‘हर्पीज और एलर्जी अलग हैं’

मनीषा यादव
मनीषा यादव

मुझे बहुत से पाठकों ने कहा कि आप ‘हर्पीज’ पर लिखें- ‘हर्पीज’ यानी ‘हर्पीज जॉस्टर’, (जैसे गांधीजी बोलो तो लोग यह मान लेते हैं कि महात्मा गांधी.)

पर ‘हर्पीज जॉस्टर’ की बात बताऊंगा तो चिकनपॉक्स की बात भी स्वत: निकलेगी. दोनों ही बीमारियों में बदन पर दाने निकल आते हैं. चिकनपॉक्स में पूरे शरीर पर, ‘हर्पीज’ में शरीर के किसी छोटे से हिस्से पर ही. दोनों ही बीमारियां एक ही तरह के कीटाणु (वायरस) से होती हैं जिसे ‘वेरिसेल्ला-जॉस्टर वायरस’ कहा जाता है. इसे यूं समझें कि वायरस दोनों में वही चिकनपॉक्स वाला ही है पर बीमारियां अलग हैं. कभी यह न समझें कि हर्पीज जॉस्टर चिकनपॉक्स जैसा है. दोनों एकदम अलग बीमारियां हैं. हां, दाने चिकनपॉक्स जैसे ही निकलते हैं. पर दोनों यहीं से एकदम अलग हो जाते हैं. यूं समझें कि यदि आपको बचपन में कभी चिकनपॉक्स हुआ था, या मात्र उस बीमारी से आप एक्सपोज भी हुए थे- तो वर्षों बाद, बल्कि दशकों बाद, कभी आपको हर्पीज जॉस्टर नामक बीमारी हो सकती है. इस बीमारी में होता यह है कि आपके शरीर में तब प्रवेश कर गए चिकनपॉक्स वायरस (वेरिसेल्ला वायरस) चुपके से जाकर आपकी नसों की गांठों में छुप जाते हैं. वहीं वर्षों तक छुपे रहते हैं. फिर एक दिन, उस गांठ से निकलकर, त्वचा के उस पूरे टुकड़े पर छा जाते हैं जिसे यह नस, स्नायुतंत्र तथा सेंसेशनस सप्लाई करती है. त्वचा में पहुंचकर ये उस छोटे से इलाके में चिकनपॉक्स जैसे दाने, पैदा कर देते हैं. चूंकि एक नस में यह बीमारी हुई है तो बेहद दर्द भी होता है.

मरीज मूलत: यही कहता हुआ आता है कि सर देखिए, छाती (या हाथ, पांव, पीठ, नितंब, चेहरे या पांव आदि में कहीं भी) ये दाने निकल आए हैं और बड़ा तेज दर्द भी हो रहा है. मरीज प्राय: समझता है कि किसी एलर्जी की वजह से ये दाने हो गए हैं. वह बताता है कि शायद किसी कीड़े ने काट लिया है. या शायद सोते में मकड़ी दब कर कुचल गई और उसका

द्रव्य निकल कर त्वचा में लग गया, सो यह एलर्जी हो गई है.

याद रहे. यदि शरीर के एक हिस्से में अचानक चिकनपॉक्स जैसे दाने निकल आएं तो यह हर्पीज जॉस्टर हो सकता है. यदि दानों के साथ उस इलाके में तेज जलन जैसा या चमक वाला दर्द भी हो रहा है तो यह हर्पीज हो सकता है. यदि शरीर के एक ही तरफ (बाएं या दाएं दाने आए हों) पर मध्य के हिस्से को पार करके दूसरी तरफ बिल्कुल न हों तब पक्के से यह हर्पीज की बीमारी है. चिकनपॉक्स की भांति इसमें बुखार नहीं होता. फिर यह बच्चों की बीमारी भी नहीं है. प्राय: पांचवें-छठवें दशक के बाद के बुढ़ापे में कदम रखते लोगों या अधेड़ों की बीमारी है. ऐसे दानों को एलर्जी न मानें. फालतू में एलर्जी की दवाई या क्रीम पोतने न बैठ जाएं. यह एकदम अलग ही बीमारी है. इसका इलाज भी एलर्जी से एकदम अलग है. और, खराब बात यह है कि दाने सूख जाने के बाद भी उस इलाके में इतना तेज दर्द बना रह सकता है कि जिंदगी दूभर कर डाले. यदि अधिक उम्र में ‘हर्पीज जॉस्टर’ हो जाए तो इस दर्द के बने रह जाने का डर और ज्यादा रहता है इसे ‘पोस्ट हर्पीटिक न्यूरेल्सिया’ कहते हैं. इस दर्द की कुछ विशिष्ट दवाएं हैं. यह आम दर्द की दवाओं से ठीक नहीं होता. कई बार ये विशिष्ट दवाईयां भी काम नहीं करती हैं. इस न्यूरेल्सिया के कारण कभी-कभी तो लोग आत्महत्या तक कर लेते थे.

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