बलराज साहनी

Balra-Sahani.
इलेस्ट्रेशन: मनीषा यादव

‘गरम हवा’ में आखिरी बार देखा
बलराज साहनी को
जिसे खुद बलराज साहनी नहीं देख पाए

जब मैंने पढ़ी किताब
भीष्म साहनी की लिखी
‘मेरा भाई बलराज’
तो यह जाना कि
हमारे इस महान अभिनेता के मन में
कितना अवसाद था

वे शांतिनिकेतन में
प्रोफेसर भी रहे
और गांधी के
वर्धा आश्रम में भी रहे
गांधी के कहने पर
उन्होंने बीबीसी लंदन
में भी काम किया

लेकिन उनके मन की अशांति
उनके रास्तों को बदलती रही

जब वे बंबई के पृथ्वी थियेटर में आए
इप्टा के नाटकों में काम करने
जहां उनकी मुलाकात हुई
ए.के. हंगल और दूसरे
कई बड़े अभिनेताओं और पटकथा लेखकों और शायरों से

दो बीघा जमीन में
काम करते हुए
बलराज साहनी ने देखा
फिल्मों और समाज के किरदारों
के जटिल रिश्तों को
धीरे-धीरे वे
अपने भीतर की दुनिया से
बाहर बन रहे नए समाज
के बीच आने-जाने लगे

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