
भाजपा का दावा है कि देश भर में जबर्दस्त नरेंद्र मोदी की लहर है और उनके अभियान से उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए व्यापक जनसमर्थन तैयार हुआ है. फिर भी आपको सुरक्षित सीट की तलाश करनी पड़ी. आपको अपनी पुरानी सीट गाजियाबाद छोड़कर लखनऊ क्यों आना पड़ा?
यह कहना सही नहीं होगा कि मैं लखनऊ इसलिए आया क्योंकि यह सुरक्षित सीट है. देखिए, सभी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में कहा गया है कि गाजियाबाद भाजपा के लिए सुरक्षित सीट है. मीडिया ने इस बारे में खूब खबरें दिखाई हैं. पार्टी ने रणनीति के तहत कुछ कदम उठाए हैं. उसी के तहत ही केंद्रीय चुनाव समिति ने यह फैसला किया कि नरेंद्र मोदी पूर्वी उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ेंगे. इससे स्वाभाविक तौर पड़ोसी राज्य बिहार की भी कुछ सीटों पर असर पड़ेगा. मुझे मध्य उत्तर प्रदेश से लड़ने को कहा गया ताकि अवध और बुंदेलखंड इलाके को प्रभावित किया जा सके.
लखनऊ से पार्टी के मौजूदा सांसद लालजी टंडन के बारे में माना जा रहा है कि वे टिकट न दिए जाने से नाराज हैं. वे प्रदेश के इकलौते वर्तमान सांसद हैं जिन्हें टिकट नहीं दिया गया.
इसमें कोई सच्चाई नहीं है. टंडन जी पूरी लगन से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. बल्कि वे तो मेरा चुनाव प्रबंधन संभाल रहे हैं. यह कहना सही नहीं होगा कि उन्हें टिकट नहीं दिया गया. उन्होंने खुद ही लोकसभा चुनाव न लड़ने की मंशा जताई थी.
लखनऊ में बड़ी मुस्लिम आबादी है. 2002 के दंगे और मोदी की छवि अभी तक लोगों के मन में छाई हुई है. उनका विश्वास जीतने के लिए आपने क्या योजना बनाई है?
हम जाति-धर्म की राजनीति नहीं करते. हम समाज के सभी वर्गों की समानता में यकीन रखते हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों. मेरा विश्वास सामाजिक न्याय और मानवता की राजनीति में है और मुझे यकीन है कि इन लोकसभा चुनावों में समाज का हर वर्ग भाजपा का समर्थन करेगा.
लखनऊ में सवर्णों की आबादी भी अच्छी-खासी है, खासतौर पर ब्राह्मणों की संख्या काफी है. लेकिन वे आपको राजपूतों का नेता मानते हैं.
मैं अपनी बात को दोहराता हूं. मैंने कभी जाति की राजनीति नहीं की. मैंने कभी किसी ऐसे लोकसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ा जहां मेरी बिरादरी के लोग बड़ी संख्या में हों.