भ्रष्टाचार की परियोजनाएँ!

कैग रिपोट्र्स में केंद्र सरकार की कई परियोजनाओं में पायी गयी गड़बड़ी भ्रष्टाचार पर तब तक रोक नहीं लग सकती, जब तक सरकार भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा नहीं कसेगी। सरकार की अनदेखी के चलते भ्रष्टाचार नहीं रुक पाते। कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कई केंद्रीय योजनाओं में ख़ामियाँ पायी गयी हैं। बता रहे हैं मुदित माथुर :- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के कामकाज और प्रदर्शन में गम्भीर प्रक्रियात्मक और वित्तीय विसंगतियों को उजागर किया है। प्रमुख और कल्याणकारी योजनाओं-परियोजनाओं में वित्तीय विसंगतियों को लेकर विपक्षी दलों की ने सरकार की कड़ी आलोचना की है। विपक्षी दलों ने भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी शासन और सार्वजनिक धन के उचित आवंटन और भारत के लोगों से प्रधानमंत्री मोदी के अतिशयोक्तिपूर्ण चुनावी वादों के पीछे की वास्तविकता पर भी सवाल उठाये हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 12 ऑडिट रिपोट्र्स जारी की हैं, जिन्हें संसद के मानसून सत्र में संविधान के अनुच्छेद-151 के तहत संवैधानिक आवश्यकता के तहत संसद के रिकॉर्ड में पेश किया गया था। वित्तीय विसंगतियों पर प्रकाश डालने वाली ये रिपोट्र्स सार्वजनिक शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने का आह्वान करती हैं। भारतीय संविधान ने सर्वोच्च सार्वजनिक निधि लेखा परीक्षक कैग को राजस्व प्राप्तियों और सार्वजनिक धन के ख़र्च पर कड़ी निगरानी रखने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करने के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों की समेकित निधि से कोई दुरुपयोग या हेराफेरी होने पर संसद को रिपोर्ट करने के लिए बाध्य किया है। विभिन्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के धन के उपयोग का ऑडिट करते हुए कैग ने ‘भारतमाला’, ‘आयुष्मान भारत’, ‘उड़ान’, ‘स्वदेश दर्शन योजना’, बीपीएल में आने वालों की पेंशन के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) निधि के उपयोग और मंत्रालय की अन्य योजनाओं का प्रचार करने में प्रमुख राजकोषीय ख़ामियों को उजागर किया। इसके अलावा 2021-22 वित्तीय वर्ष में रेलवे के प्रदर्शन के परिचालन अनुपात में गिरावट और अस्वीकृत व्यय करने की निरंतर प्रवृत्ति का कैग ने पहले ही उल्लेख किया था। भारतमाला परियोजना 2017-18 से 2020-21 की अवधि के लिए आयोजित ‘भारतमाला परियोजना के चरण-1 के कार्यान्वयन’ (या बीपीपी-1) पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट में राजमार्ग परियोजना- भारतमाला परियोजना चरण-1 (बीपीपी-1) के कार्यान्वयन में गम्भीर विसंगतियों को उजागर किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है :- ‘कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा परियोजनाओं के आवंटन में अनियमितताओं के अलावा निविदा की निर्धारित प्रक्रियाओं में स्पष्ट उल्लंघन पाये गये। अर्थात् कहीं सफल बोलीदाता ने निविदा शर्तों को पूरा नहीं किया, या कहीं ग़लत दस्तावेज़ों के आधार पर बोलीदाता का चयन किया गया, या अनुमोदित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के बिना या दोषपूर्ण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के आधार पर उन्हें काम सौंपा गया।’ रिपोर्ट में द्वारका एक्सप्रेस-वे परियोजना के बजट में भारी वृद्धि का भी पता चला है, जिसे दिल्ली और गुरुग्राम के बीच एनएच-48 को 14-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग के रूप में विकसित करके जाम कम करने के उद्देश्य से प्राथमिकता दी गयी थी। दरअसल परियोजना की प्राथमिकता देश भर में माल ढुलाई और लोगों की आवाजाही को अनुकूलित करने की थी। अक्टूबर, 2017 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 74,942 किलोमीटर लम्बाई के राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए भारतमाला परियोजना नामक एक नये छत्र कार्यक्रम को मंज़ूरी दी थी। उपरोक्त लम्बाई में से राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 34,800 किलोमीटर, जबकि शेष राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) की लम्बाई 10,000 किलोमीटर है। इस भारतमाला परियोजना (बीपीपी-1) के चरण-ढ्ढ के तहत सितंबर, 2022 तक विकास के लिए 5,35,000 करोड़ रुपये के निवेश परिव्यय को मंज़ूरी दी गयी थी। परियोजना के तहत सात घटक हैं। जैसे- आर्थिक कॉरिडोर्स (गलियारे), अंतर-गलियारे और फीडर सडक़ें, राष्ट्रीय गलियारे / राष्ट्रीय गलियारा दक्षता सुधार कार्यक्रम, सीमाएँ और अंतरराष्ट्रीय सम्पर्क सडक़ें, तटीय और बंदरगाह कनेक्टिविटी सडक़ें, ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेस-वे और शेष एनएचडीपी परियोजनाएँ। भारतमाला परियोजना का कार्यान्वयन सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) द्वारा अपनी कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से कराया जाता है। जैसे- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल), सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की सडक़ शाखा और राज्य लोक निर्माण विभाग इत्यादि। द्वारका एक्सप्रेस-वे रिपोर्ट में कहा गया है कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की योजना शुरू में हरियाणा सरकार ने गुडग़ाँव-मानेसर शहरी निर्माण योजना-2031 के तहत बनायी थी। इस परियोजना के तहत हरियाणा ने 25 मीटर के मुख्य कैरिज-वे के निर्माण के लिए 150 मीटर रास्ते का अधिकार (सडक़ की चौड़ाई) का अधिग्रहण किया, जिसमें 7 मीटर चौड़ा मीडियन और ट्रंक सेवाओं के लिए एक समर्पित उपयोगी कॉरिडोर था। हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा सरकार द्वारा आगे कोई प्रगति नहीं होने के कारण इस परियोजना को बाद में सीसीईए द्वारा बीपीपी-1 में मंज़ूरी दे दी गयी थी।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि इस उद्देश्य के लिए हरियाणा द्वारा 90 मीटर रास्ते का अधिकार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को मुफ़्त में सौंप दिया गया था। दरअसल 14 लेन के राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए 70-75 मीटर तक चौड़ाई (रास्ते) की आवश्यकता होती है। हालाँकि रिकॉर्ड पर किसी भी कारण के बिना 19 किलोमीटर लम्बी हरियाणा क्षेत्र की इस परियोजना को आठ-लेन एलिवेटेड मेन कैरिज-वे के साथ और ग्रेड रोड पर छ: लेन के साथ योजनाबद्ध किया गया था, जबकि एनएचएआई के पास पहले से ही 90 मीटर के रास्ते का अधिकार था और यह ग्रेड में 14 लेन के निर्माण के लिए पर्याप्त था। इस तरह की विशाल संरचनाओं के कारण 29.06 किलोमीटर की लम्बाई के लिए ईपीसी (इंजीनियरिंग, ख़रीद और निर्माण) प्रणाली पर निर्मित इस परियोजना में अनुमोदित 18.20 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर निर्माण लागत के मुक़ाबले 250.77 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर यानी 7,287.29 करोड़ रुपये की निर्माण लागत को सीसीईए द्वारा मंज़ूरी दी गयी थी। एमओआरटीएच ने द्वारका एक्सप्रेस-वे को चार परियोजनाओं में विभाजित करके (नवंबर, 2018 में) इसके निर्माण को प्राथमिकता दी। एनएचएआई ने 7,287.29 करोड़ रुपये की सिविल लागत के साथ इन चार परियोजनाओं के निर्माण को (जनवरी-मार्च 2018 में) मंज़ूरी दी। इन परियोजनाओं के नवंबर, 2020 से सितंबर, 2022 के बीच पूरा करना था। इन परियोजनाओं ने 31 मार्च, 2023 तक 60.50 प्रतिशत से 99.25 प्रतिशत के बीच वास्तविक प्रगति हासिल की थी। द्वारका एक्सप्रेस-वे को 250.77 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर लागत पर राष्ट्रीय राजमार्ग-48 के समानांतर चलने वाले 14 लेन के राष्ट्रीय राजमार्ग में विकसित करके दिल्ली से गुरुग्राम के बीच एनएच-48 का भार कम करने के लिए इस परियोजना का निर्माण किया जा रहा था, जबकि आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने राष्ट्रीय कॉरिडोर / राष्ट्रीय गलियारा दक्षता सुधार कार्यक्रम के लिए महज़ 18.20 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर लागत को मंज़ूरी दी थी। परियोजना के व्यवहार्यता अध्ययन के अनुसार, दिल्ली से गुरुग्राम के बीच एनएच -48 पर चलने वाले औसतन 3,11,041 दैनिक यातायात में से 2,88,391 यानी 92.72 प्रतिशत यात्री-वाहन शामिल थे। इनमें से 2,32,959 यानी 80.78 प्रतिशत यात्री-वाहन केवल अंतर-शहर यातायात वाले थे। राष्ट्रीय राजमार्ग-48 पर ( दिल्ली-गुरुग्राम यातायात, जो गुडग़ाँव सीमा पार नहीं करता था) खेडक़ी दौला टोल को पार नहीं कर रहा है। बीपीपी-ढ्ढ के तहत द्वारका एक्सप्रेस-वे की प्राथमिकता की समीक्षा करते समय कैग ने निम्नलिखित तथ्य पाये :- कोई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट नहीं द्वारका एक्सप्रेस-वे की अलग-अलग परियोजनाओं का मूल्यांकन (दिसंबर, 2017-फरवरी, 2018) परियोजना मूल्यांकन और तकनीकी जाँच समिति द्वारा किया गया था और एनएचएआई बोर्ड द्वारा परियोजना (जनवरी-मार्च, 2018) के लिए किसी भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के बिना अनुमोदित किया गया था, जो आज तक तैयार नहीं किया गया है। यहाँ तक कि एनएचएआई द्वारा परियोजना के अनुमोदन के बाद परियोजना की अंतिम व्यवहार्यता रिपोर्ट (सितंबर, 2018) प्रस्तुत की गयी थी। कैग जाँच में पाया गया कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की चार परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया था और बिना किसी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के एनएचएआई के सम्बन्धित तकनीकी प्रभाग द्वारा एक संक्षिप्त प्रस्तुति के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया गया था। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार न करने के प्रभाव ये हुए कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की सभी 14 लेन के निर्माण के लिए एनएचएआई के पास रिकॉर्ड पर पर्याप्त रास्ता उपलब्ध होने के बावजूद इसे बिना किसी कारण के आठ लेन एलिवेटेड रोड और ग्रेड रोड पर छ: लेन के साथ बनाया जा रहा था। इस परियोजना के लिए 250.77 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर की सिविल लागत बहुत अधिक थी। द्वारका एक्सप्रेस-वे की नियोजित टोल दरें और टोलिंग तंत्र परियोजना की पूँजीगत लागत की वसूली में बाधा डाल सकते हैं। इससे दिल्ली-गुडग़ाँव (खेडक़ी दौला टोल प्लाजा तक) के बीच जाने वाले यात्रियों पर अनुचित वित्तीय बोझ भी पड़ सकता है। आरआरटीएस एसएनबी के विकास के रूप में द्वारका एक्सप्रेस-वे की लेनों के बीच की दूरी प्रतिस्पर्धी बुनियादी ढाँचे के विकास का विश्लेषण किये बिना निर्धारित की गयी थी। दिल्ली से गुरुग्राम तक भारी यातायात के बावजूद इस ग्रेड भाग का निर्माण 20 मिलियन स्टैंडर्ड एक्सेल ट्रैफिक के उप-सर्वोत्तम विनिर्देशों के साथ किया जा रहा था; जिसमें हरियाणा क्षेत्र में पडऩे वाली इस परियोजना के ग्रेड भाग में छ: लेन का उपयोग करने की उम्मीद थी। व्यवहार्यता अध्ययन में द्वारका एक्सप्रेस-वे की अनुमानित मिट्टी का कैलिफोर्निया अनुपात मूल्य ठेकेदार द्वारा विचार किये गये कैलिफोर्निया अनुपात मूल्य की तुलना में कम था, जिसके परिणामस्वरूप निर्माण की लागत में ठेकेदार को बचत हुई। इस गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा- ‘इस योजना में धोखाधड़ी का एक स्पष्ट उदाहरण द्वारका एक्सप्रेस-वे है। कैग ने इसका ख़ुलासा किया है कि इस परियोजना की लागत मूल रूप से 528.8 करोड़ रुपये आँकी गयी थी; लेकिन यह बाद में 1,278 प्रतिशत की भारी वृद्धि के साथ 7,287.2 करोड़ रुपये तक पहुँच गयी! द्वारका एक्सप्रेस-वे का मूल्यांकन किया गया और बिना किसी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के इसे मंज़ूरी दी गयी। नियोजित टोल दरें परियोजना की पूँजीगत लागत की वसूली में बाधा डालेंगी और इसके परिणामस्वरूप यात्रियों पर अनुचित वित्तीय बोझ पड़ेगा। द्वारका एक्सप्रेस-वे के लेन-विन्यास को आस-पास के प्रतिस्पर्धी बुनियादी ढाँचे के विकास का विश्लेषण किये बिना निर्धारित किया गया था। खडग़े ने कहा कि प्रधानमंत्री जी! आपको अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का राग अलापने से पहले अपने भीतर झाँकने की ज़रूरत है; क्योंकि आप ख़ुद इसकी देख-रेख कर रहे हैं। इसके लिए 2024 में भारत आपकी सरकार को जवाबदेह बनाएगा।’ द्वारका एक्सप्रेस-वे के निर्माण की उच्च लागत को लेकर चिन्ता जताने वाली कैग-रिपोर्ट पर उठे राजनीतिक विवाद के जवाब में केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कैग की इस टिप्पणी को ख़ारिज कर दिया कि इसे बनाने में 250 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर ख़र्च किये गये। निर्माण की उच्च लागत के आरोपों को ख़ारिज करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि द्वारका एक्सप्रेस-वे 29 किलोमीटर लम्बा नहीं, बल्कि लगभग 230 किलोमीटर लम्बा है; क्योंकि इसमें सुरंगें भी शामिल हैं। इस हिसाब से प्रति किलोमीटर 9.5 करोड़ रुपये ख़र्च किये जा रहे हैं। गडकरी ने दावा किया कि उन्होंने कैग अधिकारियों को भी यही बताया और वह स्पष्टीकरण से आश्वस्त थे। हालाँकि उन्होंने कहा कि फिर भी वह रिपोर्ट का पूरा अध्ययन करेंगे। एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक में द्वारका एक्सप्रेस-वे के निर्माण की लागत के सम्बन्ध में कैग द्वारा उठाये गये सवालों के जवाब के लिए ज़िम्मेदार कुछ अधिकारियों द्वारा अपनाये गये एकतरफ़ा रवैये पर गडकरी ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। उन्होंने अपने मंत्रालय के सम्बन्धित वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से इस चूक की ज़िम्मेदारी तय करने का भी निर्देश दिया। टोल नियमों का उल्लंघन करके वसूले करोड़ों दक्षिण भारत में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की टोल संचालन पर कैग रिपोर्ट में पाया गया है कि पाँच टोल प्लाजा में टोल-नियमों का उल्लंघन करते हुए यात्रियों से कुल 132.05 करोड़ रुपये की राशि वसूल की गयी। यह ऑडिट पाँच दक्षिणी राज्यों- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में स्वतंत्र रूप से चुने गये 41 टोल प्लाजा पर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि मौज़ूदा चार लेन राजमार्गों के उन्नयन के सम्बन्ध में 16 दिसंबर, 2013 के एनएच शुल्क संशोधन नियम-2013 को लागू न करके एनएचएआई ने निर्माण की देरी के कारण इस अवधि के दौरान तीन टोल प्लाजा (नाथावालसा, चलागेरी, हेब्बलू) में उपयोगकर्ताओं शुल्क वसूलना जारी रखा। हालाँकि संशोधित नियम में कहा गया है कि विलंबित अवधि के लिए कोई उपयोगकर्ता शुल्क नहीं लिया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप मई, 2020 से मार्च, 2021 की अवधि के दौरान संशोधित टोल शुल्क नियमों का उल्लंघन करते हुए 124.18 करोड़ रुपये का उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र किया गया। रिपोर्ट में पाया गया कि परनूर टोल प्लाजा पर एनएचएआई ने शुल्क को लागू शुल्क से 75 प्रतिशत तक कम करने में देरी की। मडापम टोल प्लाजा पर संशोधित शुल्क नियमों के अनुसार उन्नयन के दौरान कोई संशोधन नहीं करने की शर्त के बावजूद एनएचएआई ने सालाना उपयोगकर्ता शुल्क में संशोधन किया। एनएचएआई ने अगस्त, 2018 से मार्च, 2021 तक दो टोल प्लाजा पर सडक़ उपयोगकर्ताओं से 7.87 करोड़ रुपये एकत्र किये। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रकार इन पाँच टोल प्लाजा में टोल संग्रह से सडक़ उपयोगकर्ताओं पर 132.05 करोड़ रुपये का अनुचित बोझ पड़ा। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एनएचएआई ने 2017-2018 से 2020-2021 के दौरान सार्वजनिक वित्त पोषित परनूर टोल प्लाजा पर सडक़ उपयोगकर्ताओं से 22.10 करोड़ रुपये का अतिरिक्त टोल शुल्क वसूला। सन् 1954 में एक पुल का निर्माण किया गया था और इसके लिए उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र किया जा रहा था, फिर से एनएच शुल्क द्वितीय संशोधन नियम-2011 का उल्लंघन किया गया था। चूँकि नियमों के तहत पुल का निर्माण सन् 1956 से पहले किया गया था, इसलिए उपयोगकर्ता शुल्क नहीं लगाया जाना था। ऑडिट में यह भी पाया गया कि एनएच शुल्क नियम-2008 द्वारा निर्धारित समय सीमा के अनुसार सार्वजनिक वित्त पोषित परियोजनाओं के चार खंडों में टोल संग्रह में देरी से एनएचएआई को 64.60 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक़सान हुआ। स्वास्थ्य योजनाओं में गड़बड़ी पीएम-जेएवाई को दुनिया की सबसे बड़ी पूरी तरह से सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजना माना जाता है, जिसे 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सितंबर, 2018 में कल्याणकारी उपायों के एक प्रमुख बूस्टर मुद्दे के रूप में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य 50 करोड़ से अधिक ग़रीब परिवारों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। इस योजना के तहत प्रति परिवार सालाना पाँच लाख रुपये तक का इलाज प्रदान किया जाता है। कैग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-151 के तहत भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से संसद में पेश अपनी ऑडिट रिपोर्ट में ख़ुलासा किया है कि सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) में सब कुछ ठीक नहीं है। इसमें योजना के कार्यान्वयन में स्पष्ट ख़ामियाँ पायी गयी हैं, जिसमें धन का दुरुपयोग, फ़र्र्ज़ी खाते, उचित सुबूत के बिना धन जारी करने और यहाँ तक कि उन रोगियों के नाम पर भुगतान किये गये दावे भी शामिल हैं, जो पहले ही मर चुके हैं। आयुष्मान भारत को लेकर किये गये ऑडिट में कैग ने कहा है कि योजना की लाभार्थी पहचान प्रणाली (बीआईएस) में कुल मिलाकर 7,49,820 लाभार्थियों को एक ही मोबाइल नंबर से जोड़ा गया है। इसी तरह सात आधार नंबरों पर 4,761 पंजीकरण किये गये। गुमशुदा अस्पतालों को सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत नामांकित किया गया है। बीआईएस डेटाबेस के डेटा विश्लेषण से पता चला है कि एक ही या अमान्य मोबाइल नंबर से बड़ी संख्या में लाभार्थी पंजीकृत थे। कुल मिलाकर 1,119 से 7,49,820 लाभार्थियों को बीआईएस डेटाबेस में एक ही मोबाइल नंबर से जोड़ा गया। एबी-पीएमजेएवाई के तहत कुल 7,49,820 लाभार्थी एक ही अमान्य मोबाइल नंबर 9999999999 से जुड़े थे। इसके अलावा 1,39,300 लाभार्थी एक अमान्य मोबाइल नंबर 8888888888 पर पंजीकृत थे; जबकि 96,046 लाभार्थी दूसरे अमान्य मोबाइल नंबर 9000000000 से जुड़े थे। रिपोर्ट में ख़ुलासा किया गया है कि कम से कम 20 सेलफोन नंबर भी थे, जिनसे 10,001 से 50,000 लाभार्थी जुड़े हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 7.87 करोड़ लाभार्थी परिवारों को पंजीकृत किया गया था, जो 10.74 करोड़ (नवंबर 2022) के लक्षित परिवारों का 73 फ़ीसदी था। बाद में सरकार ने लक्ष्य बढ़ाकर 12 करोड़ कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटाबेस में किसी भी लाभार्थी से सम्बन्धित रिकॉर्ड खोजने के लिए मोबाइल नंबर महत्त्वपूर्ण हैं, जिनसे आईडी के बिना पंजीकरण डेस्क से सम्पर्क किया जा सके। ई-कार्ड खो जाने की स्थिति में लाभार्थी की पहचान करना भी मुश्किल हो सकता है। इससे पात्र लाभार्थियों को योजना के लाभों से वंचित किया जा सकता है और साथ ही प्रवेश से पहले और बाद के संचार से इनकार किया जा सकता है, जिससे उन्हें असुविधा हो सकती है।