क्या भरोसा, अब नहीं सुलगेगी दिल्ली!

कहा जाता है कि दिल्ली में कुछ भी हो, उसका असर पूरे देश में दिखाई देता है। दिल्ली जब दंगे की आग में जल रही थी, तो पूरा देश संवेदनशील था और देश के लोग परेशान-हैरान थे, जिसकी दहशत कम-से-कम दिल्ली के लोगों के मन में तो आज भी है। सरकार, पुलिस प्रशासन आश्वासन दे रहे हैं कि अब सब शान्त है; किसी को भी डरने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन क्या भरोसा कि दिल्ली अब नहीं सुलगेगी!

यह बात आपको अचम्भित ज़रूर करेगी, लेकिन यह बात मैं बहुत सोच-समझकर कह पाने की हिम्मत जुटा पाया हूँ। इसका पहला कारण यह है कि दिल्ली में दंगे की अफवाहें दंगे के बाद भी भी उड़ती रही हैं। यह अलग बात है कि दंगों की अफवाह फैलाने वाले 24 आरोपियों को पुलिस ने 2 मार्च तक गिरफ्तार कर लिया था। दूसरा कारण यह है कि अभी भी सभी दंगाई पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े हैं। न ही सरकार का पुलिस पर दंगाइयों को पकडऩे के लिए कोई बड़ा दबाव दिख रहा है। तीसरा कारण यह है कि दंगा भड़काने वाले कई लोगों के िखलाफ तो एफआईआर तक नहीं हुई है। इनमें ज़्यादातर लोग सियासत से जुड़े हैं, जिन पर पुलिस हाथ डालने से भी कतरा रही है। चौथा कारण है, दंगा भड़काने वालों के िखलाफ कार्रवाई करने का आदेश देने वाले जज का रातोंरात ट्रांसफर हो जाता है। पाँचवाँ कारण है, अब भी सोशल मीडिया पर अनेक ऐसे वीडियो आ रहे हैं, जिनमें लोग हथियार लहराकर दूसरे धर्म के लोगों को धमकियाँ दे रहे हैं और उन लोगों पर कोई भी कार्रवाई नहीं हो रही है। यह अलग बात है कि कुछ लोगों पर कार्रवाई की गयी है, लेकिन उसमें धार्मिक विद्वेष की बू भी आ रही है। इसकी वास्तविकता यह है कि दिल्ली में जो साहिब-ए-मसनद हैं, वे चाहते हैं कि सत्ता का सुख मरते दम तक उनके लिए ही रहे, फिर चाहे इसके लिए जो भी करना पड़े। लेकिन ये साहिब-ए-मसनद यह बात भूल बैठे हैं कि गरिमामयी पदों पर आसीन होने के बावजूद उन पर से पूरे देश की अवाम का भरोसा उठता जा रहा है। इसकी कई वजहें हैं, जो न केवल जायज़ हैं, बल्कि स्वभाविक भी हैं। इतिहास गवाह है कि जब-जब सियासी लोग केवल स्वहित की सोचने लगते हैं, अवाम उनके लिए इतनी गौड़ हो जाती है कि आम लोग उन्हें कीड़े-मकोड़े से ज़्यादा कुछ नहीं दिखते। यहीं से सियासत मर्यादाओं का उल्लंघन करती है और तानाशाही शासन की शुरुआत होती है। दिल्ली में इसी तानाशाही शासन की एक झलक प्रस्तुत की गयी है। इसमें कोई हैरत नहीं कि जब चुनाव जीतने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, तब यह एक बौखलाहट ही थी कि गोली मारो जैसे बयान देकर सनकी भीड़ को उकसाया गया। लेकिन सियासी लोग यह भूल गये कि दिल्ली दंगों का जो असर देश के तमाम हिस्सों पर पड़ा है, या कहें कि इस आग की जो चिंगारियाँ देश के दूसरे हिस्सों में छिटककर गिरी हैं, उनसे कभी भी कहीं भी हिंसा की आग भड़क सकती है। दिल्ली में भी अब कभी दंगे नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं। क्योंकि अगर सरकार सभी दंगाइयों के िखलाफ कार्रवाई करती, तब यह भरोसा बढ़ता कि दिल्ली में दंगे नहीं होंगे। दूसरा आम आदमी पार्टी की सरकार ने इस बार दंगाइयों के िखलाफ बोलने से जिस तरह परहेज़ करते हुए पीडि़तों के घावों पर दूर से मरहम लगाने की कोशिश की है, उससे भी दंगाइयों के हौसले बुलंद होने स्वाभाविक हैं। यह अलग बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के दंगों के आरोपी निगम पार्षद ताहिर हुसैन को बर्खास्त करके सज़ा देने की इल्तिजा की।

पूरा देश कर रहा सवाल

वर्तमान सरकार की यह बड़ी कमी है कि वह सवालों के जवाब नहीं देती। सवाल करने वालों को देशद्रोही तक कह दिया जाता है। किसी गलत काम का खुलासा करने वाले पत्रकारों पर हमले हो जाते हैं और सीधे-सादे लोगों को बिना खता के आरोप लगाकर पीट दिया जाता है- कहीं तथाकथित उपद्रवी भीड़ के द्वारा, तो कहीं पुलिस के ही द्वारा। दिल्ली दंगों को लेकर भारत सरकार ने अब भी एक चुप्पी साधी हुई है। पूरा देश सवाल कर रहा है। दिल्ली दंगों के बाद सोनिया गाँधी की अगुवाई में कांग्रेस नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलकर विरोध भी जताया और गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा भी माँगा। लेकिन उसका भी असर न तो सरकार पर हुआ और न ही अमित शाह के कान पर जूँ रेंगी। न ही उन्होंने विपक्ष को कोई तरजीह दी। राष्ट्रपति भी खामोश रहे। कपिल मिश्रा को वाई प्लस सिक्योरिटी दे दी गयी। क्या इससे दंगा करने वालों का मनोबल नहीं बढ़ेगा? क्या आने वाले समय में सियासी लोग और उत्तेजक और भड़काऊ बयान देने की ज़ुर्रत नहीं करेंगे? यही बात है कि पूरी दुनिया कह रही है कि दंगा भड़काने या उत्तेजक बयानबाज़ी करने वालों के साथ एनडीए सरकार सीधे-सीधे खड़ी है। संदेश भी यही जाता है। दृश्य साफ है कि सरकार उन लोगों पर कार्रवाई नहीं करना चाहती, जो सरकार के पक्ष में हैं। चाहे फिर वो आपराधिक पृष्ठभूमि के ही क्यों न हों। अगर ऐसा है, तो पूर्ण बहुमत वाली सरकार पर विपक्षी दलों के दबाव का कोई असर न होना कोई बड़ी बात नहीं और यह असर तब तक नहीं होगा, जब तक कि जनता चुनाव में इसका जवाब नहीं देगी। अन्यथा निरंकुश होती सरकार लगातार और निरंकुश होती जाएगी।

ट्रंप के आने पर ही क्यों हुए दंगे?

पूरी दुनिया जानती है कि ट्रंप किस तरह से इस्लामिक देशों के िखलाफ रहे हैं। उन्होंने न केवल आतंकवाद का खात्मा करने के लिए जंग छेड़ी है, बल्कि मुस्लिम समाज के िखलाफ बयान भी दिये हैं। मुसलमानों का विरोध किया है। ऐसे में ट्रंप को मुस्लिमों की यह छवि दिखाना कि वे दुनिया के लिए ही नहीं, भारत के लिए भी सिरदर्द हैं- पाकिस्तान की ओर से भी और आंतरिक स्तर पर भी; कहीं-न-कहीं अमेरिकी राष्ट्रपति की पुचकार पाने की कोशिश लगता है। लेकिन इस सबसे न केवल भारत की छवि दुनिया भर में धूमिल हुई है, बल्कि भारत को बड़ी क्षति भी हुई है। साथ ही ट्रंप पर भी इसका कोई असर नहीं पड़ा। उलटा उन्होंने पाकिस्तान को अमेरिका का दोस्त बताकर साफ संदेश दे दिया कि अमेरिका के लिए पाकिस्तान भारत से किसी भी मायने में कम महत्त्व नहीं रखता। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री को अमेरिकी कूटनीति को और समझने की ज़रूरत तो है ही, इस बात को समझने की भी ज़रूरत है कि घर की इज़्ज़त खराब होने पर बाहर वालों से सम्मान की अपेक्षा करना मूर्खता के सिवाय कुछ और नहीं है।

बिहार, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल भी नहीं सुरक्षित

दिल्ली के बाद अब बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल संवेदनशील प्रदेश के रूप में देखे जा रहे हैं। इसी साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बिहार के बाद उत्तर प्रदेश और उसके बाद पश्चिम बंगाल में चुनाव होंगे। ज़ाहिर है इन प्रदेशों में भी भड़काऊ बयानबाज़ी से सियासी लोग बाज़ नहीं आएँगे। क्योंकि इन प्रदेशों की सुरक्षा व्यवस्था के हालात तो दिल्ली से भी बदतर हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार का माहौल तो पहले से ही खराब माना जाता है। दोनों प्रदेशों में बात-बात पर तनाव, बात-बात पर दंगे, बात-बात पर कत्लेआम के हालात बन जाते हैं। ऐसे में क्या भरोसा किया जा सकता है कि वहाँ दंगे नहीं भड़केंगे? क्या इन प्रदेशों में भी लोग उपद्रव नहीं मचाएँगे? क्या दिल्ली में दंगाइयों पर कार्रवाई में देरी से बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल के अराजक तत्त्वों के हौसले बुलंद नहीं होंगे? उत्तर प्रदेश में जिस तरह सीएए का विरोध करने वालों पर बर्बर पुलिस कार्रवाई हुई है, उससे तो वहाँ के हालात और भी खराब हुए हैं। बिहार भी इस दमन से अछूता नहीं है।

कितना हुआ नुकसान?

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों की जाँच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है। पिछले दिनों लॉ एंड ऑर्डर के स्पेशल कमिश्नर ने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया। अब तक आयी की रिपोर्टों की मानें, तो दंगाइयों ने 287 से अधिक मकानों, 327 से अधिक दुकानों, 424 से अधिक वाहनों, 175 से अधिक रेहडिय़ों-ठेलियों को तहस-नहस कर दिया। यह खुलासा उत्तर-पूर्वी ज़िला प्रशासन की 18 एसडीएम की अगुवाई वाली टीमों के सर्वे की अंतरिम रिपोर्ट और स्थानीय लोगों से बातचीत में हुआ है। हालाँकि, प्रशासन की अंतिम रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। माना जा रहा है कि अभी जलायी गयी सम्पत्तियों की संख्या बढ़ सकती है। 2 मार्च तक के आँकड़े बताते हैं कि इन दंगों में 52 से अधिक मौतें हुई हैं। दर्ज़नों लोग लापता हैं। कई परिवार घरबार छोड़कर चले गये हैं और करोड़ों का नुकसान हुआ है। जाँच में यह बात भी सामने आ रही है कि इस दंगे में दोनों समुदाय के उपद्रवियों ने उत्पाद मचाया है। अभी तक चार दर्ज़न से अधिक के िखलाफ एफआईआर दर्ज हुई हैं और करीब दो दर्जन के िखलाफ एफआईआर और हो सकती है। इसके अलावा 1000 से अधिक सीसीटीवी फुटेज ज़ब्त की गयी हैं। तकरीबन 109 लोगों के गिरफ्तार किये जाने का दावा किया जा रहा है।

दिल्ली सरकार कुल नुकसान का सर्वे करा रही है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि नुकसान का आँकड़ा बढ़ सकता है। दिल्ली सरकार ने पीडि़तों को 38.75 लाख की आर्थिक मदद देने की बात कही है।

700 मीट्रिक टन ईंट-पत्थर!

हैरत की बात है कि पूर्वी नगर निगम ने दंगा प्रभावित क्षेत्र की सड़कों से केवल चार दिन में 700 मीट्रिक टन ईंट-पत्थर और 424 क्षतिग्रस्त एवं जली हुईं गाडिय़ाँ हटाने का दावा किया है। रिपोर्टों की मानें, तो पूर्वी निगम के शाहदरा के नौ थानाक्षेत्र के 15 इलाके दंगे से प्रभावित हुए हैं। यही नहीं, घरों की छतों पर भी पत्थरों के ढेर मिले हैं। मलबा उठाने के लिए पूर्वी नगर निगम ने 200 टिपरों, 80 मिनी ट्रकों के साथ 500 से अधिक कर्मचारियों को लगाया हुआ है। इसके अलावा वॉलेंटियर्स और स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इन इलाकों में सफाई तथा दूसरे कामों में लगी हुई हैं।

घाव भरने में लगेगा समय

दिल्ली के कलेजे पर इन दंगों से ऐसा घाव लगा है, जिसने पूरे देश को एक पीड़ा से गुज़ार दिया है। इस घाव को भरने में सदियाँ लग जाएँगी; वह भी तब, जब सियासत नफरत को हवा न दे। भारत की हिन्दू-मुस्लिम एकता को इन दंगों में जिस तरह खंडित किया गया है, वह नफरत की खाई को इतना गहरा कर गया है कि सदियों तक नासमझ लोग इस खाई में गिरते-लड़ते रह सकते हैं। लेकिन अगर इन लोगों को भाईचारे और मोहब्बत का पाठ पढ़ाया जाए, तो नफरत के इस घाव को काफी हद तक भरा जा सकता है। और देश को पुन: एकता के साथ तरक्की के रास्ते पर ले जाया जा सकता है।