जातियों के संघर्ष से फिर सदियों पुरानी स्थिति में पहुँच गया पूर्वोत्तर, केंद्र सरकार पर उठे सवालमणिपुर को विकास और रोज़गार चाहिए था; लेकिन जातीय संघर्ष और सरकार की नाकामी ने इसे फिर दोज़ख़ में धकेल दिया है। ख़ून-ख़राबे और महिलाओं पर अत्याचार ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। नादान बच्चों को माता-पिता के साथ राहत शिविरों में रहना पड़ रहा है। मणिपुर की इस दुरूह स्थिति का देश की छवि पर भी बुरा असर पड़ा है। मणिपुर की जो सच्चाई सामने आ रही है; हक़ीक़त में स्थिति उससे कहीं ज़्यादा भयावह है। राज्य के हालात और कारणों पर बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-
मणिपुर में हिंसा ने राज्य के प्रमुख समुदायों को एक बार फिर संघर्ष के वर्षों पुराने कुएँ में धकेल दिया है। क़रीब सात साल पहले राज्य में शान्ति की उम्मीद जगी थी, जो सही रास्ते पर आगे बढ़ रही थी। हालाँकि अब जो हालात बने हैं, वो राज्य और समुदायों को और भयावह स्थिति की तरफ़ ले जा रहे हैं। मणिपुर की वर्तमान स्थिति एक देश के रूप में भारत के लिए भी गम्भीर संकट की स्थिति है। जिस तरह मणिपुर की आँच पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में पहुँच रही है, उससे इन समुदायों का पूरा सामाजिक ताना-बाना अस्त-व्यस्त होने का गम्भीर ख़तरा पैदा हो गया है। यह स्थिति इसलिए भी ख़तरनाक है; क्योंकि इन समुदायों के बीच संघर्ष कुछ वर्षों नहीं, बल्कि दशकों पुराना है। इसमें कोई शक नहीं कि राज्य ही नहीं केंद्र सरकार भी मणिपुर के मामले को बेहतर तरीक़े से नहीं सँभाल पायी है और उसके क़दमों से पूर्वोत्तर के समुदायों में तो खाई चौड़ी हुई ही है, पड़ोसी चीन को भी भारत के ख़िलाफ़ ज़हर घोलने का अवसर मिल गया है।
मणिपुर और इसके साथ लगते राज्यों में स्थिति फिर सन् 1980 के दशक के आख़िरी हिस्से जैसी हो गयी है। दूर से देखने पर भले यह क़ानून-व्यवस्था की स्थिति लगे; लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह नहीं है। सच यह है कि स्थिति कहीं ज़्यादा चिन्ताजनक है और हालात ज़्यादा ख़राब होते जा रहे हैं। मणिपुर में वास्तव में नागरिक संघर्ष शुरू हो गया है और इसे थमने के लिए केवल प्रार्थना ही की जा सकती है। दिल्ली में सत्ता में बैठी भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य विपक्ष के बीच भले मणिपुर राजनीतिक द्वंद्व का विषय बन गया हो, हालत यह है कि यह रिपोर्ट लिखे जाने तक लोगों को भरोसा दिलाने के लिए देश के प्रधानमंत्री तक राज्य नहीं जा सके थे।
मणिपुर म्यांमार के साथ 398 किलोमीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है, जिसका अधिकांश हिस्सा जंगलों से भरा है। हाल में म्यांमार से घुसपैठियों के मणिपुर में प्रवेश की ख़बरें तेज़ी से आयी हैं। यह इसलिए भी चिन्ताजनक है, क्योंकि पूर्वोत्तर में सक्रिय ज़्यादातर विद्रोही गुटों के प्रशिक्षण केंद्र और छिपने के अड्डे म्यांमार में ही हैं। लिहाज़ा सुरक्षा की दृष्टि से भी यह स्थिति चिन्ता पैदा करती है।
दो कुकी महिलाओं से हुई घटना इतने दिन बाद आम जनता तक पहुँची, जिससे यह साबित होता है कि वहाँ इंटरनेट का बन्द होना कितना नुक़सानदायक है। कुछ संगठन यह आरोप लगा रहे हैं कि इंटरनेट बन्द करने के पीछे सरकार की मंशा हक़ीक़त को छिपाना है, जबकि सरकार कह रही है कि अफ़वाहें न फैलें, इसलिए इंटरनेट बन्द किया गया है। कुकी महिलाओं की घटना का वीडियो जैसे ही सामने आया, इसका असर भारत ही नहीं दुनिया भर में देखा गया। यहाँ तक कि यूरोपीय संसद तक में इस पर चर्चा हुई और मणिपुर की घटनाओं पर ‘गहरी चिन्ता’ जतायी गयी। ज़ाहिर है इन घटनाओं ने दुनिया में भारत की छवि को बट्टा लगाया है। समुदायों के बीच यह असन्तोष गृह मंत्रालय ही नहीं, रक्षा और विदेश मंत्रालयों के लिए चिन्ता का बड़ा कारण है। जब यह संकट गम्भीर होता दिखा तो सरकार ने रक्षा सचिव गिरिधर अरामने को 30 जून को दो दिन के लिए म्यांमार की राजधानी नेय पी भेजा। अरामने ने अपनी यात्रा के दौरान म्यांमार के सैन्य शासक, जनरल मिन-आंग-ह्लाइंग और रक्षा मंत्री, जनरल (रिटायर्ड) मैया-तुन-ऊ से मुलाक़ात के दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों में शान्ति, घुसपैठ और मादक पदार्थों की तस्करी जैसे विषयों पर चर्चा की। हालाँकि इसके बाद भी स्थिति में कोई अन्तर नहीं आया, उलटे मणिपुर का असर अब पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी दिखने लगा है।
मणिपुर के हालात कितने ख़राब हैं, यह असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के बयान से ज़ाहिर हो जाता है, जिसमें उन्होंने अपने राज्य के लोगों को मिजोरम न जाने की सलाह दी है, जो मणिपुर की हिंसा के बाद प्रभावित होता दिख रहा है। उन्होंने मिजोरम से आने वाली गाडिय़ों की कड़ाई से जाँच करने का फ़रमान जारी किया, जिससे मिजोरम की सरकार काफ़ी नाराज़ हुई है। असम-मिजोरम सीमा पर किसी अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर की तरह पहरा लगा हुआ है।
चिन्ता की बात
मणिपुर में अशान्ति का दायरा काफ़ी बड़ा है। इसमें सबसे बड़ी चिन्ता चीन की तरफ़ से है, जिसकी मणिपुर कई घटनाओं पर गहरी नज़र है। लद्दाख़ से लेकर अरुणाचल तक में भारत के ख़िलाफ़ साज़िशें रचने वाले चीन का सरकारी मीडिया मणिपुर की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है। यहाँ तक कि मणिपुर की तुलना यूक्रेन से की जा रही है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि म्यांमार पर चीन का ख़ासा प्रभाव है और म्यांमार की सेना (टाटामाडा) पर चीन का प्रभाव माना जाता रहा है। चीन के साथ भारत के रिश्ते पहले ही ख़राब चल रहे हैं। ऐसे में मणिपुर और पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति के बहाने उसे भारत के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का नया मुद्दा मिल गया है।
पूर्वोत्तर पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘हाल के कुछ वर्षों में मणिपुर के पीडि़त लोगों में शान्ति की जो उम्मीद जगी थी, उसे वर्तमान घटनाओं से गहरी चोट पहुँची है। उन्हें लगता था कि वह अब अपने व्यवसायों को जमा पाएँगे; लेकिन स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि इसे सही करने में लम्बा व$क्त लग जाएगा। साथ ही देश और सीमा की सुरक्षा की दृष्टि के लिहाज़ से भी जो हुआ है, वह घातक है; क्योंकि पड़ोसी चीन ऐसी घटनाओं को हवा देता रहा है।’
यह दिलचस्प ही है कि केंद्र सरकार इसे जातीय संघर्ष कह रही है, जबकि मणिपुर के मुख्यमंमत्री बीरेन सिंह इसे आतंकवादी घटनाएँ बता रहे हैं। बीरेन सिंह, जो खुद मणिपुर के बहुमत समुदाय मैतई से सम्बन्ध रखते हैं; पर यह आरोप लग रहे हैं कि वे अन्य समुदायों को आतंकवाद से जोड़ रहे हैं और उनका रवैया पक्षपात पूर्ण है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) अनिल चौहान ने हाल में कहा था- ‘मणिपुर में हो रही हिंसा दो जातियों के बीच टकराव है और क़ानून व्यवस्था की स्थिति है। हम इस समस्या में राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं।’
सीडीएस चौहान का कहना है मणिपुर की हिंसा दो जातियों के बीच टकराव है और क़ानून व्यवस्था की स्थिति है। उन्होंने कहा- ‘हम इस समस्या में राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं। मैं कहना चाहूँगा कि सशस्त्र बलों और असम राइफल्स ने वहाँ एक उत्कृष्ट काम किया है और बड़ी संख्या में जान बचायी है। हालाँकि मणिपुर में चुनौतियाँ गायब नहीं हुई हैं, इसमें कुछ समय लगेगा।’
पूरा पूर्वोत्तर प्रभावित
दो कुकी महिलाओं के साथ दरिंदगी का वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर में तो हालात बिगड़ ही गये, इसका असर पूरे पूर्वोत्तर पर पड़ रहा है। कुकी और मैतई समुदाय एक दूसरे के ख़ून के प्यासे दिख रहे हैं। अभी तक जो ज़मीनी हक़ीक़त सामने आयी है, उससे ज़ाहिर होता है कि मणिपुर में दो कुकी महिलाओं से दरिंदगी की घटना इकलौती घटना नहीं है। आशंका है कि वहाँ ऐसी और घटनाएँ हुई हैं। इनमें महिलाओं से दरिंदगी के अलावा लोगों की हत्याएँ भी शामिल हैं। इंटरनेट पर पाबंदी होने के कारण वहाँ से पूरी ख़बरें बाहर नहीं आ पा रही हैं।
दो समुदायों के बीच नफ़रत की आग सरहदें पार करके दूसरे राज्यों में भी फैल रही है। इनका असर मिजोरम से लेकर मेघालय तक नज़र आने लगा है। मेघालय और मिजोरम में कुकी बहुसंख्यक हैं, जबकि मैतई अल्पसंख्यक। ऐसे में मणिपुर की हिंसा का दबाव मिजोरम में भी दिखा है और वहाँ मैतई समुदाय के लोग भागने को मजबूर हो गये हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक सैंकड़ों परिवार अपने घर-बार छोड़ जान बचाने के लिए मणिपुर भागे हैं।
इसका एक कारण मिजोरम के उग्रवादी समूहों की तरफ़ से मैतई समुदाय को मिली धमकियाँ भी हैं। उधर मिजोरम भी हाई अलर्ट पर रखा गया है। धमकियाँ मिलने के बाद सैकड़ों लोगों ने मिजोरम को छोड़ दिया है। इनमें से काफ़ी मणिपुर, जबकि अन्य असम पहुँचे हैं। यही नहीं, मेघालय तक में कुकी और मैतई लोगों में झड़पें भी हुई हैं।
इसके बाद मेघालय सरकार को मैतई समुदाय की सुरक्षा के लिए क़दम उठाने पड़े। मणिपुर के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों से बड़ी संख्या में पलायन करके लोग मेघालय पहुँचे हैं। मणिपुर में हिंसा बढऩे के बाद जुलाई के तीसरे हफ़्ते में मिजोरम में विद्रोही गुट सक्रिय हो गये। पीस एकॉर्ड एमएनएफ रिटर्नीज एसोसिएशन (पीएएमआरए) नाम के संगठन ने एक बयान जरी करके कहा कि ‘मैतई को अपनी सुरक्षा के लिए मिजोरम छोड़ देना चाहिए, क्योंकि मणिपुर की बर्बर और जघन्य घटनाओं से मिजोरम में स्थिति तनावपूर्ण हुई है।’ इसके बाद माटी समुदाय के लोगों में $खौफ़ पसर गया और आनन-$फानन उनमें मणिपुर भागने की होड़ लग गयी।
यही नहीं, मणिपुर हिंसा के ख़िलाफ़ मिजोरम में हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन किया, जिसमें वहाँ के मुख्यमंत्री जोरमथंगा, उप मुख्यमंत्री तांवलुइया और सभी मंत्रियों और विधायकों ने भी हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन के दौरान मणिपुर की घटनाओं की सख़्त शब्दों में निंदा की गयी। यह लोग हाथों में प्ले-कार्ड थामे थे, जिस पर मणिपुर हिंसा के ख़िलाफ़ नारे लिखे हुए थे। इस प्रदर्शन का मक़सद जो-समुदाय के प्रति एकजुटता जताना था।
जनजातियों का समूह कुकी, $गैर-आदिवासी मैतई और आदिवासी नागाओं के बाद मणिपुर में तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है। जातीय रूप से सम्बन्धित चिन मुख्य रूप से म्यांमार से हैं, जिनमें से कई कथित तौर पर दशकों से मणिपुर में अवैध रूप से बस गये हैं।
विदेश में भी चर्चा
ब्रिटिश सांसद और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रधान मंत्री ऋषि सुनक की विशेष दूत फियोना ब्रूस ने ब्रिटिश संसद में मणिपुर की हिंसा का मुद्दा उठाया। ब्रूस, जो आईआरएफबीए की चेयर पर्सन भी हैं; ने दावा किया कि मणिपुर में हिंसा में सैकड़ों चर्च जला दिये गये हैं। उन्होंने कहा- ‘मणिपुर में हुई हिंसा सोची-समझी साज़िश है। मई के बाद से ही सैकड़ों चर्च जला दिये गये हैं और कई बिलकुल नष्ट कर दिये गये। 100 से अधिक लोग मारे गये हैं और 50,000 से अधिक शरणार्थी हैं। न सिर्फ़ चर्च, बल्कि स्कूलों को भी निशाना बनाया गया। साफ़ है कि ये सब योजना के तहत किया जा रहा है और धर्म इन हमलों के पीछे बड़ा फैक्टर है।’
उधर अमेरिकी के मीडिया संस्थान सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा- ‘मणिपुर के परेशान करने वाला वीडियो सामने आया है, जिसमें भीड़ दो महिलाओं को नग्न करके उनका जुलूस निकाल रही है। भले ही ये घटना 4 मई की हो; लेकिन गिरफ्तारियाँ वीडियो के सामने आने के बाद ही हुई हैं। हिंसा शुरू होने के बाद मणिपुर में इंटरनेट बन्द कर दिया गया था।’
इसके अलावा न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा- ‘मणिपुर में यौन हिंसा की घटना को सामने आने में दो महीनों का समय लगा, जिसकी एक वजह राज्य में इंटरनेट बन्द होना भी है। हिंसक नस्लीय झड़पों के दौरान जानकारी के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट बन्द करना सरकार की रणनीति बनता जा रहा है।’
इससे पहले दो कुकी महिलाओं से दरिंदगी का वीडियो सामने आने के बाद इम्फाल घाटी स्थित नागरिक समाज संगठनों के एक प्रमुख निकाय ने यूरोपीय संसद को चिट्ठी लिखी। इसमें उसने कहा- ‘मणिपुर को आप्रवासी चिन-कुकी नार्को-आतंकवादियों और स्वदेशी मैतई के बीच हिंसा का हवाला देते हुए नशीली दवाओं के व्यापार का नया गोल्डन ट्रायंगल (स्वर्ण त्रिभुज) न बनने दें।’
बता दें गोल्डन ट्रायंगल चीन, लाओस, म्यांमार और थाईलैंड तक फैले दुनिया के सबसे बड़े पोस्त-उत्पादक और नशीली दवाओं की तस्करी के गलियारों में से एक को संदर्भित करता है। यह पत्र, जो 23 जुलाई को स्ट्रासबर्ग स्थित ईपी के अध्यक्ष रोबर्टा मेत्सोला को लिखा गया था; में मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (सीओसीओएमआई) ने यूरोपीय संघ की मणिपुर पर प्रस्ताव पारित करने के लिए सराहना की।
संगठन ने दावा किया कि 1.7 लाख मैतई लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं, जो मणिपुर में कुल कुकी ईसाई आबादी का 35 फ़ीसदी हैं। पत्र में आरोप लगाया गया कि ईसाइयों सहित 100 फ़ीसदी मैतई लोगों को ऐसे ज़िलों में ईसाई चिन-कुकी-बहुल क्षेत्रों चुराचांदपुर और कांगपोकपी से जातीय रूप से साफ़ कर दिया गया है।
भारतीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए संगठन ने कहा कि मुख्य रूप से ईसाई चिन-कुकी जनजातियों से सम्बन्धित ‘नार्को-आतंकवादियों’ ने 1,25,000 एकड़ वन क्षेत्रों पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा करके और परिवर्तित करके मणिपुर के अंदर 500-650 बिलियन रुपये की अर्थव्यवस्था स्थापित की है। इसमें कहा गया है कि भारत-म्यांमार सीमा पर ड्रग कार्टेल ने अवैध कारोबार चलाने के लिए सशस्त्र समूह भी स्थापित किये हैं। सीओसीओएमआई के अध्यक्ष निंगोम्बा ने आशा व्यक्त की कि यूरोपीय संघ अपनी ज़िम्मेदारी निभाएगा और मौज़ूदा संकट को हल करने में गैर-पक्षपातपूर्ण सक्रिय भूमिका निभाएगा और एक नये स्वर्ण त्रिभुज क्षेत्र, विशेषकर मणिपुर में उभरने नहीं देगा।
संसद में हंगामा
मणिपुर का मुद्दा देश की संसद में ख़ूब गूँज रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने मणिपुर मुद्दे पर संसद में प्रधानमंत्री मोदी के बयान और पिछले ढाई महीने से दो समुदायों के बीच चल रही जातीय हिंसा पर लगातार संसद में चर्चा की माँग की है। हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हुई है। विपक्ष की एकजुटता के बावजूद सत्तापक्ष झुकने को तैयार नहीं।