मोदी से मुठभेड़ की तैयारी

अपनी परंपरागत राजनीति के लिए प्रसिद्ध मुलायम सिंह यादव फिलहाल बेटे अखिलेश यादव को छूट देने को तैयार दिखते हैं
अपनी परंपरागत राजनीति के लिए प्रसिद्ध मुलायम सिंह यादव फिलहाल बेटे अखिलेश यादव को छूट देने को तैयार दिखते हैं

2017 के विधानसभा चुनावों में अभी कुछ वक्त है लेकिन उत्तर प्रदेश में सिर उठा रही नई राजनीतिक स्थितियों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी ने अपने संगठन के भीतर आमूल परिवर्तन की शुरुआत की है. पार्टी आम जनता के बीच सरकार की सकारात्मक छवि बनाने और सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है.

पार्टी के भीतर मौजूद ऐसे तत्वों से छुटकारा पाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरी तरह से तैयार और सतर्क दिखते हैं, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के भीतर रहकर उसकी दुर्गति का कारण बने थे. पार्टी सूत्र बताते हैं कि इन योजनाओं के अलावा 2017 में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए समय रहते योग्य उम्मीदवारों का चयन करना भी पार्टी के एजेंडे में सर्वोपरि है.

‘उत्तर प्रदेश में लंबे समय से एक राजनीतिक ठहराव की स्थिति बन गई थी. अब समय आ गया है कि इसे खत्म कर एक नई शुरुआत की जाय.’ एक वरिष्ठ सपा नेता कहते हैं. वे तहलका को बताते हैं कि पहले चरण में उनकी योजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों में पर्यवेक्षकों को भेजने की है. उन्हें साफ शब्दों में हिदायत है कि वे हर क्षेत्र में साफ और ईमानदार छवि वाले संभावित उम्मीदवारों का चयन करें.

अक्टूबर महीने में पार्टी की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पार्टी के सबसे ताकतवर महासचिव रामगोपाल यादव ने खुले शब्दों में पार्टी के साथ लोकसभा चुनावों में दगाबाजी करने वाले नेताओं की पहचान करके उन्हें पार्टी से निकाल बाहर करने की बात कही थी. उनके इस बयान से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की स्थिति भी काफी मजबूत हुई है. रामगोपाल यादव के साथ उनके रिश्ते बहुत गहरे माने जाते हैं. इस घोषणा का समर्थन करके अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव और दूसरे चाचाओं की छाया से बाहर निकलने में एक हद तक कामयाब हुए हैं. उन्हें स्वतंत्र रूप से पार्टी हित में कठोर फैसले करने की छूट मिल गई है.

हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी सपा की चिंता को चार गुना किया है. दोनों राज्यों की जनता ने परिवारवादी, सामंती राजनीति को अंगूठा दिखा दिया है. लंबे समय से लोगों में भय और जात-पात की राजनीति कर रहे क्षेत्रीय दलों को मुंह की खानी पड़ी है. सपा की अपनी राजनीति भी काफी हद तक इन्हीं फार्मूलों से संचालित होती आई है. सपा खुद यादव परिवार कि निजी संस्था की तरह काम करती आई है.

सपा के रुख में आए बदलाव से लगता है कि उसने दोनों राज्यों (हरियाणा, महाराष्ट्र) के नतीजों से बड़ा सबक सीखा है. पार्टी की मंशा है कि वह दागी और अपराधी किस्म के नेताओं से समय रहते मुक्त हो जाय. ‘इसी वजह से पार्टी विधानसभा चुनावों से काफी पहले ही जनता से जुड़ने का अभियान शुरू कर चुकी है,’ सीपीआई के पूर्व राज्य सचिव अशोक मिश्रा कहते हैं.

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