कत्यूरी राजवंश के एक राजकुमार मालूशाही और तिब्बत सीमा निवासी एक साधारण व्यापारी की पुत्री राजुला के प्रेम से उपजी यह कथा सदियों बाद भी उत्तराखंड के लोक गीतों में जिंदा है. सभी प्रेम कथाओं की तरह इस कथा में भी सामाजिक, जातीय, क्षेत्रीय और परंपरागत विषमताओं की बाधाएं हैं. कहानी का खलनायक दूसरे देश तिब्बत का है. पर दोनों प्रेमी अपनी जान की बाजी लगाते हुए दुनिया के इन बंधनों को तोड़ कर अंतत: एक होते हैं.
कथा की शुरुआत बैराठ (अब कुमाऊं में पड़ने वाला चौखुटिया क्षेत्र) से होती है जहां का संतानहीन राजा दुलाशाह संतान प्राप्ति के लिए बागनाथ में भगवान शिव की आराधना कर रहा है. वहीं पर शौका प्रदेश का एक व्यापारी सुनपत भी संतान की आकांक्षा लिए तप कर रहा है. दुलाशाह सुनपत को वचन देता है कि यदि उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है तो वह उस पुत्र की शादी भगवान के ही आशीर्वाद से होने वाली सुनपत की पुत्री से करेगा.