सृष्टि पर पहरा

kavita-tree-wala
इलेस्ट्रेशन: मनीषा यादव

जड़ों की डगमग खड़ाऊं पहने
वह सामने खड़ा था
सिवान का प्रहरी
जैसे मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस-
एक सूखता हुआ लंबा झरनाठ वृक्ष
जिसके शीर्ष पर हिल रहे
तीन-चार पत्ते

कितना भव्य था
एक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी पर
महज तीन-चार पत्तों का हिलना

उस विकट सुखाड़ में
सृष्टि पर पहरा दे रहे थे
तीन-चार पत्ते

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विद्रोह

आज घर में घुसा
तो वहां अजब दृश्य था
सुनिये- मेरे बिस्तर ने कहा-
यह रहा मेरा इस्तीफ़ा
मैं अपने कपास के भीतर
वापस जाना चाहता हूं

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