झारखण्ड में घूम रहा आदमख़ार तेंदुआ

क्या जंगल में मानव की दख़लंदाज़ी से बढ़ रही परेशानी?

झारखण्ड में इन दिनों एक आदमख़ार तेंदुआ ने प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सभी को परेशान कर रखा है। पिछले डेढ़ महीने से झारखण्ड के गढ़वा ज़िले के लोग दहशत में जी रहे हैं। चार बच्चों और कई मवेशियों को आदमख़ार तेंदुआ अपना शिकार बना चुका है। वन विभाग की टीम तेंदुआ को पकडऩे या मारने की कोशिश में लगी है; लेकिन कामयाबी अभी तक नहीं मिली है।

कब मिलेगी यह भी कहना मुश्किल है। हाथियों का आतंक भी पूरे राज्य में पहले से बढ़ा हुआ है। इस बीच एक भालू ने गढ़वा में ही आंतक मचा रखा है। भालू ने शौच करने गयी एक महिला को घायल कर दिया। सवाल उठता है आख़िर मानव और वन्यजीव संघर्ष क्यों बढ़ गया है? ऐसा हम क्या कर रहे हैं कि देश के कई हिस्सों में इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं।

100 गाँवों के लोग दहशत में

पलामू प्रमंडल के गढ़वा ज़िले के प्रादेशिक वन क्षेत्र में बीते वर्ष 15 दिसंबर से एक आदमख़ार तेंदुआ का आतंक है। इस क्षेत्र के लगभग 100 गाँव के लोग दहशत में जी रहे हैं। आदमख़ार तेंदुआ ने अब तक गढ़वा ज़िले में तीन बच्चों की जान ली है। वहीं लातेहार ज़िले में एक को मारा है। अधिकारियों के मुताबिक, लातेहार ज़िले के अंतर्गत पलामू ब्याघ्र आरक्ष (पीटीआर) के छिपादोहर वन क्षेत्र में एक 12 वर्षीय लडक़ी तथा गढ़वा ज़िले के भंडरिया, रंका एवं रमकंडा प्रखंड क्षेत्र में एक-एक बच्चे की जान तेंदुआ ने ली है। तेंदुआ ने अंतिम बार 28 दिसंबर को रमकंडा प्रखंड क्षेत्र में हमला कर बच्चे को मार डाला था। इसके बाद से किसी व्यक्ति पर हमले की बात सामने नहीं आयी है।

हालाँकि बीच-बीच में पशुओं पर हमले और मारने की बात आ रही है। तेंदुआ के आतंक और हो रहे हमले के विरोध में ग्रामीणों ने सडक़ जाम किया। सरकार की तरफ़ से मृतक के परिजनों को मुआवज़ा दिया गया और फिर तेंदुआ को पकडऩे के लिए वन विभाग ने प्रयास शुरू किया।

तेंदुआ को मारने की अनुमति

आदमख़ार तेंदुआ को पकडऩे के लिए वन विभाग ने पूरा प्रयास किया। हैदराबाद के चर्चित जंगली जानवरों के शूटर नवाब शपथ अली ख़ान से सम्पर्क किया गया। ख़ान 5 जनववरी से गढ़वा में कैंप किये हुए हैं। तेंदुआ को पकडऩे का पूरा प्रयास किया गया।

शूटर ख़ान समेत वन विभाग के अधिकारी गढ़वा के भंडरिया वन क्षेत्र के अधीन रमकंडा प्रखंड के कुशवार गाँव से तेंदुआ की तलाश का अभियान शुरू किया था। इसके बाद आसपास के क्षेत्र में तलाशी अभियान जारी है। इसी समय सेट्रेंकुलाइजर बंदूक में हर दिन बुलेट डालकर बंदूक को अभियान के लिए तैयार किया जाता रहा। आधा दर्ज़न बार इस क्षेत्र में तेंदुआ के रेंज से बाहर होने के कारण उसे ट्रेंकुलाइज नहीं किया जा सका।

ऐसे में ट्रेंकुलाइजर बंदूक की बुलेट रोज़ बर्बाद होती चली गयी। बुलेट में मिलायी गयी दवा 24 घंटे बाद एक्सपायर हो जाती है। ऐसे में तेंदुआ को पकडऩे के लिए अभियान में हर दिन 2.5 हज़ार रुपये की दवा बर्बाद होती जा रही थी। फिर भी तेंदुआ पकड़ से बाहर रहा। अंतत: इसे मारने की अनुमति दी गयी।

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शशिकर सामंता ने 18 जनवरी को तेंदुआ को मारने का आदेश जारी किया। इसके लिए उन्होंने अधिकृत शूटर नवाब शपथ अली ख़ान की टीम को अधिकृत किया है। तेंदुआ को पकडऩे या मारने के लिए शूटर ख़ान की टीम के अलावा वन विभाग की 10 टीम के 60 से अधिक कर्मी दिन-रात जंगल की ख़ाक छान रहे हैं। अब तक दो दर्ज़न से अधिक गाँवों में 60 कैमरे लगाये जा चुके हैं। कई जगह पिंजरे लगाये गये हैं।

एक- दो जगह आदमख़ार तेंदुआ दिखा भी; लेकिन रेंज के बाहर होने के कारण ट्रेंकुलाइज नहीं किया जा सका। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि तेंदुआ को अभी भी पकडऩे का ही प्रयास होगा, अगर यह सम्भव नहीं होगा, तभी मारा जाएगा। इस बीच संजय टाइगर रिजर्व के एक्सपर्ट को भी बुलाया गया है। वह भी तेंदुआ को पकडऩे में लग गये हैं। वार्डन शशिकर सामंता ने अपने आदेश में आगामी 31 जनवरी तक ही आदमख़ार तेंदुआ को मारने की अनुमति दी है। अगर तब तक तेंदुआ को नहीं मारा जा सका, तो क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है। जानकारों का कहना है कि समय सीमा पूरी होने के बाद फिर से मारने की अनुमति लेनी होगी। उधर तेंदुआ को प्राधिकृत एजेंसी ही मारेगी। यदि अन्य कोई मारेगा, तो उसके विरुद्ध आपराधिक प्राथमिकी दर्ज होगी। ऐसी स्थिति में आगे क्या निर्णय होता है, यह देखने वाला होगा।

भालू और हाथियों का भी कहर

राज्य में जंगली हाथियों का कहर आम बात है। हर दिन किसी न किसी इलाक़े से हाथियों द्वारा घर ध्वस्त किये जाने, किसानों का फ़सल नष्ट किये जाने या किसी को मारने की सूचना मिलती रहती है। अभी हाल में 23 जनवरी को धनबाद क्षेत्र में एक वृद्ध को हाथी ने पटक कर मार डाला। इसी तरह 23 जनवरी को ही गढ़वा ज़िले के भंडरिया थाना क्षेत्र के पर्रो गाँव निवासी आँगनबाड़ी सहायिका रामचंद्र सिंह की 50 वर्षीय पत्नी पनकुरी देवी भालू ने घायल कर दिया। वह घर से थोड़ी दूर पर शौच करने लिए गयी थी। इसी दौरान भालू ने हमला किया। वह गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती है।

राज्यों में टकराव

झारखण्ड समेत देश के कई राज्यों से मानव और वन्यजीव संघर्ष की सूचना मिलती रहती है। अभी कुछ महीने पहले नोएडा, गुरुग्राम, जयपुर और बेंगलूरु जैसे शहरों के रिहायशी इलाक़ों में तेंदुए जैसे जानवरों के देखे जाने की घटनाएँ सामने आयी थीं। बीते साल नवंबर में मैसूर में रिहायशी इलाक़े में तेंदुआ घुस आया था। जिसे बाद में पकड़ा गया। भोपाल में कई बार बाघ-तेंदुआ लोगों पर हमला कर चुके हैं। हाल में छत्तीसगढ़ में एक आदमख़ार तेंदुआ को पकडऩे में सफलता मिली है। इसी तरह देश के विभिन्न हिस्सों से वन्यजीव के हमले की जानकारी आती रहती है। आख़िर यह हो क्यों रहा है? क्यों जंगली जानवर इस क़दर हिंसक हो रहे?

संघर्ष कर रहे वन्यजीव

वन्य जीव से जुड़े जानकारों के बीच मानव-वन्यजीव संघर्ष पर कम ही मतभेद है। सभी की बातों में कई तरह की समानताएँ हैं। वाशिंगटन विश्वविद्यालय और पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर ब्रियाना अब्राहम की अगुवाई में मानव-वन्यजीव संघर्ष पर शोध किया गया है। इस शोध में जलवायु में हो रहे बदलावों के चलते लोगों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढऩे की जानकारियाँ सामने आयी हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष तब होते हैं, जब लोग और वन्यजीव एक ही इलाक़े में चले जाते हैं या भोजन जैसे समान संसाधनों के लिए मुक़ाबला करते हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिक तंत्र को तनावपूर्ण बना रहा है। जिसके चलते वहाँ रहने वाले जीवों के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। जो मानव-वन्यजीव संघर्षों को अंजाम दे रहा है। इसी तरह अन्य जानकारों का कहना है कि वन क्षेत्र में धीरे-धीरे अतिक्रमण हो रहा। वन क्षेत्र सिकुड़ते जा रहे हैं। मानव बस्तियाँ वन क्षेत्र में बसती जा रही हैं।

भोजन और आश्रय की तलाश अब जंगली जानवरों को उन जगहों पर जाने को मजबूर कर रहा है, जहाँ पर मनुष्यों की रिहाइश है। इसका परिणाम है कि वन्यजीव रिहायशी क्षेत्रों तक पहुँच रहे। मानव और वन्यजीव में संघर्ष बढ़ रहा। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल क्षेत्र में मनुष्य की दख़लंदाज़ी बढ़ गयी है। इससे जंगली जानवर तनावग्रस्त होते हैं, जिस वजह से संघर्ष बढ़ रहा।

समझदारी की ज़रूरत

देश में शेर, बाघ की तुलना में तेंदुओं की स्थिति बेहतर है। भारत में तंदुए की संख्या में 2014 के मुक़ाबले इज़ाफ़ा हुआ है। 2014 में जहाँ तेंदुआ 8,000 थे, वहीं अब लगभग 14,000 हैं। देश में सबसे अधिक तेंदुआ मध्य प्रदेश में पाया जाता है। देश में बाघ की संख्या काफ़ी कम है। इन विलुप्त होती प्रजातियों को बचाने के लिए ठोस क़दम और नियम बनाये गये हैं। 2011 में भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने मानव-तेंदुए संघर्ष के प्रबंधन को लेकर दिशा-निर्देश शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया कि तेंदुए आमतौर पर मनुष्यों पर अकारण हमला नहीं करते।

वो अधिकतर आत्मरक्षा में मनुष्यों पर हमला करते हैं। तेंदुए आमतौर पर मनुष्यों से दूर भागते हैं। इसी तरह हाथियों और अन्य जीवों के बारे में शोध सामने आये हैं। वह भी अधिकतर भोजन की तलाश में ही रिहायशी क्षेत्र तक पहुँचते हैं। इन संघर्षों को रोकने के लिए केवल नियम ही काफी नहीं है। इसके लिए पूर्व के शोध और नये शोध के ज़रिये ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है, तभी मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोका जा सकेगा।