पर्यावरण की अनदेखी
विरोध के बावजूद विश्व स्तरीय वाढवण बंदरगाह के विस्तार को मिली मंज़ूरी
एम.एस. नौला / केशर सिंह बिष्ट
आख़िर प्रधानमंत्री मोदी के एक और ड्रीम प्रोजेक्ट के सामने मछुआरों व पर्यावरण वादियों का सपना चूर हो गया। स्थानीय लोगों के कड़े विरोध के बीच क़रीब 77,196 करोड़ रुपये की लागत के विश्व स्तरीय वाढवण बंदरगाह के विस्तार को मंज़ूरी दे दी गयी है। डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (डीटीईपीए) द्वारा जेएनपीए के तहत बनाये जा रहे वाढवण बंदरगाह के लिए इस साल 31 जुलाई को आश्चर्यजनक रूप से एनओसी दे दी गयी। डीटीईपीए और सरकार के बीच की लड़ाई दशकों पुरानी है। दरअसल इस प्राधिकरण की स्थापना ही डहाणू तालुका के पर्यावरण की रक्षा करने और इस बंदरगाह को अनुमति न देने के सिलसिले में हुई थी।
वाढवण बंदरगाह विरोधी संघर्ष कृति समिति के सचिव वैभव वझे कहते हैं- ‘वाढवण बंदरगाह को सशर्त प्राथमिक एनओसी मिलने की अधिकृत आदेश की कॉपी अभी तक हमें नहीं मिली है। इस बंदरगाह के निर्माण के ख़िलाफ़ हमारी जो लड़ाई चल रही थी, वह क़ानूनी रूप से चलती रहेगी।’
बहरहाल इस मेगा पोर्ट का निर्माण दो चरणों में होगा। जेएनपीए पहले चरण में विकास कार्यों पर 44,000 करोड़ रुपये और दूसरे चरण के काम के लिए निजी क्षेत्र से 33,000 करोड़ रुपये ख़र्च होंगे। इसमें बंदरगाह तक जाने वाली अलग-अलग सडक़ों का निर्माण, ब्रेकवाटर, ड्रेजिंग, रिक्लेमेशन, भूमि अधिग्रहण, रेलवे लाइन का निर्माण, बिजली आपूर्ति प्रणाली, बाँधों का निर्माण, जल आपूर्ति, कार्गो बर्थ का निर्माण आदि काम होंगे। स्थानीय मछुआरों के कड़े विरोध, सीआरजेड, केंद्रीय मंत्रालय से एनओसी और पर्यावरण विभाग से विभिन्न मंज़ूरी मिलने में देरी के चलते चार साल से इसका काम ठप पड़ा था। डीटीईपीए की अनुमति के आधार पर जेएनपीए का कहना है कि वह अब सभी आवश्यक अनुमति की मंज़ूरियों के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण विभाग को एक प्रस्ताव सौंपेगी। बता दें कि डहाणू तालुका पर्यावरण के मद्देनज़र बेहद संवेदनशील है। सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका के आधार पर केंद्र सरकार ने डहाणू तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण बनाया। इस प्राधिकरण के तत्कालीन अध्यक्ष व रिटायर्ड न्यायाधीश स्वर्गीय धर्माधिकारी व प्राधिकरण सदस्यों ने बंदरगाह के निर्माण की अनुमति नहीं दी थी।