महिलाओं का ग़ायब होना दुर्भाग्यपूर्ण

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 02 अगस्त को गुजरात के गाँधीनगर में आयोजित जी-20 के महिला सशक्तिकरण मंत्री-स्तरीय सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से सम्बोधित करते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण पर ख़ास बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण विकास को गति देता है। उन्हें सशक्त बनाने का सबसे प्रभावी तरीक़ा महिला-नीत विकासात्मक नज़रिया है। जब महिलाएँ समृद्ध होती हैं, तो दुनिया समृद्ध होती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं का नेतृत्व समावेशिता बढ़ाता है।

प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में यह भी बताया कि भारत में ग्रामीण स्थानीय निकाहों में 46 फ़ीसदी यानी कि 14 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएँ हैं। नागरिक उड्डयन में सबसे अधिक महिला पायलट वाले देशों की सूची में भारत भी शामिल है। इसके अलावा भारतीय वायुसेना में महिला पायलट अब लड़ाकू विमान भी उड़ा रही हैं। ज़ाहिर तौर पर प्रधानमंत्री ने विदेशी प्रतिनिधियों के सम्मुख देश में महिला सशक्तिकरण की एक उज्ज्वल तस्वीर आँकड़ों के साथ पेश की। अब इस उज्ज्वल तस्वीर के समानांतर देश में लड़कियों व महिलाओं की एक और स्थिति को यहाँ पर रखते हैं। देश में लापता लड़कियों और महिलाओं के आँकड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पर गम्भीर सवाल उठते हैं।

22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से प्रधानमंत्री ने इस योजना को लॉन्च किया था। इस योजना का मक़सद देश में शिशु लिंग अनुपात में सुधार, महिलाओं के सशक्तिकरण, लैंगिक समानता व महिलाओं को कमतर समझने की मानसिकता को दूर करने वाले क़दम उठाना आदि है। बाद में इसमें लडक़ी बढ़ाओ भी ज़ोर दिया गया। लेकिन इसी 26 जुलाई को संसद के चालू मानसूत्र में गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने राज्यसभा में एक रिपोर्ट पेश की और बताया कि देश में सन् 2019 से सन् 2021 के दरमियान 13.13 लाख से अधिक लड़कियाँ व महिलाएँ लापता हो गयीं। गृह मंत्रालय ने बताया कि ये आँकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा जुटाये गये हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की क्राइम इन इंडिया नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, 18 साल से कम लापता लड़कियों की संख्या 2,51,430 है और 18 साल से अधिक लापता महिलाओं की संख्या 10,61,648 है।

गृह मंत्रालय ने इन आँकड़ों को संसद में रखा और पेश किये गये आँकड़ों के अनुसार, देश में भाजपा शासित मध्य प्रदेश लापता लड़कियों व महिलाओं में पहले नंबर पर है यानी 2019-2021 के दरमियान यहाँ सबसे अधिक लड़कियाँ व महिलाएँ गुम हुईं।

मध्य प्रदेश में गुम होने वाली महिलाओं की संख्या 1,60180 और लड़कियों की संख्या 38,234 है। इसके बाद पश्चिम बंगाल है, जहाँ की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी हैं; जो इस समय देश की इकलौती महिला मुख्यमंत्री हैं। वहाँ यह आँकड़ा 1,56,905 और 36,606 है। महाराष्ट्र, जहाँ की गठबंधन सरकार में भाजपा के सबसे अधिक विधायक हैं और देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री हैं; वह तीसरे नंबर पर है। महाराष्ट्र में 1,78,400 महिलाएँ और 13,033 लड़कियाँ लापता हो गयी हैं। ओडिशा में बीते तीन वर्षों में 70,222 महिलाएँ और 16,649 लड़कियाँ गुम हो गयी हैं। इसके बाद पाँचवें नंबर पर छत्तीसगढ़ है, जहाँ यह आँकड़ा क्रमवार 49,116 और 10,817 है। तमिलनाडू में इस तीन साल में 18 साल से कम आयु की 14,391 लड़कियाँ व 18 साल से अधिक आयु की 43,529 महिलाओं के लापता होने का रिकॉर्ड सरकार के पास है। गुजरात में लड़कियों के लापता होने का आँकड़ा 4,122 है और ऐसी महिलाओं की संख्या 37,576 है।

हरियाणा में गुम होने वाली लड़कियों की संख्या इन तीन वर्षों में 6,560 व महिलाओं की संख्या 26,471 है। उत्तर प्रदेश में 18 साल से कम आयु की ग़ायब हुई लड़कियों की संख्या 9,479, जबकि महिलाओं की 27,562 है। वैसे लापता हुई लड़कियों व महिलाओं के आँकड़ों हैरत में डालते हैं; बेशक सरकार दस्तावेज़ों में यह भी दावा करती है कि कितनी लड़कियाँ व महिलाओं का पता लगा लिया गया व कितनी रिकवर कर ली गयीं। इन आँकड़ों पर भी निगाह डालनी चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की बेवसाइट बताती है कि सन् 2019 में 18 साल से कम लापता होने वाली 82,619 लड़कियों में से 49,436 को ढूँढ लिया गया था। इसी साल लापता 3,29,504 महिलाओं में से 1,68,793 महिलाओं को ढूँढ लिया गया। वर्ष 2020 में 79,233 लड़कियाँ व 3,44,422 महिलाएँ गुम हो गयीं और उनमें से बरामद होने वाली महिलाओं की संख्या 2,24,043 है और इस साल रिकवर होने वाली लड़कियों की संख्या नहीं बतायी गयी है। वर्ष 2021 में 90,113 लड़कियाँ ग़ायब हो गयीं और उनमें से 58,980 का पता चल गया और ग़ायब होने वाली 3,75,058 महिलाओं में से 2,02,298 को ढूँढ लिया गया।

इन दिनों केंद्र सरकार के बड़े-बड़े मंत्री सार्वजानिक तौर पर यह ऐलान कर रहे हैं कि भारत 2027 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन जाएगा। ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है; लेकिन इसी देश में लापता लड़कियों और महिलाओं की संख्या किसी भी राजनीतिक दल के चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल क्यों नहीं होती? राजनीतिक दल इस पर गम्भीर चर्चा क्यों नहीं करते? सवाल गम्भीर है कि आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है? सन् 2012 के निर्भया-कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा से सम्बन्धित क़ानूनों को और कड़ा बनाया गया; लेकिन ज़मीन पर ह$कीक़त क्या है? क्या स्थितियाँ सुधरी हैं?

जब नारी आन्दोलन शुरू हुआ, तो उसने महिला मुद्दों को मुखरता से उठाया और महिला सुरक्षा पर ख़ास फोकस रखा। नारीवादियों की चिन्ता इस समय भी महिला सुरक्षा है। लेकिन सवाल फिर वही सामने आकर खड़ा हो जाता है कि आख़िर महिलाएँ असुरक्षित क्यों हैं? केंद्र सरकार व विभिन्न राज्य सरकारें महिलाओं के सशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए चलाये जाने वाले कई योजनाओं के बारे में समय-समय पर अवगत कराते रहते हैं।

मध्य प्रदेश में आने वाले दो-तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे, इसके मद्देनज़र मध्य प्रदेश सरकार इन दिनों अपनी उपलब्धियों के बहुत बड़े विज्ञापन से जनता को अवगत करा रही है। मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ माह पहले लाडली बहन योजना शुरू की है, जिसके तहत राज्य की महिलाओं की आर्थिक मदद की जा रही है। इस योजना का विज्ञापन सोशल मीडिया पर अधिक प्रचारित किया जा रहा है।

यहाँ सवाल यह है कि इस राज्य के मुख्यमंत्री सार्वजनिक तौर पर जनता को क्यों नहीं बताते कि उनके शासन में बीते तीन वर्षों से सबसे ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ लापता हुई हैं? ऐसे सरकारी आँकड़े, जो शर्म से सिर झुका देने वाले हों और लड़कियों, महिलाओं की सुरक्षा के बाबत सरकारी और प्रशासनिक तंत्र की पोल खोलते हों, वे क्यों छुपा दिये जाते हैं? ग़ायब होती लड़कियों व महिलाओं की बड़ी तादाद बताती है कि हमारा देश इस मामले में एक असफल राष्ट्र है।

किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा का एक मापक वहाँ की महिला सुरक्षा वाला बिन्दु भी है, जो अहम है। इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। आख़िर लड़कियाँ, महिलाएँ लापता क्यों होती हैं? इसके कारण अलग-अलग हो सकते हैं, जैसे-पढऩे का दबाव, घर का माहौल ख़ुशनुमा नहीं होना, प्रेम सम्बन्ध, किसी तरह का तनाव होना आदि। इसके अलावा नौकरी के झाँसे में आकर घर में बिना बताये कहीं ओर चले जाना। यहाँ पर लापता लड़कियों व महिलाओं की मानव तस्करी होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

गौरतलब है कि कई बार ऐसे समाचार सामने आते हैं, जिसमें लउ़कियों को किसी-न-किसी बहाने फुसलाकर घर से बाहर ले जाया गया व फिर उन्हें तस्करी करने वाले गिरोह के पास बेच दिया गया। तीन महीने पहले मई में महाराष्ट्र की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने अपने राज्य में लापता लड़कियों व महिलाओं की संख्या के बाबत सरकार से ऐसे मामलों की जाँच के लिए एसआईटी का गठन करने की माँग की थी। अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने कहा कि अधिकतर मामलों में लापता लड़कियों को शादी या नौकरी का लालच देकर फँसाया जाता है।

अगर पुलिस उन्हें फौरन नहीं ढूँढती है, तो उनके यौन शोषण का $खतरा बढ़ जाता है। वैसे ग़ायब लड़कियों व महिलाओं के जो आँकड़े सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होते हैं। ये वो आँकड़े हैं, जो दर्ज हैं। लेकिन असल में यह संख्या अधिक होती होगी; क्योंकि कई अभिभावक या परिजन लड़कियों / महिलाओं के लापता होने की सूचना घर से बाहर साझा करना परिवार की बदनामी से जोडक़र देखते हैं। यह सोच ख़तरनाक है; क्योंकि वह भी इंसान है। यहाँ पर भी समाज का लैंगिक भेदभाव अपना असर दिखाता है। समाज को इस सोच से ऊपर उठने की ज़रूरत है। सरकार बेशक देश की बेटियों व महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनायी गयी नीतियों व क़ानूनों की लम्बी सूची लेकर खड़ी है; लेकिन संसद में पेश किये गये आँकड़े कड़वी हकीक़त सामने रखते हैं।