शिकागो से शिकोहाबाद तक…

फेसबुक की सबसे बड़ी सफलता है कि इसमें ‘सभी कुछ’ है. यह एक सर्च इंजन है, लोगों को जोड़ने वाला नेटवर्क है, डेटिंग साइट है, फैमिली फोटो एलबम है, एक एड्रेस बुक है, इंस्टेंट चैट है, बर्थडे अलार्म है, नई-नवेली शादी का उद्घोषक है, कॉलेज के दोस्तों की रि-यूनियन है, और एक अखबार है. लेकिन फेसबुक की यही सफलता – सोशल मीडिया की सारी जरूरी चीजों को समाहित कर सभी कुछ एक जगह देना – अब उसे परेशान कर रही है.  मतलब अब ऐसा क्या नया है, जो फेसबुक खुद को प्रासंगिक बनाए  रखने के लिए कर सकता है?

पिछले दो पैराग्राफों के आखिर में किए दो सवालों के जवाब आगे के तीन सवालों में हैं. क्या आने वाले वक्त में फेसबुक अभी की तरह एक ‘सोशल नेटवर्क’ ही रहेगा या एक ‘मीडिया कंपनी’ बनेगा? जिस तरह आज गूगल को लोग एक सर्च इंजन के तौर पर कम और एक बड़ी मीडिया कंपनी के तौर पर ज्यादा जानते हैं, क्या आने वाले दस साल में फेसबुक भी उसी राह पर चलेगा? क्या 2024 का फेसबुक अपने आज के यूजर बेस में एक और अरब लोगों को जोड़ने वाला सोशल नेटवर्क होते हुए भी एक मीडिया कंपनी के तौर पर ज्यादा जाना जाएगा? फेसबुक द्वारा उठाए गए कुछ नए कदम उसकी मीडिया कंपनी की आधारशिला की तरफ ही इशारा करते हैं.

पहला कदम है मोबाइल स्पेस में उसकी बदली हुई रणनीति. आपको आपके फेसबुक मोबाइल पर नए-नए फीचर देने की बजाय फेसबुक अब गूगल जैसी मीडिया कंपनी के तरह अलग-अलग प्रकार के एप बाजार में ला रहा है और उन्हें मोबाइल पर आपके फेसबुक पेज से जोड़ रहा है. जैसे पहले मैसेंजर एेप आया, व्हाट्सएप को टक्कर देने के लिए. उसके बाद स्नैपचैट को टक्कर देने के लिए पोक आया. हालांकि मैसेंजर साधारण निकला और पोक बुरी तरह फ्लॉप रहा, लेकिन इससे 2014 में कई नए एप बाजार में लाने की फेसबुक की स्ट्रैटजी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. और इसी रणनीति के तहत अपनी दसवीं वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले फेसबुक ने ‘पेपर’ नाम का एेप लांच किया. ‘पेपर’ ने ही इस बात को पुख्ता किया है कि आने वाले वक्त में फेसबुक की मंशा खुद को एक मीडिया कंपनी के तौर पर स्थापित करना ही है. किसी भी मीडिया कंपनी के लिए कंटेंट क्रिएट करना एक मुख्य काम होता है. और ‘पेपर’ का कंटेंट सिर्फ यूजर्स से ही नहीं आ रहा. खबर है कि फेसबुक ने इसके कंटेंट को रचने के लिए खास तौर पर एडिटरों की नियुक्ति की है. अभी संपादक आए हैं, हो सकता है कुछ समय बाद फेसबुक लेखकों को नियुक्त करे, और फिर अभिनेताओं को. और इन सभी को साथ लेकर हो सकता है आने वाले समय में फेसबुक टीवी शो भी प्रोड्यूस करे! ये पतंग को कुछ ज्यादा ऊंचा उड़ाना लग सकता है लेकिन कुछ वक्त पहले किसने सोचा था कि अमेजन जैसी विशालतम ई-कॉमर्स कंपनी अपने खुद के टीवी शो और फिल्में बनाएगी?

अगर ऐसा हुआ और फेसबुक कंटेंट रचने लगा तो उसके बाद एपल, गूगल और अमेजन को टक्कर देने के लिए उसे हार्डवेयर के बाजार में भी उतरना होगा. और इसके बाद आपको आपका पन्ना देने वाला एक सोशल नेटवर्क एक विशाल मीडिया कंपनी में तब्दील हो जाएगा, जिसका मुख्य लक्ष्य आज की तरह सिर्फ लोगों को अपने सोशल नेटवर्क से जोड़ना नहीं रह जाएगा. 2024 का फेसबुक ऐसा ही होने की उम्मीद है. लेकिन उम्मीद यह भी है कि फेसबुक का उपयोग करने वाले यूजर्स के लिए यह तब भी लोगों से जुड़ने और संवाद स्थापित करने का माध्यम बना रहेगा. क्योंकि हमारे लिए कल भी फेसबुक का आज जैसा होना ही जरूरी है.

फेसबुक के आज के स्वरूप के परिपक्व होने की कई वजहें हैं. ये वजहें परिवर्तन है. वे परिवर्तन जो फेसबुक अपने मौजूदा रूप में दुनिया भर के समाज में लाया है. दुनिया छोटी है, इसे फेसबुक ने ही सच किया. जितने लोगों को फेसबुक ने आपस में जोड़ा, उतने लोगों को आज तक के इतिहास में किसी और कंपनी ने आपस में नहीं जोड़ा. आपस में जुड़ने के बाद जिस तरह लोग एक-दूसरे से कनेक्ट हुए, पहले कभी नहीं हुए. पूरी दुनिया को ‘ऑनलाइन’ करने का परिवर्तन फेसबुक ही लाया. फेसबुक ने यूजर को आत्म-मोहित नहीं बनाया, उसे सोशल शेयरिंग का नया चलन सिखाया जिसमें लोगों ने ऐसी चीजों को भी खूब शेयर किया जिसमें ‘वे’ नहीं थे, सिर्फ उनसे जुड़ी खबरें, गाने, वीडियो नहीं थे. और इसी नये चलन वाली शेयरिंग ने ‘न्यूज फीड’ को एक गैर-पारंपरिक और मजेदार अखबार बना दिया. फेसबुक ने राजनीति को भी बदला. लगभग हर देश की. ओबामा ने 2008 में जिस तरह फेसबुक का अपने कैंपेन के लिए उपयोग किया उसकी नकल हम आज-कल भारत के फेसबुक पन्नों पर देख ही रहे हैं. लेकिन फेसबुक ने सबसे ज्यादा राजनीति को मिडिल ईस्ट में बदला, इतना कि फेसबुक को उस क्रांति का ‘जीपीएस’ तक कहा गया. फेसबुक ने भाषा को भी बदला. इंग्लिश शब्दकोशों को फ्रेंड, लाइक, पोक, वॉल, टैग, अनलाइक, अनफ्रेंड जैसे हर्फों के नए अर्थ देकर.

हिंदुस्तान में फेसबुक ने कई चीजों के साथ हिंदी को भी बदला. क्षेत्रीय भाषाओं को भी. नए लेखक दिए. चिरकुट नज्म लिखने वाले कवियों को अपने-अपने पन्नों पर छपने का मौका भी. अभिव्यक्ति की एक नई और बड़ी खिड़की खोली. जिज्ञासु मगर हिंदी साहित्य से दूर हिंदी प्रेमियों को ‘नौकर की कमीज’ और मुक्तिबोध से परिचित करवाया. खत्म होते जा रहे ब्लॉग कल्चर को नया ‘लिंक’ दिया. भाषाओं को सहेजा, उनमें नए शब्द जोड़े.

भाषाओं से हटकर, इसने हमें प्यार भी करवाया. यह भी बताया कि एक किताब है जो कभी खत्म नहीं होगी. और वैसे तो यह फेसबुक के नाम प्रेम-पत्र नहीं है, लेकिन उसके लिए हमारा प्रेम कम भी नहीं है!

(फेसबुक का­ एक दशक, 28 फरवरी 2014 में प्रकाशित)

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