगी। बेंगलूरु में भाजपा 15, कांग्रेस 14 और जेडीएस 4, मध्य कर्नाटक में भाजपा 13, कांग्रेस 12, जेडीएस 1, हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में भाजपा 16, कांग्रेस 23, जेडीएस एक, मुंबई-कर्नाटक में भाजपा 31, कांग्रेस 19, जेडीएस 0, जबकि तटीय कर्नाटक में भाजपा 16, कांग्रेस 3 सीटें जीतेगी, जबकि जेडीएस 0 पर रहेगी। इस सर्वे के मुताबिक, राज्य में भाजपा सबसे बड़ा दल रहेगी और कांग्रेस दूसरे नंबर पर रहेगी।

प्रमुख उम्मीदवार

भाजपा : कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई शिगगांव सीट, दिग्गज नेता बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे बी.वाई. विजयेंद्र शिकारीपुरा, जर्नादन रेड्डी के भाई सोमशेखर रेड्डी और करुणाकर रेड्डी बेल्लारी और हरपनहल्ली, दिवंगत लिंगायत नेता उमेश कट्टी के  बेटे निखिल कट्टी हुक्केरी और भाई रमेश कट्टी चिक्कोड़ी-सादलगा, सांसद संगमा की बहू मंजुला अमरीष कोप्पल, मंत्री शशिकला जॉली, जिनके पति सांसद हैं; निप्पणी सीट से मैदान में हैं। वहीं मंत्री आनंद सिंह और उनके भतीजे टी.एच. सुरेश बाबू भी प्रमुख उम्मीदवारों में शामिल हैं।

कांग्रेस : पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र वरुणा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ख़डग़े के बेटे प्रियांक ख़डग़े चित्तपुर (एससी), कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार के भाई डी.के. सुरेश बेंगलूरु ग्रामीण, लिंगायतों के लोकप्रिय नेता शामनुरु शिवशंकरप्पा दावणगेरे दक्षिण, शामनुरु शिवशंकरप्पा के बेटे एसएस मल्लिकार्जुन दावणगेरे उत्तर, देवनहल्ली (एससी) सीट से उम्मीदवार के.एच. मुनियप्पपा की बेटी रूपकला एम. कोलार गोल्ड फील्ड (एससी) सीट से टिकट दिया गया है, वहीं पूर्व मंत्री रामलिंगा रेड्डी और उनकी विधायक बेटी सौम्या रेड्डी भी मैदान में हैं, जबकि एम. कृष्णप्पा को विजयनगर और उनके बेटे प्रियकृष्ण को गोविंदराज नगर सीट से मैदान में उतारा है। भाजपा से आये पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार को कांग्रेस ने हुबली-धारवाड़ केंद्रीय, जबकि लक्ष्मण सावदी को उनकी अथानी सीट से टिकट दिया है।

जेडीएस : पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के बेटे पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी चन्नापटना, कुमारस्वामी के बेटे निखिल देवगौड़ा, एच.डी. देवेगौड़ा के दूसरे बेटे एच.डी. रेवन्ना, हासन सीट से स्वरूप प्रकाश, जीटी देवगौड़ा को चामुंडेश्वरी सीट और उनके बेटे हरीश गौड़ा को पार्टी ने मैदान में उतारा है। जेडीएस के बड़े उम्मीदवारों में ज़्यादातर देवेगौड़ा परिवार के सदस्य ही हैं।

“प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही जो वादे पार्टी ने किये हैं, उनको पूरा करने के लिए क़दम उठाये जाएँगे। भाजपा की सरकार हिंदुस्तान में सबसे भ्रष्ट सरकार है, जो हर काम का 40 फ़ीसदी कमीशन लेती है। सवाल पूछने पर मेरी सांसदी छीन ली गयी। लेकिन मैं अब भी पूछ रहा हूँ कि प्रधानमंत्री मोदी और अडानी का क्या रिश्ता है?”

राहुल गाँधी

(एक चुनावी सभा में)

“कांग्रेस सत्ता में आयी तो दंगे होंगे। कांग्रेस को वोट देना बेकार होगा। इससे पूरे राज्य में साम्प्रदायिक हिंसा और दंगे होंगे। इससे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होगा और कोई विकास नहीं होगा।’’

अमित शाह

(एक चुनावी रैली में)