मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अभूतपूर्व जीत के एक दिन बाद यानी 10 दिसंबर को प्रदेश के सभी मुख्य अखबारों के पहले पन्ने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक बड़ा विज्ञापन छपा. इसमें शिवराज की आंखों में जीत की चमक तो थी ही, चेहरे पर आत्मविश्वास की हल्की मुसकान भी थी. पर उनका सिर गर्व से तनने की बजाय विनम्रता से झुका हुआ था. और उनकी इस फोटो के ऊपर बड़े अक्षरों में साफ लिखा था- ‘हम नतमस्तक हैं.’ दरअसल शिवराज और उनके योजनाकारों ने उनकी विनम्रता और सहजता की जो छवि गढ़ी है वही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है.
मप्र विधानसभा के नतीजों से यह जाहिर है कि शिवराज ने सूबे के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है. मप्र में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले वे एकमात्र राजनेता बन गए हैं. दूसरी अहम बात यह है कि मप्र चुनाव में गए सभी राज्यों में सर्वाधिक सीटों (230) वाला प्रदेश है और यहां शिवराज के नेतृत्व में भाजपा ने बीते चुनाव के मुकाबले 22 सीटों का इजाफा करते हुए कुल 165 सीटें जीती हैं.
भाजपा की इस धमाकेदार जीत का श्रेय शिवराज को ही जाता है. वजह यह है कि यहां भाजपा की हार और जीत का पूरा दारोमदार सिर्फ और सिर्फ शिवराज के कंधों पर ही था. उन्होंने अपनी लोकप्रिय योजनाओं और मिलनसारिता के दम पर अब अपना एक अलग वोट बंैक बना लिया है जिसे अपनी तरफ खींचने की कोई रणनीति कांग्रेस के पास नहीं थी.
नवंबर, 1952 में मप्र के गठन के बाद 1958, 62 और 67 के चुनाव यहां ऐसे रहे जब कांग्रेस लगातार जीती थी. लेकिन तब कांग्रेस लगभग चुनौती-विहीन थी. आज समय का पहिया ऐसा घूमा है कि 2003 से 2013 तक लगातार तीन बार भाजपा की ही सरकार बनी है और कांग्रेस अब सिर्फ 58 सीटों पर सिमटकर कोई चुनौती देती नहीं दिखती. इतिहास गवाह है कि 2003 से 2008 के बीच मप्र ने उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के रूप में तीन-तीन भाजपाई मुख्यमंत्रियों को देखा-परखा. किंतु नवंबर, 2005 में सूबे की बागडोर संभालने के बाद शिवराज ने इस मिथक को चूर-चूर कर डाला कि मप्र में कोई भी गैर-कांग्रेसी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकती. काबिलेगौर है कि एक दशक पहले तक मप्र में सत्ता की चाबी एक से साढ़े तीन प्रतिशत मतों के मामूली बढ़त के अंतर से निकलती थी, लेकिन 2013 में यह रुझान उलट गया है. भाजपा ने पिछली बार के मुकाबले इस बार अपने मतों में साढ़े आठ प्रतिशत का इजाफा किया है. यही वजह है कि वह कांग्रेस को 107 सीटों के बड़े अंतर से हराने में कामयाब रही.
शिवराज की कामयाबी के पीछे उनकी सामाजिक सरोकार वाली उन योजनाओं का बड़ा महत्व है जिनमें जाति, धर्म का भेदभाव नहीं है. लाड़ली लक्ष्मी और तीर्थ दर्शन जैसी योजनाओं में उन्होंने सूबे के अल्पसंख्यकों को भी बराबरी का भागीदार बनाया. भोपाल, इंदौर और बुरहानपुर जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा की भारी मतों से जीत बताती है कि शिवराज ने नरेंद्र मोदी के उलट मप्र के मुसलमानों में भरोसा कायम करके उनका दिल भी जीता है. चुनाव विश्लेषक विनय दीक्षित के मुताबिक, ‘मोदी के उलट शिवराज ने सहज, सरल प्रक्रिया के तहत ही प्रशासन से भी सहयोग लेनी की कोशिश की है.’ चौहान ने मुख्यमंत्री आवास पर गरीब समुदाय के विभिन्न वर्गों की जो पंचायतें लगाईं वे उनके लिए वरदान सिद्ध हुईं. इनमें उन्होंने पहली बार घरेलू कामगारों, बुनकरों और चर्मकारों जैसे थोकबंद मतदाता समूहों की समस्याओं को लेकर जो संवाद किया उससे उनका समाज में राजनीतिक प्रभाव और प्रभुत्व स्थापित हुआ.