मुसीबतों से लडऩे की बारी

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’ देश गणतंत्र दिवस मना चुका है और अमृत महोत्सव भी मना रहा है। लेकिन साल की शुरुआत जोशीमठ के धँसने जैसी दु:खद घटना से हुई। यह भारत के हिमायली और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए एक चिन्ताजनक घटना है। हालाँकि इससे निपटने की क्षमता किसी में नहीं है; लेकिन दूसरी ओर चीन द्वारा अवैध अतिक्रमण जारी है। इसके साथ ही अभी कोरोना महामारी का प्रकोप गया नहीं है। बढ़ती आबादी देश के लिए अगल मुसीबत बनी हुई है। जनगणना न कराने के पीछे भी कई राज़ छिपे हुए हैं। जनवरी की शुरुआत में ही भारत की ओर चीन ने कुछ क़दम और बढ़ाकर यह संकेत दिया है कि वह छोटी-मोटी हूलों से मानने वाला नहीं है। यह कोई सामान्य बात नहीं है कि चीन लगातार भारत की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करता जा रहा है, जिसे सामान्य तौर पर लेना अब ठीक नहीं है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी कई बार चीन के नापाक इरादों के बारे में स्पष्ट बयान दे चुके हैं। वह चीन के साथ भारत के द्विपक्षीय सम्बन्धों को असामान्य कहते रहे हैं और साफ़ कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा में गम्भीर बदलाव हुए हैं। बेशक इसमें काफ़ी कुछ उस प्रचंड चुनौती पर केंद्रित है, जिसका हम चीन से लगने वाली अपनी उत्तरी सीमाओं पर सामना कर रहे हैं। जनवरी के मध्य में आये विदेश मंत्री के इस बयान को भी केंद्र सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि चीन ने भारत की उत्तरी सीमाओं पर सैन्य ताक़त के बूते और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों का उल्लंघन कर यथास्थिति को बदलने की कोशिश की है। ज्ञात रहे कि इसके पहले भी चीन कई बार भारत की सीमा में घुसपैठ कर चुका है। केंद्र सरकार को 5 मई 2020 की रात की वह घटना नहीं भूलनी चाहिए, जिसमें चीन के सैनिकों ने लद्दाख़ के पैंगॉन्ग लेक पर भारतीय जवानों पर हमला किया था। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश के एक युवक को चीनी सैनिकों द्वारा उठाया जाना भी छोटी बात नहीं है। सैटेलाइट ने चीन द्वारा भारत के क्षेत्र में गांव बसाने वाली ख़बरों और क़ब्ज़े वाली तस्वीरों को जब जारी किय जा चुका है। इसके बावजूद लंबे समय तक केंद्र सरकार की ओर से यह कहा जाना कि चीन से भारत को कोई ख़तरा नहीं है, काफ़ी हैरान करता है। कोरोना महामारी के दौरान जिस प्रकार चीन ने इसका फ़ायदा उठाकर भारत की ज़मीन पर क़ब्ज़े की नीति को बरकरार रखा है, उससे साफ़ है कि चीन किसी बड़े जबाव के बग़ैर मानने वाला नहीं। सीमा पर सैन्य शक्ति, टैंक, और बंकर बनाने के बाद चीन एलएसी बॉर्डर के पास 60,000 मेगावॉट की क्षमता वाले डैम का निर्माण भारत पर हमले की नीयत और तैयारी के उद्देश्य से कर रहा है। तबाही मचाने की क्षमता रखने वाले इस डैम को चीन मैडोग एलएसी बॉर्डर पर बना रहा है, जिसका काम काफ़ी तेज़ी से चल रहा है। ख़बरों के मुताबिक, यह डैम अरुणाचल प्रदेश के नज़दीक है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार इससे अनजान है। इस पानी से किये जाने वाले युद्ध की आशंका के चलते ही केंद्र सरकार भी पूरी तैयारी कर रही है, ताकि अगर चीन डैम का पानी भारत में छोड़ता है, तो उससे निपटने की तैयारी भारत ने कर ली है। क्योंकि इसके जवाब में केंद्र सरकार ने भी अरुणाचल प्रदेश में कई बेहतरीन डैम बनाने शुरू कर दिये हैं। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से नेशनल हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट ने 2,000 मेगा वाट के सुबंसीरी लोअर हाइड्रो प्रोजेक्ट तैयार कर लिया गया है। साथ ही चीन को जवाब देने के लिए अरुणाचल प्रदेश में दूसरे आठ प्रोजेक्ट एनएचपीसी के चल रहे हैं, जो चीन को मुँह तोड़ जवाब देने के लिए पर्याप्त हैं। चीन अपना 60,000 मेगावाट क्षमता वाला ही डैम वहाँ की यारलुंग त्सांगपो नदी पर बना रहा है; लेकिन केंद्र सरकार कई ऐसे अन्य प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जिससे चीन द्वारा एलएसी बॉर्डर पर बनाये जा रहे इस डैम का जवाब दिया जा सके। अरुणाचल प्रदेश के नज़दीक डैम बनाकर चीन सोच रहा है कि वह डैम के फाटक खोलकर अरुणाचल प्रदेश को बहाने की सोच पाले बैठा है।