
उत्तराखंड में हुआ हालिया नेतृत्व परिवर्तन केदारनाथ आपदा के नहीं बल्कि पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद दिल्ली में आई आपदा के फलस्वरूप हुआ. उत्तराखंड की विडंबना है कि राज्य गठन के बाद यहां के विधायक अब तक एक बार भी अपना मुख्यमंत्री नहीं चुन पाए हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों के आलाकमान ने यहां मुख्यमंत्री रोपे और थोपे. कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद दोनों बार, 2002 और 2012 में विधायकों का बहुमत हरीश रावत के साथ था. लेकिन सूबों में जनाधारविहीन और कमजोर मुख्यमंत्री रखने के पक्षधर कांग्रेस आलाकमान ने पहले मौके पर कूड़ेदान में फेंके हुए नारायण दत्त तिवारी को झाड़-पोंछ कर उत्तराखंड भेज दिया. ये वही तिवारी थे जिन्होंने उत्तराखंड आंदोलन के दौरान घोषणा की थी कि अलग राज्य उनकी छाती पर बनेगा. आखिर में उन्हीं को नवगठित राज्य की छाती पर ला कर बिठा दिया गया. तिवारी चूंकि उम्र की गोधूलि बेला में थे और प्रधानमंत्री के सिवा अन्य कोई भी पद उनकी महत्वाकांक्षाओं के परे था इसलिए वे राज्य में आराम की मुद्रा में ही रहे. पूरे पांच साल में वे शायद एक हफ्ते भी अपने दफ्तर में नहीं बैठे होंगे. उनका राज शयन कक्ष से ही चलता रहा.
पांच साल के वनवास के बाद 2012 में कांग्रेस दोबारा सत्तासीन हुई तो तब भी विधायकों का बहुमत हरीश रावत के पक्ष में था. लेकिन कांग्रेस आलाकमान की पसंद अब तक के सर्वाधिक अवांछित और अलोकप्रिय मुख्यमंत्री कहे जा रहे विजय बहुगुणा बने. तब रावत समर्थक विधायकों ने कई दिन तक दिल्ली में बवाल काटा था. लेकिन किसी भय या लालच के कारण हरीश रावत ने हथियार डाल दिए और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य में चार कदम भी पैदल चल पाने की इच्छा और शक्ति से विहीन विजय बहुगुणा अपने पांचसितारा कल्चर के साथ यहां आ धमके.
क्या आपने विश्व में कोई ऐसा लोकतांत्रिक शासक देखा है जिसके राज्य के एक हिस्से में आपदा के कारण हजारों लाशें मलबे में दबी पड़ी हों और वह मौके पर जाने के बजाय दिल्ली के फेरे लगा रहा हो? महाआपदा के चार दिन बाद जब बहुगुणा वहां गए भी तो किसी पर्यटक या दर्शक की तरह हवाई दौरे पर कुछ देर के लिए. यह भी एक तथ्य है कि विजय बहुगुणा ने ऐसा पहला मुख्यमंत्री होने का रिकॉर्ड कायम किया जिसने एक रात भी अपने राज्य के किसी जिले में रात्रि विश्राम की जहमत नहीं उठाई. आपदा हो या उत्सव, उन्होंने शाम ढलते ही देहरादून या दिल्ली के लिए उड़ान भर ली. इन तमाम परिस्थितियों के चलते जब उत्तराखंड में कांग्रेस की दुर्गति होने की आशंका की रिपोर्ट दिल्ली पंहुची, और पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में कांग्रेस मुंह के बल गिरी तो घबराहट में हरीश रावत को यहां भेजा गया.
भले ही रावत उत्तराखंड कांग्रेस में सर्वाधिक जनाधार वाले नेता हैं, लेकिन यह भी विडंबना है कि उन्हें भी आलाकमान की इच्छा से भेजा गया. जब कांग्रेस के 32 में से 22 विधायक उनके समर्थन में दिल्ली में डेरा जमाए हुए थे तो कांग्रेस आलाकमान ने उन सभी को धमका कर वापस खदेड़ भगाया था.