गिलानी के इस्तीफे से कश्मीर में अलगाववादी मुहिम को झटका

कश्मीर में 30 जून को एक आश्चर्यचकित करने वाली घटना हुई। दशकों से सूबे में अलगाववादी मुहिम के अगुआ रहे शीर्ष हुॢरयत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने संगठन के अपने धड़े से इस्तीफा दे दिया। यह संगठन उन्होंने ही 2003 में स्थापित किया था, जिसने उन्हें उसी दिन अपना आजीवन अध्यक्ष चुन लिया था। गिलानी के इस्तीफे ने अब सवालों का पिटारा खोल दिया है।

गिलानी ने पिछले साल अनुच्छेद-370 के निरस्तीकरण के मद्देनज़र न केवल कुछ अन्य नेताओं को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन न करने का दोषी ठहराया, बल्कि हुॢरयत के पाकिस्तान चैप्टर के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाये हैं।

गिलानी ने अपने सहयोगियों को लिखे पत्र में कहा कि जब नई दिल्ली ने जम्मू और कश्मीर को अपने संघ में मिला लिया और इसे दो भागों में विभाजित किया, तो हमारे जो नेता जेलों में नहीं थे; उनसे लोगों का मार्गदर्शन करने और नेतृत्व करने की उम्मीद थी। मैंने आपको खोजा, संदेशों के माध्यम से सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ। आप नहीं मिल सके।

अपने गुट के पाकिस्तानी चैप्टर पर गिलानी ने अनुशासनहीनता, वित्तीय अनियमितताओं और संगठन का नुकसान करने का आरोप लगाया। गिलानी ने कहा कि  आज़ाद कश्मीर (पीओके) शाखा केवल एक प्रतिनिधि मंच है। इसमें किसी एक व्यक्ति के पास या सामूहिक रूप से फैसला करने की शक्ति नहीं है। लेकिन पिछले दो साल में हमें मंच के बारे में कई शिकायतें मिली हैं। नेताओं ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया है। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल सत्ता के गलियारों तक पहुँच के लिए किया है और वे वास्तव में सरकार में भाग लेते हैं। इसके अलावा अंदरूनी कलह में उनकी भागीदारी और उनका आचरण गम्भीर बहस का विषय रहे हैं।

गिलानी के इस्तीफे से अलगाववादी हलकों में भूचाल आ गया है। इससे लोगों में यह जानने की उत्सुकता पैदा हुई है कि अपने पत्र में गिलानी ने जिन कारणों का उल्लेख किया है, उसके अलावा और क्या कारण हैं। एक थ्योरी यह है कि पिछले एक साल में गिलानी की हुॢरयत के अपने धड़े पर पकड़ कमज़ोर हुई है, और इसका कारण उनका कमज़ोर होते स्वास्थ्य से लगातार जूझना है।

हालाँकि, उनके इस्तीफे का एक बड़ा कारण हाल ही में हुई हुॢरयत कॉन्फ्रेंस की सलाहकार समिति की बैठक है, जिससे उन्हें दरकिनार कर दिया गया था। गौरतलब है कि बैठक में गिलानी का सबसे करीबी विश्वासपात्र अशरफ सेहराई भी शामिल था, जिसका आतंकवादी बेटा जुनैद सेहराई हाल ही में श्रीनगर में एक मुठभेड़ में मारा गया था। पाकिस्तान में भी, गिलानी का सबसे खास आदमी सैयद अब्दुल्ला गिलानी हुॢरयत के पीओके चैप्टर के नेता के रूप में दरकिनार कर दिया गया है। गिलानी ने इसे हुॢरयत के अध्यक्ष के रूप में अपना अपमान माना है और इसलिए इस्तीफा देने का उनका फैसला सामने आया है। गिलानी के हुॢरयत की राजनीति से बाहर होने का कितना महत्त्व है, यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने इस घटना पर लगातार तीन ट्वीट किये।

हालाँकि हुॢरयत ने गिलानी के इस कदम पर खुद चुप्पी साध ली है। साथ ही इस इस्तीफे ने हुॢरयत के सामने एक गम्भीर चुनौती भी पैदा की है। गिलानी के खुद को संगठन से अलग करने के साथ ही हुॢरयत को उनकी अनुपस्थिति में नेतृत्व की विश्वसनीयता का संकट झेलना होगा। ज़ाहिर है कि उसे नया नेता चुनना होगा। इसके अलावा, गिलानी के अनुच्छेद-370 हटाने के बाद की अवधि में संगठन में भ्रष्टाचार के आरोप और नेतृत्व त्याग भी हुॢरयत को परेशान करेंगे।

हुॢरयत नेता के इस्तीफे ने कई सवाल खड़े किये हैं। कश्मीर के लिहाज़ से एक बहुत महत्त्वपूर्ण समय में गिलानी का इस्तीफा चरम कदम है। इसलिए यहाँ जवाबों से ज़्यादा सवाल हैं। कई लोगों ने उनके इस्तीफे वाले पत्र की प्रमाणिकता पर शंका भी ज़ाहिर की है, और इसका कारण वह यह बताते हैं कि गिलानी बहुत बीमार हैं और इस्तीफे जैसे बड़े फैसले के बारे में सोचने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन सार्वजनिक रूप से हुॢरयत या उनके परिवार से किसी ने भी इस्तीफे को चुनौती नहीं दी है।

इसके अलावा पत्र में जहाँ गिलानी के अपने ही गुट के घटकों की निंदा के गयी है, वहीं इसमें नरम धड़े के नेता माने जाने वाले मीरवैज उमर फारूक के नेतृत्व वाले समानांतर गुट के नेताओं की आलोचना जैसा कुछ भी नहीं है। हालाँकि गिलानी के इस्तीफे के दो दिन पहले मीरवैज गुट के नेताओं- प्रो. अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन और मसरूर अब्बास अंसारी ने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अनिश्चितता खत्म करने और सूबे की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए कथित कदमों पर रोक लगाने पर चर्चा के लिए एक बैठक की। उन्होंने मीरवैज की घर में ही नज़रबन्दी से रिहा करने की भी माँग की। 05 अगस्त के भारत सरकार के कदम के बाद हुॢरयत के मीरवैज फारूक धड़े की ओर से यह पहला बयान था और लोगों ने गिलानी के इस्तीफे के लिए इसे भी एक कारण ठहराया।

हालाँकि घाटी में अलगाववादी राजनीति में वरिष्ठता और राजनीतिक वज़न दोनों के लिहाज़ से गिलानी निश्चित ही पहले नम्बर पर आते हैं; लेकिन उनके इस्तीफे का असर सिर्फ उनके हुॢरयत से बाहर जाने तक ही सीमित रहने वाला नहीं है।