राष्ट्रीय धरोहरों से छेड़छाड़ क्यों?

Hologram of the statue of Netaji Subhas Chandra Bose unveiled by the PM, on the occasion of the Parakram Diwas celebrations, at India Gate, in New Delhi on January 23, 2022.

मोदी सरकार ने ऐतिहासिक अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में कर दिया विलीन

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक इंडिया गेट पर पिछले क़रीब पाँच दशकों से जल रही अमर जवान ज्योति से छेड़छाड़ करना, जगह बदलना या उसको बुझा देना कितना उचित है? यह ख़बर आज देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। सन् 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध और बांग्लादेश की आज़ादी के लिए शहीद हुए 3,000 भारतीय सैनिकों की याद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 26 जनवरी, 1972 में इस अखण्ड ज्योति को प्रज्ज्वलित किया था। इस अमर जवान ज्योति की शाश्वत लौ (ज्योति) को प्रज्ज्वलित की थी।

हालाँकि पिछले क़रीब पाँच दशक से जल रही यह अमर जवान ज्योति देश की आज़ादी के बाद सन् 1947 से लेकर अब तक शहीद हुए क़रीब 25,000 वीर जवानों के सम्मान में जल रही थी। लेकिन इस जीत के 50 साल बाद मोदी सरकार ने उस लौ को वहाँ से हटाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही लौ में विलीन कर दिया है। कुछ लोग प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय को ग़ैर-वाजिब कहकर इसका विरोध कर रहे हैं।

ग़ौरतलब है कि अमर जवान ज्योति की जगह बदलने का निर्णय इसका फ़ैसला प्रधानमंत्री मोदी ने सन् 2019 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के उद्घाटन के वक़्त लिया था। प्रधानमंत्री मोदी अपने कई अनोखे और सख़्त निर्णय के लिए जाने जाते हैं। हालाँकि कई लोगों का मानना यह भी है कि उनका इतिहास को बदलना देश के लिए उचित नहीं है। इसके अलावा बहुत-से लोग सम्मान के साथ उन्हें अपना अगुवा मानते हुए इस काम को भी सम्पूर्ण देशवासियों के लिए काम करने की बात कह रहे हैं। वहीं विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि मौज़ूदा कुछ वर्षों में मोदी सरकार द्वारा ऐसे कई काम हुए हैं, जिससे जनता में असुरक्षा, आपसी मतभेद और सरकार के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। इन कामों में ऐतिहासिक से छेड़छाड़ करना, नोटबन्दी करना, जीएसटी लगाना, तीन कृषि क़ानून लेकर आना, बड़े पैमाने पर दर्ज़नों अमीरों द्वारा बैंकों का पैसा लेकर भागना, देश में महँगाई व बेरोज़गारी का बढऩा, महामारी आने पर तालाबन्दी करना देशवासियों के बेहद कड़ुवे अनुभव रहे हैं, जिससे देश की अर्थ-व्यवस्था बेहद ख़राब हुई है। विपक्षियों का मानना है कि इस सबके बावजूद सरकार ने सेंट्रल विस्टा (केंद्रीय योजना) जैसी महँगी योजना की शुरुआत अत्यधिक आवश्यक काम बताकर तब की है, जब इसकी हाल-फ़िलहाल कोई ख़ास ज़रूरत ही नहीं थी। अब इसी सरकार ने लगभग 50 साल से लगातार शहीदों के सम्मान में जल रही अमर जवान ज्योति को इंडिया गेट से हटाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ले जाकर उसे इस स्मारक की ज्योति में विलीन कर दिया। सरकार में मंत्रियों समेत कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया है, तो कुछ ने विरोध किया है। वहीं अधिकतर लोग इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।

बहरहाल यह इन दिनों चर्चा का एक बड़ा और गरम मुद्दा है। दरअसल अमर जवान ज्योति और इंडिया गेट से न केवल लोगों की भावनाएँ जुड़ी हैं, बल्कि वे यहाँ और कुछ न होने के बावजूद हर दिन सैकड़ों की संख्या में जुटते रहे हैं, जहाँ कि अब उनका प्रवेश बिल्कुल बन्द कर दिया गया है। अब अमर जवान ज्योति इंडिया गेट की जगह उसके पास स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही ज्योति के साथ मिलकर जल रही है। इसे बुझाने जितना अपराध मानकर इस पर बहस छिड़ गयी है कि मौज़ूदा मोदी सरकार आज़ादी से लेकर 2014 तक का पूरा-का-पूरा इतिहास मिटाकर 2014 में सत्ता में आने के बाद से नया इतिहास लिखने की कोशिश कर रही है। हालाँकि एक बात यह भी है कि प्रधानमत्री मोदी के इस फ़ैसले का लोग स्वागत भी कर रहे हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर इंडिया गेट पर उनकी प्रतिमा लगेगी। इससे पहले सरकार ने यह भी फ़ैसला किया था कि अब गणतंत्र दिवस समारोह नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी से शुरू होकर 30 जनवरी महात्मा गाँधी की हत्या वाले दिन तक मनाया जाएगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को भारत के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक इंडिया गेट पर लगाने के निहितार्थ कुछ भी हों और उन पर शायद तीखी बहस ज़रूर होगी; लेकिन लोग इसका विरोध नहीं करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार और इतिहास के जानकार विवेक शुक्ला बताते हैं कि राजधानी में उनकी पहली प्रतिमा लुटियंस दिल्ली की बजाय लाल क़िले के पास 23 जनवरी, 1975 को एडवर्ड पार्क में ही लग गयी थी। वहाँ पर नेताजी की मूर्ति लगने के बाद एडवर्ड पार्क का नाम सुभाष पार्क कर दिया गया था। ग़ौरतलब है कि सुभाष पार्क में लगी मूर्ति में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने इंडियन नेशनल आर्मी के साथियों के साथ हैं। उसका अनावरण तब के उप राष्ट्रपति बी.डी. जत्ती ने किया था। इस मूर्ति को यहाँ पर स्थापित करने में कम-से-कम 10 दिन लगे थे। मूर्ति लगने के कई दिनों के बाद तक दिल्ली में रहने वाले कई लोगों को इसके सामने हाथ जोडक़र खड़े रहते देखा जा सकता था। दरअसल जबसे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई है, मौज़ूदा मोदी सरकार ने लोगों के ज़ेहन में बसे इंडिया गेट पर निर्माण की धुन में ख़ुदार्इ शुरू करा रखी है, जिसके चलते यहाँ हर तरफ़ धूल-ही-धूल दिखायी देती है। इससे इंडिया गेट की तस्वीर कितनी बदलेगी? बिगड़ेगी या सँभलेगी? यह तो हम नहीं कह सकते। लेकिन यह तो निश्चित है कि आने वाले समय में इंडिया गेट वाली ज़मीन पर आम लोगों के क़दम शायद ही पड़ें। क्योंकि यह जगह प्रधानमंत्री आवास और उप राष्ट्रपति आवास के अधीन जा सकती है।