धारा के चिंतन का क्षेत्र समाज के विभिन्न वर्ग हैं और अभिव्यक्ति के लिए उन्होंने ज़रिया चुना है – वृत्तचित्र। इन वृत्तचित्रों में उनकी कहानियां बोलती सी प्रतीत होती हैं। सन 2017 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें अपनी उपलब्धियों के लिए सेंटर फॉर वुमनस स्टडीज एंड डेवलपमेंट की तरफ से ”वूमन अचीवर अवार्ड” मिल चुका है।
बेशक वे पिछले कई वर्षों से अपने काम में नाम कमा रही हैं लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा पहचान मिली 2016 में उनके किन्नरों पर बनाये वृत्त चित्र से। इस वृत्त चित्र की राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई। एक नए विषय को लेकर धारा सरस्वती का प्रयास सचमुच सराहनीय था। धारा शिमला में दूरदर्शन से जुड़ी हैं और किन्नरों के जीवन पर उनका वृतचित्र ‘मैं कौन हूं ‘ समाज के इस वर्ग का दर्द नई संवेदना के साथ सामने लाता है। वृतचित्र ‘मैं कौन हूं’ में किन्नर जीवन का बहुत निकट से चित्रण किया गया है। कुछ वैसे ही मानो किसी गूंगे को जुबां दे दी गई हो।
चंडीगढ़ में धारा सरस्वती के वृतचित्र का ‘कंसोरटियम फार कम्युनिकेशन ‘ के फेस्टिवल में प्रदर्शन हो चुका है। इससे उन्हें अपनी बात एक बड़े वर्ग तक पहुंचाने का अवसर मिला। जब उनसे पूछा गया कि इस तरह के बिलकुल अलग विषय पर वृतचित्र का उन्हें विचार कैसे आया तो धारा ने कहा कि जब वह स्कूल में पढ़ती थीं तब अकसर सोचती थीं कि हमारा तो परिवार है। हमें सोशल स्पोर्ट है। फिर भी इतनी दिक्कतें हमारे जीवन में आती हैं। उन (किन्नर) का तो कोई भी नहीं। ‘जब अवसर मिला तो इस पर वृतचित्र बनाने का फैसला किया ताकि लोग भी समाज के इस वर्ग की संवेदना को समझ सकें।
छोटे पर्दे पर किन्नर जीवन को लाने की उनकी मेहनत निश्चित रूप से सफल रही है। यह उनका वृतचित्र देखने से ही पता चल जाता है। चंडीगढ़ के फेस्टिवल में इसे काफी सराहना मिली। न केवल उसका फिल्मांकन बेहतर तरीके से हुआ है बल्कि उसमें किन्नर विषय वस्तु को भी बहुत गहराई से उकेरा गया है।
‘मैं कौन हूं’ में किन्नर जीवन का बहुत निकट से चित्रण किया गया है। भारी मेकअप, शादी-विवाह और जन्मदिन मना रहे परिवारों को खोज रही आंखों के पीछे क्या दर्द छिपा है, धारा सरस्वती इसे अपने वृत्तचित्र में सामने लाने में सफल रही हैं। धारा सरस्वती बताती हैं कि इस वर्ग की कहानी जानने के लिए कोई हफ्ता भर वह उनके बीच रहीं। उनका जीवन निकट से जाना। तब उन्होंने जाना कि जो किन्नर हमारे खुशी के मौकों पर हमारे मन को अपने विशेष अंदाज से पल भर में हंसी-ठिठोली से भर देते हैं, वास्तव में उनके अपने जीवन कितनी पीड़ा और अकेलापन है।
धारा बताती हैं कि हम कैसे उनकी मदद कर सकते हैं, कैसे उनकी आवाज बन सकते हैं, उनके चेहरे पर कैसे मुस्कान ला सकते हैं, यही मैं सोचा करती थी। उनका कहना है कि जीवन के संघर्ष को जानना है तो किन्नर को नजदीक से जानना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उन्हें वृतचित्र बनाते हुए कोई मुश्किल नहीं आई। ‘समाज की आम सोच के विपरीत किन्नर बहुत मृदुभाषी और खुश तबीयत के लोग हैं। शायद अपनी पीड़ा छिपाने का इससे बेहतर और कोई तरीका भी उनके पास नहीं। धारा के मुताबिक वृतचित्र बनाने के पीछे एक और मकसद यह है कि हम किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में ला सकें। उन्होंने कहा कि वह इतने मजबूत हैं कि तमाम विषमताओं और अकेलेपन को बहुत हिम्मत से झेलते हैं। ‘उनका कोई परिवार नहीं। कोई मां-बाप नहीं, कोई रिश्तेदार नहीं। कोई सामाजिक ताना-बाना नहीं, लेकिन फिर भी जिंदा हैंं। उनकी इस जीवटता को सलाम करने का मन करता है। धारा का कहना है कि किन्नर बहुत बहादुर हैं और पूरे समज के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकते हैं। वे चाहती हैं कि कोशिश होनी चाहिए समाज के इस वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि जब वह उनसे मिलीं और उनसे बात करती थीं तो वे रो पड़ते थे। कई बार तो मुझे उनके आंसू पोंछने पड़े।